जो भी है यही एक पल है .'आगे भी जाने न तू ,पीछे भी जाने न तू ,जो भी है बस ,यही एक पल है 'वक्त फिल्म का गाना है .जो अपने आप में एक फलसफा ही नहीं ज्ञान -विज्ञान जीने का एक अंदाज़ छिपाए है.वर्तमान में जीना है को स्वीकार कर संतुष्ट रहना सेहत के लिए अच्छा है .नहीं को छोड़ दे .
अतीत को निहारना ,हताशा ,दुःख का बीते हुए व्यतीत के दुखों में लौटना एक मानसिक कुन्हासा अपने गिर्द इस दुःख का बुनते रहना सेहत को दीमक लगा देता है .कीमत चुकानी पड़ती है आपको इसकी .
यूं ही नहीं है यह गीत 'दुःख भरे दिन बीते रे भैया अब सुख आयो रे ,रंग जीवन में नया लायो रे '
क्यों राग अलापना है -'दुःख के अब दिन बीतत नाहीं ,सुख के दिन थे ,एक सपन था ,अब कछु सूझत नाहीं ...'अपने ही व्यतीत को कुरेदना उसे याद कर विक्षोभ और आवेश में आ जाना आइन्दा भी सेहत के लिए अच्छा नहीं है .बीमार पड़ने के अस्वस्थ बने रहने के मौके बढ़ा देता है व्यतीत का दुखपूर्ण स्मरण ,यही लब्बोलुआब है एक नवीनतर शोध का जिसे 'University of Granada 'के रिसर्चरों ने संपन्न किया है .
पता चला है जो अतीत को निहारते निहारते क्रोध में आजातें हैं वह दर्द के प्रति भी ज्यादा संवेदी होतें हैं .दूसरे छोर पर जो भविष्य की संभावनाओं में जीते हैं ,दिवा -स्वप्न -जीवी हैं,सीमाओं को दरकिनार कर सिर्फ संभावनाओं में जीतें हैं ,मैं ये कर दूंगा ,वो कर दूंगा ,ये करूंगा वो करूंगा वह वर्तमान को भी जी नहीं पाते .ज़िन्दगी को बे -मजा कर लेतें हैं .
जो अब जो है उसे स्वीकार कर उसका लुत्फ़ उठाना सीख जातें हैं वही सबसे ज्यादा प्रसन्न बदन ,सेहत बदन ,स्वस्थ रहतें हैं .
सन्दर्भ -सामिग्री :Anger at your past life can make you ill /TIMES TRENDS/THE TIMES OF INDIA ,BANGALORE ,MARCH 29,P13.
कैंसर रोग निदान की नै इमेजिंग टेकनीक.
New imaging teck that can help detect cancer early /TIMES TRENDS/THE TIMES OF INDIA ,BANGALORE,MARCH 28,2012,P17.
अभिनव प्रोद्योगिकी की परवाज़ का भी ज़वाब नहीं साइंसदानों ने एक ऐसी प्राविधि ईजाद की है , इमेजिंग प्रोद्योगिकी विकसित कर ली है जो कैंसर रोग समूह के कैंसरों की शिनाख्त उस चरण में भी कर लेगी जो दिमाग में प्रसार तो पा चुके हैं लेकिन कैंसर गांठें अभी आकार में छोटी ही बनी हुईं हैं .
चूहों पर संपन्न किया गया है यह अध्ययन जिसके तहत एक ऐसी अभिनव डाई(चिकित्सीय अभिरंजक) की पड़ताल की गई है जो एम् आर आई स्केन्स में मुखरित होती है .ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी की विज्ञप्ति के अनुसार यह डाई या कंट्रास्ट एजेंट एक ख़ास अणु(VCAM-1) की निशान -देही(शिनाख्त ,पहचान ) कर उससे चस्पां ही हो जाती है .
