शनिवार, 29 अक्तूबर 2016

विनय न माने जलधि जब ,गए तीन दिन बीत , बोले राम सकोप तब ,भय बिन होत न प्रीत।

संजीव जी जो लोग यह कह रहें हैं ,पाकिस्तान खुद आतंकवाद से ग्रस्त है उनसे हमारा कहना है बारूद से खेलते खेलते बारूद कभी हाथ में भी फट जाता है। भारत भी यही चाहता है पाक में ज्यादा से ज्यादा अखबार डॉन की सदाशयता वाली जुबान में बोलें ,लेकिन ये सोच भी कोई आत्मभाव से पैदा नहीं हुई है। बेशक भारत एक जाति वादी राष्ट्र नहीं है मानवतावादी राष्ट्र है। हम विश्वबिरादरी की बात करते आये हैं लेकिन पाकिस्तान ने हमें उस सीमा तक पहुंचा दिया है जहां गाली देने के अलावा कोई चारा नहीं रहा है जबकि ये आखिरी विकल्प होना चाहिए था। यदि पाकिस्तान में सहोदर आत्म भाव होता तो मुल्क के टुकड़े ही क्यों होते।

डर इधर भी यही रहता है कहीं हम इस प्रतिक्रिया में फंसकर उनके जैसे न हो जाएं। हमारी मानवता वादी दृष्टि कहीं बिला न जाए। लेकिन परम्परा से भारत शाक्त रहा है शक्ति का उपासक रहा है। तुलसीदास ने यह बात मध्यकाल में कहीं थी -

विनय न माने जलधि जब ,गए तीन दिन बीत ,

बोले राम सकोप  तब ,भय बिन  होत न प्रीत।

एक प्रतिक्रिया :


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October 27 at 12:44am

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