ज्ञान योग :योगेश्वर शिव ही क्योंकि राज योग सिखाते हैं जिसकी नींव ज्ञान पर टिकी है ,ज्ञान स्वयं अपने आत्म स्वरूप होने का ,सृष्टि (सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड का ज्ञान ),स्वयं परमात्मा के अनादि स्वरूप का ज्ञान ,नैतिक नियम बंधन आदि इसी लिए राजयोग को ज्ञानयोग भी कहा गया है .
बुद्धि योग :इसे ही बुद्धि योग (और योगी को योग बुद्धि )कहा गया है क्योंकि इस योग में बुद्धि योग एक बाप (शिव ,हम सब आत्माओं का बाप )से ही लगाना है .भौतिक मुद्राओं का आग्रह बिलकुल नहीं है .जैसे मर्ज़ी बैठो ,जिस मुद्रा में बैठो कुर्सी पर या ज़मीन पे आसन बिछाके सुविधानुसार इसीलिए इसे ज्ञान योग भी कहा जाता है .
कर्मयोग :कर्म योग भी यही है क्योंकि राजयोग अपने सामाजिक ,व्यावसायिक हितों से भागने की बात नहीं करता है .गृहस्थ जीवन को भी कर्मठ बनके संभालने निभाने की बात करता है याद में (शिव की )रहते हुए कर्म करने की बात करता है इसीलिए इसे कर्मयोग भी कहा जाता है .साक्षी भाव से दृष्टा बन कर्म करो कर्मभोग का दंश कम होगा न दुःख में अधिक दुखी न सुख में अभिमानी भाव .निरअभिमानी बनाता है कर्मयोग .निस्पृह में .
अलबत्ता यह कर्मयोग विकारों से संन्यास की ,मोह माया से विमुख रहने ,बे -ईमान और भ्रष्ट न होने की बात करता है .देह का आर्केस्ट्रा जब ज़रूरी हो तभी बजाओ जब चाहो बंद कर लो एक स्विच की तरह .कच्छप की तरह कर्मेन्द्रियों को समेट लो .
इसीलिए इसे संन्यास योग या फिर परित्याग योग (the Yoga of renunciation ) भी कह दिया गया है .ट्रस्टी बनके कर्म करने की बात करता है राजयोग (संन्यास योग )मालिक बनके नहीं .हम तो निमित्त मात्र हैं करन करावन हार वह अप्रम दिव्यपरमात्मा है जिसकी कृपा दृष्टि मुझपे टिकी रहती है मुझे ज़ेड श्रेणी की सुरक्षा देते हुए .मेरा कोई बाल बांका नहीं कर सकता .
जाकू राखे साइयां मार सके न कोय ,होनी तो होके रहे,लाख करे किन कोय
संन्यास योगी की शुभ भावना ,शुभकामना सभी (सर्व आत्माओं के लिए हैं )के लिए रहती है .
वह मन बुद्धि से समर्पण कर देता है .(इसके लिए मन और मुख दोनों का मौन चाहिए ,किसी न बुरा बोलना है न किसी का बुरा सोचना है ).धर्माधिकारी शिव का ही आदेश चाहिए उसे .इसका फायदा यह होता है वह सब चिंताओं से विमुक्त हो जाता है .कोई भय नहीं कोई व्यर्थ सोच (संकल्प ,निगेटिव थाट )नहीं बचता है .
तुलसी भरोसे राम के रह्यो खाट पे सोय,
अनहोनी होनी नहीं ,होनी होय सो होय .
इसीलिए इसी राजयोग को समत्व योग (Yoga of Equanimity )कह दिया गया है .समत्व योग की प्राप्ति व्यक्ति को स्थित प्रज्ञ बनाती है -a Yogi having equanimity .
भक्ति योग :क्योंकि यह परमात्मा से गहरे लगाव और उसके प्रति पूर्ण समर्पण पर आधारित है इसीलिए भक्ति योग भी कहलाया है .
यहाँ कोई जप और पूजन (कर्म काण्ड )नहीं है .ईश्वर के प्रति असीम प्रेम और जानकारी पर आधारित है यह भक्ति योग .
'सहज राज योग 'भी कहलाता है राज योग क्योंकि यहाँ तन्मय होकर उसकी याद में खो जाना सहज है .यहाँ शरीर को उससे (परमात्मा )जुड़ने के लिए कोई कष्ट नहीं देना पड़ता है इसीलिए यह 'सहज राजयोग' है .खाते पीते ,कर्म करते स्विच आन किया और पहुँच गए परलोक (परम धाम ,soul world ).योगी के स्वभाव (मिजाज़ )का हिस्सा बन जाता है सहज राज योग .
