बुधवार, 31 जुलाई 2013

पवित्र बनो और उड़ो !ऊंचे ते ऊंचा।

योगी आनंदजी ,अठ्ठाईस जुलाई की शाम हमारे कैंटन 

(मिशिगन )

स्थित आवास पर पधारे। उनके मुख कमल से निकले 

कुछ बोल हमारी धरोहर बने हमारे आसपास अनुगुंजित 

हैं आप भी लाभान्वित होवें :

ज्ञानार्जन के लिए किसी औचारिक शिक्षा की ज़रुरत नहीं है। साधना 

का अपना महत्व है जीवन में। 

साधना रत होने पर प्रकृति में जो भी ज्ञान प्रवाहित हो रहा है रेडिओ तरंगों 

पर सवार हो वह हम तक अनायास पहुंचेगा। मंतोच्चार की मंगल ध्वनी से 

वायुमंडल को पवित्र बनाते हुए गुरु आनंदजी ने  अपना प्रवचन आरम्भ 

किया।  आपने बतलाया विश्व के तमाम ज्ञात अज्ञात धर्मों का भगवत 

गीता  सार तत्व है ।जीवन और जगत के  अठ्ठाईस मूल प्रश्नों का उत्तर है 

"गीता 

".स्वयम भगवान् के मुख से उच्चरित है यह ग्रन्थ। जीवन के लिए 

पारसमणि है गीता ज्ञान। भारत जब इस ज्ञान  से संपन्न था सोने की 

चिड़िया था। 

अमरीका से ऊपर था। आज प्राय :इस ज्ञान का लोप होने पर भारत कहाँ है 

यह बतलाने की ज़रुरत नहीं है आप सब जानते हैं।अपनी पीठ खुद ही क्यों 

उघाड़ के दिखलाई जाए।

भगवान का  मूल स्वरूप निर्गुण निराकार का ही है उसी स्वरूप का दुनिया 

भर में गायन है सनातन धर्म वंश हो या इस्लाम ,ईसाइयत हो या सीख्खी। 

आप भगवान को तरह तरह की वस्तुएं अर्पित करते  हैं। भगवान सिर्फ 

हमारा  "मन " चाहता है ,कोई वस्तु द्रव्य या पदार्थ नहीं। 

जीवन  का सार और मकसद बस इतना ही है यह शरीर माँ बाप की सेवा में 

अर्पण हो और चित्त भगवान में। 

मन को हद के भौतिक सुख  के लिए ही इस संसार में मत लगाओ। इनकी 

प्राप्ति के बाद इनसे उपराम हो जाओ। भूल जाओ इन्हें। 

भगवान कहते हैं इस विश्व के सारे सौन्दर्य और एश्वर्य में भी मैं ही हूँ।

आनंद लेना है तो बे -हद का लो। मीरा ,महावीर या बुद्ध कोई मूर्ख  नहीं थे 

सारा धन वैभव और एश्वर्य छोडके निकल आये थे। 

सिकंदर जो विश्व विजय का सपना लेके निकला था उसकी भी आँखें एक 

सन्यासी ने ही खोली  थीं। सिकंदर ने अपने अहंकार में आकर कहा था 

सन्यासी तुम्हारे पास क्या है :बस एक ये कमंडल ,एक लोटा जल और 

गेरुआ 

वस्त्र।  सन्यासी ने साधू भाव से कहा :सिकंदर जिसने यह संसार बनाया 

वह ईश्वर मेरा है। तुम्हारे साम्राज्य की कीमत यह एक लोटा भर जल है 

जिसके अभाव में तुम्हारे प्राण पखेरू अभी अभी उड़ जाते। जब तक 

भगवान साथ न 

हो किसी चीज़ की कोई कीमत नहीं है कोई वकत नहीं है। विकार ग्रस्त होने 

पर ही संसार असार हो जाता है। अहंकार सबसे बड़ा विकार है  जिसके मद

 में तुम मदमाये हो।

इस संसार में जो ज़रूरीयात की चीज़ें हैं तुम्हारी आवश्यकताएं हैं नीड्स हैं 

उनकी प्राप्ति ज़रूरी है बस।  चस्का लगाना है किसी चीज़ का तो सबसे 

बड़ी वह चीज़ ईश्वर ही है कोई वस्तु , व्यक्ति या साधन नहीं। भगवान के 

लिए खर्च किया गया धन ही अखूट रहता है लूट का धन जल्दी ही  चुक भी 

जाता है। बाकी 

सब तो यहीं रह जाना है। 

बहर-सूरत इच्छाओं एषनाओं  का कोई अंत नहीं : 

 संतों की वाणी से उद्धरण  देते  हुए आपने कहा -

मेरो मन अनत कहाँ  सुख पावे ,जैसे उड़ी  जहाज को पंछी ,

उड़ी  जहाज पे आवे। 

एक बेहतरीन शैर के माध्यम से आपने वस्तु और व्यक्ति के पीछे दौड़ने 

वालों को यह सन्देश दिया -

न जाने किसकी हमें उम्र भर तलाश रही ,

जिसे भी करीब से देखा वह दूसरा निकला। 

उपासना शब्द को आपने नै परवाज़ दी। ईश्वर के पास बैठना ही उपासना है 

बोले तो (उप +आसन ). उड़ने की तरकीब बतलाई आपने हम सबको यह 

कहकर जहां पवित्रता होती है परमात्मा भी वहीँ होता है। पवित्र बनो और 

उड़ो !ऊंचे ते ऊंचा। 

ॐ शान्ति 

भ्रम से ब्रह्म की ओर् - A journey from Disilluion towards the 

Divine - under the spiritual guidance of Guru Yogi Anand 

Ji ! — with Amit Saini and Virendra Sharma.






3 टिप्‍पणियां:

Arvind Mishra ने कहा…

लगातार यात्रा पर होने के कारण इस लेखमाला को मिस किया है ..मनुष्य के मस्तिष्क की भूख भी होती है और इसके लिए आधात्म्य से बढ़कर कोई भोज नहीं है !

अज़ीज़ जौनपुरी ने कहा…

सर जी बहुत सुन्दर विचार हैं ,अति उत्तम

ताऊ रामपुरिया ने कहा…

भ्रम से ब्रह्म की ओर्

सुंदरतम आख्यान.

रामराम.