तापस वेश विशेष उदासी ,
चौदह बरस राम वनवासी।
श्रवण अज्ञान मुक्ति का आत्म कल्याण का साधन है। आपका बोलना ,आपका देखना वह मांगल्य तभी होगा जब आप अच्छा सुनें।
शास्त्र का निर्देश हैं पहले आप अच्छा सुनें -स्वरूप अनुसंधान के लिए। मनन (contemplation )और ,निद्धियासन (constant contemplation )बाद के साधन हैं । जब ब्रह्मा का चातुर्य विस्मृत हो गया तब उन्होंने भी अपने लक्ष्य बोध के लिए श्री हरि की शरण ली उनसे कथा सुनी। शिव ने भी कथा सुनी।
श्रवण मंगलम
सुन ने की बात अति प्राचीन विधा है। ईश्वरीय सामर्थ्य उपलब्धता के लिए एक ही संस्कार है और वह है :श्रवण। वैसा सुने जिससे आपके भीतर के कपाट खुलें ,माधुर्य जगे।मंथरा कुसंग हैं ,श्रवण योग्य नहीं हैं। कैकई ने मंथरा की सुनी और राम के लिए वनवास ही नहीं माँगा ,उनके वस्त्र भी उतरवा लिए। ऐसी सजा इतिहास में आपने सुनी नहीं होगी।
श्रवण मंगलम -मांगल्य सुनो। 'श्रुति' श्रवण है। वेद सुने जाते हैं। पढ़े नहीं जाते।
राम कथा -संवाद पिटारी है। शिव -पार्वती संवाद , ऋषि याज्ञवाल्क्य और भारद्वाज ........ संवाद ,यहां तक के तुलसीदास का खुद के साथ भी संवाद है रामकथा में।काग भुसण्डी जी के साथ गरुण का संवाद है हालांकि गरुण ने पूरी कथा सुनी भी नहीं थी उनका संशय ,अहंता भाव तिरोहित हो गया।
श्रवण मंगलम। वेद श्रुति है सुन ने की चीज़ है। कथा भी सुन ने की चीज़ है। उपदेश सुनने के लिए हैं। वेद पढ़ा नहीं जाता -सुना जाता है। हमारा प्राचीनतम वेद -ऋग्वेद सुना गया है ऋषियों के द्वारा।हमारे भीतर का प्रमाद ,संशय ,व्यक्ति का नाश कर देता है। संशय से एक अ -श्रद्धा आती है ,आत्मघाती वृत्ति आती है। व्यक्ति भ्रमित हो जाता है अपने अस्तित्व से अलग हो जाता है।
श्रद्धा से एकलव्य पैदा होता है अकेला पात्र है महाभारत का जो सबको फीका कर देता है। द्रोणाचार्य की अपनी प्रतिबद्धता है विवशता है चाह कर भी वह एकलव्य को दीक्षा नहीं दे पाते हालांकि द्रोणाचार्य जानते है एकलव्य सुपात्र है।
इस सृष्टि का पहला सवाल है -मैं कौन हूँ ?
को हम !
इस प्रश्न का उत्तर भारत की धरती ने दिया है। क्या मैं देह मात्र हूँ ,शिशु हूँ ,बालक हूँ ,वृद्ध हूँ ?धमनियों में बहने वाला रक्त हूँ। हृद्स्पन्दन मात्र हूँ।
कथा वह है जो हमारे होने के अर्थ को उजागर करती है।
'सती' जानना तो चाहतीं थी यथार्थ क्या है -लेकिन वह इस अहंकार में के मैं बहुत श्रेष्ठ हूँ एक प्रमाद उनके आसपास आ गया। उन्हें निद्रा आ गई कथा सुन न सकीं।शिव कहते रहे। कथा सुनी एक तोते ने। कथा सुन ने के लिए :
पहला साधन है -अ -प्रमत्तता ,अपने प्रमाद को त्यागे। जिसने एकाग्रता का अभ्यास कर लिया है वह अपनी निजता को जान लेता है। कौन है जो इस पूरी श्रेष्ठि का नियामक है।
जिज्ञासा करनी है तो -
परम सत्य की कीजिये -
अथातो ब्रह्म।
इस राम कथा की उपलब्धि क्या है ?अपने स्वरूप को पहचानना है ,आत्म -स्मृति है। जितने भी हमारे दुःख हैं उनका एक ही कारण है :आत्म विस्मृति। स्वयं के प्रति जो अल्पज्ञता है ,अज्ञेय -ता है ,वही हमारे दुःख का कारण है। मैं कौन हूँ ?
