गुरुवार, 18 जुलाई 2013

पुरुषोत्तम संगम युग (दूसरी क़िस्त )

At this blessed time of the confluence age ,through your one step of courage ,you easily receive multimillionfold help .Make your own effort and attain the reward.

पुरुषोत्तम संगम युग (दूसरी क़िस्त )


A TRANSFORMATION TIME 

बाप कहतें हैं :मीठे बच्चे इसी वक्त तुम पत्थर से पारसनाथ बनते हो .तुम्हारी आत्मा रुपी चट्टान की रूपाकृति बदलती है .ठीक वैसे ही जैसे भूमि के नीचे चट्टानें ऊपर की चट्टानों के अतिरिक्त दाब और तद्जन्य पैदा ताप से अपनी रूपाकृति तबदील कर लेती हैं वैसे ही तुम्हारी आत्मा अब कोयले से हीरा बनती है .बाप की याद से ,याद की योगाग्नि में तपके .

ये पुरानी दुनिया ही नवीनीकृत होती है इसी का एक बार और नवीकरण हो जाता है .हर कल्पान्त से ठीक पहले इस लीप एज में इस परवर्तन काल में यही होता आया है .तुम्हारी बुद्धि दिव्य बुद्धि अभी बनती है .पुरानी दुनिया से नाता तोड़ नै दुनिया के निर्माण में बाप की सहयोगी बन जाती है .बाप इसी समय आते हैं तुम्हारी झोली ज्ञान रत्नों से भरने .तुम्हें ज्ञान का तीसरा नेत्र प्रदान करने .

यह दिव्य बुद्धि इसी वक्त प्रेमसंसिक्त बनती है .इसी ईश्वर प्रेम से तुम्हें सृष्टि के आदि मध्य और अंत का ज्ञान प्राप्त होता है .खुद बाप आकर कल्प कल्प तुम्हें पढ़ा तें  हैं संगम पर .तुम्हारी दिव्य बुद्धि के पवित्र पात्र में 

ज्ञान का मकरंद भरता चला जाता है .झूठ और सच में विभेद करने लगती है तुम्हारी तीक्ष्ण दिव्य बुद्धि क्योंकि अब इसमें विकारों की खोट (खाद ,मैल ,विकार का माया रावण  )नहीं रह जाती है .बुद्धि का पात्र निर्मल से भी अति निर्मल हो जाता है .

AN ELEVATED TIME 

संगम युग को ही डायमंड युग कहा जाता है क्योंकि यहाँ हर पल बहुत कीमती है प्राप्ति भी हर पल पद्मा -पद्म है .इसी समय आत्मा हीरा तुल्य बनती है .

You become the most elevated the highest on high 


being .

इसी वक्त बच्चे बाप से राज -योग सीखते हैं .आध्यात्मिक ज्ञान प्राप्त कर संप्रभु बनते हैं .संप्रभु बोले तो गुलामी छोड़ अपनी इन्द्रियों के राजा बनते हैं .इन्द्रियाँ सबकी सब प्रजा बन जाती हैं .अब एक भी इन्द्रिय तुम्हें धोखा नहीं दे सकती है .यहीं विश्व की राजधानी (सतयुग ,स्वर्ग ,पारस युग )के तुम वारिस बन जाते हो .अधिष्ठाता बन जाते हो स्वर्ण युग के .इस समय हर अ -सम्भव सम्भव हो जाता है .

प्रेम पूर्ण होता है तुम्हारा यह कायाकल्प ,आत्मांतरण .(रूपांतरण  ,soul metamorphosis ).बल पूर्वक किसी का काया कल्प नहीं हो सकता .प्रेम ही वह शक्ति है जो तुम्हारी कार्यकारी चेतना को तुम्हारी आत्मा को रूपांतरित कर देती है .तुम जानते हो -Soul is an action oriented energy .

प्रेम तुम्हारे सम्बन्धों को भी रूपांतरित कर देता है तमाम रुझानों ,प्रवृत्तियों आदतों ,वृत्तियों ,तुम्हारे चित्त को भी बदल देता है .दिव्य प्रेम सबसे ज्यादा ताकत वर शह है .यह दिव्यप्रेम ही है जो बच्चों को  बाप का सिकी -लधा ,मीठा ,लाडला बच्चा बना देता है .प्रेम में सब कुछ सहज  हो जाता है .आसान हो जाता है .तुम परमात्म प्रेम में गोते लगाने लगते हो .यह दिव्य प्रेम एक ऐसा छाता बन जाता है जहां अब अज्ञान की कोई भी छाया प्रतिच्छाया अब पहुँच ही नहीं पाती है .सारे विभ्रम सारा क्लेश मिट जाता है आत्मा का .

