गुरुवार, 15 मार्च 2012

उम्र कम होती है संशाधित रेड मीट रोज़ (एक पोर्शन )खाने वालों की .

उम्र कम  होती है संशाधित रेड मीट रोज़ (एक पोर्शन )खाने वालों की .एक नईशोध रपट का यही स्वर  है .
'Eating red meat could lead to early death'/TIMES TRENDS/THE TIMES OF INDIA,MUMBAI,MARCH 14,2012.
अकसर  ऐसे  गोश्त  या  मांस  को  रेड  मीट कहा  जाता  है  जो  पकाने  से  पहले  अपेक्षाकृत  ज्यादा  लाल  रंग लिए रहता है .लेकिन पकाने के बाद     गहरा भूरा    हो जाता है .गौ मांस ,मैमने,भेड़ बकरी,,भैंस आदि   का गोश्त ,बेकन (सूअर की पीठ या बगल का नमक लगा या भुना हुआ मांस रेड मीट ही कहलायेगा .बतख मुर्गी आदि इस वर्ग में नहीं आयेंगे .लीन मीट कहातें हैं .
हॉट डॉगका मतलब होता है मुलायम नरम ब्रेड रोल में गरम गुलमा (सासेज़ )भरा खाद्य
Hot dog is a hot SAUSAGE served in a long bread roll.It is a  long sausage typically served hot on a bread roll  with toppings such as fried onions ,mustard ,or ketchup.
SAUSAGE :Sausage is seasoned pork or other meat chopped fine and stuffed into a tube of animal intestine or another tube shaped skin .
सासिज़ माने गुलमा ,लंगोचा ,लम्बी पतली शक्ल में बना हुआ मसालेदार गोश्त जिसका छोटा टुकडा ठंडा खाया जाता है और पूरा टुकडा पका कर गर्म .
संशाधित का मतलब नमक लगा हुआ डिब्बा बंद गोश्त.
रिपोर्ट की चर्चा करतें हैं :
एक दीर्घावधि अमरीकी अध्ययन जिसमें तकरीबन एक लाख बीस हज़ार अमरीकियों की खुराक पर नजर रखी गई बतलाता है इनमे  से ऐसे लोगों की जो रोजाना एक पोर्शन (एक आदमी को सर्व किया गया पर्याप्त गोश्त जिसे हम एक प्लेट कहतें हैं )संशाधित रेड मीट उड़ा रहे थे उनके लिए  कम उम्र में ही इस दुनिया को अलविदा कह, चल बसने की संभाना २०%बढ़ जाती है .बढ़ गई थी .
बेशक हारवर्ड विश्वविद्यालय के रिसर्चरों ने ऐसे सबूत    भी जुटाएं हैं की ऐसे लोगों के लिए दिल की बीमारियों और कैंसर रोग समूह का ख़तरा भी बढ़ जाता है .
बकौल इनके संशाधित रेड मीट के स्थान  पर बतख ,मुर्गी ,मच्छी आदि खाने से ऐसे खतरे को कम किया जा सकता है .वाईट मीट और शाकाहार और भी बेहतर हैं ऐसा सभी मानतें हैं .
मौत से पहले मौत का ख़तरा बढाता है संशाधित रेड मीट का चस्का .आर्काइव्ज़ ऑफ़ इन्टरनल मेडिसन में फ्रेंक हु अपने रिसर्च पेपर में यही कह रहें हैं .
आप इस अध्ययन के वरिष्ठ रचनाकार हैं .
रिसर्चरों ने अपने तमाम आंकड़े उन ३७,६९८ मर्दों के खानपान से  22 बरसों तक नजर रखके   जुटाए हैं जो इस अध्ययन में शरीक थे .अलावा इसके 28 बरसों तक तकरीबन ८३,६४४मोह्तर्माओ के  खान पान का भी  आवधि -क  जायजा    लिया जाता रहा है .
पता चला इनमे से जो रोजाना 'card-deck -sized' सर्विंग  अ -संशाधित रेड मीट की उड़ा रहे थे उनके लिए अन्यों के बरक्स जो मीट नहीं खाते थे मौत का ख़तरा १३%ज्यादा बढ़ गया था .
लेकिन जो लोग संशाधित रेड मीट यथा हॉट डॉग या फिर बेकन के दो स्लाइस रोज़ खा रहे थे उनके लिए तो यह ख़तरा मौत का २०% बढ़ गया था .बरक्स उनके जो मीट नहीं खाते थे .
तमाम भागीदारों  से हर चार साल के आवधिक अंतराल के बाद एक प्रश्नोत्तरी भरवाई जाती थी जिसमे उनके खानपान का पूरा ब्योरा रहता था .
नुश्खे सेहत के :
नुश्खे  सेहत  के :अश्थियों की मजबूती के  लिए केशियम:हरी पत्तेदार सब्जियां और फलियाँ  ,बीन्स  शरीर के लिए ज़रूरी केल्शियम की आपूर्ति करवा देतीं हैं .
HEALTH TIPS:Calcium is essential for strong bones .Get your dose from green leafy vegetables and beans.
नुश्खे  सेहत  के  :
     जै (ओट्स ,OATS)में मौजूद रहतें हैं कुछ ख़ास वसीय अम्ल (Unique fatty acids).अलावा   इसके यह एंटीओक्सिडेंट भी मुहैया करवा देता है .एंटीओक्सिडेंट कोशिका नुकसानी(Cell damage) की  रफ़्तार को घटाने  में सहायक सिद्ध होतें हैं .
Oats have unique fatty acids and antioxidants which slow cell damage.
  राम राम भाई !  राम राम भाई !
क्या है इमोशनल ईटिंग ?स्ट्रेस ईटिंग ?
साइंसदानों ने पता लगाया है जो महिलायें कामकाजी स्थल पर अपने काम से ऊब महसूस करतीं हैं ,जिनकी कोई दिलचस्पी नहीं रह जाती है वर्कप्लेस के काम में वह इस   खीज   से राहत   के लिए   खाने   पीने   की   चीज़ों   से रहत   महसूस करतीं हैं इमोशनल ईटिंग करतीं हैं .
फिनलैंड के  साइंसदानों का यह अध्ययन 'जर्नल ऑफ़ क्लिनिकल न्यूट्रीशन 'में प्रकाशित हुआ है .पता चला है जो महिलायें कामकाजी स्थल पर हाड तोड़ काम के बाद थकान से चूर हो जातीं हैं ,भावनात्मक रूप से पस्त हो जातीं हैं वह भी जब ज्यादा दवाब में आतीं हैं खाने में राहत ढूँढने लगतीं हैं बे -इन्तहा स्ट्रेस में आने पर खाने पीने की चीज़ों पर टूट पड़तीं हैं .यही दवाब इमोशनल ईटिंग की वजह बनता है जिसके बाद यह खासा राहत महसूस करतीं हैं .बिना भूख के खातीं हैं राहत के लिए .
'Stressed  women eat more'/TIMES TRENDS/THE TIMES OF INDIA,MUMBAI ,MARCH 14,2012,१९






