मंगलवार, 4 अक्टूबर 2016

ये शरीर एक दुर्ग है जो शक्ति ,चित्ती शक्ति इसे चला रहा है ,जो इसमें रहती है वह (आत्मा )दुर्गा है। जो इस इस तथ्य को तत्त्वतया ,इस तत्व को जानलेता है उसकी दुर्गति का शमन हो जाता है।


    सबसे पहले इस सृष्टि की उत्त्पत्ति हुई। इस सृष्टि के स्थूल रूप से प्रकट होने में जिस शक्ति ने कार्य किया उसे हम कहते हैं क्रिया शक्ति। इस सृष्टि के बनने को जो चला रहा है उसे हम कहते हैं चित्ती शक्ति। इस पूरी सृष्टि में जो कुछ भी दृश्य है जिसे हम देख रहे हैं इसी शक्ति को हम कहते हैं - चित्ती शक्ति इसी चित्ती शक्ति को हमारे ऋषि दैवी कहते हैं आसान जुबान में। जिससे ये ज्ञान उत्त्पन्न हुआ जिससे सब क्रियाएं उत्त्पन्न हुईं उसी क्रिया शक्ति को परमशक्ति कहा गया। उसी परमशक्ति को चैतन्य कहा। यह सृष्टि जड़ नहीं है। चैतन्य है। जो जड़ में है वही चैतन्य है।
    भले वह मनुष्य का बीज हो (जीवन इकाइयां पुरुष का वीर्य स्त्री का रज हो ,बिंद हो या वृक्ष का उसे यह पता है कि क्या बनना है। मनुष्यों के स्वभाव इसी शक्ति से उत्त्पन्न हुए हैं।
    Illuminating series of talks by revered master Anandmurti Gurumaa on the auspicious occasion of Navratri celebrating the embodiment of Shakti
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    Virendra Sharma ये शरीर एक दुर्ग है जो शक्ति ,चित्ती शक्ति इसे चला रहा है ,जो इसमें रहती है वह (आत्मा )दुर्गा है। जो इस इस तथ्य को तत्त्वतया ,इस तत्व को जानलेता है उसकी दुर्गति का शमन हो जाता है।
    Virendra Sharma

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