कर्मों की गुह्य गति (II)
द्वापर शुरू होते ही हम देह अभिमान में आ जाते हैं .विकारों में आते चले जाने से हमारी आत्मा कमज़ोर होती चली जाती है .यद्यपि धर्मात्माएं इस अवपतन को रोकने की पूरी चेष्टा करतीं हैं लेकिन ईश्वर का सही परिचय न मिल पाने से पुण्य का खाता चुकता जाता है पाप का बढ़ता जाता है .
वर्तमान युग जो कलियुग का अंतिम चरण है पुरुषोत्तम संगम युग है .अब समय है हम पूर्व के तरेसठ (६ ३ )जन्मों (२ १ द्वापर ,४ २ कलियुग )के पाप कर्मों का खाता योगबल से भस्म करें .वर्तमान में अब पाप कर्म करने से बाज़ आयें .इस दौर में हमारे तो राजनीतिक धन्धेबाज़ (कथित रहनुमा ,नेता )भी तीर्थों के तीर्थ तिहाड़ की यात्रा कर आये हैं ,अब बस करें .देह और देह के सम्बन्ध ही इस दौर की हकीकत बनके रह गए हैं .फॉकस में नारी की देह है .देह का मेला है .जिस देश में नारी का सम्मान नहीं होता ,उसकी आत्मा कुचली जाती है उसका सर्व नाश होना सुनिश्चित होता है .इसीलिए पाप का बोझा बढ़ता जा रहा है .
अब इस आखरी जन्म में संगम युग पर ब्रह्मा कमल मुखवंशावली ब्राह्मणों को (ब्रह्मा के मुख से गीता ज्ञान सुन जिनका स्वभाव बदला है,जिन्होनें अपने अ -लौकिक पिता ब्रह्मा और पार -लौकिक पिता शिव परमात्माको जान लिया है ,काल चक्र को जान लिया है )सतयुग और त्रेता के २ १ जन्मों की पूँजी इस एक जन्म में जमा करनी होगी .पावन बनना होगा .श्रेष्ठ कर्म ही अब करना होगा .
घटनाओं को पकड़ो मत छोड़ दो .छोड़ो तो छूटो .क्षमा करो और भूल जाओ .व्यर्थ संकल्प के लिए अब समय ही कहाँ बचा है .पंख लगाके उड़ जाओ .अब अपने घर (ब्रह्म लोक ,शान्ति धाम ,परमधाम ,मुक्ति धाम )जाना है पूर्ण पावन बनके .नहीं बनेंगे तो सज़ा खायेंगे .विकर्म विनाश तो करने ही होंगें सजा खाके या फिर योग बल से .खुद को आत्मा समझ सब कर्म परमात्मा की याद में करते हुए ,कर्म योगी बन .फिर दूसरे चक्र (अनादि काल चक्र )में अपना पार्ट नाटक में बजाने के लिए फिर से आना होगा .यह बना बनाया परफेक्ट ड्रामा है .याद रहे मैं विश्व मंच पर एक अभिनेता हूँ ,मुझे हर पार्ट ,हर अभिनय अच्छे से भी अच्छा करना है .मेरे कर्म ऐसे हो जिससे मेरे बेहद के बाप का नाम बाला हो रोशन हो ..
बुरी चीज़ें (प्रतिबंधित चीज़ें )लेकर विदेश (धर्मराजपुरी )में जाओगे ,पकड़े जाओगे जैसे यहाँ कस्टम वाले पकड़ लेते हैं .चीज़ भी जब्त होगी जेल भी जाओगे ,धर्मराज शिव दूतों से सजा भी पाओगे .
संकल्प करो सम्मान के साथ हम जायेंगे और सद्कर्मों (श्रेष्ठ कर्मों )की पूँजी खायेंगे .इस खेल को खेलो दुखी मत होवो .हमको अपने कर्मों को श्रेष्ठ बनाना हैं कोई विक्रम हम नहीं करेंगे .
शिव पिता को अब याद करो ,मुक्ति धाम तुम्हें जाना है ,
अपने सुकर्मों (सद्कर्मों) के बल पर ही, सतयुग में तुमको आना है .
ये संगम का स्वर्णिम युग है ,शिव पिता फिर से आया है ,
ब्रह्मा मुख से शिव बाबा ने, वही गीता ज्ञान सुनाया है .
कलयुग का अंत अब आया है ,विकराल विनाश खड़ा आगे ,
है अंत समय अब हम सब को, शिव पिता ने बतलाया है .
पांडव शिव शक्ति सेना भी रणभेरीअब फिर से बजती है ,
शिव पिता के ज्ञान से फिर , माया को मार भगाना है .
शिव पिता को अब याद करो मुक्ति धाम तुम्हें जाना है .
ॐ शान्ति .
द्वापर शुरू होते ही हम देह अभिमान में आ जाते हैं .विकारों में आते चले जाने से हमारी आत्मा कमज़ोर होती चली जाती है .यद्यपि धर्मात्माएं इस अवपतन को रोकने की पूरी चेष्टा करतीं हैं लेकिन ईश्वर का सही परिचय न मिल पाने से पुण्य का खाता चुकता जाता है पाप का बढ़ता जाता है .
