मंगलवार, 20 सितंबर 2016

उस्तत निंदा दोऊ त्यागे ,खोजे पद निरवाना , जन नानक उह खेल कठिन है ,किन्हु गुरमुख जाना।

 उस्तत  निंदा दोऊ  त्यागे ,खोजे पद निरवाना ,

जन नानक उह खेल   कठिन है ,किन्हु गुरमुख जाना।


                                        -------------------- गुरुतेगबहादुर।

निंदो निंदो मोको , लोग निंदो ,

निंदा जन को खरी प्यारी ,

निंदा बाप, निंदा महतारी।

                 -----------संत  कबीर ।

कबीर कहते हैं निंदके को मैं   माँ बाप का दर्ज़ा देता हूँ।

संत दयाराम कहते हैं मैं निंदक को माँ बाप से भी बड़ा दर्ज़ा देता हूँ उन्होंने मेरा मल हाथ से धौया, निंदक तो रसना से धौता   है। 

मानु मातु पिता हुते ,

निंदक को अति नेऊ ,

वो धौए मल मूत्र कर ,

ये रसना लख लेऊ।

                   ------------  संत दया राम

जपु जी साहब की इस अठारहवीं पौड़ी में जब गुरुनानक देव मूर्खों ,चोर,बदमाशों ,गलकटियनों ,पापी ,जोर जबरजस्ती अपना हुकुम चलाने वालों की ,निंदा करने वालों गिनती में न आने वाली संख्या का जिक्र  करते हैं तब अपने आपको भी इसी पंक्ति में खड़ा कर लेते हैं ताकि इन लोगों के अंदर बेहद की हीन भावना घर न कर सके और इन्हें भी आगे बढ़ने का हौसला रहे। गुरु इनका यहां सहारा बन जाते हैं इस पौड़ी में। पढ़िए ,सुनिये ,गुनिये  आप भी  -

विशेष :असली कूड़िआर निंदक ही है वह नहीं जो मलमूत्र साफ़ कर रहा है कूड़ा बीन कर शहर की गन्दगी दूर कर रहा है।

असंख मूरख अंध घोर ,असंख चोर हरामखोर।

असंख अमर करि जाहि जोर ,असंख गलवढ हतिहा कमाहि।

असंख पापी पापु करि जाहि। असंख कूड़िआर कूड़े फिराहि।

असंख मलेछ मलु भाखि खाहि। असंख निंदक सिरि करहि भारु।

नानकु नीचु कहै वीचारु। वारिआ न जावा एक वार।

जो तुधु भावै साई भली कर। तू सदा सलामति निरंकार।

जपुजी साहब की सत्रहवीं और अठारहवीं पौढ़ी में दो विपरीत धारों का ज़िक्र है :

स्वच्छ नदी भी है तो गन्दा नाला भी है ,ये दो विपरीत धाराएं सदियों से चली आई हैं ,दोनों धाराएं सदा मौजूद रहीं आईं हैं कोई आज की बात नहीं है। विचारित अठारहवीं पौढ़ी में भेड़ों बदमाशों ,पापियों ,ज़बरिया हुकुम चलाने वाले जालिमों और निंदकों का ज़िक्र है।

मलेच्छों जैसा मैला खाना खाने वालों की भी दुनिया में कमी नहीं है।

https://www.youtube.com/watch?v=1vAdJoEA0O4

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