सोमवार, 29 जुलाई 2013

29 July 2013 Murli

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Posted: 28 Jul 2013 09:54 PM PDT
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English Murli

Essence: Sweet children, remember that all three, your Father, Teacher and Satguru, are combined and your mercury of happiness will rise and you will continue to follow His shrimat.
Question: What is the first qualification of Brahmins? In which quality do Brahmins have to become experts?
Answer: The first qualification of Brahmins is to study and teach others. Become expert in colouring others with knowledge. Even if someone insults or defames you, just keep trying to give them knowledge and you will see that they are definitely affected by it. Donate to those who are worthy of it. Be very cautious that the imperishable wealth doesn’t go to waste. Give money to others with great caution.
Song: The rain of knowledge is on those who are with the Beloved.
Essence for dharna:
1. Before you can belong to the most beloved Father, you have to become a complete destroyer of attachment. When your stage becomes strong, become engaged in service.
2. Let your heart have disinterest in this world. Be courageous in becoming pure. Be cautious and give donations to those who are worthy.
Blessing: May you be a conqueror of matter and by staying in the stage of a master wear the rosary of co-operation from matter.
Matter is now invoking you masters. The elements of nature will create upheaval everywhere but, wherever you masters of matter are, nature will become your servant and serve you. You simply have to become conquerors of matter, and matter will then garland you with the garland of co-operation. Wherever you conqueror of matter Brahmins place your feet and wherever your places are, no damage can be caused there. Storms will come, there will be tremors, but, whereas everything outside will be like a crucifix, here, it will be like a thorn. Everyone will come running to you for physical and spiritual support.
Slogan: In order to experience alokik happiness and sweetness of the mind, stay in the stage of manmanabhav.

Hindi Murli

मुरली सार:- ”मीठे बच्चे – याद रखो हमारा बाप, टीचर और सतगुरू-तीनों ही कम्बाइन्ड है तो भी खुशी का पारा चढ़ेगा, उनकी श्रीमत पर चलते रहेंगे”
प्रश्न:- ब्राह्मणों का पहला लक्षण कौन सा है? किस बात में ब्राह्मणों को एक्सपर्ट बनना है?
उत्तर:- ब्राह्मणों का पहला लक्षण है पढ़ना और पढ़ाना। किसी पर भी ज्ञान का रंग चढ़ाने में बहुत-बहुत एक्सपर्ट बनो। भल कोई इन्सल्ट करे, गाली दे लेकिन कोशिश करके देखो तो उस पर असर जरूर होगा। पात्र देखकर दान देना है। अविनाशी धन भी व्यर्थ न जाये इसलिये बड़ी खबरदारी चाहिये। पैसा भी किसको सम्भाल से देना है।
गीत:- जो पिया के साथ है……..
धारणा के लिये मुख्य सार:-
1) मोस्ट बिलवेड बाप का बनने के पहले पूरा-पूरा नष्टोमोहा बनना है। जब अवस्था पक्की हो तब सेवा में लगना है।
2) इस दुनिया से दिल का वैराग्य रख पवित्र बनने में बहादुर बनना है। दान बहुत खबरदारी से पात्र को देखकर करना है।
वरदान:- मालिकपन की स्थिति में रह प्रकृति द्वारा सहयोग की माला पहनने वाले प्रकृतिजीत भव
प्रकृति आप मालिकों का अब से आह्वान कर रही है, चारों ओर प्रकृति के तत्व हलचल करेंगे लेकिन जहाँ आप प्रकृति के मालिक होंगे वहाँ प्रकृति दासी बन सेवा करेगी सिर्फ आप प्रकृतिजीत बन जाओ तो प्रकृति सहयोग की माला पहनायेगी। जहाँ आप प्रकृतिजीत ब्राह्मणों का पांव होगा, स्थान होगा वहाँ कोई भी नुकसान नहीं हो सकता। तूफान आयेगा, धरनी हिलेगी लेकिन बाहर सूली होगा और यहाँ कांटा। सभी आपके तरफ स्थूल सूक्ष्म सहारा लेने के लिए भागेंगे।
स्लोगन:- अलौकिक सुख व मनरस का अनुभव करना है तो मनमनाभव की स्थिति में रहो।