A BENEVOLENT TIME :THE WORLD BENEFACTOR GIVES SOULS LIMITLESS TREASURES

मित्रवत हितकारी है संगमयुग आत्माओं के लिए .अभी इसी समय परमपिता सर्वात्माओं को बेहद का खज़ाना लुटाता है .चाबी ही पकड़ा देता है बच्चों को स्वर्ग की .अक्षय होता है परमात्मा (कोषपाल )का यह कोष .

खर्च न खूटे वाको मोल न मूके ,दिन दिन बढ़त  सवायो 

इस वक्त हमारा हर नेक कदम हमें पद्मापदम्  की प्राप्ति करवाता है .इसलिए हर कदम सोचकर और दिव्यबुद्धि से तौल कर विभेदन कर ही उठाना है .

सबसे बड़ा कोष है इस संगम पर धारणा (या सोच )और समय का .'समय बड़ा कीमती भी है बलवान भी 'यह इसी समय का गायन है .समय और सोच युक्तियुक्त हो तो बाकी सब काम सब प्राप्तियां सहज हो जायेंगी .

मुक्ति और जीवन मुक्ति का पर्व है संगम युग .मुक्ति विकारों से इसी समय ज्ञान का विशेष कोष हम बच्चों के हाथ लगता है .हमारी बूझने की दिव्य शक्ति सारा क्लेश क्लान्ति और अशांति हर लेती है .इसी वक्त हम कर्म - बंध से मुक्त होतें हैं क्योंकि हमारा हर कर्म अब युक्तियुक्त होता है .विकर्म नहीं होता .विकर्म की तो सजा खानी पड़ती है .माया का फंदा चरमरा कर टूट जाता है .इसी माया रावण ने अब तक तुम्हें आबद्ध किया हुआ था बींधा हुआ था .व्यर्थ विचार ,व्यर्थ चिन्तन से तुम्हें छुटकारा मिलता है .अभ्यास करते रहने से तुम्हारी बुद्धि नीर क्षीर विवेकी हो जाती है .जीवन में ज्ञान का सोजरा (उजास )फैलने लगता  है .पथ्थर बुद्धि से हम पारस बुद्धि बन जाते हैं .

बाप की याद से ही नसीब होता है यह सब .वे सब शक्तियां तुम्हें मिल 

जाती हैं जो बाप ख़ास कर तुम्हारे लिए ही सम्भाल के रखे होते हैं .

फिर से तुम बेहद के जीवन -क्षम और रूहानी खूब सूरती ले लेते हो काले से 

गोरी हो जाती है तुम्हारी आत्मा .आत्मा पर ही तो विकारों की लेप थी जो 

बाप की याद से उतर जाती है  .

अब तुम सबसे ही ईमानदारी और इज्ज़त से पेश आने लगते हो अत :मार्ग 

की बाधाएं आपसे आप ही हटती जातीं हैं .सम्बन्ध मीठे से भी मीठे हो 

उठते हैं .दूसरों का भरोसा मित्रता और सहयोग तुम्हें बिन मांगे मिलने 

लगता है .

इस अर्जित ज्ञान को तुम पहले स्व :उन्नति में लगाओ .फिर विश्व उन्नति 

में विश्व नव निर्माण में लगाओ .संतुष्ट मणि आत्मा बन सायलेंस की 

शक्ति और स्पंदन से विश्व आत्माओं का कल्याण करो .यह आत्म 

संतुष्टि ही तुम्हें संगम पर हीरा तुल्य बनाती है .नारायणी नशे में आ जाते 

हो तुम .चुप चाप चुपके चुपके गुप्त रूप होता है यह परिवर्तन .

शरीर को जो 

आँखें हैं उनसे कुछ दिखाई भी न देगा .तुम्हारा दिव्यनेत्र ही देखेगा सब 

कुछ .

A QUALITY TIME OF SILENCE 

At the Confluence Age ,everything is incognito(अप्रकट ,गुप्त )and silent .Incognito means it cannot be seen with the physical eyes ,and silence means it is not done in sound .You ,the soul ,are incognito .The Father ,the Supreme Soul ,is incognito .The knowledge is incognito ,and your efforts and rewards are incognito .Time is silent ,remembrance is silent ,and transformation is silent .

You are now listening to new things .Continue these thoughts in the clean vessel of your intellect ,and you will experience wonders on this spiritual pilgrimage .

यह आत्मा की यात्रा है यहाँ सब कुछ चुपके -चुपके बिना किसी आहट के 

होता है वह(तीर्थ यात्रा भक्ति मार्गीय ) यात्रा है शरीर की .

ॐ शान्ति .


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1 टिप्पणी:

राहुल ने कहा…

अध्यात्म में डूबी आत्मा का निर्भय सफ़र.....आपके भीतर की अनंत शक्ति को हम आत्मसात कर रहे हैं....

सर, मेरा नया ब्लॉग अब ये है ...आप आइए....आशीष देने .....
rahulkmukul.blogspot.com