रिसर्चरों के मुताबिक़ यही वह अणु है जो उन ब्लड वेसिल्स (रक्त वाहिकाओं ) से सम्बद्ध रहता है ताल्लुक रखता है जिनका सम्बन्ध कैंसर से जोड़ा जा चुका है तथा यह अणु भारी तादाद में वहां मौजूद रहता है .
कैंसर को शरीर के अन्य हिस्सों से उठाकर(उड़ाकर ,स्थानांतरित कर ) दिमाग तक यही अणु अपने साथ ले जाता है .
दिमाग तक शरीर के अन्य हिस्सों तक कैंसर इसी अणु के अंतरण की वजह से ही फैलता है .
एम् आर आई स्केन दिमाग में इस अभिनव डाई का रेखांकन करता है .खुलकर दिखलाता है कैंसर ग्रस्त हिस्सों को .इसी की बदौलत कैंसर की बहुत छोटी छोटी गठाने (स्माल ट्यूमर्स) भी पकड़ में आ जातीं हैं .
यही वजह है की स्माल ट्यूमर्स का इलाज़ होल ब्रेन रेडियो -थिरेपी से आरम्भिक चरण में शुरू हो पाता है अब .सर्जरी से भी इसी चरण में अब इलाज़ किया जा सकेगा .
दूसरी तरफ अभिनव रसायन चिकित्सा (न्युअर कीमोथिरेपी ) विकसित की जा रहीं हैं .लेकिन फिल वक्त लार्जर ब्रेन ट्यूमर की शिनाख्त ही परम्परा गत इमेजिंग तरीकों से हो पा रही है .जबकि इन्हीं का इलाज़ करना दुष्कर सिद्ध होता है .इन अर्थों में यह अन्वेषण एक बड़ी उपलब्धि कही जायेगी .
नै रोग्निदानिक टेक्नीक से कितनों को ही अकाल काल कवलित होने से बचाया जा सकेगा .
राम राम भाई ! राम राम भाई ! राम राम भाई !
एंटार्कटिका के गिर्द दक्षिणी सागर में आश्चर्यजनक तौर जो गहराई पर बेहद ठंडा पानी बहता है गत चंद दशकों में उसके गायब होने की रफ़्तार कुछ ज्यादा ही रही है .इस जल राशि को 'एंटार्कटिक बोटम वाटर 'कहा जाता है .इसके यूं बेतहाशा रफ़्तार विलुप्त होते चले जाने से साइंसदान हतप्रभ हैं .एंटार्कटिका के गिर्द खुछ ख़ास क्षेत्रों में ही यह राशि बनती है .दरअसल सतह के ऊपर बहती ठंडी हवा इस जल का शीतलीकरण करती रहती है .जब यह हिम राशी में तब्दील हो जाता है इसकी नमकीनियत बढ़ जाती है .यह सतह से नीचे चला आता है भारी होकर .खारा नमकीन जल अपेक्षाकृत भारी होने की वजह से नीचे चला आता रहा है .जब पानी में से हवा ठंडक निकाल देती है तब हिम राशि बनती है तथा आसपास के बिना ज़मे जल के हवाले यह साल्ट हो जाती है .एक कुदरती चक्र के तहत यह सिलसिला चलता रहता है अपनी रफ़्तार .
समुन्दर में गहरे पैठा यह अपेक्षाकृत भारी जल उत्तर की तरफ प्रसार करता रहता है ,इस प्रकार दुनिया भर के गहरे समुन्दरों को लबालब रखता चलता है और धीरे धीरे अपने ऊपर की अपेक्षाकृत गुनगुनी परतों वाली जल राशि से संयुक्त होता रहता है .उसमे रिलमिल जाता रहा है .आहिस्ता आहिस्ता .
