यह जानना आवश्यक है परमात्मा स्वयं अपनी ही बनाई इस सृष्टि के प्रति कैसे कार्यशील रहतें हैं जो अलग -
अलग पांच प्रावस्थाओं से गुज़रती है .ये प्रावस्थाएं हैं क्रमश :
(१ ) स्वर्ण युग (Golden age )
(२ )रजत युग (Silver age )
(3 )ताम्र युग (Copper age )
(४ )लौह (कल )युग (Iron age )
(5 )पुरुषोत्तम संगम युग (Confluence age )
हरेक युग की अवधि समान (संगम युग आखिरी घड़ी है अल्पावधि वाली )
इस समय चक्र का प्रतीक चिन्ह ही है स्वास्तिक .यही है अविनाशी सृष्टि चक्र (World drama wheel).
ये सृष्टि आरम्भ में(सतयुग में )एक दम से पाकीज़ा होती है .जल ,वायु ,अग्नि ,आकाश और पृथ्वी सब
अपनी परिशुद्ध ,प्रदूषण हीन अवस्था ,सतो गुण लिए रहते हैं .अपनी तात्विकता (गुणों) से भरपूर रहते हैं .
रजत युग में भी तकरीबन तकरीबन यही गुण कामो बेश रहते हैं .लेकिन पावनता का स्तर थोड़ा सा कम ज़रूर
हो जाता है .पञ्च भूत हल्का सा छीज जाते हैं .
ताम्र युग में यह छीज़न बढ़ ती जाती है .भौतिक द्वंद्व शुरू हो जाता है .आत्मा अपना मूल स्वभाव
स्वरूप(शान्ति ,ज्ञान ,आनंद और प्रेम ) खोने लगती
है .कामवासना -क्रोध-लालच (मिलावट और भ्रष्टाचार इसी की कोख से पैदा होता है ),शरीर से मोह और शरीर
के प्रति मोह (कामवासना )बढ़ ने लगता है .यद्यपि इस गिरावट को रोकने का भरसक प्रयास किया जाता है
.हजरत इब्राहिम इस गिरावट को रोकने के लिए अबसे करीब २ ५ ० ० बरस पहले इस्लाम धर्म वंश की
स्थापना करते
हैं तो ईसामसीह ईसाई मत की .शंकराचार्य (१ ५ ० ० वर्ष पूर्व )संन्यास धर्म की तथा मुहम्मद साहब मुस्लिम
धर्म वंश की (१ ४ ० ० वर्ष पूर्व ),गुरुनानक देव सिख पंथ की और उसके बाद तो इस ताम्र युग (द्वापर )में इस
कल्प वृक्ष की शाखाएं ,प्रशाखाएं मठ ,मंडल ,समाज ,आश्रम के रूप में निकलती जाती हैं .जबकि सतयुग (
स्वर्ण युग)और त्रेता (रजत युग )में इस कल्प वृक्ष का एक सुदृढ तना ही दिखता है .एक -एक -एक बोले तो एक
परमात्मा (निराकार शिव ),एक पावन सृष्टि ,एक आदि देवी देवता सनातन धर्म की स्थापना स्वयं शिव
करते हैं .
द्वापर से दो तीन पांच शुरू हो जाता है .धार्मिक स्तर पर जनमानस का विभाजन तेज़ी से होता है .नैतिक
मूल्य तेज़ी से छीजते हैं .समाज में हिंसा और अशांति बढ़ ती है .कलयुग में आत्मा भी जंग लगा लोहा हो जाती
है .कामांध ,क्रोधान्ध ,भ्रष्टाचार ग्रस्त .हर तरह की मक्कारी ,और दलाली होने लगती है .जो निस्पृह भाव से
देख रहे हैं यह सब उनकी आत्मा भी चीत्कार करने लगती है यह गिरावट देखकर .
कबीरा तेरी झोंपड़ी गलकटियन के पास ,
करेंगे सो भरेंगे ,तू क्यों भया उदास .
हिसाब किताब तो चुक्तु करना पड़ेगा .
उधौ कर्मों की गति न्यारी .
पञ्च तत्व पूरी तरह अपनी
तात्विकता खोने लगते हैं .आत्मा खोटू खोटू होने लगती है .खरा कुछ नहीं बचता है .प्रकृति की मार भी बे -
हिसाब पड़ने लगती है .अतिवृष्टि ,सुपर सैंडी ,सब अपना विकराल रूप दिखाने लगते हैं गाहे बगाहे .आत्मा के
पंख कट जाते हैं .परकैच कबूतर बन जाती है आत्मा .
