सोमवार, 6 मई 2013

कल्प वृक्ष

  कल्प वृक्ष 

कल्प वृक्ष की आयु  ५ ० ० ० वर्ष  है .सृष्टि रुपी उलटा झाड़ है यह .अद्भुत वृक्ष है यह जिसके बीज रूप स्वयं परमात्मा शिव हैं .परलोक (परम धाम ,ब्रह्म लोक ,मुक्ति धाम वासी )शिव .परमात्मा स्वयं ब्रह्मा कमल मुख प्रसूत  गीता में कहते हैं:यह सृष्टि  उलटा वृक्ष है और मैं इसका बीज रूप    हूँ .इसकी उत्पत्ति का कारणस्वयं मैं हूँ . 

 .अलबत्ता इस झाड़ का बीज ऊपर है .जड़ में वह लोग बैठे हैं तपस्या रत ,ब्रह्मा मुख से गीता ज्ञान सुख जिनका संस्कार बदलता है जो सृष्टि के नवनिर्माण में मेरी मदद करते हैं .यही जन ब्रह्मा कुमार ब्रह्मा कुमारियाँ कहलाते हैं .नव संस्कार से ही नै संस्कृति बनती है . ये ही फिर से सतयुग की नींव तैयार कर रहें हैं .

किसी भी उम्र का व्यक्ति किसी भी सम्प्रदाय का व्यक्ति यह गीता ज्ञान सुनकर धारण कर अपना संस्कार बदल बह्मा कुमार ब्रह्मा कुमारी बन इस पुरषोत्तम संगम युग में शिव की सहायक सेना बन (शिव सेना )सकता है .

इस सृष्टि रुपी वृक्ष की तुलना परमपुरुष परमात्मा शिव  ने ही एक उलटे वृक्ष से की है क्योंकि अन्य वृक्षों के बीज तो ज़मीन के नीचे बोये जाते हैं तथा गुरुत्व को विजित कर ,धता बताके सभी वृक्ष ऊपर की ओर  बढ़ते हैं .सैप जड़ों से ऊपर की ओर  पेड़ के हर अंश तक पहुंचता है .परन्तु मनुष्य -सृष्टि रुपी वृक्ष के अविनाशी बीज स्वरूप परमात्मा शिव ,ब्रह्म लोकवासी हैं .तारागणों के भी पार है उनका अविनाशी  आवास परमधाम .कल्प वृक्ष के बहुत ऊपर की ओर .

राज योग का उदय इसी संगम पर होता है संगम जंग खाए कलयुग का और अनागत लेकिन सन्निकट खड़े सतयुग का .सतयुग में यह गीता ज्ञान प्राय लोप हो जाता है वहां इसकी दरकार ही नहीं रहती है .इस ज्ञानयोग की दरकार यहीं रहती है जिससे कलयुगी मायारावण राज्य का पूर्ण परिवर्तन होता है .

यह छोटा सा(अल्पावधि ) युग ही संगमयुग है इसे धर्माऊयुग (Leap yuga )भी कहा जाता है .इसे ही 'पुरुषोत्तम युग ',और गीता युग भी कहते हैं .

इस युग के अंत में ही सतयुग आता है जहां श्री लक्ष्मी और श्रीनारायण का निर्विघ्न सुख राज्य चलता है .हम लोग अपने नाम के पहले भले श्री लगा लेते हैं लेकिन हम इसके अधिकारी नहीं हैं क्योंकि अभी हम पवित्र नहीं बने हैं ,विकारी हैं .पूर्वजन्मों की खोट आत्मा पे चढ़ी हुई है .नेताओं को पुष्प मालाएं पहनाई जातीं हैं जिसके वह पात्र नहीं हैं .पुष्प तो देवताओं का गहना है न की इन भ्रष्टदेवों का .

सतयुग में सम्पूर्ण सुख  शान्ति रहती है .भारत सोने की चिड़िया था .पञ्च तत्व पवित्र थे .सदा नीरा गंगा का जल शुद्ध था उसमें ई कोलाई का डेरा न था .जीवों में भी परस्पर हिंसा  न थी .आज तो मुंबई जैसी स्वप्न नगरी भी गाहे बगाहे रोड रेज की चपेट में आती जा रही है .दिल्ली की तो बात ही छोड़ -यिए .उसे तो अभी ओर  डूबना है .

भारत धनधान्य ,सेहत से संपन्न था आज तो आपको ठेठ गेटवे आफ इंडिया के फुट पाथ  और चौतरे को अपना रैन बसेरा बनाए अतिनिर्धन विपन्न लोग मिल जायेंगे ,वह गेट वे आफ इंडिया जो भारत का प्रतीक चिन्ह है .

उस समय (सतयुग ) भारत ही बैकुंठ था .आज तो यहाँ रौरव नरक है .न मल विसर्जन की जगह है न मल साफ़ करने के लिए जल है .जल के नाम पर गंदा गंधाता नाला है आबादी के एक बड़े हिस्से के हिस्से में .

उस समय हम ही बहिश्त में थे कोई और नहीं आज दोजख में चले आये हैं .कर्मभोग काटते काटते .यही आत्मा के ८ ४ जन्मों का खेला है .

उस समय सभी पूज्यथे , देव थे .आकस्मिक मृत्यु न थी स्वेच्छया शरीर छोड़ ती थी आत्मा .१ ५ ० वर्ष की औसत आयु भुगताके  .कल्प के उस चौथे हिस्से १ २ ५ ० वर्ष की अवधि में हमारे आठ जन्म थे .लक्ष्मी नारायण हम ही थे .हम सब सूर्य वंशी थे .(सूर्य किसी और तारे  की परिक्रमा नहीं करता अपने ही अक्ष पर नर्तन करता है ).

