मंगलवार, 24 मई 2011

डायग्नोसिस ऑफ़ पोलिसिस्तिक ओवेरियन सिंड्रोम .


"पी सी ओ एस "का रोग निदान ?रोग निदान पोलिसिस्तिक ओवेरियन सिंड्रोम का क्या है ?
निदानिक लक्षणों और साइनों (क्लिनिकल सिम्टम्स एंड साइंस )के आधार पर ही अकसर पोलिसिस्तिक ओवेरियन सिंड्रोम का रोग निदान कर लिया जाता है .अलबत्ता माहिर ऐसे लक्षण रचने पैदा करने वाले अन्य रोगों यथा हाइपो -थाई -रोइदिज़्म (जिसमें थाई -रोइड ग्रंथि की सक्रियता कम रह जाती है आदमी खाता कम है वेट ज्यादा बढ़ता है ,मेटाबोलिज्म घट जाती है ) तथा प्रोलेकतिन हारमोन जो दूध बनाता है के बढे हुए स्तर को रुल आउट करना चाहता इस एवज कई रक्त परीक्षण भी किये जातें हैं .इसी प्रकार अंडाशय (ओवरी )के ट्यूमर, एड्रिनल ग्रन्थ द्वारा पैदा मेल हारमोन एंड्रो -जन के बढे हुए स्तर को भी खारिज करना चाहेगा .खून में इसका बढा हुआ स्तर भी एकने (कील मुंहासे निकलने की वजह बनता है ),अतिरिक्त बाल बढ़ने की भी (अवांछित अंगों पर )हवा देता है .ये दोनों ही "पी सी ओ एस "के भी लक्षण हैं .तथा ये कंडीशन एड्रिनल ग्लेन्ड कीभी इसे मिमिक करती है .
अलबत्ता पी सी ओ एस के रोग निदान में कुछ अन्य लेब टेस्ट्स भी सहयोगी साबित होतें हैं .मेल हारमोंस डी एच ई ए तथा टेस्टों -स्टेरोंन के सीरम स्तर भी बढे हुए मिल सकतें हैं .
हालाकि टेस्टों -स्टेरोंन का बहुत ज्यादा बढा हुआ स्तर आमतौर पर पी सी ओ एस में भी मिलता है .इसीलिए अतिरिक्त मूल्यांकन करना भी ज़रूरी हो जाता है ।कई और परीक्षण करने पडतें हैं .
अलावा इसके पीयूष ग्रंथि (दिमाग में होती है )द्वारा भी स्रावित एक हारमोन लियुतिनाइज़िन्ग हारमोन (एल एच )का भी ओवेरियन हारमोनों के उत्पादन में हाथ होता है .यह एल एच भी बढा हुआ रहता है पी सी ओ एस में ।
इमेजिंग तरकीबें :तरल से भरी नन्नी नन्नी थैलियों (सिस्ट्स )का जायजा इमेजिंग तकनीकों द्वाराइत्मीनान के साथ लिया जाता है .बेशक इस संलक्षण की गिरिफ्त में जो महिलायें नहीं हैं सिस्ट्स की मौजूदगी उनमे भी पता चलती है ।
ओवेरियन सिस्ट्स की शिनाख्त के लिए अल्ट्रा साउंड का सहारा लिया जाता है .यह युक्ति शरीर में अति स्वर तरंगें डालती है .इससे गुर्दों की तस्वीर प्राप्त की जाती है इसी तरकीब से आमतौर पर ओवरीज़ की सिस्ट्स का पता लगाया जाता है .
क्योंकि अल्ट्रा साउंड लेते वक्त न तो किसी डाई (रंजक )का स्तेमाल किया जाता है न किसी रेडियेशन का इसीलिए इसे गर्भवती महिलाओं के लिए भी निरापद माना जाता है .यह तरकीब तो भ्रूण की किड -नीज में भी सिस्ट्स का पता लगा सकती है .
अलबत्ता अल्ट्रा साउंड का स्तेमाल रूटीन में नहीं किया जाता है क्योंकि सिस्ट्स उन महिलाओं में भी रहतीं जिन्हें पी सी ओ एस के संलक्षण परेशां नहीं करते हैं और न ही सिस्ट्स इस संलक्षण (सिंड्रोम )की पूरी परिभाषा ही गढ़तें हैं .
रोग निदान का आधार विविध लक्षण ही बनतें हैं जिसमे मरीज़ की हिस्ट्री (पूर्व वृत्तांत ),कायिक परीक्षण (फिजिकल एग्जामिनेशन )तथा लेब टेस्ट्स को मुख्य आधार बनाया जाता है .
बेशक ज्यादा से ज्यादा सशक्त तथा खर्चीले रोग निदानिक तरीकों में सी टी स्केन (कम्प्युतिद टमो-ग्रेफ़ी )भी आतें हैं मेग्नेटिक रेजोनेंस इमेजिंग भी ,लेकिन इनका स्तेमाल तभी किया जाता है जब साथ साथ एड्रिनल ग्लेन्ड ट्यूमर्स तथा ओवेरियन ट्यूमर्स का भी शक रहा आया हो .आप जानतें हैं सी टी स्केन में न सिर्फ एक्स रेज़ का स्तेमाल किया जाता है कभी कभार इन्जेक्तिद डाईज का भी जिनसे कुछ मरीजाओं के मामले में जटिलताएं भी सामने आसकतीं हैं .
(ज़ारी...)

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