बुधवार, 22 मई 2013

कर्मों की गहन गति (I )

कर्मों की गहन गति 

बड़ी गुह्य है,गहन है कर्म की गति .जो करेगा वह भरेगा .जैसा करेगा वैसा भरेगा .कर्म शब्द में बहुत बड़ी गहराई छिपी है इसका शब्दिक अर्थ है कोई कार्य ,क्रिया अथवा कृति कर्म है .कर्म का व्यापक अर्थ है क्रिया और उसका परिणाम .जैसे बीज के अन्दर फल ,फल में बीज समाया हुआ है .वैसे ही कार्य (एक्शन )और उसका परिणाम (रिएक्शन )कर्म में समाया हुआ है .लेकिन वह परिणाम (फल ,दुःख भोग कब मिलेगा )हमें ठीक ठीक पता नहीं है .यह ठीक ऐसे ही है जैसे हम खुले मैदान में आवाज़ कर रहें हैं और कोई प्रतिक्रिया (प्रतिध्वनि )हमें नहीं मिलती है .

Open window is the unit of sound intensity  .

यहाँ तो आप खुले में ही बोल रहे हैं जहां ध्वनी खो जाती है आकाश में समा जाती है .इसीलिए स्थान अंतर से प्रतिक्रिया भी बदल जाती है .

हवा में आप लकीर खींचेगे ,दिखाई नहीं देगी .पानी में खींचेंगे थोड़ी देर तक ज़रूर दिखलाई देगी फिर ओझल हो जायेगी .लहरें उसे ले उडेंगी .वही लकीर पत्थर पर खींच दी तो सालों साल रह जायेगी .

अगर मैं आज स्वस्थ हूँ तो यह परिणाम है मेरी जीवन शैली  का ,पिछले जन्म के कर्म का .परिणाम का फिर कर्म बनता है .कार्य -करण  सिद्धांत है यह .

जो हम दूसरों को देते हैं वही हमारे पास लौटके आता है .हमें वही मिलता है जो हम दूसरों को देते हैं .इस शिक्षा के सिद्धांत से हम कर्मों की गहराई में जा सकते हैं .आप वैसा ही व्यवहार करें औरों  के साथ जैसा आप अपने लिए दूसरों से चाहतें हैं .

हमारे कर्म ही वह कारक (कारण )है जो सही समय पर कर्मफल के रूप में आते हैं .बीज बोया है तो समय आने पर ही फल आयेगा .फ़ौरन नहीं आयेगा .दादा बोय , पोता खाय .पेड़ दादा जी लगा गए आम का ,फल पोते जी खा रहें हैं .

एक होटल के बाहर लिखा था यहाँ आप जितना भी खाइये ,जो भी खाइये ,निश्चिन्त होके  खाइये ,बिल आपका पोता  चुकाएगा .एक व्यक्ति पहुंचा उस होटल में जी भरके खूब खाया .चलने लगा तो वेटर बिल लेके आ गया ,व्यक्ति  ने पूछा यहाँ तो आपने कुछ और लिखा है व्यक्ति बोला बिलकुल ठीक लिखा है यह बिल आपके बाबा  का है .कर्म का बीज ऐसा क्यों है आप बोयें दूसरा खाए ?

जैसा बीज वैसा फल .एक बीज से फिर अनेक फल मिल जाते हैं .बीज बोने और फल खाने का समय अलग अलग है .फल की सीजन होती है .एक ख़ास ऋतू में ही फल आयेगा .उससे पहले नहीं .

बोये पेड़ बबूल के तो आम कहाँ से पाय?

सुख देंगे तो सुख मिलेगा ,

दुःख देंगे तो दुःख मिलेगा .आम के बीज से आम का ही फल मिलेगा .बबूल से कांटे ही मिलेंगे .अगर आज कोई दुःख दे रहा है तो समझो पीछे का कोई हिसाब किताब चुक्तू  हो रहा है .

फूल का एक ही बीज बोने से अनेक फूल निकलते हैं .गेंहू का एक ही दाना बोने से कितने ही दाने निकलते हैं .