गौर तलब है दुनिया भर के सागरों में मौजूद डीप ओशन करेंट्स अन्दर अन्दर प्रवाहमान गहरी जल धाराएं आलमी ताप (तापमानों ) और कार्बन के परिवहन में एहम भूमिका निभाती आईं हैं .बत्लादें आपको हमारे समुन्दर कार्बन के सबसे बड़े सिंक हैं .पृथ्वी की जलवायु इन्हीं के हाथों विनियमित होती आई है .
पूर्व के अध्ययनों से विदित हुआ था यह गहरे बहती जल धाराएं इनमे मौजूद विशाल जल राशि गरमाने लगी है ,अपनी नमकीनियत भी खोती रही है . लेकिन हालिया अध्ययन इसके तेज़ी से मात्रात्नक रूप से कम होने की इत्तला दे रहा है .भूमंडलीय जलवायु के लिए यह अच्छी खबर नहीं है .
लेबल :सिमट रहा है एंटार्कटिक बोटम वाटर .समुन्दर डीप ओशन करेंट्स ,जलवायु ,कार्बन सिंक .
अतीत को निहारना ,हताशा ,दुःख का बीते हुए व्यतीत के दुखों में लौटना एक मानसिक कुन्हासा अपने गिर्द इस दुःख का बुनते रहना सेहत को दीमक लगा देता है .कीमत चुकानी पड़ती है आपको इसकी .
यूं ही नहीं है यह गीत 'दुःख भरे दिन बीते रे भैया अब सुख आयो रे ,रंग जीवन में नया लायो रे '
क्यों राग अलापना है -'दुःख के अब दिन बीतत नाहीं ,सुख के दिन थे ,एक सपन था ,अब कछु सूझत नाहीं ...'अपने ही व्यतीत को कुरेदना उसे याद कर विक्षोभ और आवेश में आ जाना आइन्दा भी सेहत के लिए अच्छा नहीं है .बीमार पड़ने के अस्वस्थ बने रहने के मौके बढ़ा देता है व्यतीत का दुखपूर्ण स्मरण ,यही लब्बोलुआब है एक नवीनतर शोध का जिसे 'University of Granada 'के रिसर्चरों ने संपन्न किया है .
पता चला है जो अतीत को निहारते निहारते क्रोध में आजातें हैं वह दर्द के प्रति भी ज्यादा संवेदी होतें हैं .दूसरे छोर पर जो भविष्य की संभावनाओं में जीते हैं ,दिवा -स्वप्न -जीवी हैं,सीमाओं को दरकिनार कर सिर्फ संभावनाओं में जीतें हैं ,मैं ये कर दूंगा ,वो कर दूंगा ,ये करूंगा वो करूंगा वह वर्तमान को भी जी नहीं पाते .ज़िन्दगी को बे -मजा कर लेतें हैं .
जो अब जो है उसे स्वीकार कर उसका लुत्फ़ उठाना सीख जातें हैं वही सबसे ज्यादा प्रसन्न बदन ,सेहत बदन ,स्वस्थ रहतें हैं .
सन्दर्भ -सामिग्री :Anger at your past life can make you ill /TIMES TRENDS/THE TIMES OF INDIA ,BANGALORE ,MARCH 29,P13.
कैंसर रोग निदान की नै इमेजिंग टेकनीक.
New imaging teck that can help detect cancer early /TIMES TRENDS/THE TIMES OF INDIA ,BANGALORE,MARCH 28,2012,P17.
अभिनव प्रोद्योगिकी की परवाज़ का भी ज़वाब नहीं साइंसदानों ने एक ऐसी प्राविधि ईजाद की है , इमेजिंग प्रोद्योगिकी विकसित कर ली है जो कैंसर रोग समूह के कैंसरों की शिनाख्त उस चरण में भी कर लेगी जो दिमाग में प्रसार तो पा चुके हैं लेकिन कैंसर गांठें अभी आकार में छोटी ही बनी हुईं हैं .