34 टिप्‍पणियां:

रविकर ने कहा…

मांसाहारी चेत जाएँ ।।

Kailash Sharma ने कहा…

बहुत उपयोगी जानकारी...

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

उम्र कम होने के एक और तरीके से बच गये।

डॉ टी एस दराल ने कहा…

सबसे बढ़िया है शाकाहारी होना ।
हालाँकि एक डॉक्टर के रूप में मैं ऐसा नहीं कह सकता ।

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
सही कहा है आपने!

DR. ANWER JAMAL ने कहा…

बर्हितित्तरिदक्षाणां हंसानां शूकरोष्ट्रयोः
खरगोमहिषाणां च मांसं मांसकरं परम्.
-चरकसंहिता चिकित्सा स्थानानम् 8,158
अर्थात मोर,तीतर,मुरग़ा,हंस,सुअर,ऊंट,गधा,गाय और भैंस का मांस रोगी के शरीर का मांस बढ़ाने के लिए यक्ष्मा रोगी के लिए उत्तम है.

सुज्ञ ने कहा…
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
सुज्ञ ने कहा…

स्वास्थ्य सजग सलाह!!

@"सबसे बढ़िया है शाकाहारी होना ।
हालाँकि एक डॉक्टर के रूप में मैं ऐसा नहीं कह सकता ।

डॉक्टर दराल सर,

चिकित्सक तो रोग के लिए प्रत्येक सम्भाव्य खतरे से परहेज करने की सलाह देते है।

आपके उपरोक्त कथन का उपयोग लोगों द्वारा मांसाहार की अनुशंसा के रूप में लिया जा रहा है
यहां-http://blog-parliament.blogspot.in/2012/03/dr-t-s-daral.html

virendra sharma ने कहा…

कौन से ज़माने में जी रहें हैं डॉ अनवर ज़माल साहब .गधे घोड़े सब एक पांत में बिठा दिए.लीन मीट और रेड मीट में आपके लिए कोई फर्क ही नहीं है .तब से लेकर अब तक (संहिता काल से अबतक )गंगा जमुना में कितना पानी बह चुका है रहनी सहनी खान पान कितना बदला है ?सुश्रुत के दौर में तो निश्चेतक की जगह एक तार को गर्म करके एंग विच्छेदन किया जाता था किया जाता था ?क्या आज भी ऐसे ही कीजिएगा ? jab की yah बारहा प्रमाणित और पुष्ट हुआ है ,जीवन शैली रोगों की नवज हमारे गलत खान पान से जुडी है .रेड मीट भक्षण का सम्बन्ध साफ़ तौर पर कोलन कैंसर रोग समूह से जोड़ा जा चुका है .