समय और स्थान से भी कर्म का निर्धारण होता है 

बोर्डर पर गोली चलाना पाप नहीं कहलायेगा .अगर मारे गए तो शहीद कहलायेंगे .

क्योंकि समय अलग है स्थान अलग है .

क़ानून को भी जानना बहुत ज़रूरी है 

अभी भी डॉ टरमिनली इल पेशेंट को जहर नहीं देगा .इच्छा मृत्यु का क़ानून किसी किसी देश में ही अभी बना है .

बीज बोने और फल पाने का समय अलग अलग है 

याद रखें हमारे कर्मों का फल मिलेगा ज़रूर आज नहीं तो कल .इसलिए गलती हो गई है तो उसे छिपाइए मत वरना गलती करने का संस्कार पक्का हो जाएगा .सच बोलके माफ़ी मांगके छूट जाओ .शिव बाबा को सोरी बोल दो .

धीरज का फल मीठा होता है 

धरती पर पहले हल चलाया जाता है .खेत की जुताई की जाती है .बीज को बोया और सींचा जाता है .कोपलों की रक्षा करनी होती है .फल को पकने का वक्त देना होता है .पका हुआ फल खुद भी खाया जाता है औरों को भी खिलाया जाता है .खाओ और खिलाओ !ख़ुशी बांटो !मैं भी स्वस्थ और खुश तू भी स्वस्थ और खुश .आम के आम और गुठलियों के दाम .गुठलियों को फिर बो दो .

वक्त से पहले जब कुछ भी नहीं होता तो कर्म फल कैसे मिल जाएगा .इसलिए धीरज रखो .

एक वृत्तांत है एक बुजुर्ग व्यक्ति ने अपनी तीनों बहुओं को कुछ गीले बीज इस हिदायत के साथ दिए -इन्हें संभाल के रखना मैं यात्रा पर जारहा हूँ लौट के ले लूंगा .

पहली ने बीजों को ये सोच के फैंक दिया इन बीजों को फैंकना ही बेहतर ,बेकार हैं यह .

दूसरी ने सहेज के रख लिए .कुछ समय बाद बीज सड़ गए .

तीसरी ने बीज बो दिए .कुछ समय बाद वे पल्लवित हो गए .पौधा भी बन गया बड़ा हो गया नए बीज मिल गए .

बुजुर्ग व्यक्ति तीसरी बहु से मिलके बहुत खुश हुआ .पहली खुले हाथ से खर्च करने वाली सिद्ध हुई दूसरी कंजूस .और तीसरी विवेकवान .

विचार ही भाग्य का निर्धारण करते हैं 

विचार से ही वृत्ति बनती है फिर कर्म बनता है .हमारे स्वभाव का निर्धारण होता है .अपने कर्मों के लिए व्यक्ति स्वयं ही जिम्मेवार होता है .भाग्य तो परिणाम है आपके ही कर्मों का .कर्म के फल से कोई बच  नहीं सकता .कर्म ही जीवन का आधार है .सच्ची पूँजी है जो जन्म के साथ चलती है .इस दुनिया की कोई भी पूँजी हमारे साथ नहीं जायेगी सिर्फ कर्म जायेंगे .

कर्म फल एक उपहार है एक शिक्षक है जो हमें शिक्षा देता रहता है .

कर्म का संन्यास नहीं हो सकता हमें सिर्फ अपने कर्मों को श्रेष्ठ बनाना है 

एक व्यक्ति मुझे अपशब्द कह रहा है गाली दे रहा है .क्या मैं भी उसे गाली दूं ?उसके कर्म का अनुसरण  करू? ?

उत्तर :वह देहअभिमान ,अहंकार में आके ऐसा कर रहा है मैं उसकी इस वृत्ति का अनुगामी क्यों बनूँ  ?अपनी स्थिति क्यों खराब करूँ ?

