स्वभाव गत सुनिए आज्ञा गत नहीं ,सब कुछ सुन ने का स्वभाव बनाइये ,सबकी सुनिए प्रतिक्रिया मत दीजिये फिर आप कथा भी सुनेंगे।
कथा भगवान् के स्वभाव का परिचय कराती है।
अति कोमल रघुवीर सुभाउ ........
पूछै कुशल निकट बैठाई।
मनुष्य का शरीर मिला है भगवद प्राप्ति के लिए मोक्ष प्राप्त करना हो तो केवल मनुष्य शरीर से प्राप्त होता है यह मनुष्य शरीर भगवान् का सर्वोत्तम प्रसाद है। दिव्यशरीर मिला है इसे भगवान् के चरणों में चढ़ाइये कीचड़ में मत डालिये इस गुलदस्ते को।
यह मनुष्य शरीर स्वर्ग ,नर्क ,अपवर्ग नसैनी ( सीढ़ी ) है। एक ही सीढ़ी होती है छत पे चढ़ने और उतरने की केवल दिशा का अंतर होता है सीढ़ी एक ही होती है। अगर आपकी दिशा ऊपर की ओर है तो आप स्वर्ग से भी आगे निकल के मोक्ष तक भी चले जाएंगे और अगर दिशा नीचे की ओर है तो रौरव नर्क के गढ़्ढ़े में भी चले जाएंगे।शरीर वही है केवल दिशा का अंतर है।
कथा जीवन की दिशा बदलती है साधू संत भी यही काम करते हैं- दिशा बदली तो जीवन की दशा बदली।
सबसे सरल है भगवद प्राप्ति। पैसा कमाना बहुत कठिन है।
छोड़ना कुछ नहीं होगा -न काम ,न क्रोध ,न लालच ,न भगवान् से कभी डरना है ,भगवान् पुलिस के दारोगा नहीं है जो डायरी और पेन लिए बैठे हैं।वह अपने बच्चों के दुर्गुण नहीं देखता है।
डरना है तो पाप से डरिये -कामुकता ,लोभता से ,क्रोधता से डरिए (काम ,क्रोध ,लोभ ,मोह तो स्वाभाविक वृत्ति हैं मनुष्य की ).
रामहि केवल प्रेम पियारा
जान लेउ जो जानन हारा।
अच्छे लोगों के साथ बैठोगे ,कुसंग अपने आप छूट जाएगा ,उसे छोड़ने में ताकत मत लगाइये। वह सुसंग से अपने आप ही निरर्थक हो जाएगा। अपेंडिक्स की तरह उसका अस्तित्व वेजिटेटिव हो जाएगा।
भूत के कर्म मत याद करो ,भविष्य की संभावनाओं को याद करो।
भक्त और भगवान का तो झगड़ा भी प्रेम की तरह होता है। झगड़ा पति -पत्नी का भी बुरा नहीं है कलह बुरी चीज़ है जो द्वेष का प्रतीक है। झगड़ा न होने का मतलब है पति -पत्नी एक दूसरे को ढ़ो रहे हैं संबंध ऊपर- ऊपर से ही हैं। असल बात है मूल में प्रेम का होना।
भरे हुए रूंधे हुए गले से बुलाइये भगवान् दौड़ कर आएंगे।
कथा प्रवेश : मेरे मन को शांति मिले मैंने तो इसलिए इस गाथा को लिया है आपको अच्छा लगे आप भी लीजिए।
पंच देवों की स्तुति करते हैं तुलसी प्रारम्भ में।
गणेशजी के कान बहुत बड़े हैं जिसका मतलब है सबकी सुनो ,अच्छी भी बुरी भी निर्णायक की भूमिका में आप मत आइये। सूप की तरह हिलते रहते हैं गणेश के कान जिसका मतलब है सुनने लायक गटक लीजिये ,जो श्रवण -योग्य नहीं है उसे उड़ा दीजिये लेकिन सुन ने में परहेज़ी न करिये।
दृष्टि बहुत सूक्ष्म चाहिए गणेश कहते हैं। दूर-दृष्टि चाहिए। आँखें सूक्ष्म हैं इसीलिए लेकिन दूर तक देखतीं हैं सबको ,सब कुछ ,भविष्य को भी।
