रविवार, 14 जुलाई 2013

LOOK SOMEBODY WITH A CIVIL EYE ,BE A CIVIL EYE

There is the saying ,"The world is created through your vision ."Let there be spirituality and divinity in your vision .Vision is called drishti .Your drishti should be such that the world changes .You should be able to see whatever you look at or whomever you look at with the vision of soul consciousness .

Have a civil eye .Look at somebody with a civil eye and not with a criminal eye.

Your eye becomes criminal when you look at something or whomever you look at with the vision of body consciousness.

Soul consciousness means to be in the awareness of the self as a being of light seated in the center of the forhead and to interact with others in that consciousness.

जब आप कहतें हैं मैं बहुत सुन्दर हूँ ,बहुत ग्यानी हूँ ,तब आप देह अभिमान 

में होते हैं .आप अपने को जड़ शरीर ही मानने समझने लगते हैं .आदत पड़ी 

हुई है हमें ऐसा करते रहने की द्वापर से .आधा कल्प (सतयुग और त्रेता की 

ढ़ाई हज़ार की अवधि )हम आत्माभिमानी रहे .सोल कान्शश रहे .

द्वापर में आते आते हम अपने को शरीर भी मानने लगे आत्मा भी .हमारी ख़ुशी के साथ ना -ख़ुशी और राजी के साथ नाराजी जुड़ गई .हमारी दृष्टि सिविल के साथ साथ क्रिमिनल भी हो गई .सुख के साथ दुःख आ गया .निरभिमान के साथ अहंकार आ गया .हम खुद अपने को ही नहीं औरों को भी मात्र हाड़  मांस समझने लगे .देह दर्शन केंद्र में आने लगा .योग भोग में बदलने लगा .

कल युग इसी दर्शन की पराकाष्ठा है .

इसीलिए कहा गया जैसी दृष्टि वैसी सृष्टि .कई वाहनों के पीछे लिखा रहता है -बुरी नजर वाले तेरा मुंह काला .काला टायर लटका दिया जाता है नै बनी इमारत के शीर्ष पर .काला टीका लगा दिया जाता है सुन्दर बालक के मस्तक पर .किसी की बुरी नजर न लगे .

स्पंदन पैदा करती है नजर अच्छा या फिर बुरा .सृष्टि भी असरग्रस्त होती है नजर से .आंदोलित होती है .युरी गेलर दृष्टि से चमच्च मोड़ देते थे .चीज़ों को परे सरका देते थे .

शिव का तीसरा नेत्र बहुचर्चित रहा है भक्ति मार्ग में .समझते हैं शंकर (भोले बाबा )को है ये तीसरा नेत्र .

शिव को तीसरे नेत्र की ज़रुरत नहीं है .वह तो सर्व ज्ञाता हैं .सर्वोच्च हैं .सर्व स्वीकृत हैं .इस साकारी ,उस सूक्ष्म लोक और उस निराकारी दुनिया (परमधाम )की सब खोज खबर रहती है उसे .वही बीज रूप है इस सृष्टि का .

ये ज्ञान चक्षु हम बच्चों को मिलता है जब हम ब्रह्मा मुख कमल से निराकार ज्योतिर्लिन्गम शिव के  महावाक्य सुनते हैं .इसी से पृथ्वी पर ब्राह्मण धर्म वंश की स्थापना होती है इसी वक्त .इसी लिए इस वक्त को कहा गया है पुरुषोत्तम संगम युग .इसी वक्त हम पुरुषोत्तम बनते हैं .ब्रह्मामुख से उच्चरित शिव महावाक्य सुन कर .आदि सनातन देवी देवता धर्म की स्थापना आगे जाके सतयुग में होती है .इसीलिए कहा गया -ब्रह्मण सो देवता .हमसो सोऽहं .बोले तो सतयुग में हम ही देवता थे .संगम युग पर पुरुषार्थ करने से हम ही एक बार फिर देवता बनते हैं .द्वापर में आके हम खुद ही के देव स्वरूप को पूजने लगते हैं .कोई विस्मृति सी विस्मृति है .

कोई बर्बादी सी बर्बादी है दस्त (जंगल )को देख के घर याद आया .

द्वापर के आने पर यही होता है .

हमारी दृष्टि पावन बनती है  संगम युग पर  .अभी तो क्रिमिनल है  .इसीलिए निर्भय काण्ड होते हैं .इसी पावन दृष्टि  से पहले हमें प्रदूषित हो चुके पञ्च तत्वों को शुभ स्पन्दन देना है .हमारा परिमंडल तभी शुभ होगा जब हमारी दृष्टि सिविल बनेगी .

हम स्वयं को शांत स्वरूप समझेंगे .आनंद स्वरूप ,प्रेम स्वरूप समझेंगे .अभी तो हम अपना आधार कार्ड (निज स्वरूप )ही भूले हुए  हैं .नए आधार कार्ड ,हमारी एक नै शिनाख्त की ज़रुरत है इस पुरुषोत्तम संगम युग में जब कलयुग का माया रावण अट्टाहस कर रहा है .पृथ्वी ऑक्सीजन पर आ  गई है .रीत गए हैं इसके संसाधन .खो चुकें हैं पञ्च तत्व अपनी तात्विकता .

अभी दृष्टि के परिशोधन की सबसे ज्यादा ज़रुरत है .इस समय किये गए योग बल से ही हमें स्वर्ग (सतयुग )नसीब होता है .अपने को शान्ति स्वरूप आत्मा समझ .आनंद और प्रेम स्वरूप रूह समझ उस रूहानी अल्लाह के साथ रूहरिहान(बातचीत )ही तो करनी है .हटा दीजिये आत्मा के ऊपर चढ़ा रबर देह अभिमान का .आप जड़ देह नहीं हैं वह तो विद्युत-शवदाह  गृह में एक बटन दबाने से ही भस्म हो जाती है .

आप एक फ़रिश्ता हैं .रूह हैं .एक सोफ्टवेयर हैं जो इस हार्ड वेयर (शरीर )को मंदिर मानके चलाने के लिए मिला है इस जन्म में . जन्म जन्मान्तर से यही होता आया है .इससे मुक्ति नहीं है अलबता जीवन मुक्ति ज़रूर है .जीवन मुक्ति बोले तो परमात्मा की याद .रूह रिहान उसके साथ सोते जागते करते रहने की आदत .

बर्तन भी साफ़ करूँ तो लगे उसकी याद में रह कर जन्म ज्न्मानर की खोट (विकार )उतार रही हूँ मैं आत्मा . 

निज आनंद स्वरूप में  रहते हुए मैं सिविल आई बनूँ .

ॐ शान्ति 

1 टिप्पणी:

अशोक सलूजा ने कहा…

ज्योत से ज्योत जलाये चलो ,प्यार की गंगा बहाये चलो
वीरू भाई राम-राम ...ऐसा प्रसाद बांटते रहे !
आभार !ॐ शान्ति ॐ ....