पकड़ में नहीं आती है दिल की बीमारी औरतों में
Heart Attack
WHY WOMEN ARE AT GREATER RISK
Heart disease is the biggest silent killer of women in India,yet symptoms go widely unnoticed by both patients and health professionals/READER'S DIGEST FEBRUARY 2012/P66-70.
३७ साला स्मिता जाधवमुंबई पोलिटेक्निक में पढ़ातीं हैं .सीने में यकायक दर्द होने पर उन्होंने इसे अम्ल शूल ,एसिडिटी समझ लिया .हालिया मिली तरक्की और काम की अधिकता से पैदा स्ट्रेस के मथ्थे मढ़ दिया लेकिन जब दर्द का हमला रात होने पर भी ज़ारी रहा तब इन्होनें अपने पारिवारिक डॉ से मिलना बेहतर समझा .उस भले मानस ने भी इन्हें आइस क्रीम खाने की सलाह देकर वापस भेज दिया अलबत्ता एक इंजेक्शन ज़रूर लगा दिया और हाल बताते रहने को कहा.
कोई फायदा न होने पर स्मिता ने फिर उन्हें फोन किया उन्होंने अस्पताल जाने की सलाह दी .
ई सी जी से इल्म हुआ स्मिता को दिल का दौरा पड़ा था शुक्र है माइल्ड हार्ट अटेक ही था .गहन चिकित्सा कक्ष में स्मिता को रखा गया .११ दिन बाद अस्पताल से छुट्टी देकर घर भेज दिया गया .
स्मिता के एक समझदार रिश्तेदार ने उन्हें IPC Heart Care Centre ,Mumbai लेजाकर दिखलाने की सलाह दी .कारण स्मिता जी की ३३ साला छोटी बहन गए साल आकस्मिक दिल का दौरा पड़ने के बाद ,हार्ट अटेक के बाद चल बसीं थीं .
माहिरों ने उन्हें खान पान जीवन शैली में रद्दो बदल नियमित टहलने के लिए वक्त निकालने ,योग करते रहने की सलाह दी . एक डाईट प्लान भी तजवीज़ कर दिया .
बेशक इन बहनों के परिवार में मधुमेह और दिल की बीमारियों का पूर्व वृत्तांत मौजूद था ,फेमिली हिस्टरी थी लेकिन ये दोनों बहुत कम उम्र में ही दिल की इस जानलेवा बीमारी की लपेट में आ गईं जो अप्रत्याशित है .नियम न होकर अपवाद ही कहा जाएगा इसे यही कहना है डॉ .प्रतीक्षा जी .गांधी का .आप प्रिवेंटिव कार्डियोलोजिस्ट होने के अलावा 'आईपीसी हार्ट केयर 'के मुखिया हैं .आप रोजाना तकरीबन ५० -६० दिल के मरीज़ देखतें हैं उनमें से ४०%महिलायें होतीं हैं .
कुछेक साल पहले यह केवल १५%था ऐसी महिलाओं का प्रतिशत .समाज के गरीब अमीर सभी तबकों से इलाज़ के लिए आगे आ रहीं हैं अब महिलायें दिल की बीमारी लिए .ख़तरा सभी वर्गों को यकसां है .
स्मिता की मेडिकल कंडीशन का अगर पहले से इल्म रहता तो दिल का दौरा टाला जा सकता था .
जीवन शैली में बदलाव ,लो फेट डाईट ,नियमित व्यायाम ,योग और ध्यान बचावी कुंजियाँ है .
अलावा इसके नियमित जांच आवधिक बहुत ज़रूरी है .जिसमें शरीक होना चाहिए :
(१)लिपिड प्रोफाइल.
(२)Treadmill tests(मानव चक्की पर टहल कदमी ).
बिला शक इन उपायों को आजमा कर ८०%मामलों को मुल्तवी रखा जा सकता है दिल के दौरों के .
Women are Different
"One in nine women between the ages of 45and 65 develop symptoms of some form of cardiovascular disease ,"says cardiologist K.K.Aggarwal of Delhi's Moolchand Hospital.