इसी समय परमात्मा शिव का अवतरण होता है .यही महाशिव यात्री का यथार्थ है मर्म है .ठीक इसी समय
परमात्मा शिव साधारण मनुष्य तन में
प्रवेश करते हैं .बोलने के लिए परमात्मा को भी एक मुख चाहिए .इसी आदम को शिवपरमात्मा नाम देते हैं
ब्रह्मा .ब्रह्मा
कमल मुख से निसृत ज्ञान ही गीता है जिसे सुनकर गुणकर आत्मा पे चढ़ा जन्मजमांतर का मैल (खोट )कटता
जाता
है .खोट निकलने लगती है आत्मा से .इसी ज्ञान को जो सुनता है वही ब्राह्मण बनता है उसका स्वभाव संस्कार
बदलता है .दिव्यगुण आने लगते हैं .पुरानी रिकारडिंग समाप्त होने लगती है आत्मा से .इसी संगम युग में
जिसे पुरुषोत्तम संगम युग भी कहा गया है हमारी आत्माओं का परिष्कार परिशुद्धि होती है .क्योंकि आत्मा को
पुरुष और परमात्मा को परमपुरुष भी कहा जाता है पुरुषोत्तम भी और परमात्मा स्वयं ब्रह्मा कमल मुख से
ज्ञान वर्षन करते हैं इसीलिए यह पुरुषोत्तम संगम युग भी कहलाता है .
ज्ञान योग से विकर्म विनाश कर आत्माएं परिशुद्ध होतीं हैं .जो ऐसा नहीं करती सजा खातीं हैं .शुद्ध तो होना है
चाहे याद से हो जाओ चाहे सज़ा खाके .फैसला हमें स्वयं करना है .पुराना सब कुछ चले जाना है नवनिर्माण
होना है .सृष्टि कायम रहती है पूर्ण विनाश कभी नहीं होता है .सृष्टि एक साम्य अवस्था बनाए रहती है .
ये एटमी असलाह ये मिसायल ये बाढ़ (अति वृष्टि )क्लाउड बर्स्ट ,सुनामी ,टारनेडो ,विनाश कारी रिख्तर
पैमाने पर ९ शक्ति के भूकंप पुराना चुन चुन कर स्वाह करते हैं .
यही शंकर के द्वारा किया गया पुरानी मैली कुचेली सृष्टि का प्रतीक रूप स्पर्श्य और दृश्य विनाश है .
योग बल भी इस सफाई अभियान में शामिल होता है .राजयोग से विकर्म विनाश होता है .आत्मा शुद्ध होती है
.ज्ञान और आनंद की स्थिति में आती है प्रेममय हो जाती है सर्वआत्माओं के प्रति .
फिर से सनातन धर्म वंश शुरू होता है .
सतयुग और त्रेता अपने को अपने इतिहास और भूगोल को दोहराते हैं विष्णु के प्रतिनिधि श्री नारायण और श्री
महालक्ष्मी कमान संभालते हैं .समय चक्र निर्बाध घूमता है .एक युग से दूसरे फिर तीसरे की पुनरावृत्ति के
लिए .
हमें बूझना चाहिए ये दुनिया विनाश की ओर बढ़ रही है .जनसंख्या विस्फोट ,आर्थिक विषमता और चंद राष्ट्रों
के प्रभुत्व के चलते खाद्यान्नों का अभाव .भ्रष्ट सरकारों के चलते रैन बसेरों की कमी .बढ़ता कार्बन फुटप्रिंट
,कन्या भ्रूण ह्त्या
,भूमंडलीय स्तर पर पैर पसारता आतंकवाद ,पीने के पानी की कमी ,जलवायु परिवर्तन इस विनाश को हवा
देंगे .गृह युद्ध ,एटमी लड़ाई बड़े पैमाने पर विनाश का सबब बनेंगे .दोहरा दें सम्पूर्ण विनाश नहीं होगा .समय है
हम अपनी एकाउंट शीट, कर्मों का खाता ठीक कर लें .अंत मति सो गति .
ॐ शान्ति .
अलग पांच प्रावस्थाओं से गुज़रती है .ये प्रावस्थाएं हैं क्रमश :
(१ ) स्वर्ण युग (Golden age )
(२ )रजत युग (Silver age )
(3 )ताम्र युग (Copper age )
(४ )लौह (कल )युग (Iron age )
(5 )पुरुषोत्तम संगम युग (Confluence age )
हरेक युग की अवधि समान (संगम युग आखिरी घड़ी है अल्पावधि वाली )
इस समय चक्र का प्रतीक चिन्ह ही है स्वास्तिक .यही है अविनाशी सृष्टि चक्र (World drama wheel).