Hinglish Murli

Murli Saar : – ” Mithe Bacche – Yaad Rakho Humara Baap, Teacher Aur Satguru – Teeno Hi Combined Hai Toh Bhi Khushi Ka Para Chadega, Unki Shrimat Par Chalte Rahenge”
Prashna : – Brahman Ka Pehla Lakshan Kaun Sa Hai ? Kis Baat Mei Brahman Ko Expert Bannna Hai ?
Uttar : – Brahman Ka Pehla Lakshan Hai Padhna Aur Padhana. Kisi Par Bhi Gyaan Ka Rang Chadhane Mei Bahut – Bahut Expert Banno. Bhal Koi Insult Kare, Gaali De Lekin Koshish Karke Dekho Toh Us Par Asar Jarur Hoga. Paatra Dekhkar Daan Dena Hai. Avinashi Dhan Bhi Vyarth Na Jaye Isiliye Badi Khabardari Chahiye. Paisa Bhi Kisko Sambhal Se Dena Hai.
Geet : – Jho Piya Ke Saath Hai. .. .. .. .
Dharan Ke Liye Mukhya Saar : -
1 ) Motor Beloved Baap Ka Banne Ke Pehle Pura – Pura Nastomoha Bannna Hai. Jab Avastha Pakki Ho Tab Seva Mei Lagana Hai.
2 ) Is Dunia Se Dil Ka Vairagya Rakh Pavitra Banne Mei Bahadur Bannna Hai. Daan Bahut Khabardari Se Paatra Ko Dekhkar Karna Hai.
Vardan : – Malikpan Ki Stith Mei Rah Prakruti Dwara Sahyog Ki Mala Pehenne Wale Prakritijeet Bhav
Prakruti Aap Maliko Ka Aab Se Aahvan Kar Sahi Hai, Charo Aur Prakruti Ke Tatva Halchal Karenge Lekin Jaha Aap Prakruti Ke Malik Honge Waha Prakruti Dasi Ban Seva Karegi Sirf Aap Prakritijeet Ban Jao Toh Prakruti Sahyog Ki Mala Pehnayegi. Jaha Aap Prakritijeet Brahman Ka Pav Hoga, Sthan Hoga Waha Koi Bhi Nuksan Nahi Ho Sakta. Toofan Aayega, Dharni Hilegi Lekin Bahar Suli Hoga Aur Yaha Kaanta. Sabhi Aapke Taraf Stul Sukhshm Sahara Lene Ke Liye Aayenge.
Slogan : – Alokik Sukh Va Manras Ka Anubhav Karna Hai Toh Manmanabhav Ki Stith Mei Raho.
Posted: 27 Jul 2013 09:44 PM PDT
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२८ और २९ जुलाई की पूरी मुरली इन सेतुओं पर उपलब्ध है जो नीले रंग में दिए गए हैं। ॐ शान्ति। २ ८ जुलाई  की मुरली में ब्राह्मण ब्रह्मा मुख वंशावली ब्रह्मा के मुख से ज्ञान सुनने के बाद जिन बच्चों का स्वभाव संस्कार बदल गया है जो ब्रह्मा एके गोद लिए बच्चे बन गए हैं उन्हें कहा गया है  भौतिक ब्राह्मण (पंडों को नहीं ,ब्राहमण  कुल पैदा लोगों को नहीं )

कर्मों का खाता (karmik accounts) (भाग तीन)

संगम पर बाप आकर बच्चों को ऊंचे ते ऊंचा कर्म कैसे किया जाए 

,समझाते हैं। अ-कर्म जिनका आगे हिसाब किताब नहीं बनता करने की 

विधि समझाते हैं। अब हम बच्चों को उसे एक मेथड एक प्रोद्योगिकी में 

खुद ही बदलना है निरंतर प्रयत्न से पुरुषार्थ से।कर्म और योग का संतुलन 

बनाए रखना है। 

कुछ लोग परोपकार ,लोकहितार्थ किए कार्यों योगदान को ही योग कहते 

बूझते और मानते हैं। वह समझते हैं योग कर्म से ही है ,कर्म को ही योग 

मानते

 हैं  कुछ लोग।  

कर्म योगी का मतलब है एक पल में कर्म करना दूसरे ही पल ही फिर कर्म 

से डीटेच  भी 

हो जाना अशरीर हो जाना अपने मूल  स्वरूप में स्थित हो जाना (कर्म 

करने 

वाली आत्मा बन जाना। ).साक्षी भाव से देखना कर्म कर कौन  रहा है.

इस ड्रिल में तुम्हें कर्म करते करते कर्म से ही उपराम हो जाना है। भूल 

जाना है उस कर्म को ही। उस क्रिया को ही। कर सकोगे तुम ऐसा या उस 

कर्म को अपने चित्त में भी ले आओगे बनाए रहोगे  ?