नष्टो मोहा स्मृति लब्धा
अग्रज जो कहेंगे मैं अब वही करूंगा। अर्जुन कहता है -आपको सुन ने के बाद मुझे स्मृति मिल गई है। मेरी विस्मृति का नाश हो गया है। उपदेश भी स्मृति ही है।
कथा खुद की उपलब्धि के लिए है। इसलिए कोई ढंग से कथा सुने और ऐसा हुआ है इस धरती के समूचे साधनों के एक मात्र उपभोक्ता ने -ऐसा करके दिखाया है।
कथा हमारे भय को छीनती है अल्पता अभाव को छीनती है। राम जब अयोध्या से वनवास के लिए निकलते हैं तब उन्हें कोई संकोच न था ,द्वंद्व नहीं था ,निर-द्वंद्व वो गुरु के चरणों में प्रणाम करते हैं।
अल्पता ही मेन्टल इलनेस है ,मानसिक रोग है ,मानसिक रोग और कुछ नहीं है बस इस से थोड़ा सा ही ज्यादा होगा। व्यक्ति इस अभाव में सोचता है ,के जो प्राप्त है वह थोड़ा है ,जो अ -प्राप्त है उसका आकर्षण बड़ा है जो प्राप्त है उस से न हम संतुष्ट हैं न प्रसन्नता से भरे हुए हैं।अ -प्राप्त की ही चिंता है व्याकुलता है सारी। व्यक्ति सोचता है -जो प्राप्त है वह थोड़ा सा है। बस यही मानसिक रोग है।
एक बात और अगर हम प्रसन्न नहीं हैं ,हमारे आसपास माधुर्य नहीं है ,संतोष नहीं है इसका मतलब है हमारे विचार में कहीं कोई न कोई खोट है।
भव-सागर अब सूख गया है ,
फ़िक्र नहीं मोहे तरनन की ,
मोहे लागि लगन गुरु चरणन की।
जिस ने अपने चित्त का समाधान कर लिया है वही चतुर है सुजान है।महान है गुणवान है एक साथ सभी वही है।
सीखने के लिए कभी द्वार बंद मत करना जिस दिन भी स्वाध्याय के प्रति ,सत्संग के प्रति विरति हो गई ,जिस दिन आपके अंदर प्रमाद पैदा हुआ उस दिन सारी संभावनाओं का अंत हो जाएगा ,मनुष्य जीवन अंतहीन ऊर्जा ,अंतहीन संभावनाओं का नाम है उसकी भनक कहीं से भी लगती है जहां से भी लगती है उसका नाम सतसंग है।
कथा से विषम प्रतिकूल परिस्थतिथियों में खड़े रहने की ऊर्जा मिलती है। उपदेश हमारे अवसाद को ,भय को छीनता है।कथा का फल स्वयं भगवान् हैं ,अभयता है स्वयं सिद्धि है।आत्मबोध है कथा।
तुमहि जान तुमहि हो जाई
आज साधन बहुत हैं लेकिन साथ ही अ -परिमित अ -संतोष हमारे जीवन में आया है। मनुष्य ने कथाएं ही तब सुनीं हैं जब जीवन में अवसाद हुआ है ।
सच्चे मन से गुरु की गली में आने का मन बनाइये -समाधान मिल जाएगा। गरुड़ जी अभी कागभुसुंड जी की गली में ही पहुंचे थे कथा सुन ने के लिए उन्हें समाधान मिल गया -बड़ा अहंकार हो गया था गरुण को अपनी भगवद्ता का के मैंने ही भगवान् की जान बचाई है नापाश से उन्हें मुक्त किया है।सुग्रीव की भगवदता तब काम न आई थी। अहंकार से भरे हुए शिव के पास गए, समाधान ढूंढने -शिव ने कहा -कथा सुनो। कागभुसुंडि जी के पास जाओ।
तुलसीदास परम्परा के पोषक हैं पहली चौपाई में ही गुरु को प्रणाम किया है।हमारी पहली गुरु माँ है। जहां से आपको पोषण ,रक्षण ,माधुर्य ,वातसल्य ,दुलार ,आकार मिला है वहां अगर आप कृतज्ञ नहीं हैं तो विकास नहीं होगा ,उन्नययन नहीं होगा ,तरक्की नहीं होगी