चार प्रकार की वृत्तियाँ हैं 

(१)दानवी वृत्ति :मेरा सो मेरा ,तेरा भी मेरा 

(२ )मानवी वृत्ति :मेरा सो मेरा ,तेरा सो तेरा 

(३ )दैवीय वृत्ति :मेरा सो तेरा 

(४ )योगी वृत्ति :मेरा सब कुछ परमात्मा का 

चार प्रकार के कर्म 

(१ ) पाप कर्म (जिसकी आगे चलके सजा मिलेगी ज़रूर )

(२ )पुण्य कर्म 

(३ )श्रेष्ठ कर्म 

(४ )अकर्म (जिसका आगे फल नहीं है )

दया धरम को मूल है ,

पाप मूल अभिमान .

देह अभिमान पर आधारित नकारात्मक विचारों के वश किए गए कर्म पाप के खाते में जाते हैं .

तन के रोग ,मन के रोग ,मन की अशांति पाप का ही परिणाम है .

ज़रुरत मंदों की मदद करना पुण्य कर्म है .पुण्य कर्म में भी व्यक्ति नाम और यश की आशा रखता है .पुण्य कर्म के लिए ज़रूरी है नाम, मान ,अभिमान न हो .गुप्त दान महा दान .लेकिन लोग दान देने के बाद नाम लिखवाते हैं पत्थर पर .

श्रेष्ठ कर्म आत्मा ,परमात्मा के ज्ञान बिना हो नहीं सकता .आत्मिक स्थिति (स्वयं को ज्योति स्वरूप आत्मा समझ )ज्योतिबिंदु स्वरूप परमात्मा की याद में किए गए कर्म श्रेष्ठ कर्म बनते हैं .नर ऐसी करनी करे सत्य नारायण बन जाए ,नारी ऐसी करनी करे नारायणी (महा लक्ष्मी )बन जाए .

अकर्म  में बीज बोते ही नहीं है बस फल खाते हैं .सतयुग और त्रेता युग का कर्म अ -कर्म है .जब पूँजी  चुक जाती है फल की हम द्वापर में आ जाते हैं .क्योंकि सतयुग और त्रेता के २  १ जन्मों तक भगवान् को याद ही नहीं करते हैं .गीता ज्ञान का यहाँ प्राय :लोप हो जाता है .

कर्मों की गुह्य गति (II)
द्वापर शुरू होते ही हम देह अभिमान में आ जाते हैं .विकारों में आते चले जाने से हमारी आत्मा कमज़ोर होती चली जाती है .यद्यपि धर्मात्माएं इस अवपतन को रोकने की पूरी चेष्टा करतीं हैं लेकिन ईश्वर का सही परिचय न मिल पाने से पुण्य का खाता चुकता जाता है पाप का बढ़ता जाता है .

वर्तमान युग जो कलियुग का अंतिम चरण है पुरुषोत्तम संगम युग है .अब समय है हम पूर्व के तरेसठ  (६ ३ )जन्मों (२ १ द्वापर ,४ २ कलियुग )के पाप कर्मों का खाता योगबल से भस्म करें .वर्तमान में अब पाप कर्म करने से बाज़ आयें .इस दौर में हमारे तो राजनीतिक धन्धेबाज़ (कथित रहनुमा ,नेता )भी तीर्थों के तीर्थ तिहाड़ की यात्रा कर आये हैं ,अब बस करें .देह और देह के सम्बन्ध ही इस दौर की हकीकत बनके रह गए हैं .फॉकस में नारी की देह है .देह का मेला है .जिस देश में नारी का सम्मान  नहीं होता ,उसकी आत्मा कुचली जाती है उसका सर्व नाश होना सुनिश्चित होता है .इसीलिए पाप का बोझा बढ़ता जा रहा है .

अब इस आखरी जन्म में संगम युग पर ब्रह्मा कमल मुखवंशावली ब्राह्मणों को (ब्रह्मा के मुख से गीता ज्ञान सुन  जिनका स्वभाव बदला है,जिन्होनें अपने अ -लौकिक पिता ब्रह्मा और पार -लौकिक पिता शिव परमात्माको जान लिया है ,काल चक्र को जान लिया है   )सतयुग और त्रेता के २ १ जन्मों की पूँजी इस एक जन्म में जमा करनी होगी .पावन बनना होगा .श्रेष्ठ कर्म ही अब करना होगा .

