बुधवार, 10 अक्तूबर 2018

किसका नाम कबीर प्रवचन से (PART V )

गुरु शिष्य के बारे में कबीर एक बात और कहते हैं :

पहले दाता  किस से भये ?

नाम -दाता गुरु शिष्य से ही गुरु कहलाता है ,दान लेने का अनुग्रह करने वाला पहले है उसी से गुरु दाता कहलाता है। लेकिन नाम दान लेने के बाद शिष्य ने क्या दिया उस संत को ,उस गुरु को। नारियल और फल फूल ,चंद रूपये ? फिर तो कबीर की बात कहनी पड़ेगी। दान यहां खरीदी बिक्री नहीं हो रही ,क्रय -विक्रय नहीं है प्रेम की बात है :

बूड़ा वंश कबीर का उपजा पूत कमाल। 

राम नाम को बेचकर घर ले आया माल। 

दान  देने वाले से दान लेने वाला बड़ा होता है उसने आपका दान क़ुबूल किया तभी आप दानी कहलाये। यहां लेन  देन  क्रय विक्रय नहीं है प्रेम की बात है। 

 मंदिर तोड़ो मस्जिद तोड़ो इसमें न कोई मुज़ाका है ,

प्यार भरा दिल मत तोड़ रे बन्दे, ये घर ख़ास खुदा का है। 

वह ईंट पथ्थर से बनाये मंदिर मस्जिद में नहीं रहता :

पूरब दिशा हरि को  वासा  ,पश्चिम अल्लाह मुकामा है ,

दिल में खोज ,दिल  ही में  खोजो , यहीं करीमा रामा   है। 

यही दिल परमात्मा की आरक्षित कांस्टीटूएंसी है। 

और यही दिल हम हमेशा तोड़ते हैं उस दिल को जहां हमारे मालिक बसते  हैं उस दिल को हम ठेस पहुंचाते हैं।जबकि वही दिल प्रेम का संसार है।कबीर कहते हैं : 

पौथि  पढ़ि पढ़ि जग मुआ ,पंडित भया न कोय ,

ढ़ाई आखर प्रेम को पढ़ै सो पंडित होय.

प्रेम गोंद का जोड़ने का काम करता है घृणा तोड़ने का। साहब ने दुनिया को प्रेम का पाठ पढ़ाया। 

दसवीं ज्योत ,दसवें गुरुनानक देव शरीर गुरुगोविंद सिंह भी कहते हैं :

साँच  कहू सुन लेओ सभै ,

जिन प्रेम कियो  तिन ही प्रभ पायो।   



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