वर्तमान युग जो कलियुग का अंतिम चरण है पुरुषोत्तम संगम युग है .अब समय है हम पूर्व के तरेसठ (६ ३ )जन्मों (२ १ द्वापर ,४ २ कलियुग )के पाप कर्मों का खाता योगबल से भस्म करें .वर्तमान में अब पाप कर्म करने से बाज़ आयें .इस दौर में हमारे तो राजनीतिक धन्धेबाज़ (कथित रहनुमा ,नेता )भी तीर्थों के तीर्थ तिहाड़ की यात्रा कर आये हैं ,अब बस करें .देह और देह के सम्बन्ध ही इस दौर की हकीकत बनके रह गए हैं .फॉकस में नारी की देह है .देह का मेला है .जिस देश में नारी का सम्मान नहीं होता ,उसकी आत्मा कुचली जाती है उसका सर्व नाश होना सुनिश्चित होता है .इसीलिए पाप का बोझा बढ़ता जा रहा है .
अब इस आखरी जन्म में संगम युग पर ब्रह्मा कमल मुखवंशावली ब्राह्मणों को (ब्रह्मा के मुख से गीता ज्ञान सुन जिनका स्वभाव बदला है,जिन्होनें अपने अ -लौकिक पिता ब्रह्मा और पार -लौकिक पिता शिव परमात्माको जान लिया है ,काल चक्र को जान लिया है )सतयुग और त्रेता के २ १ जन्मों की पूँजी इस एक जन्म में जमा करनी होगी .पावन बनना होगा .श्रेष्ठ कर्म ही अब करना होगा .
घटनाओं को पकड़ो मत छोड़ दो .छोड़ो तो छूटो .क्षमा करो और भूल जाओ .व्यर्थ संकल्प के लिए अब समय ही कहाँ बचा है .पंख लगाके उड़ जाओ .अब अपने घर (ब्रह्म लोक ,शान्ति धाम ,परमधाम ,मुक्ति धाम )जाना है पूर्ण पावन बनके .नहीं बनेंगे तो सज़ा खायेंगे .विकर्म विनाश तो करने ही होंगें सजा खाके या फिर योग बल से .खुद को आत्मा समझ सब कर्म परमात्मा की याद में करते हुए ,कर्म योगी बन .फिर दूसरे चक्र (अनादि काल चक्र )में अपना पार्ट नाटक में बजाने के लिए फिर से आना होगा .यह बना बनाया परफेक्ट ड्रामा है .याद रहे मैं विश्व मंच पर एक अभिनेता हूँ ,मुझे हर पार्ट ,हर अभिनय अच्छे से भी अच्छा करना है .मेरे कर्म ऐसे हो जिससे मेरे बेहद के बाप का नाम बाला हो रोशन हो ..
बुरी चीज़ें (प्रतिबंधित चीज़ें )लेकर विदेश (धर्मराजपुरी )में जाओगे ,पकड़े जाओगे जैसे यहाँ कस्टम वाले पकड़ लेते हैं .चीज़ भी जब्त होगी जेल भी जाओगे ,धर्मराज शिव दूतों से सजा भी पाओगे .
संकल्प करो सम्मान के साथ हम जायेंगे और सद्कर्मों (श्रेष्ठ कर्मों )की पूँजी खायेंगे .इस खेल को खेलो दुखी मत होवो .हमको अपने कर्मों को श्रेष्ठ बनाना हैं कोई विक्रम हम नहीं करेंगे .
शिव पिता को अब याद करो ,मुक्ति धाम तुम्हें जाना है ,
अपने सुकर्मों (सद्कर्मों) के बल पर ही, सतयुग में तुमको आना है .
ये संगम का स्वर्णिम युग है ,शिव पिता फिर से आया है ,
ब्रह्मा मुख से शिव बाबा ने, वही गीता ज्ञान सुनाया है .
कलयुग का अंत अब आया है ,विकराल विनाश खड़ा आगे ,
है अंत समय अब हम सब को, शिव पिता ने बतलाया है .
पांडव शिव शक्ति सेना भी रणभेरीअब फिर से बजती है ,
शिव पिता के ज्ञान से फिर , माया को मार भगाना है .
शिव पिता को अब याद करो मुक्ति धाम तुम्हें जाना है .
ॐ शान्ति .
8 टिप्पणियां:
सर जी ,कल चक्र के आवरण में लिपट जिंदगी और विविध आयामों को आलोकित करती बेहतरीन प्रस्तुति
ईश्वर का सही परिचय न मिल पाने से पुण्य का खाता चुकता जाता है पाप का बढ़ता जाता है.बहुत ही सार्थक अभिव्यक्तिकरण.
विरक्ति भाव. दार्शनिक उपदेश.
सार्थकता लिये सशक्त प्रस्तुति ...
सादर
परामात्मा का निरंतर चिंतन ही सब स्थितियों से छुटकारा दिलाता है. बहुत ही शुकूनदायक आलेख, आभार.
रामराम.
अब देह-अभिमान कहाँ रहा, अब तो देह-तरस हो रहा है।
आज इसी ज्ञान की ज़रूरत है वीरू भाई जी ....
आभार और राम-राम
टोरंटो से .....
bahut hi sarthak arth liye prastuti .....
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