शनिवार, 4 नवंबर 2017

Vijay Kaushal Ji Maharaj- Shree Ram Katha Day 2 Part l ,mangalmaypariwar.)

सगुण निर्गुण का सवाल वे लोग उठाते हैं जिन्हें दूसरे को भक्तिभाव में डूबा हुआ देख ईर्ष्या होती है जिनकी किसी में भी आस्था नहीं होती। भगवान् शंकर पार्वती को यही समझाते हैं जब वह पूछती हैं निर्गुण ब्रह्म ही क्या राम हैं  वह सगुण कैसे हो जाता है। तब शंकर जी पार्वती को यही कहते हैं तुम इसके चक्कर में मत पड़ों।

भगवान् जब अपने गुण समेट लेते हैं तब वही निर्गुण होते हैं गुणों का प्राकट्य होने पर वही सगुण हो जाते हैं। इसलिए हे पारबती तुम सगुण निर्गुण के फेर में न उलझो। 

निराकार का मतलब निरे(बहुत सारे ) आकार वाला भी होता है यानी जिसके निरे ही बहुत ही ज्यादा अनगिनत आकार हैं और कोई एक आकार उसका नहीं है ,सभी आकार उसी के हैं और एक भी नहीं हैं क्योंकि वह तो सृष्टि स्वरूप में ही अभिव्यक्त हुआ हैं हर कण में वही तो है।  

भाव सार :जो संशय से समाधान की यात्रा कराये वही राम कथा है। कथा का जन्म होता ही संशय से हैं। शंकर पार्वती के प्रश्न पर प्रमुदित हैं :आखिर वो कौन से कारण थे जिनकी वजह से सृष्टि के कण -प्रति -कण में परि -व्याप्त  ब्रह्म को किसी माँ के उदर में आना पड़ा सूक्ष्म से स्थूल रूप धरना पड़ा। किसी राजा का पुत्र बनना पड़ा। अनेक प्रकार के संशय लेकर श्रोता कथा में आता है और मौन ,शांत चित्त ,प्रफुल्लित होकर जाता है। यही सार्थकता है कथा की। 

सगुण ही  अगुण ,नहीं कछु भेदा। 

सत्य यह है न वह सगुण है न निर्गुण यह भक्त के हाथ में है वह किस रूप में दर्शन करना चाहता है। भगवान् यद्यपि परम स्वतंत्र हैं लेकिन दो बातों में परतंत्र भी हैं :

(१ )वह अपना रूप स्वयं नहीं बना सकते। 

(२ )वह अपना नाम स्वयं नहीं रख सकते। 

जैपुर से या फिर महाबलीपुरम से जैसा रूप मूरत बन के आ गया प्रभु उसे ही स्वीकार कर लेते हैं। भगवान् तो एक ही हैं - वेष  का अंतर है बस धनुष हाथ में लिए हो तो हम उन्हें  राम कह देते हैं मुरली हाथ लिए हो तो श्याम ,त्रिशूल हाथ में हो तो शंकर और लम्बी नाक वृकोदर वाले को गणेश, शेर पे सवार हो तो भगवान्  दुर्गा कहलाता है। घोड़े पे बैठ जाएँ तो बाबा रामदेव कहलाता है। मूलतया भगवान् तो एक ही है वेश के अंतर  से  हम अलग-अलग कर देते हैं। 

 स्पिरिचुअल विज़डम से हमारी माताएं अक्सर गातीं भी हैं :

कभी राम बन के  ,कभी श्याम बन के ,

चले आना प्रभु जी ,चले आना। 

प्रभु राम रूप में आना ,

सीता साथ लेके ,धनुष हाथ लेके 

चले आना प्रभु जी , चले आना। 

प्रभु श्याम रूप में आना ,

राधा साथ लेके ,मुरली हाथ लेके ,

चले आना प्रभु जी ,चले आना। 

प्रभु शिव रूप में आना ,

गौरा साथ लेके ,डमरू हाथ लेके ,

चले आना प्रभुजी ,चले आना। 

मन्त्र फलित होता है ,विश्वास  फलित होता है ,किसी पाखंडी की बातों में मत आ जाना ,जो कहे ये मूर्ती तुम्हारी रक्षा कैसे कर सकती है ये अपनी  मक्खी  तो उड़ा नहीं सकती।विश्वास के साथ अगर चींटी को भी रोज़ खिलाते हो तो यही चींटी एक दिन आपको भगवान् तक पहुंचा देगी। विश्वास पहुंचाया करता है मन्त्र नहीं पहुंचाया करता है। मूर्तियां बोलीं हैं सूर के लिए बोलीं हैं तुलसी के लिए बोलीं हैं मीरा के लिए बोलीं हैं जना -बाई के लिए बोलीं हैं।कर्मा- बाई के लिए बोलीं हैं जब उनके लिए वो पत्थर की मूर्ती बोली हैं - तो हमारे लिए भी बोलेंगी । पुकार में कमी है बोलने में देरी नहीं है। 

निर्गुण सगुण हुआ है।

भगवान् तो भक्त के वशीभूत है। 

पैगम्बर का मतलब है पैगाम लाने वाला ,डाकिया। सम्पूर्ण अवतार सिर्फ सनातन धर्म में ही आते  हैं भगवान् के ,'मोहम्मद साहब' और 'ईसामसीह' पैगम्बर हैं उन पर पैगाम उतरा था ,रिवील हुआ था इहलाम हुआ था उन्हें वे पूर्ण अवतार न थे कृष्ण की तरह सोलह कला संपन्न।  

जब जब होय धर्म की हानि ,ताड़ै असुर अभिमानी। 

तब तब प्रभु धर विविध शरीरा ...

 जब भी पृथ्वी पर पापाचार बढ़ते हैं तब तब भगवान् विविध रूपों में आते हैं निराकार से नराकार होकर -शंकर जी ने पार्वती को बतलाया।     

सन्दर्भ -सामिग्री :

(१ )https://www.youtube.com/watch?v=4n2oktYL1Ss


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