रविवार, 28 मार्च 2010

खगोल विज्ञान के लिए क्या है "चंद्रशेखर -लिमिट "?

तारा -भौतिकी के लिए चंद्रशेखर -सीमा एक एहम मुल्यांक है. वाईट ड्वार्फ स्टार्स के द्रव्यमान की ऊपरी सीमा है यह क्रांतिक द्रव्यमान. यह वह द्रव्यमान सीमा है जो एक नॉन -रोटेटिंग एस्ट्रल - बोडी(अ -नर्तन - शील तारकीय पिंड )धारण नहीं कर सकता .इसके ऊपर वह अस्तित्व शेष हो जाएगा .क्योंकि इसके इलेक्त्रोंन कोशों (इलेक्त्रों शेल्स )में प्रेशर बहुत बढ़ जाएगा जिसे यह संभाल नहीं सकेगा .,और अपने ही ऊपर ढेर हो जाएगा (ग्रेविटेशनल कोलेप्स कहतें हैं इस स्थिति को )।
चंद्रशेखर लिमिट मात्रात्मक रूप में २.८५ टाइम्स तेंन तू थर्टी है यानी तकरीबन १.४ सौर द्रव्यमान के तुल्य(१.४
टाइम्स सोलर मॉस ).तारों के उद्भव और विकाश जन्म और मृत्यु को जान लेने के लिए इसका (चंद्रशेखर लिमिट )का ज्ञान आवश्यक है ।मृत्यु के बाद कौन किस योनी में जाएगा कौन लाल दानव बनेगा कौन दैत्य (ब्लेक होल )इसका फैसला चंद्रशेखर द्रव्यमान ही करता है .एक ना एक दिन सितारा अपनी एटमी भट्टी में सारा ईंधन खपा देता है और उसकी जीवन लीला समाप्त हो जाती है .
इसका(चन्द्र शेखर सीमा ) रोल तब शुरू होता है जब तारा अपनी एटमी भट्टी में सारा ईंधन खपा चुका होता है .अपने जीवन काल में तारा एक संतुलन (एक साम्यावस्था )बनाए रहता है .न्युक्लीअर फ्यूज़न से पैदा बाहरी दवाब और गुरूत्वीय संकुचन में एक रस्सा कसी चलती है लेकिन जीत किसी की भी नहीं होती .ईंधन चुक जाने पर सारा मंज़र बदल जाता है .अब तारा मैंन सिक्युएंस (मुख्य क्रम )को छोड़ देता है .ईट टेक्स ए डाउन टर्न हेंस फोर्थ .डाउन हिल यात्रा यहीं से आरम्भ होती है .सितारा उत्तरोत्तर भारी से भारी तत्व बनाता चला जाता है .लेकिन यह प्रक्रिया आयरन के निर्माण के साथ ही थम जाती है .अब सितारे की कोर में ना तो वह आंच रहती है ना घनत्व (तेम्प्रेचर्स एंड डेंसिटी आर इन्सफिशियेंत फॉर फर्दर फ्यूज़न ऑफ़ एलिमेंट्स बियोंड आयरन )।
अब सितारा खुद ऊर्जा हजम करने लगता है जबकि अभी तक फ्यूज़न एनर्जी रिलीज़ हो रही थी .अपनी जीवनअवधि के इन अंतिमदसियों लाख बरसों में ज्यादर तर सितारे सौर पवनों के रूप में अपनी सब राशि चुका देता हैं .शेष रह जाती है एक अपेक्षाकृत लघुतर कोर .अब यदि इस कोर का द्रव्यमान चन्द्र शेखर क्रांतिक द्रव्यमान से कम रह जाता है तब यह एक बौने सितारे के रूप में अपनी जीवन लीला समाप्त कर लेता है .यही इसके विकाश की अंतिम अवस्था होती है .एक पृथ्वी के आकार लेकिन सूरज जितना भारी (द्रव्यमान राशि )पिंड शेष रह जाता है जो अपेक्षा कृत कम गर्म होता है इसीलिए वाईट ड्वार्फ कहलाता है ।
लेकिन द्रव्यमान राशि चंद्रशेखर सीमा से ज्यादा होने पर तारा अपने ऊपर दबता हुआ लट्टू की तरह नर्तन करता हुआ एक न्युत्रोंन स्टार बन जाता है .इसके इलेक्त्रों और प्रोटोन आपस में जुड़ जातें हैं तभी तो न्युत्रोंन सितारा बनता है .जिसकी गवेषणा आइन्स्टाइन ने सापेक्ष वाद के गुरुत्व सम्बन्धी सिद्धांत के तहत की थी .कहा था जब कोई यात्री इस पिंड के पास पहुंचेगा तो सुईं की टिक टिक थम जायेगी .काल का प्रवाह रुक जाएगा इसके गुरू -गुरुत्व से ।
द्र्व्यराशी और भी अधिक होने पर अंतिम प्रावस्था में एक ब्लेक होल (शून्य आयतन वत बिन्दु अनंत घनत्व लिए )भी बन सकता है .जिसमे सुपरनोवा बन कर विस्फोटित होने की कूवत बनी रहती है ।ब्लेक होल के प्रांगन में भौतिकी के सभी ज्ञात सिद्धांत चुक जातें हैं .अन्तरिक्ष और काल खंडित हो जातें हैं .पदार्थ का अस्तित्व समाप्त हो जाता है .एक रेडियेशन सूप रह जाता है .

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