शनिवार, 5 दिसंबर 2009

कहाँ गया कलावती का "ग्रीन चूल्हा "?

कोई बीस बरस पहले गैर -परम्परा गत ऊर्जा मंत्रालय ने "धूम्र -रहित चूल्हा "की अवधारणा प्रस्तुत की थी .कहा गया था यह गाँव की कलावातियों को घरेलू प्रधुशन से निजात दिलाकर उनके सारे दुख -दर्द दूर कर देगा .जलावन लकड़ी ,कोयला और काओ -डंग(उपला ) ही गाँवों में रसोई का प्रधान ईंधन बना रहा है जिसने बांटी हैं दमा और लोवर एंड अपर रिस्पाय्रेत्री ट्रेक्ट इन्फेक्शन की सौगातें ।
विश्व -स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक़ भारत में हर बरस पाँच लाख कलावातियाँ भारतीय चूल्हे की भेंट चढ़ जाती हैं लेकिन इस मुद्दे को गत दो दशकों से ठंडे बसते में डाला हुआ है ।
उम्मीद की जा सकती है नव गठित "नव एवं पुनर -प्रयोज्य ऊर्जा मंत्रालय "इसकी सुध लेगा .कारबन -उत्सर्जन के २०२० तक के लक्ष्यों को पूरा करने के केन्द्र में "धूम्र -रहित "चूल्हे को रखा जाना चाहिए ,तभी कहा समझा जा सकेगा "कांग्रेस का हाथ वास्तव में आम आदमी के साथ है "फिल वक्त तो यह हाथ उसकी जेब में दिखलाई देता है ।
गाँव की रसोई नौनिहालों और महिलाओं के स्वास्थ्य को ही कमोबेश लीलती है ,बेवक्त बीनाई (आंख की रौशनी )ले उड़ता है गाँव का चूल्हा ।
वजह भारतीय चूल्हे से पैदा प्रदूषण का स्तर न्यूनतम सह्या स्तर से ३० गुना ज्यादा होना है .(स्रोत :विश्व -स्वास्थ्य संगठन ).कार्बन -दाई -आक्सा- ईद और मीथेन को कमतर करने का भरोसे मंद ज़रिया बन सकता है "ग्रीन चूल्हा "इसे ना सिर्फ़ स्थानीय स्तर पर तैयार किया जा सकता है ,इसे कायम रखने चालू रखने के लिए ज़रूरी इंतजामात भी स्थानीय स्तर पर किए जा सकतें हैं ।
सूट(अध् जला कार्बन ) और कार्बन -डा -इ -आक -साइड इस दौर में विश्व -व्यापी तापन की एहम वजह बने हुए हैं सर्द -मौसम में शाम के झुर-मुठ में कलावातियाँ घास -फूस हरी टहनियां का स्तेमाल रोटी पकाने के लिए करती देखी जा सकती हैं ।
धान की लम्बी टहनियां भी दाने निकालने के बाद जल्दी से दूसरी फसल लेने के लिए बड़े पैमाने पर जला दी जातीं हैं कई दिनों तक सुलगती है यह आग .राईस हस्क से बाकायदा बिजली बनाई जा सकती है .बिहार के एक कम्युनिकेशन इंजीनीयर ने यह करके दिखाया है .ऐसी एक यूनिट मात्र १० लाख में खड़ी हो जाती है ।
ज़रूरत इस प्रोद्योगिकी को प्रोत्साहित करने की है .हींग लगे ना फिटकरी रंग चोखा ही चोखा ।
फारूख अब्दुल्ला साहिब से अनुरोध है जो नव एवं पुनर -प्रयोज्य ऊर्जा मंत्रालय की कमान संभाले हुए हैं एक बार फ़िर पूरे दम ख़म से बायो -मॉस कोकिंग स्तोव्स को नवजीवन प्रदान कर ग्रामीण महिलाओं के हाथ मजबूत करें .इनके मकानात में हवा की आवा जाही के अनुरूप संशोधन करवाएं .टेक्नोलोजी त्रेंस्फार एंड फंडिंग के लिए विश्व -स्वास्थ्य संगठन की क्लीन डिवेलपमेंट मिकेनिज्म से सहयोग लिया जा सकता है .जहाँ चाह वहाँ राह ।
ग्रीन -चूल्हे के अलावा सौर लाल तें न (सोलर लेंत्रें ),स्थानीय कचरे को ऊर्जा में बदलने की प्रोद्योगिकी को भारतीय गाँवों में विक्सित किया जा सकता है .

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