हर नौवीं औरत में आज दिल और रक्त वाहिकाओं के रोगों के लक्षण पनप रहें हैं लेकिन तवज्जो सही समय पर किसी किसी को ही मिल पा रही है .जबकि इसी स्थिति का इल्म होने पर मर्दों को इमदाद जल्दी मिलती है .इसीलिए औरतों के लिए दिल की बीमारियाँ ज्यादा गंभीर रूख ले लेतीं हैं जानलेवा सिद्ध हो रहीं हैं .
आम जनता से लेकर माहिरों तक में एक जागरूकता का अभाव इस मामले में देखा जा सकता है .
दूसरी तरफ अपेक्षाकृत युवा महिलाओं का मधुमेह की ज़द में आते चले जाना अब तक प्राप्त पूर्व रजो -निवृत्ति रक्षण ( Pre-menopausal protection) को बेअसर किये दे रहा है .औरतों को मासिक धर्म ज़ारी रहते एक कुदरती प्रति -रक्षण प्राप्त था दिल की बीमारियों से .लेकिन जीवन शैली में आये बदलावों और जीवन शैली रोग मधुमेह ने सब गुड गोबर कर दिया .
रही सही कसर हारमोन युक्त गर्भ निरोधी (आई पिल ,इमरजेंसी पिल )गोलियों ,औरतों में बढ़ते धूम्र पान के चलन ने पूरी कर दी है .
स्मोकिंग एक्टिव हो या पेसिव समान रूप से घातक है .दिल की बीमारियों के जोखिम को बढ़ाती है .
फर्क हो सकतें हैं दिल के दौरों के लक्षण औरतों में :
ज़रूरी नहीं है सीने के बीच से स्टर्नम से उठके दर्द की लहर बाजू से होती ऊंगलियों तक ही आये औरतों के मामले में कमर में दर्द का होना ,जबड़े में दर्द होना ,मिचली आना ,उदर शूल ,नौज़िया नान टिपिकल लक्षण हो सकतें है दिल के दौरे के .
लेकिन यदि कोई महिला सीने में परेह्सानी महसूस कर रही है ,उदर शूल है साथ ही सांस लेने में दिक्कत भी हो रही हो ,बला का पसीना टूट (छूट )रहा हो तब अस्पताल की राह पकडनी चाहिए बिला वक्त गँवाए .यहाँ वक्त का ही मोल है .टाइम इज गोल्ड .
हार्ट डिजीज को मर्दों का रोग समझके बहुत से डॉ महिलाओं के मामले में इसकी अनदेखी कर जातें हैं .सीने में दर्द की शिकायत लेकर जो महिलायें अपने काया चिकित्सक (फिजिशियन )के पास पहुँचती हैं बिरले ही उनका ई सी जी लिया जाता है ,एन्जियोग्राम की सलाह देना तो और भी दुर्लभ दूभर रहता है .यही कहना है डॉ .जे .संगूमणि का .आप मदुराई मेडिकल कोलिज ,मदुराई में मेडिसन के आचार्य हैं .
औरतें खुद भी अपने स्वास्थ्य की अनदेखी करती रहतीं हैं .
दिल की बीमारियों का माहिर मेल हो ,पुरुष डॉ. हो तब परम्परा गत सोच संकोच के तहत कितनी ही महिलायें उन्हें दिखलाने में परहेज़ करतीं हैं .
जबकि घर बाहर सभी जगह अब औरत की जान को क्लेश बढ़ गया है तनाव बढ़ गया है .'अर्थ' और घर की चिंता की दोहरी मार वह झेल रही है अपने स्वास्थ्य को पारिवारिक स्वास्थ्य के हाशिए पर रखे हुए .
तनाव के रिलीज़ होने के मौके उसकी ज़िन्दगी से नदारद रहतें हैं और इसी सब के चलते अब उसके दिल को सौ जोखिम पैदा हो गएँ हैं .
Routine Check -ups are Vital
दुर्भाग्य है यह कहना कि औरतों को दिल का गंभीर दौरा पड़ने के बाद ही तवज्जो मिलती है उससे पहले नहीं जब लक्षण एक दम से मुखरित हो चुके होतें हैं .और इसीलिए कितनी ही औरतें आकस्मिक रूप से चल बसतीं हैं क्योंकि पहले से बचावी उपाय ऐसे में किये ही नहीं जा सकते जबकी मर्दों को लिपिड प्रोफाइल जांच के बाद से ही पूरी तवज्जो मिलती है .
