मनुष्य लोक ,सूक्ष्म लोक और परलोक
हम जिस दुनिया में रहते हैं वह गोचर ,दृश्य स्थूल दुनिया ही मनुष्य लोक है .मृत्यु लोक है .इसे साकारी दुनिया भी कहा जाता है .स्थूल रूप यहाँ सब कुछ दृश्यमान है .प्रेक्षणीय है .ओब्ज़रवेबिल यूनिवर्स हैयह .यहाँ जो आया है वह जाएगा .यह रंग मंच है यहाँ सब अपना अपना पार्ट प्ले करते हैं .सब एक्टर हैं .नश्वर है यह दुनिया .यहाँ एक ही चीज़ शाश्वत है और वह है परिवर्तन .मृत्यु अवश्यंभावी है .
पानी ,केरा, बुदबुदा ,अस मानस की जात ,
देखत ही बुझ जाएगा ज्यों तारा परभात .
यह कर्म क्षेत्र है यहाँ एक्शन है मार धाड़ है .सुकर्म है ,विकर्म ,कर्म है। कर्म भोग है .जो जैसा बोयेगा वैसा ही काटेगा .जैसा कर्म वैसा फल .कर्म भोग से भाग नहीं सकते .कर्म क्षेत्र से भाग नहीं सकते .जो आत्म घात कर लेते है उन्हें अगले जन्म में कर्मभोग चुक्तु करना पड़ता है .सजा खानी पड़ती है .इस रंग मंच पे अभिनीत होना ही होना है .कोई छोटा रास्ता नहीं है कूच का जो कुछ होता है यहीं होता है .सुख ,दुख,हारी -बीमारी।
यहाँ परिवर्तन होता है प्रलय नहीं .यहीं स्वर्ग है .सत - युग(स्वर्ण युग )आता है ,त्रेता (चन्द्र वंश ,रजत युग त्रेता आता है ) यहीं हम सतो से फिर तमो प्रधान बन नरकवासी बनते हैं .द्वापर (ताम्र युग )और कल युग (लौह युग )भोगते हैं .इतिहास -भूगोल अपने आपको दोहराता है .सृष्टि चक्र चलता रहता है . बना बनाया ड्रामा है यह .अलबत्ता यहाँ आप अपनी मेरिट पुरुषार्थ से सुधार सकते हैं .श्री मत (परमात्मा के निर्देशन ,उसकी गाइडेंस ,उसके दिखाए मार्ग पे चलके ).
इस मनुष्य लोक में संकल्प ,ध्वनी और कर्म तीनों हैं .इसे ही पांच तत्व (जल वायु ,अग्नि ,आकाश ,पृथ्वी )की सृष्टि ,साकारी दुनिया कहते हैं .ईथर (आकाश तत्व )के एक छोटे से अंश (खंड) में अवस्थित है यह मनुष्य लोक साकारी दुनिया .आंधी -तूफ़ान ,बवंडर ,सुनामी ,टारनेडो ,भूकंप ,सूखा ,अतिवृष्टि (Cloud burst ),बाढ़ (जलप्लावन )सब कुछ यहीं आता है .
दुःख और सुख मन की स्थितियां परिष्तिथियाँ हैं जो बदलती रहतीं है कर्मानुसार .
परमात्मा शिव इसके(साकारी ,स्थूल दुनिया ,मनुष्य लोक )के बीज रूप हैं ,जो स्वयं जन्म -मरण से परे हैं .न्यारे हैं .ब्रह्म लोक (परमधाम )वासी हैं .हम मनुष्य आत्माओं का भी प्राकृत आवास यही परम- धाम है .इस रंग मंच साकार मनुष्य लोक में हमारा आवास और हमारा होना सब कुछ अस्थाई है .आवाजाही का मेला है .असल घर आत्माओं का परमधाम ही है .हम यहीं से इस सृष्टि रूपा रंग मंच पर आते हैं .