एक पलांश में कर्म विस्तार का लोप हो जाए सिर्फ तुम्हारा आत्म स्वरूप"

 मैं 

शान्ति स्वरूप ,प्रेम स्वरूप ,आनंद स्वरूप आत्मा हूँ" ,शेष रह जाए। 

कर्म योगी वह है जो कर्मों  से एक सम्बन्ध बनाता है।इसमें मन और बुद्धि 

और 

संस्कार सहयोगी बनें। तभी कर्म से अलग 

 खड़े होकर निर्लिप्त निरपेक्ष  होकर कर्म -प्रेमी बन सकोगे। अपनी संप्रभु 

स्थिति से कर्मेन्द्रियों ज्ञानेन्द्रियों पर पूर्ण मालिकाना भाव रखते हुए हर 

प्रकार के बाहरी प्रभाव से मुक्त हो कर्म करना है। 

हमारे विचार बनते हैं कर्मों के बीज। मन (विचार )बाहर दृश्य जगत से 

आता है आँख और कान से होकर आता है अन्दर तो चित्त होता है। हमारी 

वाणी ,हमारे बोल (वचन ) और क्रिया (एक्शन )हमारे कर्मों का ही विस्तार 

होतें हैं। 

बुद्धि का निर्मल पात्र विचार को  परखे जैसे पारस पत्थर जांच करता है 

खरेऔर खोट मिले सोने की फिर एक शुद्ध चित्त ,अन्तश्चेतना  एक 

आंतरिक- कर्म, बुद्धि बन जाती है बाहर के एक्शन की। अब मन  जो बाहर 

से 

आता है ,कर्म और वचन में. एक समस्वरता एक हार्मनी बन जाती है। अब 

कर्म श्रेष्ठ बनता है आप श्रेश्ठाचारी बन जाते हैं कर्म बंधन से मुक्त रहते 

हैं। कर्म अकर्म बन जाता है। जिसका आगे कोई फल भोग नहीं बनता है। 

कर्म की डोर विचार से बंधी है चेक नहीं करोगे विचार को तो कर्म बन्ध में 

आ जाओगे।

फस्ट देयर इस ए थाट देन इज एक्शन। 

इस चेकिंग ड्रिल का अभ्यास कैसे करें ? 

शुद्ध संकल्प के साथ आज़माइश करके देखो। 

एक्सपेरिमेंट करके देखो। अब जो सोचते ही वह संपन्न होता साफ़ 

दिखलाई देगा (देता है)। अपने और अपने संबंधों पर इसे आजमा के तो 

देखो।शुद्ध संकल्प की डबल पावर प्रेम से संसिक्त हो माया रावण (विकारों 

)को पटकनी मारेगी। तुम्हारा हर कर्म अब शान्ति और सुख का मार्ग 

प्रशस्त  करेगा।  यही कर्म के साथ सम्बन्ध की प्राप्ति है सहज अनुभूति 

है। 

कर्म के साथ जो सम्बन्ध में रहता है वह फल के प्रभाव में न आकर उसका 

मास्टर क्रियेटर बनता है।सहयोगी बनता है कर्म का। अब कर्म करते न 

फल की चिंता रहती है न ज्ञानेन्द्रियों पर बाहरी प्रभावों का असर पड़ता है न 

हद की इच्छाओं का आकर्षण ही रहता है  .आप डीटेच खड़े रहते हो कर्म से। 

आत्मा कर्म फल का  सर्वर (सेवक ,मातहत )नहीं है मालिक है। वह तो 

कर्म के 

संपन्न होने में मददगार की भूमिका में है। सम्बन्धी है कर्म का। 

सारा दारोमदार इस ड्रिल की कामयाबी का विचार की शुद्धता पर आ पड़ता 

है। कर्मों का परिणाम (किसी भी घटना का होना )इसी शुद्धता का 

प्रतिफलन है प्रतिबिबन  है यथार्थ का। 

बेशक हमारी कर्मेन्द्रियाँ ,ज्ञानेन्द्रियाँ मन बुद्धि संस्कार कर्म के 

अल्पकालिक सुख देने वाले फल के व्यायामोह में आते ज़रूर हैं। लेकिन 

कीमत भी इसी की कर्म बंध के रूप में भारी चुकानी पड़ती है। कर्मों से

 हमारा आत्मिक मददगार का सम्बन्ध टूट जाता है। कर्म ही हमारा 

अपहरण कर लेते हैं दास बना लेते हैं हमारी आत्मा को हद की सुख की 

फल प्राप्त वाले कर्म। 

ध्यान रहे आँखों का काम देखना है लेकिन देख कौन रहा है वास्तव में ?

याद रहे देखने वाली मैं आत्मा हूँ शरीर नहीं देखता है आँखें तो तब भी 

अपना वजूद बनाए रहतीं हैं जब आत्मा शरीर छोड़ जाती है। लेकिन देखतीं 

हैं क्या तब भी ? 

ॐ शान्ति। 

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