virendra sharma ने कहा…

कौन से ज़माने में जी रहें हैं डॉ अनवर ज़माल साहब .गधे घोड़े सब एक पांत में बिठा दिए.लीन मीट और रेड मीट में आपके लिए कोई फर्क ही नहीं है .तब से लेकर अब तक (संहिता काल से अबतक )गंगा जमुना में कितना पानी बह चुका है रहनी सहनी खान पान कितना बदला है ?सुश्रुत के दौर में तो निश्चेतक की जगह एक तार को गर्म करके अंग विच्छेदन किया जाता था किया जाता था ?क्या आज भी ऐसे ही कीजिएगा ? जब की यह बारहा प्रमाणित और पुष्ट हुआ है ,जीवन शैली रोगों की नव्ज़ हमारे गलत खान पान से जुडी है .रेड मीट भक्षण का सम्बन्ध साफ़ तौर पर कोलन कैंसर रोग समूह से जोड़ा जा चुका है .

Unknown ने कहा…

प्रस्तुत लेख पूर्णरूप से वैज्ञानिक अनुसंधान और तथ्यों पर आधारित है।
कोई भी डॉक्टर ऐसे वैज्ञानिक निष्कर्षों को इग्नोर नहीं कर सकता। क्योंकि चिकित्सा विज्ञान स्वयं वैज्ञानिक अनुसंधानों और तात्विक निष्कर्षों पर ही आधारित होता है।

आरोग्य कल्याण भावना प्रेरित सार्थक पोस्ट!!

Satish Saxena ने कहा…

सावधान रहना जरूरी है भाई जी !
शुभकामनायें आपको !

DR. ANWER JAMAL ने कहा…

@ राम राम भाई ! आपने रेड मीट के बारे में आधुनिक रिसर्च पेश ही है और हमने उसके विषय में प्राचीन भारतीय चिकित्सकों का नज़रिया रखा है। हमने आपकी बात का खंडन कब किया है ?
हम तो आपकी इस बात से पूरी तरह सहमत हैं कि
"संशोधित रेड मीट के स्थान पर बतख ,मुर्गी ,मच्छी आदि खाने से ऐसे खतरे को कम किया जा सकता है"

रिसर्च करने वालों ने यह भी पाया है कि जो लोग बचपन में भी प्यार से वंचित रहे और बड़े होकर भी अपने जीवन साथी से भावनात्क रूप से असंतुष्ट रहे, ऐसे लोग भी कैंसर की चपेट में आ जाते हैं।
रिसर्च करने पर यह भी पाया गया कि सेक्स करने से इम्यून सिस्टम मज़बूत होता है।
असल बात यह है कि सही समय पर विवाह हो जाए और वे आपस में प्यार भरा संतुष्ट जीवन जिएं। इससे उनका इम्यून सिस्टम फ़ौलादी बन जाएगा। यही कारण है कि हमारे रिश्तेदारों में रेड मीट रोज़ खाया जाता है और अल्लाह का शुक्र है कि आज तक उनमें से किसी एक को भी कैंसर न हुआ।
जिन देशों में ये रिसर्च हो रही हैं, वहां फ़ैमिली नाम की चीज़ ही बहुत कम रह गई है। भावनात्मक रूप से टूटे हुए लोगों पर किए गए परीक्षण उन पर लागू नहीं होते जो कि भावनात्मक रूप से संतुष्ट जीवन जी रहे हैं।

DR. ANWER JAMAL ने कहा…

अंग्रेज़ों ने पता लगाया कि रेड मीट नुक्सान दे रहा है और वीरू भाई को फ़ौरन यक़ीन आ गया कि जब अंग्रेज़ों ने तय कर लिया है तो ज़रूर नुक्सान देता होगा।

हमें अंग्रेज़ों की चालबाज़ियां पता हैं।

इनकी रिसर्च पर भी रिसर्च करने की ज़रूरत होती है क्योंकि दुनिया के सामने रिसर्च के नाम पर वही परोसते हैं जिससे दुनिया के व्यापार पर इनका क़ब्ज़ा हो जाए।

हमने फ़ौरन अपने पुराने ग्रंथ चरक संहिता में टटोला तो वहां रेड मीट खाने के लाभ ही लाभ बताए गए हैं।

अंग्रेज़ कह रहे हैं कि रेड मीट खाने से आंत का कैंसर हो जाता है और हमारे महान भारतीय बुज़ुर्ग कह रहे हैं कि इससे यक्ष्मा का रोगी तक ठीक हो जाता है।

किस की बात सही मानी जाए ?