नाक बहुत लम्बी है गणेश की -सूंघने की क्षमता बढ़ाइए ,बच्चे क्या कर रहें हैं इनकी चाल क्या कहती है उनके आचरण की गंध सूँघिये ,सुनिए सबकी, पेट में रख लो ,पाचन शक्ति गणेश की तरह मजबूत रखिये। गणेश विवेक के देवता हैं -क्या करना है क्या नहीं करना। विवेकी की चाल बहुत धीमी होती है हाथी की तरह ,पहले कदम रखता है, जमाता है उसे ,फिर दूसरा उठाता है।
हाथ में गणेश के फरसा है -दान करना शुरू किजिये ,किसी का उत्साह बढ़ाइए ,मुस्कुराइए ,दान अनेक तरह का है ,धन -धान्य का ही नहीं है दान। वसूला मत बनिए।
दान करिये और हट जाइये। दान से हृदय की भूमि नम होती है।दान कल्याण करता है।
गणेश के हाथ में पाश है फंदा है -पाश से ही पशु बना है, जो हमेशा फंदे से बांधे जाते हैं -विवेक का बंधन स्वयं स्वीकार करिये।कोई न कोई विवेक का फंदा स्वीकार करिए जिसका सिर खाली रहता है वह धूप से मरेगा ,पानी में भीगेगा।सर्दी से सिकुड़ेगा। सर पे किसी न किसी को बिठाइये ,हाथ रखिये अपने ऊपर किसी का।
क्वारे हैं तो माँ -बाप का फंदा स्वीकार कीजिये। बच्चे हो जाएँ तो उनका फंदा स्वीकार कीजिये -मैं क्या कर रहा हूँ ,क्या खा रहा हूँ ,पी रहा हूँ ,देखें इसका बच्चों पर क्या प्रभाव पड़ता है।
"गाईये गणपति जग वंदन ,शंकर सुवन भवानी के नंदन"
रोज़ सोते समय ये क्रिया करिये -हे प्रभु आपकी अपार कृपा मेरे ऊपर बरस रही है मैं आपको प्रणाम करता हूँ -हाथ ऊपर उठाइये ये बोलते रहिये मन ही मन सोते समय।
सन्दर्भ -सामिग्री :
(१ )https://www.youtube.com/watch?v=rv7-7xiAKU8
कथा भगवान् के स्वभाव का परिचय कराती है।
अति कोमल रघुवीर सुभाउ ........
पूछै कुशल निकट बैठाई।
मनुष्य का शरीर मिला है भगवद प्राप्ति के लिए मोक्ष प्राप्त करना हो तो केवल मनुष्य शरीर से प्राप्त होता है यह मनुष्य शरीर भगवान् का सर्वोत्तम प्रसाद है। दिव्यशरीर मिला है इसे भगवान् के चरणों में चढ़ाइये कीचड़ में मत डालिये इस गुलदस्ते को।
यह मनुष्य शरीर स्वर्ग ,नर्क ,अपवर्ग नसैनी ( सीढ़ी ) है। एक ही सीढ़ी होती है छत पे चढ़ने और उतरने की केवल दिशा का अंतर होता है सीढ़ी एक ही होती है। अगर आपकी दिशा ऊपर की ओर है तो आप स्वर्ग से भी आगे निकल के मोक्ष तक भी चले जाएंगे और अगर दिशा नीचे की ओर है तो रौरव नर्क के गढ़्ढ़े में भी चले जाएंगे।शरीर वही है केवल दिशा का अंतर है।
कथा जीवन की दिशा बदलती है साधू संत भी यही काम करते हैं- दिशा बदली तो जीवन की दशा बदली।
सबसे सरल है भगवद प्राप्ति। पैसा कमाना बहुत कठिन है।
छोड़ना कुछ नहीं होगा -न काम ,न क्रोध ,न लालच ,न भगवान् से कभी डरना है ,भगवान् पुलिस के दारोगा नहीं है जो डायरी और पेन लिए बैठे हैं।वह अपने बच्चों के दुर्गुण नहीं देखता है।
डरना है तो पाप से डरिये -कामुकता ,लोभता से ,क्रोधता से डरिए (काम ,क्रोध ,लोभ ,मोह तो स्वाभाविक वृत्ति हैं मनुष्य की ).