घटनाओं को पकड़ो मत छोड़ दो .छोड़ो तो छूटो .क्षमा करो और भूल जाओ .व्यर्थ संकल्प के लिए अब समय ही कहाँ बचा है .पंख लगाके उड़ जाओ .अब अपने घर (ब्रह्म लोक ,शान्ति धाम ,परमधाम ,मुक्ति धाम )जाना है पूर्ण पावन बनके .नहीं बनेंगे तो सज़ा खायेंगे .विकर्म विनाश तो करने ही होंगें सजा खाके या फिर योग बल से .खुद को आत्मा समझ सब कर्म परमात्मा की याद में करते हुए ,कर्म योगी बन .फिर दूसरे चक्र (अनादि काल चक्र )में अपना पार्ट नाटक में बजाने के लिए फिर से  आना होगा .यह बना बनाया परफेक्ट ड्रामा है .याद रहे मैं विश्व मंच पर एक अभिनेता हूँ ,मुझे हर पार्ट ,हर अभिनय अच्छे से भी अच्छा करना है .मेरे कर्म ऐसे हो जिससे मेरे बेहद के बाप का नाम बाला हो रोशन हो ..

बुरी चीज़ें (प्रतिबंधित चीज़ें )लेकर विदेश (धर्मराजपुरी )में जाओगे ,पकड़े  जाओगे जैसे यहाँ कस्टम वाले पकड़ लेते हैं .चीज़ भी जब्त होगी जेल भी जाओगे ,धर्मराज शिव दूतों से सजा भी पाओगे .

संकल्प करो सम्मान के साथ हम जायेंगे और सद्कर्मों (श्रेष्ठ कर्मों )की पूँजी खायेंगे .इस खेल को खेलो दुखी मत होवो .हमको अपने कर्मों को श्रेष्ठ बनाना हैं कोई विक्रम हम नहीं करेंगे .

शिव पिता  को अब याद करो ,मुक्ति धाम तुम्हें जाना है ,

अपने सुकर्मों (सद्कर्मों) के बल पर ही, सतयुग में तुमको आना है .

ये संगम  का स्वर्णिम  युग है ,शिव पिता फिर से आया है ,

ब्रह्मा मुख से शिव बाबा ने, वही गीता ज्ञान सुनाया है .



कलयुग का अंत  अब आया है ,विकराल विनाश खड़ा  आगे ,

है अंत समय अब हम सब को, शिव पिता ने बतलाया है .


पांडव शिव शक्ति सेना भी रणभेरीअब  फिर से बजती है ,


शिव पिता  के ज्ञान से  फिर , माया को मार भगाना है .






शिव पिता को अब याद करो मुक्ति धाम तुम्हें जाना है .

ॐ शान्ति .   


7 टिप्‍पणियां:

अज़ीज़ जौनपुरी ने कहा…

सर जी, बड़े सुन्दर दृष्टान्तों के साथ कल चक्र की बहुत ही सुन्दर व्याख्या

दिगम्बर नासवा ने कहा…

ज्ञान का भण्डार है आज तो ... किय्नी ही बातें जो सोचने वाली, समय समय पे पालन करने वाली हैं ... उत्तम ... राम राम जी ..

ताऊ रामपुरिया ने कहा…

बहुत ही सारवान और मूल्यवान पोस्ट, इसे पढते पढते ही एक तृप्त भाव आ जाता है, आभार.

रामराम.

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

प्रकृति के नियन्त्रण निराले हैं।

Harihar (विकेश कुमार बडोला) ने कहा…

सर्वप्रथम आपको राम-राम, शिव-शिव।

ज्‍यों-ज्‍यों ऐसा ज्ञान मिलेगा
पढ़नेवाला निर्मल पुष्‍प बनेगा।

अत्‍यन्‍त विचारणीय बातें।

अरुन अनन्त ने कहा…

आपकी यह रचना कल बृहस्पतिवार (23 -05-2013) को ब्लॉग प्रसारण के "विशेष रचना कोना" पर लिंक की गई है कृपया पधारें.

Unknown ने कहा…

सर जी कालचक्र की नब्ज़ की एक एक
धडकन को वयां करती सुन्दर रचना