1. स्वदेशी विचार मंच पर बैठकर सोचा तो भी भारतीय बुज़ुर्गों की बात मानना हमारा फ़र्ज़ बनता है।

2. फिर निष्पक्ष होकर सोचा कि अंग्रेज़ तो अपने किसी प्लान को लाने से पहले तरह तरह के शोशे छोड़ते हैं, उनकी बात अर्थलाभ से प्रेरित हो सकती है लेकिन हमारे चरक जी तो महर्षि हैं और उन्हें किसी से किसी लाभ का लालच था ही नहीं। इस लिहाज़ से भी उनका पलड़ा भारी बैठता है।

3. इसके बाद ‘मैं कहता आंखन देखी‘ के आधार पर जांच की गई तो पाया कि रेड मीट रोज़ खाने के बावजूद हमारे कुनबे में तो क्या क़बीले में भी किसी को आंत का कैंसर न हुआ।

अब सवाल यह खड़ा हुआ कि ‘या इलाही ! माजरा क्या है ?‘

...तो माजरा भी समझ में आ गया कि पश्चिमी विज्ञानियों के नतीजे केवल शरीर को सामने रखकर निकाले गए हैं जबकि आदमी केवल शरीर ही नहीं है, उसमें मन बुद्धि और आत्मा भी है और हरेक का जीवट अलग अलग भी होता है। इसी जीवट के बल पर भारतीय उन परिस्थितियों में भी जी लेते हैं जिनकी कल्पना मात्र से ही पश्चिमी लोगों के पसीने छूट जाएं। जिसका जीवट शक्तिशाली होता है उसकी जीवनी शक्ति भी अधिक होती है। अंग्रेज़ी में इसे इम्यून सिस्टम कहा जाता है।

अगर आपने अपने जीवन साथी को तन मन और आत्मा तीनों स्तर पर संतुष्ट कर दिया तो उसके रोम रोम से, उसके दिल से आपके लिए दुआएं निकलेंगी और तब बीमारियां आपका कुछ बिगाड़ नहीं सकतीं। तन के स्वस्थ रहने में मन का रोल बहुत अहम है। हमारे भारतीय बुज़ुर्ग ऐसा कहते हैं और हम यही मानते हैं और आधुनिक परीक्षणों से भी इसकी सत्यता प्रमाणित हो चुकी है।

अंग्रेज़ों की रिसर्च पर यक़ीन करने वालों के लिए उनकी ही एक रिसर्च पेश ए खि़दमत है, देखिए
Regular Sex Improves Health and Doubles Life Expectancy

(NaturalNews) You probably already know that Broccoli, carrots, and oranges are good for you. Yet it's rarely mentioned that having regular sex is not only fantastically fun, but brilliant for your health! A study at Queens University in Belfast published in the British Medical Journal tracked the sexuality of about 1,000 middle-aged men over the course of a decade. The study compared men of a similar age and health and showed that men who reported the highest frequency of orgasm lived twice as long as though who did not enjoy sex.


Source : http://blogkikhabren.blogspot.in/2012/03/better-sex-better-life.html

डॉ टी एस दराल ने कहा…

आज सुबह नेट खोला तो पाया , इस विषय पर गंभीर और गहन चर्चा चल रही है . हमारे कमेन्ट पर भी काफी चर्चा हुई है .
पहले तो मैं यह बताना चाहूँगा की मैं पूर्णतया शाकाहारी हूँ . लेकिन मेरा मानना है की मांसाहारी या शाकाहारी होना पूर्ण रूप से एक व्यक्ति विशेष की रुचि पर निर्भर करता है . हालाँकि इसमें परिवार , धर्म , प्रान्त और देश की रीति रिवाजें और धार्मिक सोच भी रोल प्ले करती है . किताबें पढ़कर या रिसर्च पेपर पढ़कर कोई यह निर्णय नहीं लेता की उसे क्या खाना है .
जहाँ तक बात है शोध और शोध पत्रों की -सब वैसा नहीं होता , जैसा दिखता है . अनुसंधान के परिणाम रोज बदलते हैं . उन पर आँख बांध कर विश्वास नहीं किया जा सकता . बहुत से पेपर्स विभिन्न कारणों से प्रभावित होते हैं . एक रिसर्च से कुछ पता चलता है , दूसरी रिसर्च बिलकुल उल्टा रिजल्ट निकाल कर दे देती है --किसकी मानेंगे आप .
अंतत: अपनी सोच पर ही निर्भर रहना चाहिए .

डॉ टी एस दराल ने कहा…

चिकित्सक की दृष्टि से देखें तो विभिन्न मांसाहार में सभी पौषक तत्त्व भरपूर मात्रा में होते हैं . बल्कि कुछ ऐसे भी तत्त्व होते हैं जो या तो शाकाहार में नहीं होते या कम होते हैं .
रोगों की उत्पत्ति अक्सर किसी एक फैक्टर पर निर्भर नहीं होती . हेल्थ एक मल्टीफेक्टोरल उत्पाद होता है . इसलिए यह नहीं कहा जा सकता की किसी एक के होने या न होने से केंसर या अन्य घातक रोग होना अनिवार्य है . ( कुछ विशेष स्थितियों को छोड़कर ) .
विश्व में अधिकांश लोग मांसाहार पर निर्भर हैं . फ़ूड चेन को भी देखें तो विश्व की ७ बिलियन आबादी को शाकाहार पर नहीं पाला जा सकता . आज यदि मांसाहार को पूर्ण रूप से निषिद्ध कर दिया जाए , तो कुछ ही दिनों में सिविल वार हो जायेगा, खादान्न की कमी से .

virendra sharma ने कहा…

अनवर ज़माल साहब आप रेड मीट से सेक्स की फ्रिक्युवेंसी पर पहुच गए यह विषय अंतरण है .रेड मीट की ओर लौटतें हैं .