इस प्रेक्षणीय जगत (Observable Universe )से परे ,रेडिओ दूरबीनो के प्रेक्षण से भी परे ,चाँद सितारों ,नीहारिकाओं ,स्पंदन शील सितारों ,पल्सर्स और क्वासर्स के भी पार एक और लोक है सूक्ष्म लोक .
यही दिव्यप्रकाश लोक है .फरिश्तों (ब्रह्मा -विष्णु -महेश /शंकर )की दुनिया है .ब्रह्म -विष्णु -शंकरपुरियां यहीं हैं .ये तीनों पुरियां क्रमश :एक दूसरे के ऊपर हैं .प्रकाश ही प्रकाश यहाँ सर्वत्र व्याप्त है .ब्रह्मपुरी के प्रकाश का रंग कुछ और है विष्णु और शंकरपुरी (शिवपुरी ,हालाकि शंकर शिव की रचना है ,रचता शिव है ,शंकर रचना है शिव की ,कई शहरों में आपको शिवपुरी ,ब्रह्मपुरी नाम के गली मोहल्ले मिल जायेंगे )का कुछ और .
यहाँ संकल्प है ध्वनी नहीं है .इन देवताओं के शरीर प्रकाश के शरीर हैं जिन्हें देखने के लिए ज्ञान चक्षु चाहिए .दिव्यनेत्र (तीन लोकों का ज्ञान )चाहिए .
यहाँ न अशांति है न शोर .ध्वनी ही नहीं है तो शोर कहाँ से होगा अलबत्ता संवाद हैं .संभाषण हैं ,एक्शन (क्रियाएं )है .दुःख का नामोनिशान भी नहीं है .यही फरिश्तों की दुनिया है .देव लोक है .सब कुछ विचार से संचालित है .
इस देव लोक से भी परे है ब्रह्म लोक ,परलोक ,परमधाम ,मुक्ति - धाम ,शिवधाम ,असली शिवपुरी .यहाँ ब्रह्म तत्व(sixth element ) का डेरा है .रक्ताभ -सुनहरा प्रकाश है .परमशान्ति धाम है यह .पूर्ण शान्ति का डेरा है यहाँ .सब ओर निर्मलता ,पावनता ,शीतलता का डेरा है .
यही आत्माओं का मूल निवास स्थान है .आत्मलोक , आत्मा यहाँ अशरीर रूप में होती है विकार -मुक्ति के बाद ही यहाँ आती है यहीं से फिर नीचे उतरती जाती है अपने पार्ट के अनुसार .
इस आत्म लोक के भी ऊपर है परमात्मलोक /परमधाम .शिव यहीं हैं .त्रिलोकी स्वरूप .
राजयोग (योग युक्त हो बैठने के लिए )हम अपने आत्म स्वरूप (ज्योतिबिंदु स्वरूप )को याद करते हुए इसी ब्रह्म लोक में पलक झपकते ही मन बुद्धि से पहुँचते है .यहीं हम अपने आपको परम दिव्यज्योति स्वरूप निराकार शिव के सामने बैठा पाते हैं .उससे शीतलता , ऊर्जा लेते हैं .चार्ज करते हैं अपनी आत्मा को .सारा बुद्धि का खेल है यह .याद में बैठना है शिव की .महसूस करना है अपने प्रकाश स्वरूप को शांत स्वरूप को ज्ञान स्वरूप को .महसूस करना है उस असीम प्रेमपूर्ण के सामीप्य को .पावन दिव्य दृष्टि को ज्ञान चक्षु से .मन बुद्धि संस्कार से .
ॐ शान्ति .
हम जिस दुनिया में रहते हैं वह गोचर ,दृश्य स्थूल दुनिया ही मनुष्य लोक है .मृत्यु लोक है .इसे साकारी दुनिया भी कहा जाता है .स्थूल रूप यहाँ सब कुछ दृश्यमान है .प्रेक्षणीय है .ओब्ज़रवेबिल यूनिवर्स हैयह .यहाँ जो आया है वह जाएगा .यह रंग मंच है यहाँ सब अपना अपना पार्ट प्ले करते हैं .सब एक्टर हैं .नश्वर है यह दुनिया .यहाँ एक ही चीज़ शाश्वत है और वह है परिवर्तन .मृत्यु अवश्यंभावी है .