ये सृष्टि आरम्भ में(सतयुग में )एक दम से पाकीज़ा होती है .जल ,वायु ,अग्नि ,आकाश और पृथ्वी सब
अपनी परिशुद्ध ,प्रदूषण हीन अवस्था ,सतो गुण लिए रहते हैं .अपनी तात्विकता (गुणों) से भरपूर रहते हैं .
रजत युग में भी तकरीबन तकरीबन यही गुण कामो बेश रहते हैं .लेकिन पावनता का स्तर थोड़ा सा कम ज़रूर
हो जाता है .पञ्च भूत हल्का सा छीज जाते हैं .
ताम्र युग में यह छीज़न बढ़ ती जाती है .भौतिक द्वंद्व शुरू हो जाता है .आत्मा अपना मूल स्वभाव
स्वरूप(शान्ति ,ज्ञान ,आनंद और प्रेम ) खोने लगती
है .कामवासना -क्रोध-लालच (मिलावट और भ्रष्टाचार इसी की कोख से पैदा होता है ),शरीर से मोह और शरीर
के प्रति मोह (कामवासना )बढ़ ने लगता है .यद्यपि इस गिरावट को रोकने का भरसक प्रयास किया जाता है
.हजरत इब्राहिम इस गिरावट को रोकने के लिए अबसे करीब २ ५ ० ० बरस पहले इस्लाम धर्म वंश की
स्थापना करते
हैं तो ईसामसीह ईसाई मत की .शंकराचार्य (१ ५ ० ० वर्ष पूर्व )संन्यास धर्म की तथा मुहम्मद साहब मुस्लिम
धर्म वंश की (१ ४ ० ० वर्ष पूर्व ),गुरुनानक देव सिख पंथ की और उसके बाद तो इस ताम्र युग (द्वापर )में इस
कल्प वृक्ष की शाखाएं ,प्रशाखाएं मठ ,मंडल ,समाज ,आश्रम के रूप में निकलती जाती हैं .जबकि सतयुग (
स्वर्ण युग)और त्रेता (रजत युग )में इस कल्प वृक्ष का एक सुदृढ तना ही दिखता है .एक -एक -एक बोले तो एक
परमात्मा (निराकार शिव ),एक पावन सृष्टि ,एक आदि देवी देवता सनातन धर्म की स्थापना स्वयं शिव
करते हैं .
द्वापर से दो तीन पांच शुरू हो जाता है .धार्मिक स्तर पर जनमानस का विभाजन तेज़ी से होता है .नैतिक
मूल्य तेज़ी से छीजते हैं .समाज में हिंसा और अशांति बढ़ ती है .कलयुग में आत्मा भी जंग लगा लोहा हो जाती
है .कामांध ,क्रोधान्ध ,भ्रष्टाचार ग्रस्त .हर तरह की मक्कारी ,और दलाली होने लगती है .जो निस्पृह भाव से
देख रहे हैं यह सब उनकी आत्मा भी चीत्कार करने लगती है यह गिरावट देखकर .
कबीरा तेरी झोंपड़ी गलकटियन के पास ,
करेंगे सो भरेंगे ,तू क्यों भया उदास .
हिसाब किताब तो चुक्तु करना पड़ेगा .
उधौ कर्मों की गति न्यारी .
पञ्च तत्व पूरी तरह अपनी
तात्विकता खोने लगते हैं .आत्मा खोटू खोटू होने लगती है .खरा कुछ नहीं बचता है .प्रकृति की मार भी बे -
हिसाब पड़ने लगती है .अतिवृष्टि ,सुपर सैंडी ,सब अपना विकराल रूप दिखाने लगते हैं गाहे बगाहे .आत्मा के
पंख कट जाते हैं .परकैच कबूतर बन जाती है आत्मा .
इसी समय परमात्मा शिव का अवतरण होता है .यही महाशिव यात्री का यथार्थ है मर्म है .ठीक इसी समय
परमात्मा शिव साधारण मनुष्य तन में
प्रवेश करते हैं .बोलने के लिए परमात्मा को भी एक मुख चाहिए .इसी आदम को शिवपरमात्मा नाम देते हैं
ब्रह्मा .ब्रह्मा
कमल मुख से निसृत ज्ञान ही गीता है जिसे सुनकर गुणकर आत्मा पे चढ़ा जन्मजमांतर का मैल (खोट )कटता
जाता
है .खोट निकलने लगती है आत्मा से .इसी ज्ञान को जो सुनता है वही ब्राह्मण बनता है उसका स्वभाव संस्कार
बदलता है .दिव्यगुण आने लगते हैं .पुरानी रिकारडिंग समाप्त होने लगती है आत्मा से .इसी संगम युग में
जिसे पुरुषोत्तम संगम युग भी कहा गया है हमारी आत्माओं का परिष्कार परिशुद्धि होती है .क्योंकि आत्मा को
पुरुष और परमात्मा को परमपुरुष भी कहा जाता है पुरुषोत्तम भी और परमात्मा स्वयं ब्रह्मा कमल मुख से
ज्ञान वर्षन करते हैं इसीलिए यह पुरुषोत्तम संगम युग भी कहलाता है .
