गुरुवार, 3 दिसंबर 2009

दुनिया से कूच करते वक्त पर्यावरण को नुकसान क्यों ...

पारसी लोग शव को खुले में रख देतें हैं .एक तरफ़ इसे पक्षी जीमते है तो दूसरी तरफ़ पर्यावरण को कोई क्षति नहीं पहुँचती .जीवन भर हम अपना कार्बन फुटप्रिंट छोड़तें चलतें हैं ,चलते चलते इस नुकसानी से बच सकतें हैं .ह्यूमेन एल्केलाइन हाई -द्रोलिसिस को साकार कर रहें हैं "मेथ्युज़ इंटरनेश्नल कोर्पोरेशन. पिट्सबर्ग ,पेन्सिल्वेनिया आधारित यह निगम ताबूत ,भस्म -बक्शे ,इतर शव सम्बन्धी सामान तैयार करता है ।
सेंटपिट्सबर्ग ,फ्लोरिडा में यह निगम जनवरी २०१० से काम करने लगेगा ।
एल्केलाइन हाई -द्रोलिसिस में शव को स्टेन लेस स्टील से बने एक कक्ष में को डुबो दिया जाता है बाकी काम ऊष्मा (हीट),दाब ,सोप और ब्लीच बनाने में प्रयुक्त पोतेसियम-हाई -द्रोक -साइड पूरी कर देता है .तमाम ऊतक इस घोल में विलीन हो जातें हैं (घुल जातें हैं ).दो घंटा बाद अवशेष के रूप में बच जाता है ,अस्थियाँ और एक सिरपी-ब्राउन घोल ,जिसे फ्लश करके बहा दिया जाता है .अस्थियाँ सगे सम्बन्धियों को लौटा दी जातीं हैं ।
इस प्रकार परम्परागत शव दाह के बरक्स इस विधि में (एल्केलाइन हाई -द्रोलिसिस में )कार्बन उत्सर्जन में ९० फीसद कमी की जा सकती है ।
आज आदमी कमोबेश "साईं बोर्ग "बन चुका है जिसमे मशीनी अंग लगे रहतें हैं ,नकली घुटने नकली हिप ,सिल्वर टूथ फीलिंग्स तो अब आम हो ही चलें हैं .सिलिकान इम्प्लान्ट्स का भी चलन है ।
एक स्तेंदर्द क्रेमेशन से वायुमंडल में ४०० किलोग्रेम कार्बन दाई -ऑक्साइड शामिल हो जाता है ,इस ग्रीन हाउस गैस के अलावा दाई -आक्सींस तथा मरकरी वेपर भी शव दाह ग्रह से उत्सर्जित होतें हैं ,कारण बनती है सिल्वर टूथ फिलिंग ।
एल्केलाइन हाई द्रोलिसिस शव को ठिकाने लगाने वाली एक रासायनिक प्रकिर्या है जिसे विज्यानी "बायो -क्रेमेशन "(जैव शव दाह )कह रहें हैं ।
जाते जाते अपना कार्बन फुट प्रिंट कम करने की प्रत्याशा में अब अधिकाधिक लोग इसके लिए तैयार हैं .इस विधि में ऋ -साईं -किल्ड कार्बोर्ड से बनी शव पेटियां (ताबूत )काम में ली जायेंगी .एक तिहाई अमरीकी और अपनी आबादी के आधे से ज्यादा कनाडा वासी इसके लिए तैयार हैं .यह लोग एम्बाल्मिंग (शव संलेपन )के भी ख़िलाफ़ हैं ,जिसमे पर्यावरण -नाशी रसायनों का स्तेमाल शव को सुगन्धित कर संरक्षित करने के लियें किया जाता है .आख़िर में यह तमाम रसायन भी हमारी मिटटी में रिस आतें हैं .मिटटी से (काया से )मोह कैसा ?

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