बुधवार, 21 सितंबर 2016

सगल स्रिष्टि का राजा दुखिया , हर का नाम जपत होय सुखिया।

सगल स्रिष्टि का राजा दुखिया ,

हर का नाम जपत होय सुखिया।

राजा सगली  स्रिष्टि  का ,हरी नाम मन भिन्ना।

कहो कबीर निर्धन  है सोइ  ,

जाके हृदय  नाम न होइ।

कहे कबीर गूंगे गुड़ खाया ,

पूछे तो क्या कहिये।

तुम घर लाख कोटि असु (अश्व ),हसती

हम घर एक मुरारी।

तिन्हें (तिनहाँ ) मुख डरावने ,

जिन्हें (जिनहां )

जिन्हें विसारिया नाव ,

इत्ते दुःख घणेरियाँ ,

आगे  ठौर न ठांव।

             ---------बाबा फरीद।

जपुजी साहब की इस पौढ़ी का अर्थ है जिस किसी ने भी परमात्मा की थाह पाने की कोशिश की वह उसी में लीन  हो गया पर उसका अंत न पा सका , उस गुणगान करने बखान करने वाले की  हस्ती ही  मिट गई ,वैसे ही जैसे सागर में विलीन होने के बाद नदियों का जल सागर ही हो जाता है।

भले ही कोई इत्ता बड़ा सम्राट हो जितना समुन्द्रों का सारा जल है और उसके पास इतनी सम्पदा हो कि सोने -चाँदी ,माणिक मोती के पहाड़ खड़े हो जाए परंतु उसकी हस्ती उस मनुष्य से कमतर ही है जो हस्ती में भले कीड़ी के समान है लेकिन जिसके हृदय में सदैव ही प्रभु की याद रहती है प्रभु जिसे विसरता नहीं है।

https://www.youtube.com/watch?v=QvFuh19Hpqc

Japji Sahib Katha Pauri 22 - Giani Sant Singh Ji Maskeen

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