कबीर कहते हैं -
'तीरथ जाए एक फल ,संत मिलें फल चार ,
सद्गुरु मिले अनेक फल कहत कबीर विचार।'
तीरथ जाने से अंत : करण शुद्ध हो जाता है।
(धर्म ,अर्थ ,काम ,मोक्ष का बोध हो जाएगा संत के पास जाने से गुरु जीवन में आ जाएगा तो अर्थ का भी संरक्षण होगा ),संत पवित्रता है ,विचार मूर्ती ,ज्ञान मूर्ती है ,पावित्र्य है।
सच्चे गुरु मिल गए तो फलासक्ति ही नहीं रहेगी। दूसरों को लाभान्वित करना है।सदैव दूसरों का उपकार करना है सब को प्रसन्नता ही देनी है।
मुद मंगलमय ,संत समाजु
जो जड़ जंगम, तीरथ राजू
रमता जोगी बहता पानी
जो रमक में है चलता फिरता है ,जो निरंतर है- सद्कर्मों में गतिमान है निरंतर ,वह जंगम है ,मोबाइल है ।
संत मोबाइल है। संत एक विचार है।
राम इस देश की धरती का प्रथम प्रकाश है भोर की पहली किरण है।
साधू ज्ञान मूर्ती हैं विचार मूर्तिं हैं वह ज्ञान अग्नि में अपने को भस्म कर देता है स्वयं अपना संस्कार करता है अपने प्रारब्ध को जलाता ,कर्म भागे ,भोग -विषय ,आसक्ति ,जड़ता को जलाता है साधु । संत जीवन में आता है तो मानिये बसंत आता है जीवन में।
इसीलिए तुलसी बाबा ने प्रणाम किया है संतों को, तीर्थों को मंगलाचरण में ही।
रुक्मणि और कृष्ण के संवाद आते हैं भागवद में। पहला वाक्य क्या कहा रुक्मणि ने कृष्ण को। रुक्मणि जामवंती के ,राधा और कृष्ण के ,राम और सीता के पहले क्या संवाद थे।हनुमान और राम के पहले संवाद क्या थे। राम लक्ष्मण को बतलाते हैं ये न वानर है ,न ब्राह्मण ,न देवता ,देवता और किम पुरुष भी नहीं है देव इतने विनम्र नहीं हो सकते। इतनी प्रखरता इसमें है यह कोई परमपुरुष है। सिद्ध इतना विनम्र नहीं हो सकता क्योंकि उसे ये गुमान रहता है मेरे पास सिद्धियां हैं।
शंकर स्वयं केसरीनन्दन
ये विद्या संपन्न प्राणी है। विद्या विचार संपन्न व्यक्ति जब बोलता है बिना लिए दिए ऐश्वर्य का अनुभव होता है।
पार्वती बिल्व पुष्प आदि लेकर बैठी हैं प्रणाम करतीं हैं शिव को हे सनातन पुरुष इतना तो मैं जान ही गई के आप प्रथम पुरुष हैं। अब मुझे जीव और माया का दर्शन बतलाइये ,प्रकृति ,पुरुष ,आत्मा और माया क्या है। कौन है जो आपका का भी नियामक है कौन है जिसके अनुशासन में आप भी रहते हैं। मुझे यथार्थ बतलाइये।आप किसकी उपासना करते हैं ?आप से ऊपर कौन है ?
विनय प्रेमवश हुईं भवानी।
पार्वती शिव के क्या संवाद हैं -पहले पहले संवाद।
पूजा और वचन निर्वाह ,परम्परा की पूर्ती में और पूजा में अंतर होता है। साधक को पता होता है उसने क्या किया है आज पूजा में।
राम क्या है मुझे राम का सत्य बताइये। मैं राम का सत्य जानना चाहतीं हूँ।
सुनि गिरिजा हरि चरित सुहाए .. ......