आपने शरीर से हटके आत्मा की बात की है ,बहुत अच्छा किया है .यह सारा मंडल एक ही है .सृष्टि में एक ही तत्व व्याप्त है वह है ऊर्जा .आत्मा कह लो इसे या सचेतन ऊर्जा.अल्लाह कह लो या ब्रहम तत्व .सभी आत्माएं एक हैं .जड़ चेतन में सभी में वही ऊर्जा (आत्मा )का वास है .एक तत्व की ही pradhaantaa kaho इसे जड़ या चेतन पशु पक्षी भी इसका अपवाद नहीं है वह सिर्फ 'रेड' और 'वाईट ',लीन ,मीट से आगे एक आत्मा भी हैं .शिकारी जब शिकार का पीछा करता है तो शिकार जान बचाके भागता है या फिर सामर्थ्य होने पर मुकाबला भी करता है .इस फ्लाईट और फाईट सिंड्रोम में एड्रीनेलिन का स्राव होता है .सारा सारे शरीर में इसका सैलाब होने लगता है .शिकार मारा जाता है .भय से पैदा हुई है यह रिनात्मक ऊर्जा जो सारे शरीर को संदूषित कर देती है .खून के थक्के बनतें हैं .अश्थी मज़ा संदूषित हो जाती है .मनुष्य इसी गोष्ट को खाता है .उसी अल्लाह या ब्रह्म को निवाला बनाता है .

जिसे आप हलाल करतें है फिर खाते हैं रिनात्मक ऊर्जा से वह भी नहीं बचता है .उसका गोष्ट भी संदूषित होता है एड्रीनेलिन से बहले खून का थक्का न भी बने .

बकर ईद पर वह कसाई भी बकरे के कान में यही कहता है -यह हरामी मुझसे जिबह करवा रहा है मैं तो अपना कर्म कर रहा हूँ अल्लाह मुझे ,यह जीव आत्मा मुझे मुआफ करे .सवाल इस्लाम या सनातन धर्म का नहीं है .चेतन तत्व का है अल्लाह का है ,उस तत्व का है जो मुझमे तुझमे,जड़ में चेतन में , सबमे व्याप्त है .

बत्लादूं आपको यही शिव तत्व है .

virendra sharma ने कहा…

डॉ दराल साहब ,.मैं आपकी बात से पूर्ण तय : सहमत हूँ.विज्ञान संभावनाओं के क्षितिज सदैव ही खुले रखता है यहाँ अन्वेषण आग्रह मूलक नहीं हैं ,देश काल के अनुरूप हैं .

.

.

सुज्ञ ने कहा…

@ रेड मीट भक्षण का सम्बन्ध साफ़ तौर पर कोलन कैंसर रोग समूह से जोड़ा जा चुका है .

और इसके पुख्ता कारण भी है-

मांसाहार ठोस व चिकनाई युक्त होता है, जिसके जिद्दी अंश आंतो की दीवारों पर चिपके रह जाते है और सड़न पैदा करते है। परिणाम स्वरूप आंतो के केन्सर की सम्भावनाएं प्रबल हो जाती है।

जाकिर नाईक कहते है खून इस्लाम में हराम है, इसीलिए हलाल का तरीका है कि रक्त मांस में न बचा रहे, क्योंकि रक्त ही रोगाणुओं का प्रमुख संवाहक है। रेड़-मीट में खून का हिस्सा ही अधिक होता है। संक्रमण और सड़न की सम्भावनाएँ अधिक होती है। केन्सर की प्रबल सम्भावना का यह खास कारण है।

सुज्ञ ने कहा…

@ विज्ञान संभावनाओं के क्षितिज सदैव ही खुले रखता है यहाँ अन्वेषण आग्रह मूलक नहीं हैं ,देश काल के अनुरूप हैं .

शोध अनुसंधान और अन्वेषणो से ही मानव सभ्य विकास कर पाया और स्वस्थ व सुरक्षित रह पाया है। ऐसे अनुसंधानों पर आंख मूंद कर भरोसा न भी करें पर आंख बंद कर अस्वीकार करना भी उतना ही गलत है। विवेक यहाँ जाग्रत रखना होगा, रेड-मीट को अवॉईड़ करने पर स्वास्थ्य नहीं बिगड़नेवाला पर सम्भावनाओं के चलते यदि अपनाए रखा तो निश्चय ही स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ होगी। विवेकयुक्त सोचकर मानव आरोग्य के प्रति सभी को सावधान रहने की आवश्यकता है।