चूहों पर संपन्न किया गया है यह अध्ययन जिसके तहत एक ऐसी अभिनव डाई(चिकित्सीय अभिरंजक) की पड़ताल की गई है जो एम् आर आई स्केन्स में मुखरित होती है .ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी की विज्ञप्ति के अनुसार यह डाई या कंट्रास्ट एजेंट एक ख़ास अणु(VCAM-1) की निशान -देही(शिनाख्त ,पहचान ) कर उससे चस्पां ही हो जाती है .
रिसर्चरों के मुताबिक़ यही वह अणु है जो उन ब्लड वेसिल्स (रक्त वाहिकाओं ) से सम्बद्ध रहता है ताल्लुक रखता है जिनका सम्बन्ध कैंसर से जोड़ा जा चुका है तथा यह अणु भारी तादाद में वहां मौजूद रहता है .
कैंसर को शरीर के अन्य हिस्सों से उठाकर(उड़ाकर ,स्थानांतरित कर ) दिमाग तक यही अणु अपने साथ ले जाता है .
दिमाग तक शरीर के अन्य हिस्सों तक कैंसर इसी अणु के अंतरण की वजह से ही फैलता है .
एम् आर आई स्केन दिमाग में इस अभिनव डाई का रेखांकन करता है .खुलकर दिखलाता है कैंसर ग्रस्त हिस्सों को .इसी की बदौलत कैंसर की बहुत छोटी छोटी गठाने (स्माल ट्यूमर्स) भी पकड़ में आ जातीं हैं .
यही वजह है की स्माल ट्यूमर्स का इलाज़ होल ब्रेन रेडियो -थिरेपी से आरम्भिक चरण में शुरू हो पाता है अब .सर्जरी से भी इसी चरण में अब इलाज़ किया जा सकेगा .
दूसरी तरफ अभिनव रसायन चिकित्सा (न्युअर कीमोथिरेपी ) विकसित की जा रहीं हैं .लेकिन फिल वक्त लार्जर ब्रेन ट्यूमर की शिनाख्त ही परम्परा गत इमेजिंग तरीकों से हो पा रही है .जबकि इन्हीं का इलाज़ करना दुष्कर सिद्ध होता है .इन अर्थों में यह अन्वेषण एक बड़ी उपलब्धि कही जायेगी .
नै रोग्निदानिक टेक्नीक से कितनों को ही अकाल काल कवलित होने से बचाया जा सकेगा .
राम राम भाई ! राम राम भाई ! राम राम भाई !
एंटार्कटिका के गिर्द दक्षिणी सागर में आश्चर्यजनक तौर जो गहराई पर बेहद ठंडा पानी बहता है गत चंद दशकों में उसके गायब होने की रफ़्तार कुछ ज्यादा ही रही है .इस जल राशि को 'एंटार्कटिक बोटम वाटर 'कहा जाता है .इसके यूं बेतहाशा रफ़्तार विलुप्त होते चले जाने से साइंसदान हतप्रभ हैं .एंटार्कटिका के गिर्द खुछ ख़ास क्षेत्रों में ही यह राशि बनती है .दरअसल सतह के ऊपर बहती ठंडी हवा इस जल का शीतलीकरण करती रहती है .जब यह हिम राशी में तब्दील हो जाता है इसकी नमकीनियत बढ़ जाती है .यह सतह से नीचे चला आता है भारी होकर .खारा नमकीन जल अपेक्षाकृत भारी होने की वजह से नीचे चला आता रहा है .जब पानी में से हवा ठंडक निकाल देती है तब हिम राशि बनती है तथा आसपास के बिना ज़मे जल के हवाले यह साल्ट हो जाती है .एक कुदरती चक्र के तहत यह सिलसिला चलता रहता है अपनी रफ़्तार .