विपुल विशद निगमागम गाये।
आगम और निगम ने गाये हैं ये चरित।
राम कथा मात्र उपाख्यान नहीं है घटनाओं का जोड़ तोड़ मात्र नहीं है। जिनमें दो तीन चार पांच व्यक्तित्व दिखलाई देते हैं जिन्हें सोचना नहीं आता ,हम कुछ नहीं है हम अपनी सोच का ही हैं उत्पाद हैं ,राम कथा में आपको सूत्र मिलेंगे -आप कैसे सोचें। कैसे आपके विचार उत्पादक हों प्रेरक हों अपने में एक आदर्श बने। आपको सोचने की कला सिखाती है राम कथा।
जो कर्म की गति है कब और कैसे और क्या करें ?जो निंद्य है जिस से दुःख पैदा होता है ऐसी संहारक शक्ति से कैसे मुक्त हों।अकारथ को उड़ा देती है राम कथा ,जो आपको अपने अंत :करण में नहीं रखना चाहिए उस विचार से राम कथा हमेँ मुक्त होना सिखाती है।
समय का पालन करना साधक का धर्म होना चाहिए। शेष चर्चा कल करेंगें।
श्रद्धा लभते ज्ञानम् -एकलव्य महान धनुर्धर गुरु में अगाध श्रद्धा रखने से ही हो गए।
केशव माधव गोविन्द बोल ,
केसव माधव हरि हरि बोल ,
मुकुंद माधव हरि -हरि बोल।
हरि -हरि राम राम शिव -शिव बोल ,
केसव माधव गोविन्द बोल।
सन्दर्भ -सामिग्री :
(१)Shri Ram Katha by Shri Avdheshanand Giri Ji (Day 1)
(२ )https://www.youtube.com/watch?v=vc2LGF19-vU
चौदह बरस राम वनवासी।
श्रवण अज्ञान मुक्ति का आत्म कल्याण का साधन है। आपका बोलना ,आपका देखना वह मांगल्य तभी होगा जब आप अच्छा सुनें।
शास्त्र का निर्देश हैं पहले आप अच्छा सुनें -स्वरूप अनुसंधान के लिए। मनन (contemplation )और ,निद्धियासन (constant contemplation )बाद के साधन हैं । जब ब्रह्मा का चातुर्य विस्मृत हो गया तब उन्होंने भी अपने लक्ष्य बोध के लिए श्री हरि की शरण ली उनसे कथा सुनी। शिव ने भी कथा सुनी।
श्रवण मंगलम
सुन ने की बात अति प्राचीन विधा है। ईश्वरीय सामर्थ्य उपलब्धता के लिए एक ही संस्कार है और वह है :श्रवण। वैसा सुने जिससे आपके भीतर के कपाट खुलें ,माधुर्य जगे।मंथरा कुसंग हैं ,श्रवण योग्य नहीं हैं। कैकई ने मंथरा की सुनी और राम के लिए वनवास ही नहीं माँगा ,उनके वस्त्र भी उतरवा लिए। ऐसी सजा इतिहास में आपने सुनी नहीं होगी।
श्रवण मंगलम -मांगल्य सुनो। 'श्रुति' श्रवण है। वेद सुने जाते हैं। पढ़े नहीं जाते।
राम कथा -संवाद पिटारी है। शिव -पार्वती संवाद , ऋषि याज्ञवाल्क्य और भारद्वाज ........ संवाद ,यहां तक के तुलसीदास का खुद के साथ भी संवाद है रामकथा में।काग भुसण्डी जी के साथ गरुण का संवाद है हालांकि गरुण ने पूरी कथा सुनी भी नहीं थी उनका संशय ,अहंता भाव तिरोहित हो गया।
श्रवण मंगलम। वेद श्रुति है सुन ने की चीज़ है। कथा भी सुन ने की चीज़ है। उपदेश सुनने के लिए हैं। वेद पढ़ा नहीं जाता -सुना जाता है। हमारा प्राचीनतम वेद -ऋग्वेद सुना गया है ऋषियों के द्वारा।हमारे भीतर का प्रमाद ,संशय ,व्यक्ति का नाश कर देता है। संशय से एक अ -श्रद्धा आती है ,आत्मघाती वृत्ति आती है। व्यक्ति भ्रमित हो जाता है अपने अस्तित्व से अलग हो जाता है।
श्रद्धा से एकलव्य पैदा होता है अकेला पात्र है महाभारत का जो सबको फीका कर देता है। द्रोणाचार्य की अपनी प्रतिबद्धता है विवशता है चाह कर भी वह एकलव्य को दीक्षा नहीं दे पाते हालांकि द्रोणाचार्य जानते है एकलव्य सुपात्र है।
इस सृष्टि का पहला सवाल है -मैं कौन हूँ ?
