सोमवार, 22 जुलाई 2013

अलंकारी बनो न कि देह -अहंकारी

सदा अलंकारी स्वरूप में स्थित रहने वाला

 (२ १ .० ७ .१ ३ ,प्रात :  मुरली  ,ॐ शान्ति   "अव्यक्त 

बाप दादा " रिवाइज : ० २ . ० २ . १ ९ ७ ७  ,मधुबन )

सदा अलंकारी स्वरूप में स्थित रहने वाला ही स्वयं द्वारा ,बाप का 

साक्षात्कार करा सकता है .

बापदादा स्नेही बच्चों के रूहानी महफ़िल में आये हैं .ऐसे रूहानी स्नेह की 

महफ़िल कल्प में अब संगम पर ही होती है और किसी भी युग में रूहानी 

बाप और बच्चों के स्नेह की महफ़िल नहीं हो सकती है .इस महफ़िल में 

अपने को पद्मापदम भाग्यशाली समझते हो ?ऐसा श्रेष्ठ भाग्य जो स्वयं 

आलमाइटी अथारिटी बाप, बच्चों के, इस भाग्य का वर्रण करते हैं .ऐसे 

भाग्यशाली बच्चों को स्वयं बाप देख हर्षित होते हैं .तो सोचो ऐसा भाग्य 

क्या होगा ?  भाग्य को सुमिरन करते ही बाप की सिमरनी (Rosary )के 

मनके बन सकते हो . इतना ऊंचा भाग्य जिसका आज कलियुग के अंत में 

भी सिमरन करने वाले भक्त अपने को भाग्यशाली समझते हैं .ऐसे श्रेष्ठ 

भाग्य के अनुभव के अञ्चलि के लिए भी सभी तड़पते हैं .ऐसे भाग्य शाली 

हो जिनके नाम से भी अपने जीवन को सफल समझते हैं .तो सोचो यह 

कितना बड़ा भाग्य है .सदैव अपने को इतना भाग्य शाली आत्मा समझते 

हो .

(व्याख्या :सदा अलंकारी  स्वरूप में रहने वाला यहाँ ब्राह्मण वर्ण के 

व्यक्ति को कहा गया है .यह ब्राह्मण बच्चा वह है जिसका स्वभाव संस्कार

 संगम युग पर शिव वाणी ब्रह्मा मुख कमल से सुनकर बदल जाता है .वही 

ब्रह्मा का गोद लिया बच्चा है .ब्रह्मा कुमार या ब्रह्मा - कुमारी है .

उसके अलंकरण ही हैं शंख ,गदा,स्व :दर्शन चक्र ,कमल पुष्प .उसी का 

ज्ञान का तीसरा नेत्र खुलता है .   शंख के समान उसके मुख से 

कल्याणकारी शब्द ही निकलते हैं .मीठा बोलता है वह .कमल के समान 

ग्रहस्थ में रहते हुए भी न्यारा और प्यारा रहता है विकारों से दूर .गदा 

विकारों को भगाने के लिए ही है माया रावण पर प्रहार के लिए है .स्व :दर्शन 

माने उसे अपने शरीर से अलग आत्म स्वरूप का निरंतर बोध रहता है ,यह 

कोई मिसायल नहीं है .संगम पर पहले ब्रह्मण धर्म की ही स्थापना होती है 

.फिर सतयुग में स्थापित होता है आदि सनातन देवी देवता धर्म .जो २ ५ ० 

० बरस तक कायम रहता है .द्वापर से फिर अनेक धर्म वंशों की स्थापना 

होती है .कलियुग आते आते तो आदमी स्व :घोषित भगवान बन जाता 

.धर्म क्या मठों की भी भीड़ लग जाती है .भक्ति एक दम से व्यभिचारी हो 

जाती है .)

यही ब्राह्मण इस समय के राज योग का प्रारब्ध सतयुग में देवता बनके 

भोगते हैं .देवताओं के ये अलंकरण संगम युग के ब्राह्मण बच्चों का ही 

यादगार है .योग बल से उन्हें ही अष्ट शक्तियां प्राप्त होतीं हैं .शक्ति 

स्वरूपा दुर्गा की यही अष्ट भुजाएं योग से प्राप्त अष्ट शक्तियों का प्रतीक 

हैं .(ये ब्राह्मण ब्रह्मा मुख वंशावली हैं  वे भौतिक ब्राहमण कुख वंशावली हैं 

.).