समुन्दर में गहरे पैठा यह अपेक्षाकृत भारी जल उत्तर की तरफ प्रसार करता रहता है ,इस प्रकार दुनिया भर के गहरे समुन्दरों को लबालब रखता चलता है और धीरे धीरे अपने ऊपर की अपेक्षाकृत गुनगुनी परतों वाली जल राशि से संयुक्त होता रहता है .उसमे रिलमिल जाता रहा है .आहिस्ता आहिस्ता .
गौर तलब है दुनिया भर के सागरों में मौजूद डीप ओशन करेंट्स अन्दर अन्दर प्रवाहमान गहरी जल धाराएं आलमी ताप (तापमानों ) और कार्बन के परिवहन में एहम भूमिका निभाती आईं हैं .बत्लादें आपको हमारे समुन्दर कार्बन के सबसे बड़े सिंक हैं .पृथ्वी की जलवायु इन्हीं के हाथों विनियमित होती आई है .
पूर्व के अध्ययनों से विदित हुआ था यह गहरे बहती जल धाराएं इनमे मौजूद विशाल जल राशि गरमाने लगी है ,अपनी नमकीनियत भी खोती रही है . लेकिन हालिया अध्ययन इसके तेज़ी से मात्रात्नक रूप से कम होने की इत्तला दे रहा है .भूमंडलीय जलवायु के लिए यह अच्छी खबर नहीं है .
लेबल :सिमट रहा है एंटार्कटिक बोटम वाटर .समुन्दर डीप ओशन करेंट्स ,जलवायु ,कार्बन सिंक .
13 टिप्पणियां:
आपका नुस्खा पकड़ लेते हैं ... आज में ही जीना शुरू करते हैं ... क्योंकि असल जीवन तो आज में ही है ... बीते और आने वाले समय की बातें मिथ्या हैं ...
राम राम जी ...
वीरू भाई ,राम-राम !
बंगलुरु प्रवास मुबारक हो !
वीरू भाई ...इस उम्र में अच्छी-बुरी यादेँ टानिक का काम करती हैं ...दिमाग सोचने-समझने के काबिल
रहता है ! बाकि आप समंदर ..और हम कुंए :-)
शुभकामनाएँ!
दर्शन जीवन का लिए, गीता-गीत-सँदेश |
अगर कुरेदे दिन बुरे, बाढ़े रोग-कलेश |
बाढ़े रोग-कलेश, आज को जीते जाओ |
जीते रविकर रेस, भूत-भावी विसराओ |
मध्यम चिंता-मग्न, जान जोखिम में डाले | |
दोनों ग्यानी मूर्ख, करें मस्ती मत वाले |
सही कहा आपने...हमें वर्त्तमान में जीने की कला सीखनी चाहिए...अतीत में हम वापस जा नहीं सकते और आनेवाले कल के बारे में हम कुछ नहीं जानते.
सुख का उछाह रह रहकर इसी पल में जीने को कहता है।
आपकी उत्कृष्ट प्रस्तुति भी है,
आज चर्चा मंच पर ||
शुक्रवारीय चर्चा मंच ||
charchamanch.blogspot.com
very useful post.thanks
बहुत उपयोगी पोस्ट!
विज्ञान मोजैक अच्छा रहा !
हेल्थ की बात , वीरू भाई के साथ क्या बात है
जानकारी भरी पोस्ट .... और गाना तो पूरा जीवन दर्शन ही है ...
जो अब जो है उसे स्वीकार कर उसका लुत्फ़ उठाना सीख जातें हैं वही सबसे ज्यादा प्रसन्न बदन ,सेहत बदन ,स्वस्थ रहतें हैं ... एकदम सच्ची बात सर...
केंसर डायग्नोसिस की नई उपकरण निश्चित रूप से उपयोगी और जन हितकारी होगी... अच्छी और महत्वपूर्ण जानकारी...
सिकुड़ते अंटार्कटिक बाटम को “ग्लोबल वार्मिंग” के परिप्रेक्ष्य मे देखा जा सकता है क्या…. ?
सादर।
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