को हम !
इस प्रश्न का उत्तर भारत की धरती ने दिया है। क्या मैं देह मात्र हूँ ,शिशु हूँ ,बालक हूँ ,वृद्ध हूँ ?धमनियों में बहने वाला रक्त हूँ। हृद्स्पन्दन मात्र हूँ।
कथा वह है जो हमारे होने के अर्थ को उजागर करती है।
'सती' जानना तो चाहतीं थी यथार्थ क्या है -लेकिन वह इस अहंकार में के मैं बहुत श्रेष्ठ हूँ एक प्रमाद उनके आसपास आ गया। उन्हें निद्रा आ गई कथा सुन न सकीं।शिव कहते रहे। कथा सुनी एक तोते ने। कथा सुन ने के लिए :
पहला साधन है -अ -प्रमत्तता ,अपने प्रमाद को त्यागे। जिसने एकाग्रता का अभ्यास कर लिया है वह अपनी निजता को जान लेता है। कौन है जो इस पूरी श्रेष्ठि का नियामक है।
जिज्ञासा करनी है तो -
परम सत्य की कीजिये -
अथातो ब्रह्म।
इस राम कथा की उपलब्धि क्या है ?अपने स्वरूप को पहचानना है ,आत्म -स्मृति है। जितने भी हमारे दुःख हैं उनका एक ही कारण है :आत्म विस्मृति। स्वयं के प्रति जो अल्पज्ञता है ,अज्ञेय -ता है ,वही हमारे दुःख का कारण है। मैं कौन हूँ ?
नष्टो मोहा स्मृति लब्धा
अग्रज जो कहेंगे मैं अब वही करूंगा। अर्जुन कहता है -आपको सुन ने के बाद मुझे स्मृति मिल गई है। मेरी विस्मृति का नाश हो गया है। उपदेश भी स्मृति ही है।
कथा खुद की उपलब्धि के लिए है। इसलिए कोई ढंग से कथा सुने और ऐसा हुआ है इस धरती के समूचे साधनों के एक मात्र उपभोक्ता ने -ऐसा करके दिखाया है।
कथा हमारे भय को छीनती है अल्पता अभाव को छीनती है। राम जब अयोध्या से वनवास के लिए निकलते हैं तब उन्हें कोई संकोच न था ,द्वंद्व नहीं था ,निर-द्वंद्व वो गुरु के चरणों में प्रणाम करते हैं।
अल्पता ही मेन्टल इलनेस है ,मानसिक रोग है ,मानसिक रोग और कुछ नहीं है बस इस से थोड़ा सा ही ज्यादा होगा। व्यक्ति इस अभाव में सोचता है ,के जो प्राप्त है वह थोड़ा है ,जो अ -प्राप्त है उसका आकर्षण बड़ा है जो प्राप्त है उस से न हम संतुष्ट हैं न प्रसन्नता से भरे हुए हैं।अ -प्राप्त की ही चिंता है व्याकुलता है सारी। व्यक्ति सोचता है -जो प्राप्त है वह थोड़ा सा है। बस यही मानसिक रोग है।
एक बात और अगर हम प्रसन्न नहीं हैं ,हमारे आसपास माधुर्य नहीं है ,संतोष नहीं है इसका मतलब है हमारे विचार में कहीं कोई न कोई खोट है।
भव-सागर अब सूख गया है ,
फ़िक्र नहीं मोहे तरनन की ,
मोहे लागि लगन गुरु चरणन की।
जिस ने अपने चित्त का समाधान कर लिया है वही चतुर है सुजान है।महान है गुणवान है एक साथ सभी वही है।
सीखने के लिए कभी द्वार बंद मत करना जिस दिन भी स्वाध्याय के प्रति ,सत्संग के प्रति विरति हो गई ,जिस दिन आपके अंदर प्रमाद पैदा हुआ उस दिन सारी संभावनाओं का अंत हो जाएगा ,मनुष्य जीवन अंतहीन ऊर्जा ,अंतहीन संभावनाओं का नाम है उसकी भनक कहीं से भी लगती है जहां से भी लगती है उसका नाम सतसंग है।
कथा से विषम प्रतिकूल परिस्थतिथियों में खड़े रहने की ऊर्जा मिलती है। उपदेश हमारे अवसाद को ,भय को छीनता है।कथा का फल स्वयं भगवान् हैं ,अभयता है स्वयं सिद्धि है।आत्मबोध है कथा।
तुमहि जान तुमहि हो जाई
आज साधन बहुत हैं लेकिन साथ ही अ -परिमित अ -संतोष हमारे जीवन में आया है। मनुष्य ने कथाएं ही तब सुनीं हैं जब जीवन में अवसाद हुआ है ।
