ऐ फरीद मिट्टी की निंदा क्यों की जाय ,मिट्टी के बराबर तो कुछ भी नहीं। मनुष्य जब जीवित होता है ,यह मिट्टी उसके पाँव तले होती है (अर्थात उसे खड़ा रहने की शक्ति देती है )और मरने पर उसके ऊपर हो जाती है (अर्थात पशु -पक्षियों से मृत शरीर की रक्षा करती है ).
ऐ फरीद ,जहां लोभ हो ,क्या वहां प्यार हो सकता है ?यदि लोभ है तो प्यार निश्चय ही मिथ्या होगा। आखिर वर्षा के दिनों में टूटे छप्पर के नीचे कब तक समय बिताया जा सकता है !(टूटा छप्पर यहां लोभ का प्रतीक है ,उसके नीचे हमेशा निभाना असंभव होता है ).
फरीद कहते हैं ,ऐ मनुष्य ,तुम जंगल -जंगल में ,वनस्पति और नदी -तटों पर घूमते हुए क्या खोज रहे हो ?परमात्मा तो तुम्हारे भीतर हृदय में बसा हुआ है ,तुम जंगलों में भला क्यों फिरते हो (उसे पाना है तो अन्तर्मन में ही पा लो ).
फरीद कहते हैं कि (जवानी में )इन छोटी टांगों से मैंने सब मरुस्थलों -पहाड़ों को नाप डाला, किन्तु आज (बुढ़ापे में )निकट रखी मिट्टी की घटिका सौ कोसों पर रखी दीख पड़ती है (अर्थात बुढ़ापे में कुछ कर सकने का सामर्थ्य नहीं रह गया ).
फरीदा ख़ाक न निंदीऐ खाकू जेडु न कोइ। जीवदिआ पैरा तलै मुइआ उपरि होइ।
फरीदा जा लबु ता नेहु किआ लबु त कूड़ा नेहु। किचरु झति लघाईऐ छपरि तुटै मेहु।
फरीदा जंगलु जंगलु किआ भवहि वणि कंडा मोड़ेहि। वसी रबु हिआलीऐ जंगलु किआ ढूढेहि।
फरीदा इनी निकी जंघीऐ थल डूंगर भविओम्हि। अजु फरीदै कूजड़ा सै कोहां थीओमि।
ऐ फरीद ,जहां लोभ हो ,क्या वहां प्यार हो सकता है ?यदि लोभ है तो प्यार निश्चय ही मिथ्या होगा। आखिर वर्षा के दिनों में टूटे छप्पर के नीचे कब तक समय बिताया जा सकता है !(टूटा छप्पर यहां लोभ का प्रतीक है ,उसके नीचे हमेशा निभाना असंभव होता है ).
फरीद कहते हैं ,ऐ मनुष्य ,तुम जंगल -जंगल में ,वनस्पति और नदी -तटों पर घूमते हुए क्या खोज रहे हो ?परमात्मा तो तुम्हारे भीतर हृदय में बसा हुआ है ,तुम जंगलों में भला क्यों फिरते हो (उसे पाना है तो अन्तर्मन में ही पा लो ).
फरीद कहते हैं कि (जवानी में )इन छोटी टांगों से मैंने सब मरुस्थलों -पहाड़ों को नाप डाला, किन्तु आज (बुढ़ापे में )निकट रखी मिट्टी की घटिका सौ कोसों पर रखी दीख पड़ती है (अर्थात बुढ़ापे में कुछ कर सकने का सामर्थ्य नहीं रह गया ).
फरीदा ख़ाक न निंदीऐ खाकू जेडु न कोइ। जीवदिआ पैरा तलै मुइआ उपरि होइ।
फरीदा जा लबु ता नेहु किआ लबु त कूड़ा नेहु। किचरु झति लघाईऐ छपरि तुटै मेहु।
फरीदा जंगलु जंगलु किआ भवहि वणि कंडा मोड़ेहि। वसी रबु हिआलीऐ जंगलु किआ ढूढेहि।
फरीदा इनी निकी जंघीऐ थल डूंगर भविओम्हि। अजु फरीदै कूजड़ा सै कोहां थीओमि।
1 टिप्पणी:
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (10-09-2016) को "शाब्दिक हिंसा मत करो " (चर्चा अंक-2461) पर भी होगी।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
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