(ज़ारी )
बुद्धि योग :इसे ही बुद्धि योग (और योगी को योग बुद्धि )कहा गया है क्योंकि इस योग में बुद्धि योग एक बाप (शिव ,हम सब आत्माओं का बाप )से ही लगाना है .भौतिक मुद्राओं का आग्रह बिलकुल नहीं है .जैसे मर्ज़ी बैठो ,जिस मुद्रा में बैठो कुर्सी पर या ज़मीन पे आसन बिछाके सुविधानुसार इसीलिए इसे ज्ञान योग भी कहा जाता है .
कर्मयोग :कर्म योग भी यही है क्योंकि राजयोग अपने सामाजिक ,व्यावसायिक हितों से भागने की बात नहीं करता है .गृहस्थ जीवन को भी कर्मठ बनके संभालने निभाने की बात करता है याद में (शिव की )रहते हुए कर्म करने की बात करता है इसीलिए इसे कर्मयोग भी कहा जाता है .साक्षी भाव से दृष्टा बन कर्म करो कर्मभोग का दंश कम होगा न दुःख में अधिक दुखी न सुख में अभिमानी भाव .निरअभिमानी बनाता है कर्मयोग .निस्पृह में .
अलबत्ता यह कर्मयोग विकारों से संन्यास की ,मोह माया से विमुख रहने ,बे -ईमान और भ्रष्ट न होने की बात करता है .देह का आर्केस्ट्रा जब ज़रूरी हो तभी बजाओ जब चाहो बंद कर लो एक स्विच की तरह .कच्छप की तरह कर्मेन्द्रियों को समेट लो .
इसीलिए इसे संन्यास योग या फिर परित्याग योग (the Yoga of renunciation ) भी कह दिया गया है .ट्रस्टी बनके कर्म करने की बात करता है राजयोग (संन्यास योग )मालिक बनके नहीं .हम तो निमित्त मात्र हैं करन करावन हार वह अप्रम दिव्यपरमात्मा है जिसकी कृपा दृष्टि मुझपे टिकी रहती है मुझे ज़ेड श्रेणी की सुरक्षा देते हुए .मेरा कोई बाल बांका नहीं कर सकता .
जाकू राखे साइयां मार सके न कोय ,होनी तो होके रहे,लाख करे किन कोय
संन्यास योगी की शुभ भावना ,शुभकामना सभी (सर्व आत्माओं के लिए हैं )के लिए रहती है .
वह मन बुद्धि से समर्पण कर देता है .(इसके लिए मन और मुख दोनों का मौन चाहिए ,किसी न बुरा बोलना है न किसी का बुरा सोचना है ).धर्माधिकारी शिव का ही आदेश चाहिए उसे .इसका फायदा यह होता है वह सब चिंताओं से विमुक्त हो जाता है .कोई भय नहीं कोई व्यर्थ सोच (संकल्प ,निगेटिव थाट )नहीं बचता है .
तुलसी भरोसे राम के रह्यो खाट पे सोय,
अनहोनी होनी नहीं ,होनी होय सो होय .
इसीलिए इसी राजयोग को समत्व योग (Yoga of Equanimity )कह दिया गया है .समत्व योग की प्राप्ति व्यक्ति को स्थित प्रज्ञ बनाती है -a Yogi having equanimity .
भक्ति योग :क्योंकि यह परमात्मा से गहरे लगाव और उसके प्रति पूर्ण समर्पण पर आधारित है इसीलिए भक्ति योग भी कहलाया है .
यहाँ कोई जप और पूजन (कर्म काण्ड )नहीं है .ईश्वर के प्रति असीम प्रेम और जानकारी पर आधारित है यह भक्ति योग .
'सहज राज योग 'भी कहलाता है राज योग क्योंकि यहाँ तन्मय होकर उसकी याद में खो जाना सहज है .यहाँ शरीर को उससे (परमात्मा )जुड़ने के लिए कोई कष्ट नहीं देना पड़ता है इसीलिए यह 'सहज राजयोग' है .खाते पीते ,कर्म करते स्विच आन किया और पहुँच गए परलोक (परम धाम ,soul world ).योगी के स्वभाव (मिजाज़ )का हिस्सा बन जाता है सहज राज योग .
(ज़ारी )
6 टिप्पणियां:
बहुत ही अच्छी प्रस्तुति ....
आभार
आत्म ज्ञान की ओर ले जाने की प्रेरणा देती हुई बहुत ही कल्याणमयी पोस्ट, आभार.
रामराम.
महीन अन्तर को स्पष्ट करता लेख..
वाह ! आज तो ज्ञान की पावन गंगा बह रही है..
योगाधिराज योग साज ......गहन विचारणीय।
साक्षी भाव से दृष्टा बन कर्म करो.. कर्मभोग का दंश कम होगा.. न दुःख में अधिक दुखी, न सुख में अभिमानी भाव .
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दिव्य ज्ञान को आत्मसात किया हमने....इस तरह का पोस्ट जारी रहे ...यही निवेदन है....
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