सच्चे मन से गुरु की गली में आने का मन बनाइये -समाधान मिल जाएगा। गरुड़ जी अभी कागभुसुंड जी की गली में ही पहुंचे थे कथा सुन ने के लिए उन्हें समाधान मिल गया -बड़ा अहंकार हो गया था गरुण को अपनी भगवद्ता का के मैंने ही भगवान् की जान बचाई है नापाश से उन्हें मुक्त किया है।सुग्रीव की भगवदता तब काम न आई थी। अहंकार से भरे हुए शिव के पास गए, समाधान ढूंढने -शिव ने कहा -कथा सुनो। कागभुसुंडि जी के पास जाओ।
तुलसीदास परम्परा के पोषक हैं पहली चौपाई में ही गुरु को प्रणाम किया है।हमारी पहली गुरु माँ है। जहां से आपको पोषण ,रक्षण ,माधुर्य ,वातसल्य ,दुलार ,आकार मिला है वहां अगर आप कृतज्ञ नहीं हैं तो विकास नहीं होगा ,उन्नययन नहीं होगा ,तरक्की नहीं होगी
कबीर कहते हैं -
'तीरथ जाए एक फल ,संत मिलें फल चार ,
सद्गुरु मिले अनेक फल कहत कबीर विचार।'
तीरथ जाने से अंत : करण शुद्ध हो जाता है।
(धर्म ,अर्थ ,काम ,मोक्ष का बोध हो जाएगा संत के पास जाने से गुरु जीवन में आ जाएगा तो अर्थ का भी संरक्षण होगा ),संत पवित्रता है ,विचार मूर्ती ,ज्ञान मूर्ती है ,पावित्र्य है।
सच्चे गुरु मिल गए तो फलासक्ति ही नहीं रहेगी। दूसरों को लाभान्वित करना है।सदैव दूसरों का उपकार करना है सब को प्रसन्नता ही देनी है।
मुद मंगलमय ,संत समाजु
जो जड़ जंगम, तीरथ राजू
रमता जोगी बहता पानी
जो रमक में है चलता फिरता है ,जो निरंतर है- सद्कर्मों में गतिमान है निरंतर ,वह जंगम है ,मोबाइल है ।
संत मोबाइल है। संत एक विचार है।
राम इस देश की धरती का प्रथम प्रकाश है भोर की पहली किरण है।
साधू ज्ञान मूर्ती हैं विचार मूर्तिं हैं वह ज्ञान अग्नि में अपने को भस्म कर देता है स्वयं अपना संस्कार करता है अपने प्रारब्ध को जलाता ,कर्म भागे ,भोग -विषय ,आसक्ति ,जड़ता को जलाता है साधु । संत जीवन में आता है तो मानिये बसंत आता है जीवन में।
इसीलिए तुलसी बाबा ने प्रणाम किया है संतों को, तीर्थों को मंगलाचरण में ही।
रुक्मणि और कृष्ण के संवाद आते हैं भागवद में। पहला वाक्य क्या कहा रुक्मणि ने कृष्ण को। रुक्मणि जामवंती के ,राधा और कृष्ण के ,राम और सीता के पहले क्या संवाद थे।हनुमान और राम के पहले संवाद क्या थे। राम लक्ष्मण को बतलाते हैं ये न वानर है ,न ब्राह्मण ,न देवता ,देवता और किम पुरुष भी नहीं है देव इतने विनम्र नहीं हो सकते। इतनी प्रखरता इसमें है यह कोई परमपुरुष है। सिद्ध इतना विनम्र नहीं हो सकता क्योंकि उसे ये गुमान रहता है मेरे पास सिद्धियां हैं।
शंकर स्वयं केसरीनन्दन
ये विद्या संपन्न प्राणी है। विद्या विचार संपन्न व्यक्ति जब बोलता है बिना लिए दिए ऐश्वर्य का अनुभव होता है।
पार्वती बिल्व पुष्प आदि लेकर बैठी हैं प्रणाम करतीं हैं शिव को हे सनातन पुरुष इतना तो मैं जान ही गई के आप प्रथम पुरुष हैं। अब मुझे जीव और माया का दर्शन बतलाइये ,प्रकृति ,पुरुष ,आत्मा और माया क्या है। कौन है जो आपका का भी नियामक है कौन है जिसके अनुशासन में आप भी रहते हैं। मुझे यथार्थ बतलाइये।आप किसकी उपासना करते हैं ?आप से ऊपर कौन है ?