सुज्ञ ने कहा…

@आप रेड मीट से सेक्स की फ्रिक्युवेंसी पर पहुच गए

वीरूभाई,

दो कारण हो सकते है………

१-मांस मदिरा मैथुन का वामाचारी सम्बंध जो है अतः

२-आपने कभी देखा हो तो 'गुप्त रोगों के शर्तिया इलाज' वाले झोला-छाप हर मर्ज़ का इलाज योन सम्बंधो में ही देखते है। अगर इसी से लोगों का इम्यून सिस्टम फ़ौलादी बन जाए तो लोग नाहक़ ही पोषण, दवाओं और डॉक्टर के पिछे भागते है। :)

virendra sharma ने कहा…

ब्लॉगर DR. ANWER JAMAL ने कहा…

अंग्रेज़ों ने पता लगाया कि रेड मीट नुक्सान दे रहा है और वीरू भाई को फ़ौरन यक़ीन आ गया कि जब अंग्रेज़ों ने तय कर लिया है तो ज़रूर नुक्सान देता होगा।
डॉ .अनवर ज़माल साहब कवि वृन्द कह गए हैं :

उत्तान विद्या लीजिये ,जदपि नीच पे होय ,

परो अपावन ठौर में ,कंचन तजत न कोय .

आप कोई अच्छी बात बताएँगे उसे भी मान लेंगें .हम सर्व -समावेशी हैं ,सर्व -ग्राही संस्कृति की वारिश हैं .

virendra sharma ने कहा…

डॉ .अनवर ज़माल साहब कवि वृन्द कह गए हैं :

उत्तम विद्या लीजिये ,जदपि नीच पे होय ,

परो अपावन ठौर में ,कंचन तजत न कोय .

आप कोई अच्छी बात बताएँगे उसे भी मान लेंगें .हम सर्व -समावेशी हैं ,सर्व -ग्राही संस्कृति की वारिश हैं .
ब्लॉगर DR. ANWER JAMAL ने कहा…अंग्रेज़ों ने पता लगाया कि रेड मीट नुक्सान दे रहा है और वीरू भाई को फ़ौरन यक़ीन आ गया कि जब अंग्रेज़ों ने तय कर लिया है तो ज़रूर नुक्सान देता होगा।

सुज्ञ ने कहा…

@अंग्रेज़ों ने पता लगाया कि रेड मीट नुक्सान दे रहा है और वीरू भाई को फ़ौरन यक़ीन आ गया कि जब अंग्रेज़ों ने तय कर लिया है तो ज़रूर नुक्सान देता होगा।

अंग्रेज़ों ने पता लगाया कि शिक्षा अनुसंधान और कौशल के आधार पर किसी को वैद्यक-कर्म में निपुणता की डिग्री दी जा सकती है और नाम के साथ इसे जोडना मानव स्वास्थ्य के प्रति उत्तरदायित्व का प्रतीक हो सकता है। जनसाधारण को यकिन आ गया कि 'डॉक्टर' विकासवादी दृष्टिकोण के साथ रोगनिदान और परहेज के प्रति पूर्ण जिम्मेदार होता है। साथ ही जीवन-रक्षक होता है।

अंग्रेजों ने बनाई 'डॉक्टर' डिग्री और हमने उन्हें विशेषज्ञ मान लिया।

Arvind Mishra ने कहा…

डॉ. दराल के पक्ष का अनुमोदन !

virendra sharma ने कहा…

बंगाल (अब पश्चिमी बंगाल )में घर घर छोटे छोटे तालाब हैं घर दुआरे के पिछवाड़े जहां मछली पालन होता है चावल मच्छी बंगालियों का प्रिय आहार है .मछली को जल तोरई कहा जाता है .क्योंकि इसे वैसे ही खाया जाता है जैसे जलयुक्त तोरई को . लेकिन जल तोरई कहने से मछली तोरई नहीं हो जाती है .मछली मछली है ,वाईट मीट है .

दूध को जीववैज्ञानिक दृष्टि से पशु उत्पाद के अंतर्गत ही लिया जाता है .महात्मा गांधी बकरी का दूध पीते थे उसके लो फेट होने की वजह से .तमाम पशु आहार कोलेस्ट्रोल बढातें हैं .गैर पशु उत्पाद ही सर्वोत्तम आहार हैं दिल के लिए दिमाग के लिए .

चोटी के हृद विज्ञानी बिमल छाजेड साहब शाकाहार आन्दोलन को सारी दुनिया में ले जा रहें हैं .आप जीरो फेट के समर्थक हैं .मछली के बारहा हाइप किये जा चुके ओमेगा थ्री वसीय अम्लों को भी अन- उपयुक्त बतलातें हैं वैज्ञानिक आधार पर .पढ़ें उनकी किताब 'शाकाहार '.

यह टिपण्णी निरामिष शाकाहार पहेली में डाली है .आज ही पढ़ी आपकी यह बहु उपयोगी विचार परक पोस्ट .