रामहि केवल प्रेम पियारा
जान लेउ जो जानन हारा।
अच्छे लोगों के साथ बैठोगे ,कुसंग अपने आप छूट जाएगा ,उसे छोड़ने में ताकत मत लगाइये। वह सुसंग से अपने आप ही निरर्थक हो जाएगा। अपेंडिक्स की तरह उसका अस्तित्व वेजिटेटिव हो जाएगा।
भूत के कर्म मत याद करो ,भविष्य की संभावनाओं को याद करो।
भक्त और भगवान का तो झगड़ा भी प्रेम की तरह होता है। झगड़ा पति -पत्नी का भी बुरा नहीं है कलह बुरी चीज़ है जो द्वेष का प्रतीक है। झगड़ा न होने का मतलब है पति -पत्नी एक दूसरे को ढ़ो रहे हैं संबंध ऊपर- ऊपर से ही हैं। असल बात है मूल में प्रेम का होना।
भरे हुए रूंधे हुए गले से बुलाइये भगवान् दौड़ कर आएंगे।
कथा प्रवेश : मेरे मन को शांति मिले मैंने तो इसलिए इस गाथा को लिया है आपको अच्छा लगे आप भी लीजिए।
पंच देवों की स्तुति करते हैं तुलसी प्रारम्भ में।
गणेशजी के कान बहुत बड़े हैं जिसका मतलब है सबकी सुनो ,अच्छी भी बुरी भी निर्णायक की भूमिका में आप मत आइये। सूप की तरह हिलते रहते हैं गणेश के कान जिसका मतलब है सुनने लायक गटक लीजिये ,जो श्रवण -योग्य नहीं है उसे उड़ा दीजिये लेकिन सुन ने में परहेज़ी न करिये।
दृष्टि बहुत सूक्ष्म चाहिए गणेश कहते हैं। दूर-दृष्टि चाहिए। आँखें सूक्ष्म हैं इसीलिए लेकिन दूर तक देखतीं हैं सबको ,सब कुछ ,भविष्य को भी।
नाक बहुत लम्बी है गणेश की -सूंघने की क्षमता बढ़ाइए ,बच्चे क्या कर रहें हैं इनकी चाल क्या कहती है उनके आचरण की गंध सूँघिये ,सुनिए सबकी, पेट में रख लो ,पाचन शक्ति गणेश की तरह मजबूत रखिये। गणेश विवेक के देवता हैं -क्या करना है क्या नहीं करना। विवेकी की चाल बहुत धीमी होती है हाथी की तरह ,पहले कदम रखता है, जमाता है उसे ,फिर दूसरा उठाता है।
हाथ में गणेश के फरसा है -दान करना शुरू किजिये ,किसी का उत्साह बढ़ाइए ,मुस्कुराइए ,दान अनेक तरह का है ,धन -धान्य का ही नहीं है दान। वसूला मत बनिए।
दान करिये और हट जाइये। दान से हृदय की भूमि नम होती है।दान कल्याण करता है।
गणेश के हाथ में पाश है फंदा है -पाश से ही पशु बना है, जो हमेशा फंदे से बांधे जाते हैं -विवेक का बंधन स्वयं स्वीकार करिये।कोई न कोई विवेक का फंदा स्वीकार करिए जिसका सिर खाली रहता है वह धूप से मरेगा ,पानी में भीगेगा।सर्दी से सिकुड़ेगा। सर पे किसी न किसी को बिठाइये ,हाथ रखिये अपने ऊपर किसी का।
क्वारे हैं तो माँ -बाप का फंदा स्वीकार कीजिये। बच्चे हो जाएँ तो उनका फंदा स्वीकार कीजिये -मैं क्या कर रहा हूँ ,क्या खा रहा हूँ ,पी रहा हूँ ,देखें इसका बच्चों पर क्या प्रभाव पड़ता है।
"गाईये गणपति जग वंदन ,शंकर सुवन भवानी के नंदन"
रोज़ सोते समय ये क्रिया करिये -हे प्रभु आपकी अपार कृपा मेरे ऊपर बरस रही है मैं आपको प्रणाम करता हूँ -हाथ ऊपर उठाइये ये बोलते रहिये मन ही मन सोते समय।
(१ )https://www.youtube.com/watch?v=rv7-7xiAKU8
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