बुधवार, 9 अक्टूबर 2013

आरती प्रीतम प्यारी की के बनवारी नथवारी की।

निर्मल मन जन, सो मोहि पावा ,

मोहि कपट छल ,छिद्र न भावा। (रामचरित मानस )

ऐसा कभी नहीं हो सकता ,हम सरे आम नियमों की अवहेलना करें 

,प्राकृतिक नियमों को ताक  पे रखके खुलकर स्वेराचार (मनमानी 

करें ),प्राकृतिक संसाधनों का निर्मम दोहन करें ,पोषण और शोषण रंच 

मात्र भी न करें और "वहां "पहुँच जाए  ,अपना कार्बन फुटप्रिंट 

बढ़ाते - बढ़ाते। 


वही ईश्वर को प्राप्त होगा एकांत में भी जो कभी भ्रष्ट नहीं होता ,जिसने अपना मनो राज्य जीत लिया है। जिसके मन में कोई 

व्यतिकरण छल कपट नहीं है जो वीत राग हो गया जिसकी आसक्ति 

समाप्त हो गई है। जिनके स्वप्न में भी राग द्वेष ठहरता नहीं है 

,बाई पास हो जाता है ,जो एकांत में भी अपने जीवन मूल्य और सम्यक 

ज्ञान ,अपनी नैतिकता से विरक्त नहीं होता है। अपना शील 

कायम रखता है। ऐसे निश्छल प्राणियों को ही प्रभु की प्राप्ति होती है। वे 

ही हमारा आदर्श हैं। उन्हीं का यशोगान होता है उन्हीं  की 

गाथाएँ गाई  जातीं हैं। हर युग में ऐसे प्राणि वन्द्य हैं। क्योंकि जितींद्रिय 

(जितेन्द्रीय )होना उस मार्ग का पहला सौपान है जोईश्वर  की 

तरफ जाता है। 


प्रकृति पर ऐसे लोगों का स्वत :ही शासन हो जाता है क्योंकि प्रकृति 

(Material Energy ), वे तो प्रकृति के पार निकल आये हैं. 

मायाजीत सो जगत जीत। 

जिनके मन में अहंकार है ,वासनाओं का रावण ठांठे मार  रहा है। जो 

माया रावण की गिरिफ्त में हैं। भोगवादी चार्वाक दर्शन जिनका आदर्श है 

,जो प्रकृति को   भोग्या मान रहे हैं। वो तिहाड़ पहुंचेगें वहां नहीं :


जन्नत तलब थे लोग धरम(हरम ) देखते रहे ,

दीवाने सरे राह से गुजर के निकल गए। 

वो वहां कभी नहीं पहुंचे रास्ते में ही अटक गए। 

संत जनों के श्रीमुख से कृपालुजी महाराज का एक 

परिचय :

और इस "परिचय" से पहले ये बोनस पोस्ट भी ज़रूर 

ज़रूर पढ़िए :सभी भजन भी सुनिये आनंद वर्षं 


होगा। 


क्या भजन -कीर्तन हमें ईश्वर की  ओर जाने वाले 

रास्ते 

पे आगे ले जाता है ?

रूप और नाम की महिमा लिए होते हैं भजन -कीर्तन। भगवान् के गुण रूप लीला का बखान करतें हैं। जब हम इन्हें गाते हैं हमारा 

न भगवान् के नाम रूप में खोने लगता है। कोई भी आराध्य हो आपका -

"चाहे कृष्ण कहो या राम ,

जग में  सुन्दर हैं ये नाम ,

,बोलो राम 

राम राम ,

बोलो श्याम श्याम श्याम। 

सीता राम राम राम ,

राधे श्याम श्याम श्याम ."

की धुन कान में पड़ते ही एक छवि उभरती है मन में 

क्योंकि ईशवर हर दम तो हमारे हृदय में निवास करता है। 

एक से एक सुन्दर चित्र देखे हैं हमने गौरांगी राधा और श्यामल श्याम के,नीलवर्ण राम और गौरांगी माता सीता के। योगमाया हैं राधा 

और सीता कृष्ण और राम की। मनन चिंतन ध्यान में मदद करते हैं भजन -कीर्तन। 

  ईश्वर के ऐश्वर्य ,रूप -लावण्य ,और नाम ,गुणों का गायन  भक्ति का एक मह्त्वपूर्ण प्रकार है ,अंग है।

  ईश्वर के महान सौंदर्य का गायन सुनना न सिर्फ विशेष आनंद का स्रोत है भक्ति का एक हिस्सा भी है जिसे कहा जाता है :श्रवण। जब 

हम 

संगीत की कर्ण प्रिय बंदिश में गाये गए नाम रूप ऐश्वर्य का मन में चिंतन करते हैं तब यह "मनन" कहलाता है।  

श्रवण ,कीर्तन (गायन )और मनन (स्मरण )भक्ति का सहज सुलभ साधन है। त्रिधा (त्रि -आयामी )भक्ति है यह।तीनों को मिला देने से 