Smart Indian ने कहा…

@डॉ टी एस दराल ने कहा…
सबसे बढ़िया है शाकाहारी होना ।
सत्य वचन डॉक्टर साहब!

@veerubhai ने कहा…
उत्तम विद्या लीजिये ,जदपि नीच पे होय,
परो अपावन ठौर में ,कंचन तजत न कोय.
वीरूभाई, भारतीय परम्परा में सत्य सर्वोपरि है जबकि विदेशी परम्पराओं में सत्य की नहीं बस अपने प्रचारक के कथन-जीवनशैली की बात कही गयी है। आपने सही कहा, सर्व-समावेशी हैं, सर्व-ग्राही होना भारतीय संस्कृति की विशेषता है। भाग्यवान हैं हम कि इस दुर्लभ गुण के वारिस हैं।

@जांच की गई तो पाया कि रेड मीट रोज़ खाने के बावजूद हमारे कुनबे में तो क्या क़बीले में भी किसी को आंत का कैंसर न हुआ।
1. बीमारी का गणित इतना आसान होता तो भारत और यूनान से वैद्यक सीखने वाले अरब हकीमों के इलाज से ही जहांगीर की बेटी का इलाज हो जाता तो 1616 ई. में इंग्लिस्तान से आये डॉक्टर को वह प्रतिष्ठा न मिलती कि आज के हकीम भी अपने नाम के आगे डॉ लगा रहे होते।
2. बीमारी होना और उसका पता चलना, अलग-अलग बातें हैं
3. कई लोगों को कैंसर इसलिये नहीं होता/दिखता क्योंकि वे मामूली बीमारियों से ही मर जाते हैं, कई तो बचपन में ही मर जाते हैं। दुनिया भर में कैंसर के बहुत से केसेज़ में बढोत्तरी इसलिये देखी जा रही है कि अन्य बीमारियों के बेहतर इलाज के कारण लोग लम्बी उम्र तक जी रहे हैं - जिसका श्रेय काफ़ी हद तक आधुनिक वैज्ञानिक चिकित्सा और अध्ययन व्यवस्था को जाता है।


जिसे लकीर पीटनी हो पीटता रहे, जब तक मानवता बाकी है सत्य का कारवाँ कभी रुकने वाला नहीं। सत्यमेव जयते, नानृतम्!

Smart Indian ने कहा…

@डॉ टी एस दराल ने कहा…
... विश्व की ७ बिलियन आबादी को शाकाहार पर नहीं पाला जा सकता ...
डॉ साहब, सतही तौर पर देखने से भले ही ऐसा लगता हो मगर सच्चाई यह है कि मांसाहार ही अनाज/भोजन की किल्लत का एक प्रमुख कारण है। एक किलो मांस के उत्पादन के लिये 6-20 किलो तक अनाज की कुर्बानी होती है। और उस मांस में भी बड़ा भाग अनुपयोगी होती है और बहुत सा नष्ट हो जाता है। इसके अलावा उसके कारण बहुत सा जल-वायु-मानसिक प्रदूषण भी होता है। यदि आप उत्सुक हों तो मांसाहार और अनाज की कमी के बारे में कुछ तथ्यात्मक लिंक्स यहाँ हैं:
* यदि अखिल विश्व शाकाहारी हो जाय तो?
* मांसाहार भुखमरी, पर्यावरण और जल की बर्बादी का बड़ा भीषण कारक !
* भुखमरी को बढाते ये माँसाहारी और माँस उद्योग।
* शाकाहार सम्बन्धी कुछ भ्रम और उनका निवारण
धन्यवाद!

virendra sharma ने कहा…

मेरे आदरणीय स्मार्ट इंडियन भाई जान !फ़ूड पिरामिड में आधार से शीर्ष की ओर जाने में उपलब्ध ऊर्जा किस तरह और तेज़ी से घटती है इसे आपने एक किलोग्राम मांस की प्राप्ति में चुकता होते अनाज की मार्फ़त आसानी से समझा दिया .खेती के लिए वनों का सफाया कम हो जाए यदि मांसाहार चुक जाए .पार्यावरण पारि -तंत्र खुद अपना संतुलन कायम करतें हैं जैसे एक मछली घर में आबादी एक आदर्श आबादी से ज्यादा होने पर पारितंत्र खुद इसका प्रबंध करता है बड़ी मछली छोटी को खा जाती है . वैसे ही खाद्यान तो अकेला समुन्दर ही जुटा देगा .असल सवाल खाद्य -अखाद्य का है .प्रोटीन जुटाने का है उसके लिए जीव ह्त्या ज़रूरी नहीं है .

सुज्ञ ने कहा…

दिल्ली स्थित कीर्ति नगर के आर एन कालरा अस्पताल के प्रमुख डाक्टर आर एन कालरा ने बताया कि शाकाहार मानव शरीर के लिये भी बहुत स्वास्थ्यवर्धक होता है. शाकाहार खाना हल्का होता है. मांसाहारी खाने के विपरीत इसमें मसाले कम इस्तेमाल किये जाते हैं. शाकाहारी खाने में सभी जरूरी विटामिन होते हैं जो शरीर की जरूरतों को पूरा करते हैं.