धीरे -धीरे यह नै सृष्टि भी पुरानी होती है .हम सतयुग से उतर के त्रेता युग में आते हैं .यहाँ से चन्द्र वंश चलता है श्री सीता और श्री रामचन्द्र का साम्राज्य रहता है .यहाँ हमारी ही चन्द्र वंशावलियां १ २ -१ ३ जन्म लेती हैं १ २ ५ ० वर्ष में .अभी भी हमारी औसत आयु १ २ ५ वर्ष के आसपास है .अभी तक इस कल्प वृक्ष का मूल (जड़ ) और एक सुदृढ़ तना रहता  है . 

प्रकृति का नियम है नया नौ दिन पुराना सौ दिन .सृष्टि और पुरानी होती है .पञ्च तत्व अब तेज़ी से गंधाते हैं .यह द्वापर का प्रवेश द्वार है .हम अपने आत्म स्वरूप से विमुख हो अपने ही देव स्वरूप को मंदिरों में स्थापित कर लेते हैं .स्मृति अपने देवत्व की धुंधली सी रहती है .यहीं  बनता है सोमनाथ का मंदिर .गिरजे गुरद्वारे इसी स्मृति से प्रेरित हो .बन जाते हैं हम पूज्य से पुजारी .

विभिन्न धर्मों के संस्थापक आते हैं .धर्मों की फिर उपशाखाएं निकलतीं हैं .मठ सम्प्रदाय बनते हैं .हमारे यहाँ कुल ४ २ जन्म हैं .कल वृक्ष की यहाँ अनेक शाखाएं ,उपशाखाएँ निकलतीं हैं .

इसके बाद हमारे स्वभाव संस्कार संबंधों की मर्यादा में तेज़ी से गिरावट आती है . घोर कलिकाल में चले आते हैं हम लोग .हमारी दरिंदगी और हैवानियत तमाम हदों को पार कर जाती है . हम हर दिन खुद से ही शर्मिन्दा होने लगते हैं .आज की यही स्थिति है .एक साथ यहाँ दो धाराएं काम कर रहीं हैं .

चलते डर  सड़क पर, घर में डर ....सोते डर ,उठते डर .....यही है आज की 

स्थिति 

आदमी को देख करके डर रहा है आदमी ,

आदमी को मार करके मर रहा है आदमी ,

लुट रहा है आदमी और लूटता है आदमी ,

आदमी को लूट कर घर भर रहा है आदमी .

एक संगम युग प्रसूत सतयुगी ,आत्मा से खोट उतारने वाली ,पवित्रता की ओर ले जाने  वाली  दूसरी कलिकालीय अवपतन की ओर  तेज़ी से ले जाने वालीतमो गुनी मायारावण भ्रष्टाचार प्रेरित  .आज इसी का बाहुल्य है ज़रुरत है सफाई कर्मचारियों की इस पुरानी सृष्टि की योग बल से ज्ञान योग से सफाई करने वाले नर नारियों की .ब्रह्माकुमार और कुमारियों की .क्या आप आगे आयेंगे ?शिव का मददगार बनेगें ?

ॐ शान्ति 



  


11 टिप्‍पणियां:

Anupama Tripathi ने कहा…

बहुत ही प्रभावी प्रस्तुति ...आभार ...!!

ताऊ रामपुरिया ने कहा…

आपने सतयुग से कलयुग तक का महत्व और सार बहुत ही सहजता से समझाया, बहुत आभार.

रामराम.

दिगम्बर नासवा ने कहा…

सार गर्भित ... कितना आसानी से सब कुछ आत्सात हो गया ... राम राम जी ..

Amrita Tanmay ने कहा…

हरेक आदमी अपने-अपने शक्ल में भगवान् को बनाए बैठा है और उसके आड़ में स्व-विवेक को छोड़ ही दिया है . बाकी आपने तो सब कह ही दिया..

सदा ने कहा…

चलते डर सड़क पर, घर में डर ....सोते डर ,उठते डर .....यही है आज की

स्थिति
बिल्‍कुल सही कहा आपने ... बेहद सशक्‍त प्रस्‍तुति

आभार

Unknown ने कहा…

सर जी ,ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य में जीव ब्रम्ह,सृजन एवम कालक्रमिक अधिष्ठान की बेहतरीन प्रस्तुति

Rajendra kumar ने कहा…

बहुत ही बेहतरीन प्रभावी प्रस्तुति,आभार.

Harihar (विकेश कुमार बडोला) ने कहा…

बन जाते हैं हम पूज्य से पुजारी ..........शर्मा जी राम-राम। आप आध्‍यात्‍म का जो तंतु ज्ञान प्रदान कर रहे हैं, वह अविस्‍मरणीय है। यदि समय निकाल पाएं तो मार्च 2013 की कादम्बिनी पत्रिका में श्री बल्‍लभ डोभाल का आलेख (तलाश एक नए स्‍वर्ग की) पढ़ लें। आपके आख्‍यान से बहुत मेल लगता है इसका।

Dr.NISHA MAHARANA ने कहा…

vicharniy prashan .....shsakt prastuti ....

डॉ. मोनिका शर्मा ने कहा…

अर्थपूर्ण संदर्भ के साथ कही बात ...... अब तो यही हो रहा है

राहुल ने कहा…

आदमी को मार करके मर रहा है आदमी..
------------------
एक शानदार पोस्ट ....यकीनन