संकीर्तन बनता है। 

इसीलिए इस  सहज आध्यात्मिक मार्ग का ,ईशवर की ओर  आसानी से ले जाने वाले मार्ग का वैदिक साहित्य में पर्याप्त  बखान किया 

गया है।

कलेर्दोष निधेराजन्नस्तिह्योको महान गुण :

कीर्तनाद एव कृष्णस्य मुक्त्संग : परं व्रजेत। (श्रीमद भागवतम )

" कलियुग दोषों का समुन्दर है लेकिन इसमें एक बड़ी खासियत भी है।कृष्ण का संकीर्तन करने से व्यक्ति माया के बंधन (जेल )से छूट 

जाता है। तथा दिव्य लोक को प्राप्त होता है।"

अविकारी वा विकारी वा सर्व दोषैक भाजन :

परमेश परं याति रामनामाभि शंकया (अध्यात्म रामायण )

चाहे  (व्यक्ति ) कोई इच्छा कामनाएं लिए हुए हो या वासनाओं ऐषनाओं  से मुक्त हो चुका हो  ,दोषरहित हो या दोषों की खान यदि वह 

भगवान् (श्री राम) का नाम लेता है,तब वह भगवान् को प्राप्त हो जाता है। 

पापानलस्व दीप्तस्य मा कुवेतु भयं नरा :

गोविन्द नाम मेघौघेर्नष्यते नीर बिन्दुभि :(गरुण पुराण )

मनुष्यों को  पूर्व कर्मों की सुलगती  आग से नहीं डरना चाहिए भगवान् के नाम के पावन घन  बारिश बनके इस आग को आसानी से बुझा 

देंगे। ।  

हरेर्नाम हरेर्नाम हरेर्नामैव केवलम ,

कलौ नास्त्येव नास्त्येव नास्त्येव गतिरन्यथा। 

इस बात की तीन बार उद्घोषणा कर  दो :भगवान् का नाम ही मेरा जीवन  है। कलियुग में मुक्ति का और कोई साधन नहीं है ,कोई उपाय 

नहीं है कोई उपाय  नहीं है।    

एहिं कलिकाल न साधन दूजा ,जोग जज्ञ ,जप  तप व्रत पूजा ,,

रामहि सुमिरिअ गाइअ रामहि ,संतत सुनिअ राम गुन ग्रामहि। 

इस कलि काल  में अध्यात्म का और कोई उपाय कामयाब नहीं है ,न तो अष्टांग योग ही ,और न ही अग्नि को समर्पित  यज्ञ ,न तो माला 

का मनका फेरना ,न तप और न ही तो व्रत ही। राम के गुण गाओ ,राम का नाम ही संतों से सुनों राम का ही ध्यान करो। 

उधौ मोहे संत सदा अति प्यारे ,

मैं संतान के पाछै जाऊँ ,संत न मोते  न्यारे। 

सत की नाव खेवटिया सत गुरु ,

भाव सागर ते तारे। 

  1. Radha Krishna - Aarti Pritam Pyari Ki - ANAND

    To follow everyday and sing the spirit.
  2. Aarti Preetam Pyari Ki | Brij Ras | Jagad Guru Kripalu Ji Maharaj | Anuradha Paudwal

    [HD] [HQ] One of the best Rad

    




http://www.youtube.com/watch?v=kPtjtOvHa80

http://www.youtube.com/watch?v=kPtjtOvHa80

10 टिप्‍पणियां:

रविकर ने कहा…

सुन्दर प्रस्तुति-
आभार आदरणीय वीरू भाई

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया ने कहा…

सुंदर ज्ञान देती प्रस्तुति...!

RECENT POST : अपनी राम कहानी में.

सदा ने कहा…

बेहतरीन प्रस्‍तुति

दिगम्बर नासवा ने कहा…

अनुपम ज्ञान गंगा का प्रसाद मिलता है आपके ब्लॉग पर ...

राजीव कुमार झा ने कहा…

बहुत सुंदर ज्ञान देती प्रस्तुति .

राजीव कुमार झा ने कहा…

इस पोस्ट की चर्चा, बृहस्पतिवार, दिनांक :-10/10/2013 को "हिंदी ब्लॉगर्स चौपाल {चर्चामंच}" चर्चा अंक -21 पर.
आप भी पधारें, सादर ....
नवरात्रि की शुभकामनाएँ.

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

कपट और छल किसी को भी तो अच्छा नहीं लगेगा।

Anita ने कहा…

मनुष्यों को पूर्व कर्मों की सुलगती आग से नहीं डरना चाहिए भगवान् के नाम के पावन घन बारिश बनके इस आग को आसानी से बुझा

देंगे। ।

बहुत सुंदर संदेश..

Unknown ने कहा…

बढ़िया आलेख |

मेरी नई रचना :- मेरी चाहत

Satish Saxena ने कहा…

वीरू भाई की जय हो ..