गुरुवार, 22 सितंबर 2016

आसा विच अथ दुःख घना , मनमुख चित लाया , गुरमुख भये निराश , सुख फल पाया।

आसा विच अथ  दुःख घना ,

मनमुख चित लाया ,
गुरमुख भये निराश ,

सुख फल  पाया।

रे मन ऐसो  कर सन्यासा ,

बन से सदन ,सभ समझो ,

मन ही माहिं, उदासा।

तू संसार से निराश हो ,तभी तू निरंकार की खोज करेगा।

लोग कहें कबीर बौराना ,

कबीर का मर्म राम ही जाना।

साधू के संग नहीं किछु  घाल,

दर्शन भेंटत  होत  निहाल।

जो इस संसार से ,इस जीवन से निराश नहीं हुआ उदास नहीं हुआ वह परम जीवन  की  तलाश नहीं करेगा। जो निराश हो जाता है वह घर को फिर उजाड़ जंगल समझने लगता है। अपना घर ही सब कुछ है तो परमात्मा कुछ नहीं है।

जितनी अक्ल छोटी होती है उतना ही संसार बड़ा हो जाता है। पहला मुगल सम्राट बाबर कहता है क्यों छोड़े संसार ,इतना रंगीन है संसार क्यों छोड़े इसे।

आखिरी मुग़ल सम्राट बहादुर ज़फ़र  इसके ठीक विपरीत फरमाते हैं ये दुनिया बड़ी उजाड़ है यहां  मेरा जी नहीं लगता ,आज होगा कल होगा इसी इंतज़ार में मैंने सारी उम्र गंवाँ  दी। आरजुएं बढ़ती गईं ,पूरी न हुईं। उम्र मेरे हाथ से निकल गई। 

लगता नहीं है दिल मेरा उजड़े दयार में ,

किसकी बनी है आल में न पायेदार में।

उम्र ए दराज मांगकर लाये थे चार दिन ,

दो आरजू में काट गए ,दो इंतज़ार में।

इन हसरतों से कह दो ,कहीं और जा बसें ,

इतनी जगह कहाँ है ,दिलेदागदार में।

जफ़र साहब हसरतों (अरमान और तड़प )से कहतें हैं मुझे छोड़ो कहीं और ठिकाना ढूँढो।

हिन्दू एक रास्ता है ,मुस्लिम एक रास्ता है ईसाई एक रास्ता है ,बौद्ध ,जैनी एक रास्ता है एक विचार है। सारी  नदियाँ अपने मरकज़ (लक्ष्य सागर )की ओर ही जा रहीं हैं ,सागर ही हो जाती हैं फिर सतलुज सतलुज नहीं रह जाती है जमुना ,जमुना तथा गंगा गंगा ,सबका जल सागर ही हो जाता है। कोई यह नहीं कह सकता ये व्यास का जल है ये रावी का है ये सरयू का है।

गूंगा हुआ बावरा बहरा हुआ कान।

पाँव से पिंगल  भआ ,सतगुर मारा बान ।

https://www.youtube.com/watch?v=jtu8k97U6AE

The Way to God...

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Giani Sant Singh Ji Maskeen tells the story of Nand lal's escape and his meeting with Shri Guru Govind Singh Ji Maharaj.





  

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