ज्ञान योग से विकर्म विनाश कर आत्माएं परिशुद्ध होतीं हैं .जो ऐसा नहीं करती सजा खातीं हैं .शुद्ध तो होना है
चाहे याद से हो जाओ चाहे सज़ा खाके .फैसला हमें स्वयं करना है .पुराना सब कुछ चले जाना है नवनिर्माण
होना है .सृष्टि कायम रहती है पूर्ण विनाश कभी नहीं होता है .सृष्टि एक साम्य अवस्था बनाए रहती है .
ये एटमी असलाह ये मिसायल ये बाढ़ (अति वृष्टि )क्लाउड बर्स्ट ,सुनामी ,टारनेडो ,विनाश कारी रिख्तर
पैमाने पर ९ शक्ति के भूकंप पुराना चुन चुन कर स्वाह करते हैं .
यही शंकर के द्वारा किया गया पुरानी मैली कुचेली सृष्टि का प्रतीक रूप स्पर्श्य और दृश्य विनाश है .
योग बल भी इस सफाई अभियान में शामिल होता है .राजयोग से विकर्म विनाश होता है .आत्मा शुद्ध होती है
.ज्ञान और आनंद की स्थिति में आती है प्रेममय हो जाती है सर्वआत्माओं के प्रति .
फिर से सनातन धर्म वंश शुरू होता है .
सतयुग और त्रेता अपने को अपने इतिहास और भूगोल को दोहराते हैं विष्णु के प्रतिनिधि श्री नारायण और श्री
महालक्ष्मी कमान संभालते हैं .समय चक्र निर्बाध घूमता है .एक युग से दूसरे फिर तीसरे की पुनरावृत्ति के
लिए .
हमें बूझना चाहिए ये दुनिया विनाश की ओर बढ़ रही है .जनसंख्या विस्फोट ,आर्थिक विषमता और चंद राष्ट्रों
के प्रभुत्व के चलते खाद्यान्नों का अभाव .भ्रष्ट सरकारों के चलते रैन बसेरों की कमी .बढ़ता कार्बन फुटप्रिंट
,कन्या भ्रूण ह्त्या
,भूमंडलीय स्तर पर पैर पसारता आतंकवाद ,पीने के पानी की कमी ,जलवायु परिवर्तन इस विनाश को हवा
देंगे .गृह युद्ध ,एटमी लड़ाई बड़े पैमाने पर विनाश का सबब बनेंगे .दोहरा दें सम्पूर्ण विनाश नहीं होगा .समय है
हम अपनी एकाउंट शीट, कर्मों का खाता ठीक कर लें .अंत मति सो गति .
ॐ शान्ति .
8 टिप्पणियां:
सर जी ,समय की शिला पर आप ने
जवान का यथार्त चित्र उकेरा है ,साथ
ही मानव जीवन के क्रियात्मक पक्ष में
निरंतर होने वाले ह्रास एवम मूल्यों
में क्षरण को बिम्बित किया है , बहु ही
सत्य प्रतीत होता है
आज विस्तृत रूप से लिखा आपने परमात्मा की काल गति और सृष्टि के बारे में. बहुत शीतलता मिली, आभार.
रामराम.
एक चक्र में बाँधा सबको, सुख अन्तर सुख आना ही है,
जन्म लिये आये इस द्वारे, उस द्वारे से जाना ही है।
काफ़ी विस्तृत रूप से वर्णन किया आपने सर!
~सादर!!!
आज तो स्वास्थ से मोड़ के आध्यात्म की तरफ ले गए आप ... ईश्वर और समय के चक्र को बाखूबी लिखा है ... रामराम जी ..
हम अपनी एकाउंट शीट, कर्मों का खाता ठीक कर लें .अंत मति सो गति.....
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बढ़िया ....
जानकारीपूर्ण ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य जग गई आध्यात्म की अलख और योगी की धूनी
वीरेंद्र भाई आज आप किस रास्ते में चल पढ़े ? शुद्ध विज्ञानं से शारीर विज्ञानं फिर सेहत ज्ञान अब यह धर्म ज्ञान ? आशा राम जी, बाबा राम देव की कुर्सी खतरे में तो नहीं ? हा हा हा .....
डैश बोर्ड पर पाता हूँ आपकी रचना, अनुशरण कर ब्लॉग को
अनुशरण कर मेरे ब्लॉग को अनुभव करे मेरी अनुभूति को
lateast post मैं कौन हूँ ?
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