बड़े से बड़ा ब्राह्मण कुल है ,ऐसे ब्राह्मण कुल के भी तुम दीपक हो .कुल के 

दीपक अर्थात अर्थात सदा अपनी स्मृति की ज्योति से ब्राह्मण कुल का 

नाम रोशन करता रहे .ऐसे अपने को कुल का दीपक समझते हो ?सदा 

स्मृति की ज्योति जगी हुई है ?बुझ तो नहीं जाती ?अखंड ज्योति अर्थात 

कभी भी बुझने वाली नहीं .आपके जड़ चित्रों के आगे भी अखंड ज्योति 

जगाते हैं .चैतन्य अखंड ज्योति का ही वह यादगार है तो चैतन्य दीपक 

बुझ सकते हैं ?क्या बुझी हुई ज्योति अच्छी लगती है ?तो स्वयं को भी चेक 

करो ,जब स्मृति की ज्योति बुझ जाती होगी तो कैसा लगता होगा ? क्या 

वह अखंड ज्योति हुई ?ज्योति की निशानी है -सदा स्मृति अर्थात समर्थ 

स्वरूप .समर्थ अर्थात शक्ति .स्मृति का समर्थी  से सम्बन्ध है .अगर कोई 

कहे स्मृति तो है कि बाबा का बच्चा हूँ ,लेकिन समर्थी नहीं है ,यह हो ही 

नहीं सकता क्योंकि स्मृति ही है कि मैं मास्टर सर्व -शक्तिमान (बाप का 

मददगार )बच्चा हूँ .मास्टर सर्व -शक्तिमान अर्थात समर्थ स्वरूप .समर्थ 

अर्थात शक्ति .फिर वह गायब क्यों हो जाती है ?कारण ?एक शब्द की 

गलती करते हो .कौन सी गलती ?बाप कहते हैं 'साकारी सो अलंकारी 'बनो 

.लेकिन बन क्या जाते हो ?अलंकारी के बजाय देह -अहंकारी बन जाते हैं 

.बुद्धि के अहंकारी ,नाम और शान के अहंकारी बन जाते हैं .सदा सामने 

अलंकारी स्वरूप का सिम्बल होते हुए भी अपने अलंकारों को धारण नहीं 

कर पाते .जैसे हद के राजकुमार और राजकुमारियां भी सदा सजे सजाये 

रायल्टी में होते हैं .वैसे ही ब्राहमण कुल की श्रेष्ठ आत्माएं सदा अलंकारों से 

सजे -सजाये होने चाहिए .यह अलंकार ब्राहमण जीवन का श्रृंगार है , न कि 

देवता जीवन का .तो अपने अलंकार के श्रृंगार को सदा कायम रखो .लेकिन 

करते क्या हो ?एक अलंकार को पकड़ते तो दूसरे अलंकार को छोड़  देते हो 

.कोई तीन पकड़  सकते हैं कोई चार पकड़ सकते हैं .(यहाँ अलंकार माने 

योग से प्राप्त अष्ट अलंकार माने विशिष्ट शक्तियां ,जो ब्राहमण जीवन में 

मुखरित और प्रगटित होनी चाहिए ).

बाप -दादा भी बच्चों का खेल देखते रहते हैं .भुजा अर्थात शक्ति ,जिस 

शक्ति के आधार से ही अलंकारी  बन सकते हैं ,वह शक्तियों रुपी भुजाएं 

हिलती रहती हैं .जब भुजाएं हिलती रहती हैं तो सदा अलंकारी कैसे रह 

सकते हैं .इसलिए कितनी भी कोशिश करते हैं अलंकारी बनने की ,लेकिन

 बन नहीं सकते  .तो एक शब्द कौन सा याद रखना है ?किसी भी प्रकार के 

'अहंकारी ' नहीं '  लेकिन अलंकारी 'बनना है .सदा अलंकारी स्वरूप में 

स्थित न होने के कारण स्वयं का ,बाप का साक्षात्कार नहीं करा सकते 

इसलिए अपने शक्ति रुपी भुजाओं को मजबूत बनाओ ,नहीं तो अलंकारों 

की धारणा नहीं कर सकेंगे .अलंकारों को तो जानते हो न ?जानते भी हो 

और वर्रण भी करते हो फिर भी धारण नहीं कर सकते .क्यों ?बाप दादा 

बच्चों की कमजोरी की लीला बहुत देखते हैं जैसे प्रभु की लीला अपरम्पार

 है तो बच्चों की भी लीला अपरम्पार है .रोज़ की नै रंगत में रंग जाते हैं 

.स्व:दर्शन चक्र के बजाय व्यर्थ दर्शन का चक्र चल जाता है .द्वापर से जो 

व्यर्थ कथाएं और कहानियां बड़ी रूचि से सुनने और सुनाने की आदत है 

,वह संस्कार अभी भी अंश रूप में आ जाता है इसलिए कमल पुष्प अर्थात 

कमल पुष्प के अलंकार धारी नहीं बन सकते .कमल की बजाय कमज़ोर 

बन जाते हैं .मायाजीत बनाने का दूसरों को सन्देश देते ,लेकिन स्वयं 

मायाजीत हैं या नहीं ,यह सोचते ही नहीं इसलिए अलंकारी नहीं बन सकते 

.अलंकारी बनो न कि देह -अहंकारी .

ऐसे सदा अलंकारी ,निरहंकारी ,निराकारी स्थिति (ज्योति बिंदु आत्म 

स्वरूप )में स्थित होने वाले ,सदा के विजयी ,सदा जागते हुए दीपक ,विश्व 

को रोशन करने वाले दीपक ,बाप दादा के नैनों के दीपकों को बापदादा का 

याद ,प्यार और नमस्ते .