पानी ,केरा, बुदबुदा ,अस मानस की जात ,
देखत ही बुझ जाएगा ज्यों तारा परभात .
यह कर्म क्षेत्र है यहाँ एक्शन है मार धाड़ है .सुकर्म है ,विकर्म ,कर्म है। कर्म भोग है .जो जैसा बोयेगा वैसा ही काटेगा .जैसा कर्म वैसा फल .कर्म भोग से भाग नहीं सकते .कर्म क्षेत्र से भाग नहीं सकते .जो आत्म घात कर लेते है उन्हें अगले जन्म में कर्मभोग चुक्तु करना पड़ता है .सजा खानी पड़ती है .इस रंग मंच पे अभिनीत होना ही होना है .कोई छोटा रास्ता नहीं है कूच का जो कुछ होता है यहीं होता है .सुख ,दुख,हारी -बीमारी।
यहाँ परिवर्तन होता है प्रलय नहीं .यहीं स्वर्ग है .सत - युग(स्वर्ण युग )आता है ,त्रेता (चन्द्र वंश ,रजत युग त्रेता आता है ) यहीं हम सतो से फिर तमो प्रधान बन नरकवासी बनते हैं .द्वापर (ताम्र युग )और कल युग (लौह युग )भोगते हैं .इतिहास -भूगोल अपने आपको दोहराता है .सृष्टि चक्र चलता रहता है . बना बनाया ड्रामा है यह .अलबत्ता यहाँ आप अपनी मेरिट पुरुषार्थ से सुधार सकते हैं .श्री मत (परमात्मा के निर्देशन ,उसकी गाइडेंस ,उसके दिखाए मार्ग पे चलके ).
इस मनुष्य लोक में संकल्प ,ध्वनी और कर्म तीनों हैं .इसे ही पांच तत्व (जल वायु ,अग्नि ,आकाश ,पृथ्वी )की सृष्टि ,साकारी दुनिया कहते हैं .ईथर (आकाश तत्व )के एक छोटे से अंश (खंड) में अवस्थित है यह मनुष्य लोक साकारी दुनिया .आंधी -तूफ़ान ,बवंडर ,सुनामी ,टारनेडो ,भूकंप ,सूखा ,अतिवृष्टि (Cloud burst ),बाढ़ (जलप्लावन )सब कुछ यहीं आता है .
दुःख और सुख मन की स्थितियां परिष्तिथियाँ हैं जो बदलती रहतीं है कर्मानुसार .
परमात्मा शिव इसके(साकारी ,स्थूल दुनिया ,मनुष्य लोक )के बीज रूप हैं ,जो स्वयं जन्म -मरण से परे हैं .न्यारे हैं .ब्रह्म लोक (परमधाम )वासी हैं .हम मनुष्य आत्माओं का भी प्राकृत आवास यही परम- धाम है .इस रंग मंच साकार मनुष्य लोक में हमारा आवास और हमारा होना सब कुछ अस्थाई है .आवाजाही का मेला है .असल घर आत्माओं का परमधाम ही है .हम यहीं से इस सृष्टि रूपा रंग मंच पर आते हैं .
इस प्रेक्षणीय जगत (Observable Universe )से परे ,रेडिओ दूरबीनो के प्रेक्षण से भी परे ,चाँद सितारों ,नीहारिकाओं ,स्पंदन शील सितारों ,पल्सर्स और क्वासर्स के भी पार एक और लोक है सूक्ष्म लोक .
यही दिव्यप्रकाश लोक है .फरिश्तों (ब्रह्मा -विष्णु -महेश /शंकर )की दुनिया है .ब्रह्म -विष्णु -शंकरपुरियां यहीं हैं .ये तीनों पुरियां क्रमश :एक दूसरे के ऊपर हैं .प्रकाश ही प्रकाश यहाँ सर्वत्र व्याप्त है .ब्रह्मपुरी के प्रकाश का रंग कुछ और है विष्णु और शंकरपुरी (शिवपुरी ,हालाकि शंकर शिव की रचना है ,रचता शिव है ,शंकर रचना है शिव की ,कई शहरों में आपको शिवपुरी ,ब्रह्मपुरी नाम के गली मोहल्ले मिल जायेंगे )का कुछ और .
