बुधवार, 1 मई 2013

Raja Yoga taught by Shiva the Lord of Yogis

इन दिनों  एक फेशनेबुल शब्द बन चला है .योग (जिसे योगा कहने का रिवाज़ पड़  चला है).संस्कृत भाषा में इसका शाब्दिक अर्थ है जुड़ना ,संयुक्त होना .एक सम्बन्ध जोड़ना .एक सम्बन्ध का जुड़ना .इसकी अर्थछटा परमात्मा से मन और रूह से जुड़ना था ,आध्यात्मिक सम्बन्ध सूत्र में खुद को पिरोना था उस परमपिता परमात्मा के साथ .

आरोग्य लाभ के लिए एक आनुषांगिक चिकित्सा के रूप में भी योग दुनिया भर में स्वीकृत हो चला है .प्रबंधन संस्थानों में भी योग कक्षाएं लगने लगीं हैं स्ट्रेस के प्रबंधन के लिए .

योग का मतलब पूरी कायनात सर्वात्माओं के साथ तादात्म्य स्थापित करना ,तदानुभूति करना सर्व की .आत्मा का परमात्मा से मधुर मीठा सम्बन्ध बनाना इसका लक्ष्य रहा है .

इन दिनों इसकी अनेक शैली प्रचलित है .स्ट्रेचिंग और मुद्राओं समेत .सुनिश्चित आसनों के रूप  में।लेकिन यह योग का स्थूल रूप है जिसका लाभांश हमारी काया को ज़रूर मिलता है .मन और बुद्धि का भी परिष्करण हो यह ज़रूरी नहीं है .काया का टोनिक हो सकता है योग का यह मौद्रिक कायिक संस्करण  .

परम्परा और पुराण शिव को योगियों का राजा कहतें हैं .राजाओं का भी जो राजा है वह नटराज है .उनके द्वारा दिया योग ही राज योग है .लार्ड आफ योगीज हैं शिव .उनके द्वारा ही   ब्रह्मा मुख कमल से योग निसृत हुआ है .अंकुरित हुआ है .गीता ज्ञान भी शिव द्वारा प्रसूत योग है .गीता का प्रवचनकार शिव ही है .कृष्ण द्वापर में नहीं हो सकते वह तो परम योगी हैं सतो गुनी सोलह कला संपन्न .ब्रह्मा का ही विकास हैं कृष्ण .द्वापर में नहीं हैं कृष्ण .कृष्ण सतयुगी प्रिंस हैं

बेशक बहु चर्चित,बहु -श्रुत  पातंजलि का अष्ट योग रहा है जिसके अष्टांग यम (पापों से परहेजी ),नियम ,भौतिक मुद्राएं ,सांस पे नियंत्रण ,अपने आपको कच्छप की मानिंद समेट लेना ,ध्यान ,चिंतन और समाधि रहें हैं .

बकौल पातंजलि यह आठों योगांग आत्मा को स्थिर प्रज्ञ बना देंगे ,मुक्त करतें हैं आत्मा को .पातंजलि किसी ख़ास मुद्रा में बैठने का आग्रह नहीं करते हैं .श्वांस पे नियंत्रण भी वह सहज रूप करना बतलाते हैं आग्रह मूलक नहीं .कायिक कष्ट द्वारा नहीं .लेकिन पातंजलि कर्म भोग की चर्चा नहीं करते  .कर्मयोग से कर्म  भोग तो आत्मा को चुकतू  करना ही होगा .कैसे यही राज योग सिखलाता है .पातंजलि आत्मा पे चढ़े कर्म भोग को उतारना नहीं सिखाते हैं .

राजयोग पहले छ :अंगों

(१ ) यम

(२ )नियम

(३ )भौतिक मुद्राएं

  (४ )श्वांस नियंत्रण

 (५ )समेटना

(  ६ )ध्यान

पे तवज्जो देता है .आसन और प्राणायाम यहाँ गौड़ हो जाते हैं .

बस आत्मा अपने आपको  काया से अलग देख समझ ले शिव की याद में बैठ जाए आराम से ,और समाधिस्थ हो जाए इसी याद में तल्लीन हो रहे .मन इधर उधर न जाए .ऐसे में मुद्रा और श्वांस संयम खुद ब खुद चला आयेगा अनायास .

शिव हमें राज योग के तहत हमारे भूत ,.वर्तमान और भविष्य की भी खबर देते हैं .रचना और रचता का फर्क समझाते हैं .आत्मा कैसे अपने दिव्य गुणों का संवर्धन करे यही सिखाता है राज योग .

ग्यानाधारित है राज योग .हमसो सोऽहं (सोहम ).हमसो यानी हम ही सतो प्रधान सोलह कला संपन्न योगी थे .गुणों के छीजने के साथ साथ हम सीढ़ी उतरते गए सतो से रजो और अब तमोगुण प्रधान बन गए हैं .हर तरफ लंका और रावण का ही राज्य है।एक नहीं है लंका इस सर्वयापी लंका में सब बावन गज के हैं .असुर बन गए हैं .मैं (शिव )मुक्ति दाता ,सुख करता हूँ .

राज योग से सिर्फ इस को काम में लेने वाला ही लाभान्वित नहीं होता इसका असर पूरे वायुमंडल को शुद्ध करता है .खासकर तब जब यह सामूहिक रूप से किया जाए .यह हमारा स्वभाव संस्कार शुद्ध करता है मैल उतारता है आत्मा से .कर्म भोग को सहज रूप झेलना सिखाता है .करता भाव छोड़ हम साक्षी (दृष्टा )बन जाते हैं .वीरुभाई के साथ क्या हो रहा है वह वीरुभाई की निर्देशक आत्मा देखती है निस्पृह भाव .

ॐ शान्ति

(ज़ारी )




5 टिप्‍पणियां:

राहुल ने कहा…

योग के विभिन्न पहलुओं पर नायाब जानकारी...

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

स्वयं को पहचान कर जगत साधें..

डॉ. मोनिका शर्मा ने कहा…

ये मार्ग मिल जाये तो बात ही क्या .... मन को जगाती पोस्ट

Arvind Mishra ने कहा…

योग पर एक नयी दृष्टि

ताऊ रामपुरिया ने कहा…

आत्मा अपने आपको काया से अलग देख समझ ले शिव की याद में बैठ जाए आराम से ,और समाधिस्थ हो जाए इसी याद में तल्लीन हो रहे .

यही तो उपनिषद कहते कहते थक गये पर इंसान को इस तरफ़ सोचने की फ़ुरसत ही कहां है? वो तो मंदिर में भी भिखारी की तरह मांगने ही जाता है.

योग ही तत्व की ओर लेजाने का एक मात्र रास्ता है. बहुत आभार.

रामराम.