बुधवार, 1 नवंबर 2017

Karma and Reincarnation (l)

रिइनकार्नेशन के कई अर्थ लगाए गए हैं जैसे हम कह देते हैं साईं बाबा कबीर के अवतार हैं। यानी ऐसा पुनर्जन्म प्राप्त व्यक्ति या पशु जिसमें किसी मृतव्यक्ति की आत्मा है।कई परिवारों में बच्चा पैदा होता है तो कह देते हैं ये तो दादी जी लौट के आ गईं हैं  हु -ब -हू।

'मृत्यु के बाद ये शरीर तो नष्ट हो जाता है फिर व्यक्ति कहाँ जाता है।' ?ये सवाल एक से अधिक उपनिषदों में पूछा गया है। क्या सब कुछ मृत्यु  के साथ नष्ट हो जाता है या कुछ शेष बच जाता है जो हमारी शेष रही वासनाओं की पूर्ती के लिए पुनर्जन्म प्राप्त करता है।एक नया शरीर मिल जाता है हमें ? उत्तर भी वहां दिया गया है।

कर्म और पुनर्जन्म (पुनर-अवतरण  )जुड़वां सिद्धांत हैं जिनकी परस्पर अलहदगी मुमकिन ही नहीं है ,जब तक वासनाएं पूरी तरह चुक नहीं जाएंगी ,ये सिलसिला चलता रहेगा। यही प्राकृत सिद्धांत है सृष्टि का ।

पुनरपि जन्मम पुनरपि मरणम,

पुनरपि जठरे जननी शयनम।

अध्यात्म ही नहीं वैज्ञानिक अन्वेषण से भी इसकी पुष्टि हुई है। कई विश्वविद्यालयों में ऐसे संस्थान रहें हैं( जैसे जयपुर,भारत )  जो इस अवधारणा और गहरे पैठे विश्वास की पड़ताल करते हैं।

 समय की धार समय की मार से भी यह कई मर्तबा पुष्ट हुआ है हमारे अपने जीवन काल में भी। कई राजनीति के धंधेबाज़ रहे लोगों का हाल आप देख ही रहें हैं। आगे भी यह उपलब्ध रहेगा। आगे या पीछे कर्मफल भोगना ही पड़ेगा।

कर्म गति टारे नाहीं  टरे 

(1 )https://www.youtube.com/watch?v=Drcyb4N0qCo

(2 )https://www.youtube.com/watch?v=-9QWlXn2D98

The Dual -Poled Law Of Karma 

इस द्वि -ध्रुवीय (दो आयामीय )सनातन सार्वत्रिक नियम के बाहर सृष्टि के बुनियादी अवपरमाणुविक कणों  से लेकर नीहारिकाओं (गैलेक्सीज )तक कुछ भी नहीं है। नीहारिकाएं भी एक योनी  हैं कीट और भृंग भी। वृक्ष और पशु -पक्षी भी ,नदी नाले परबत भी। 

नियम अपनी जगह अटल है आप इसे माने या न माने चयन आपका है। लेकिन इसे बूझने के बाद ही आप अपनी नियति का GPS बन पायेंगे (मार्ग दर्शक ग्लोबल पज़िशनिंग सेटेलाइट सिस्टम GPS).जीवन और जगत का आध्यात्मिक कम्पास है कर्म सिद्धांत और पुनरावतरण। 

दुनिया की वर्तमान आबादी (तकरीबन सात अरब साठ करोड़ मनुष्य )का बहुलांश आज इस सिद्धांत को कमोबेश माने है। 

'एक ही जीवन मिलता है आपको उसके बाद सब कुछ नष्ट हो जाता है शेष कुछ नहीं बचता'- इस मान्यता की 'आंच'  ,इस्टीम धीरे- धीरे कम हो रही है पश्चिम सोच के पहले  से ज्यादा लोग अब Theory Of Only One Life को अतार्किक बूझने लगे    हैं।

कर्म और पुनर -अवतरण सिद्धांत  ऐसे अनेक प्रश्नों के समाधान सुझाता है जिनमें भूमंडलीय स्तर पाए अनेक दार्शनिक उलझे रहें हैं। 

जीवन के उद्भव और विकास की दौड़- 'सम्पूर्णता' परफेक्शन की ओर रही है और आज भी है। भले बरटांड़ रशेल और फ्रायड जैसे दार्शनिक और मनोविज्ञानी इससे हटकर कहते समझाते हैं। 

ज़रा एक बार 'सर्वश्रेष्ठ की उत्तरजीविता 'सर्वाइवल आफ दी फिटेस्ट ' के बारे में ही गहराई से उतर  कर सोचिये।समझिये क्या कहता है ये सिद्धांत ,किस दिशा में रही है विकास की दौड़ ,भौतिक शक्ति या आध्यात्मिक बल की ओर ?

यूनान ,मिश्र ,रोम ,इंग्लैंड ,दक्षिण अमरीका (लातिनी अमरीकी देश )ने अब से सैंकड़ो साल पहले इस अवधारणा को गले लगाया है। 

मिश्र के नामचीन राजे -महाराजे अनेक देवताओं के अवतार माने समझे  गए हैं।सनातन धर्मी भारतधर्मी समाज आज भी इन अवधारणाओं से पल्लवित पोषित सम्पुष्ट है। 

यहां अवधारणा है प्रारब्ध की (पूर्व जन्म के कर्म फलों के एक अंश की )जिसे लेकर ही आप इस संसार में आये हैं। यह प्रारब्ध तो आपको भोगना ही भोगना है। जिन कर्मो का कर्मफल अभी मिलना है जो आप इस जीवन में कर रहें हैं वे आगामी कर्म कहे गए हैं। इसके अलावा क्रियमाण कर्मों की चर्चा है। जो आप अब कर रहें।फल भी ले रहे हैं ,जैसे पढ़लिख कर नौकरी पेशा बन गए आप।  

'बुरे काम का बुरा नतीजा सुन मेरे राजा ,सुन मेरे भैया। '

कबीर कहते हैं :

कबीरा तेरी झौंपड़ी गलकटियन  के पास ,

करेंगे सो भरेंगे ,तू क्यों  भया उदास।  

कर्म और पुनरावतरण की बात बुद्ध धर्म भी करता आया है। खुद गौतम बुद्ध (सिद्धार्थ )को कृष्ण का अवतार पुराणों में बतलाया गया है। ईसामसीह के बारे में भी ऐसा ही कुछ कहा गया है।अब्राहम भी इसके अपवाद नहीं कहे जाएंगे। 

संदर्भ यह भी देखें पुनरावतरण की बाबत :

Abraham was the patriarch and founder of the Jewish nation. In the Bible, God visited Abraham when he was 75 years old, promising him that he would be the father of a nation even though at the time he had no children.
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(शेष अगले अंक में ...)   






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