यहाँ संकल्प है ध्वनी नहीं है .इन देवताओं के शरीर प्रकाश के शरीर हैं जिन्हें देखने के लिए ज्ञान चक्षु चाहिए .दिव्यनेत्र (तीन लोकों का ज्ञान )चाहिए .
यहाँ न अशांति है न शोर .ध्वनी ही नहीं है तो शोर कहाँ से होगा अलबत्ता संवाद हैं .संभाषण हैं ,एक्शन (क्रियाएं )है .दुःख का नामोनिशान भी नहीं है .यही फरिश्तों की दुनिया है .देव लोक है .सब कुछ विचार से संचालित है .
इस देव लोक से भी परे है ब्रह्म लोक ,परलोक ,परमधाम ,मुक्ति - धाम ,शिवधाम ,असली शिवपुरी .यहाँ ब्रह्म तत्व(sixth element ) का डेरा है .रक्ताभ -सुनहरा प्रकाश है .परमशान्ति धाम है यह .पूर्ण शान्ति का डेरा है यहाँ .सब ओर निर्मलता ,पावनता ,शीतलता का डेरा है .
यही आत्माओं का मूल निवास स्थान है .आत्मलोक , आत्मा यहाँ अशरीर रूप में होती है विकार -मुक्ति के बाद ही यहाँ आती है यहीं से फिर नीचे उतरती जाती है अपने पार्ट के अनुसार .
इस आत्म लोक के भी ऊपर है परमात्मलोक /परमधाम .शिव यहीं हैं .त्रिलोकी स्वरूप .
राजयोग (योग युक्त हो बैठने के लिए )हम अपने आत्म स्वरूप (ज्योतिबिंदु स्वरूप )को याद करते हुए इसी ब्रह्म लोक में पलक झपकते ही मन बुद्धि से पहुँचते है .यहीं हम अपने आपको परम दिव्यज्योति स्वरूप निराकार शिव के सामने बैठा पाते हैं .उससे शीतलता , ऊर्जा लेते हैं .चार्ज करते हैं अपनी आत्मा को .सारा बुद्धि का खेल है यह .याद में बैठना है शिव की .महसूस करना है अपने प्रकाश स्वरूप को शांत स्वरूप को ज्ञान स्वरूप को .महसूस करना है उस असीम प्रेमपूर्ण के सामीप्य को .पावन दिव्य दृष्टि को ज्ञान चक्षु से .मन बुद्धि संस्कार से .
ॐ शान्ति .
10 टिप्पणियां:
इस दुनिया में .यहाँ एक ही चीज़ सत्य है और वह है परिवर्तन.और मृत्यु निश्चित है .
बहुत उम्दा, बेहतरीन अभिव्यक्ति,,,
RECENT POST: दीदार होता है,
सब संचित मन में हो जाता, धीरे धीरे सब निकसाता।
कोई छोटा रास्ता नहीं है कूच का जो कुछ होता है यहीं होता है .
बिल्कुल सही कहा आपने ....
'काजल तेरी कोठड़ी , काजल ही का कोट '
और शिव ही हैं ओट..
बहुत ही बेहतरीन सार्थक आलेख.
ॐ शान्ति.
शुद्ध तत्व ज्ञान का विस्तार पा रहे हैं यहा, आगे भी मार्ग दर्शन करते रहियेगा.
रामराम.
सुबह के चिड़ियों के कलरव जैसा आनंद
मन को शांति प्रदान करता आलेख. अनेक सन्देश निहित हैं इसमें.
यह कर्म क्षेत्र है यहाँ एक्शन है मार-धाड़ है. सुकर्म है, विकर्म, कर्म है। कर्म भोग है. जो जैसा बोयेगा वैसा ही काटेगा....
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