विनय प्रेमवश हुईं भवानी।
पार्वती शिव के क्या संवाद हैं -पहले पहले संवाद।
पूजा और वचन निर्वाह ,परम्परा की पूर्ती में और पूजा में अंतर होता है। साधक को पता होता है उसने क्या किया है आज पूजा में।
राम क्या है मुझे राम का सत्य बताइये। मैं राम का सत्य जानना चाहतीं हूँ।
सुनि गिरिजा हरि चरित सुहाए .. ......
विपुल विशद निगमागम गाये।
आगम और निगम ने गाये हैं ये चरित।
राम कथा मात्र उपाख्यान नहीं है घटनाओं का जोड़ तोड़ मात्र नहीं है। जिनमें दो तीन चार पांच व्यक्तित्व दिखलाई देते हैं जिन्हें सोचना नहीं आता ,हम कुछ नहीं है हम अपनी सोच का ही हैं उत्पाद हैं ,राम कथा में आपको सूत्र मिलेंगे -आप कैसे सोचें। कैसे आपके विचार उत्पादक हों प्रेरक हों अपने में एक आदर्श बने। आपको सोचने की कला सिखाती है राम कथा।
जो कर्म की गति है कब और कैसे और क्या करें ?जो निंद्य है जिस से दुःख पैदा होता है ऐसी संहारक शक्ति से कैसे मुक्त हों।अकारथ को उड़ा देती है राम कथा ,जो आपको अपने अंत :करण में नहीं रखना चाहिए उस विचार से राम कथा हमेँ मुक्त होना सिखाती है।
समय का पालन करना साधक का धर्म होना चाहिए। शेष चर्चा कल करेंगें।
श्रद्धा लभते ज्ञानम् -एकलव्य महान धनुर्धर गुरु में अगाध श्रद्धा रखने से ही हो गए।
केशव माधव गोविन्द बोल ,
केसव माधव हरि हरि बोल ,
मुकुंद माधव हरि -हरि बोल।
हरि -हरि राम राम शिव -शिव बोल ,
केसव माधव गोविन्द बोल।
सन्दर्भ -सामिग्री :
(१)Shri Ram Katha by Shri Avdheshanand Giri Ji (Day 1)
(२ )https://www.youtube.com/watch?v=vc2LGF19-vU
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आप सभी सुधीजनों को "एकलव्य" का प्रणाम व अभिनन्दन। आप सभी से आदरपूर्वक अनुरोध है कि 'पांच लिंकों का आनंद' के अगले विशेषांक हेतु अपनी अथवा अपने पसंद के किसी भी रचनाकार की रचनाओं का लिंक हमें आगामी रविवार(दिनांक ०३ दिसंबर २०१७ ) तक प्रेषित करें। आप हमें ई -मेल इस पते पर करें dhruvsinghvns@gmail.com
हमारा प्रयास आपको एक उचित मंच उपलब्ध कराना !
तो आइये एक कारवां बनायें। एक मंच,सशक्त मंच ! सादर
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