शनिवार, 12 अक्टूबर 2013

मूरख हृदय न चेत ,यदयपि गुरु विरंची सम , फूलैं फलें न बैंत ,यद्यपि सुधा बरसहिं जलधि

मूरख हृदय न चेत ,यदयपि गुरु विरंची सम (यदि गुरु मिलै विरंची सम )


फूलैं फलें  न बैंत ,यद्यपि सुधा बरसहिं जलधि। (जलद )


तुलसीदास ज़ोरदार शब्दों में कहतें हैं :


चाहे अमृत की वर्षा हो लेकिन बैंत  के वृक्ष में फल और फूल नहीं लगते। ऐसे ही जो (प्रवचन ,संत वाणी ,भगवान् की ओर  ले जाने वाले रास्ते की बातें )सुनना ही नहीं चाहते उन पर  संत या कोई और भी  फिर क्या कृपा करेगा। भगवान् के बहके हुए पुत्रों को कपूतों को कोई भगवान् की बातें क्या बतलायेगा। और यदि वह सुन भी लेगा तो हंस देगा। कहेगा ये इंसान के दिमाग की उपज है जिनकी खोपड़ी खराब हो चुकी है जो जंगल में आधे बावले बने घूम रहे हैं उन्होंने भगवान् का हौव्वा खडा किया है ताकि इनके खाने पीने  का बिना हाथ पैर चलाये इंतजाम हो जाए। 

An adamant man's heart will not change even if he gets Bahma as Guru .Even if heavenly nectar rains a bamboo will not produce flower or fruits .What grace any saint can bestow on any person who does not want to listen ,and even if he does listen he would just laugh at it .

(KABIR )

सुख के माथे सिल परो ,नाम हृदय से जाये  ,

बलिहारी उस दुःख की ,कि पल पल नाम रटाये। 

EVEN A DONKEY KNOWS THIS GENERAL RULE -


"CAST STONES AT THAT HAPPINESS THAT MAKES ONE FORGET GOD AND ALL GLORIES TO THAT 

SORROW THAT MAKES REMEMBER GOD EVERY MOMENT .

ऐसे सुख साधन भोगना को गोली मारो ,भाड़ में जाए ऐसा भौतिक न टिकने वाला सुख जो भागवत नाम का विस्मरण करा दे ,सिल बट्टे से सर फोड़ दो ऐसे सुख का इससे तो दुःख भला जो भगवान  का नाम तो मुख से निकलवा देता है। 

सुख में सुमिरन न किया ,दुःख में करता याद रे ,

कहे कबीर उस दास की कौन सुने फ़रियाद रे। 

जिस पर माया चप्पल लगाती  है वह भगवान् से विमुख रहता है।  पीठ किये रहता है भगवान् की तरफ।  जिस पर भगवान् कृपा करते हैं उसका सांसारिक सुख हर लेते हैं।

माया जो भगवान् की दासी है,भगवान् की निकृष्ट शक्ति "अपरा "है , हमारी मित्रा है जो भगवान् को भूल जाते हैं उन्हें भगवान् की याद दिलाती है माया । चप्पल माया के परिवार वाले (हमारे देह के सम्बन्धी )लगाते हैं। 


तुम ही मान लो हार ……. एक रूपक है


 जिसमें झगड़ा भगवान् और भगवान् की दासी के लड़के 

के बीच 

है। भगवान् की दासी का लड़का हमारा मन है और भगवान् की दासी 

भगवान् की अपरा शक्ति 

(निकृष्ट शक्ति )माया है। लेकिन झगड़ा निपटता नहीं है दासी का लड़का 

सोचने के लिए कुछ और 

वक्त माँगता है। कृपया इस प्रवचन को ज़रूर सुनें :आनंद मिलेगा। 


ज्ञान चक्षु खुलेंगे। 



  1. Krishna, Please Give In - Kripaluji Maharaj [Subtitled]

    [Hight Quality] An incredible 1987 lecture by Jagadguru Shri Kripaluji Maharaj, titled "Tum Hi Maan Lo Haar". A must-watch!

7 टिप्‍पणियां:

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

सच कहा है

अरुन अनन्त ने कहा…

नमस्कार आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार (13-10-2013) के चर्चामंच - 1397 पर लिंक की गई है कृपया पधारें. सूचनार्थ

बेनामी ने कहा…

बहुत सुन्दर प्रस्तुति
और हमारी तरफ से दशहरा की हार्दिक शुभकामनायें

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kavita verma ने कहा…

gyanvardhak aalekh ..

nayee dunia ने कहा…

जिस पर माया चप्पल लगाती है वह भगवान् से विमुख रहता है। पीठ किये रहता है भगवान् की तरफ। जिस पर भगवान् कृपा करते हैं उसका सांसारिक सुख हर लेते हैं।....सच कहा

वसुन्धरा पाण्डेय ने कहा…

बढियां.. बहुत सुन्दर आलेख ! प्रणाम

Save Earth Save Soil ने कहा…

🙏🌱🌺