रविवार, 25 सितंबर 2016

बोलत बोलत बढ़े विकारा , बिन बोले क्या करे बिचारा।






इस मन  को कोई खोजो मेरे भाई ,

मन खोजत नाम नौ निधि पाई।

परमात्मा को तो तुमने मन की लहरों के बीच में डुबो के रख दिया है मन के वेग के बीच ,ज़िन्दगी डूबो  के रख दी है आनंद को हमने डुबो के रख दिया है मन की लहरों के बीच में। यहां परमात्मा के खोने से यही भाव है ,धनगुरु नानक देव जी का। व्यक्ति है भी विचार। सारी  ज़िन्दगी विचारों पर खड़ी है।

हिन्दू होना एक विचार है मुस्लिम होना ,ईसाई होना ,शैतान होना एक विचार है दैत्य होना एक विचार हैदेवता होना एक विचार है ।

 किसी मनुष्य को पढ़ना हो उसकी हकीकत जान नी  हो तो उसके विचारों को जानिये।

उसके तन की पोशाक देखके उसकी असलियत का पता नहीं चल सकता।

बोलत ही पहचानिये  साध ,असाध, कुठात ,

अन्तर की करनी  सभै  निकसै मुख की बात।

बोलत बोलत बढ़े  विकारा ,

बिन बोले क्या करे बिचारा।

बिचारा -बे -चारा ,दी पुअर फेलो।





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