अक्सर वह घर में अकेली होती है मर्दों के घर पहुँचने का इंतज़ार करती है तब तक कई मर्तबा बहुत देर हो चुकी होती है .
इसीलिए रूटीन चेक अप्स औरतों के लिए और भी ज्यादा ज़रूरी हैं .औरतों की आर्त्रीज़ बारीक होती हैं उनमें अवरोध आसानी से पकड नहीं आता है .ऐसे में ई सी जी भी नोर्मल और एन्जियोग्राम भी नोर्मल आ सकता है .लक्षणों के प्रगटीकरण पर भी ये केमाफ्लेजिंग हो सकती है .खासकर जब पारिवारिक इतिहास रहा आया हो दिल की बीमारियों का ऐसे में इको -कार्डियोग्राम ही पूरी तस्वीर साफ़ कर पाता है .विस्तित जांच होनी चाहिए दिल के माहिर के पास पहुँचने पर भले लक्षणों के प्रगटीकरण के बाद ई सी जी सामान्य आ रहा हो .
बेदमी(ब्रेथलेस नेस )और थकान खुद में एक लक्षण है .स्ट्रेस कार्डियोग्राम बेहतर ढंग से खुलासा कर सकता है धमनी में आई रुकावट का .
An angiogram ,too ,may not always spot the more diffuse build -up of plaques that often form in a women's coronary arteries.(In fact ,an angio done for smitha Jadhav showed things were normal ,even after heart attack.)
और इसीलिए small -vessel heart disease के कितने ही मामले दस सालों में ही major blocks के रूप में सामने आने लगतें हैं .
इसीलिए 'stress echocardiography या फिर 'myocardail perfusion imaging'(MPI) जिसे न्यूक्लीयर स्केनिंग भी कह दिया जाता है ज्यादा अच्छे नतीजे देतें हैं रोगनिदान के .यहाँ मरीज़ को यदि वह चलने में समर्थ है एक रेडिओ आइसोटोप का इंजेक्शन देने के बाद 'exercise bike या फिर treadmill पर चलाया जाता है .
बकौल प्रोफ़ेसर वी .एस प्रकाश (President of the Cardiology Society of India;s Banglore chapter)MPI जांच ही औरतों के मामले में एक आदर्श आरंभिक जांच होना चाहिए ताकि वक्त रहते दूध का दूध पानी का पानी हो जाए .
तमाम बड़े शहरों में अब यह रोग नैदानिक परिक्षण उपलब्ध है .
'Heart disease is often a disease of ignorance
बे -खबरी ,अनभिग्य बने रहने ,अनजान बने रहने से ताल्लुक रखता है हृद रोग. बचाव ही इसके खिलाफ एक कारगर उपाय है असरकारी टीका है यह कहना है प्रोफ़ेसर गांधी का .
लेकिन जब तक औरत दिल के माहिर तक पहुँच पाती है तब तक उसका दिल खासी नुकसानी उठा चुका होता है .इसलिए अपने स्वास्थ्य के प्रति उन्हें खुद ही उत्तरदाई बनना होगा .अपनी स्वास्थ्य कमान अपने हाथ में रखनी होगी .
गौर तलब है नवजात की धमनियों में भी कोलेस्ट्रोल मौजूद रहता है ,ला -परवाह जीवन शैली ,खानपान इसका ज़माव धमनियों में बढ़ा सकता है .
कबाड़िया भोजन ,जंक फ़ूड से बचपन से ही बचे रहना लाजिमी है .नियमित व्यायाम ,सक्रीय दैनिकी ,और स्वास्थ्यकर खान पान हृद रोगों के जोखिम को कम करता है .
और अब तो रोग निदान के बिना चीड फाड़ वाले तरीके भी आ गएँ हैं जो सालों पहले आपको धमनियों में बढ़ने वाले अवरोध के प्रति खबरदार कर सकतें हैं .
ज़रुरत आपकी खबरदारी की है .अपनी सालाना स्वास्थ्य जांच में तीस साल के बाद लिपिड प्रोफाइल को शामिल कीजिए .
यदि हृद रोगों का पारिवारिक वृत्तांत मौजूद है तब ऐसी जांच बीस साल के बाद से ही नियमित होनी चाहिए यही कहना बूझना परामर्श है माहिरों का .
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