सन्दर्भ :अव्यक्त वाणी जो विश्व के १ ४ ४ से भी ज्यादा देशों के 8500 से भी ज्यादा ब्रह्मा 

कुमारिस मेडिटेशन केन्द्रों के अलावा अनेक गीता पाठशालाओं में  भी  हर 

रविवार 

प्रात : पढ़ी जाती है .यह विश्व का 

एकल ईश्वरीय विश्वविद्यालय है जिसमें न उम्र की कोई सीमा है न 

मजहब की सभी आयु वर्ग के  आबालवृद्ध यहाँ साकार और अव्यक्त मुरली 

सुनते हैं .ईश्वरीय पढ़ाई पढ़ते हैं जो नारी को लक्ष्मी तथा नर को नारायण 

समान बना देने की क्षमता लिए हुए है .यहाँ पढने वाला हर छात्र गोड्ली 

स्टुडेंट कहलाता है .

यहाँ बापदादा शब्द ब्रह्मा और शिव के संयुक्त रूप के लिए प्रयुक्त हुआ है .

ॐ शान्ति 




(२ ६ )मनमनाभव :सिर्फ एक को ही चित्त में लाओ .अपने को आत्मा समझ सिर्फ बाप(परम आत्मा ) को याद करो .उसी से सर्व सम्बन्ध स्थापित करो .नहीं तो दूसरा सम्बन्ध अपनी तरफ खींच लेगा .

Manmanabhav :Focus your mind on only one :Consider yourself to be a soul and remember God ,the Supreme soul.

(२ ७ )मन्त्र :किसी देवता या धर्म से सम्बंधित ऐसा पवित्र शब्द जिसे दोहराया जाता है जिसका जाप किया जाता है या जिसे गाया जाता है जिसके द्वारा हम  निज के गुणों और स्वरूप को स्मृति  में लाते हैं अनुभूत करते हैं .अपने ईष्ट देव का आवाहन करते हैं .

mantra :  a sacred word with the properties to evoke which is original to the self .

(२ ८ )माया :कोई भी ऐसा दृश्य जो भ्रम पैदा करे ,निराधार विचार या धारणा ,बहकावा ,धोखा देने की क्रिया (छल )जैसे रावण का स्वर्ण मृग का रूप भरके सीता का हरण करना (माया रावण विवेक हर लेता है )माया है .इन्द्रियों द्वारा देखे गए दृश्यमान जगत को मिथ्या (माया )कहा गया है .अवास्तविक वस्तु (किसी और की वस्तु के प्रति सम्मोहन )माया है .विकारों का आत्मा पर पड़ने वाला सूक्ष्म प्रभाव माया है जिसकी वजह देह -भान ,देह -अभिमान(खुद को शरीर मान लेने की भूल,धन और शोहरत का अभिमान,खुद के खूब सूरत शरीर होने का गुमान   ) बनता है .ललचाती है 

माया ,ललचाने वाली जिंस बनके ,लालसा बनके चित्त में घर बना लेती है .

maya :illusion ,deceit ,deception .The world as perceived by the senses ,considered to be illusory .Infatuation with what is unreal.Subtle influence of the vices ,caused by body consciousness .Maya often comes in the form of temptation .

(२ ९ )संगम युग पर  जब परमात्मा निराकार शिव साधारण मनुष्य तन(जिसे  निराकार ज्योतिर्लिन्गम  शिव ,ब्रह्मा नाम देते हैं ) का आधार ले बह्मा मुख कमल से जो ज्ञान वाणी ,महावाक्य सुनाते हैं वही ज्ञान गीता मुरली है .ऐसा एंटी वायरस है मुरली जिसे सुन आत्मा पे चढ़ी विकर्मों की पर्त  उतरने लगती है .वह महा वाणी  है मुरली  जिसे सुन हम (आत्मा )अपने निज शांत ,आनंद और प्रेम स्वरूप में स्थिर हो जाते हैं .

यह बांस की बांसुरी नहीं है ज्ञान मुरली है .विश्व शान्ति का सन्देश है यह महा -वाणी .आत्मा और परमात्मा के बीच का संवाद है मुरली .रूह -रिहान है आत्मा का परम आत्मा के साथ .

murli :The body of teachings known as Raja Yoga is conveyed orally ,and it is referred  to as the murli , or "flute of knowledge."

(३ ०  )नमस्ते :आदर पूर्वक किसी के प्रति आदर अभिवादन स्वरूप बोले गए शब्द ,देह मुद्रा ,अपने को ईश्वर का बच्चा बूझ कर किसी के आगे नमन करना आदर से सर नवाना नमस्ते है .

namste : a greeting  offered with respect : respectful salutation .The meaning is " I bow to you as a child  of God.

ॐ शान्ति 

(ज़ारी )

2 टिप्‍पणियां:

ताऊ रामपुरिया ने कहा…

बहुत ही क्ल्याणकारी और आत्म बोध को प्रेरित करती पोस्ट, आभार.

रामराम.

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

आत्म का बोध कराती पोस्ट