सुज्ञ ने कहा…

“प्यार (नॉन-वेज) से लोगों का इम्यून सिस्टम फ़ौलादी बन जाएगा” भाई लोगों के इम्यून सिस्टम पर इस नॉन-वेज जॉक्स के बाद जानिए ‘वेज इम्यून सिस्टम’

पेटा प्रवक्ता बेनजीर के मुताबिक अध्ययन से पता चला है कि शाकाहारी लोगों की रोग प्रतिरोधक क्षमता मांस खाने वाले लोगों से ज्यादा मजबूत होती है। अपनी रोगप्रतिरोधक क्षमता को बढाकर इन बीमारियों से काफी हद तक सुरक्षित रह सकते हैं। रोगप्रतिरोधक क्षमता बढाने के लिए अपने शाकाहार को नियोजित करना सबसे अच्छा व सरल उपाय है शाकाहार भोजन में हरी पत्तेयदार सब्जियां इम्यून सिस्टम को मजबूत बनाने में सहायक होती है। अन्य पदार्थ है-
• फल व सब्जियां, सीरियल्स, मेवे, ओमेगा-3 फैटी एसिड्स : (अखरोट, सोया, काला चना, चौली, साबुत उडद, हरी मैथी, बाजरा) पर्याप्त प्रोटीन: (दूध, दही पनीर, चीज, सोयाबीन अंकुरित दालें) एंटीऑक्सीडेंट युक्त आहार: (सभी रंग की सब्जियां व फल) मैगेशिम युक्त पदार्थ : (बाजरा, ज्वार, मक्का, गेहूं का दलिया,, साबुत चना, साबूत उडद,चौली, राजमा, सोयाबीन, साबुत मूग, इसके अलावा बादाम, काजू अखरोट तथा आम, अलूचे, मूली, कमलककडी में भी मैग्नेशियम पाया जाता है।)
• औषधाहार- मुलैठी, अश्वगंधा, इलायची आदि
इसके अलावा यह भी आवश्यक है-
• व्यायाम : नियमित व्यायाम आहर द्वारा प्राप्त पौष्टिक तथा संक्रमण से लडनेवाले सेल्स के लगातार फ्लो को बनाए रखता है तथा अनावश्यक तत्वों को शरीर से निकलने में मदद करता है।
• तनाव मुक्त रहें : स्ट्रेस के कारण हमारी इम्यूनिटी (रोग प्रतिरोधक क्षमता) प्रभावित होती है। अत: यथासंभव रिलेक्स रहने की कोशिश करें। मेडिटेशन, योग, प्राणायाम आदि को अपनी दिनचर्या में शामिल करें।
• शुद्धता व स्वच्छता जरूरी : हाइजीन का पूरा-पूरा ख्याल रखें। बाहर खाना खाने से पहले खाद्य पदार्थ का सही निरीक्षण करें और अपने हाथों को अच्छी तरह से साफ करें।
http://blog-parliament.blogspot.in/2012/03/blog-post_20.html

virendra sharma ने कहा…

सुज्ञ भाई शाकाहार पर आपने अद्यतन विज्ञान सम्मत जानकारी और तर्क को उसकी तार्किक परिणति तक लेजाकर कई को राह दिखा दी .कुतर्क या तर्क के लिए तर्क आदमी को कहीं नहीं लेजाता .आपने इस पोस्ट को अब संघनित बना दिया .आपका तहे दिल से शुक्रिया .

DR. ANWER JAMAL ने कहा…

डायटीशियन्स के एक्सपर्ट पैनल की राय को यहां देखा जा सकता है-
डॉ. रितिका समादार, रीजनल हेड, डाइटेटिक्स, मैक्स हेल्थकेयर

शिखा, सीनियर डायटीशियन जयपुर गोल्डन हॉस्पिटल

शिवानी पासी, डायटीशियन, श्रीबालाजी ऐक्शन मेडिकल इंस्टिट्यूट
http://aryabhojan.blogspot.in/2012/03/good-food-bad-food.html

सुज्ञ ने कहा…

शुक्रिया तो आपका वीरूभाई, अपनी बात कहने के लिए आपने अवसर उपलब्ध करवाया।

बहुत बहुत आभार!!

शुक्र है कि वह 'डायटीशियन्स के एक्सपर्ट पैनल', हक़ीम साहब अनवर जमाल जनाब से इत्तेफ़ाक नहीं रखती। वर्ना जमाल साहब का तो स्पष्ट मत था कि :"पाया गया कि सेक्स करने से इम्यून सिस्टम मज़बूत होता है।"
पेनल ने सुनियोजित आहारीय-पदार्थो को ही उपयुक्त बताया, 'पेनल' कोई 'खानदानी सफ़ाखाना' थोडे ही है।