गुरुवार, 8 अगस्त 2013

अधिक बोलकर एनर्जी गंवाने के बजाए अन्तर्मुखता के रस के अनुभवी बनो।

08 August 2013 Murli

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    मुरली सार:- “मीठे बच्चे – याद की यात्रा में टाइम देते रहो तो विकर्म विनाश होते जायेंगे, सबसे ममत्व मिट जायेगा, बाप के गले का हार बन जायेंगे”
    प्रश्न:- गॉड फादर द्वारा तुम बच्चे किन दो शब्दों की पढ़ाई पढ़ते हो? उन दो शब्दों में कौन-सा राज़ समाया हुआ है?
    उत्तर:- गॉड फादर तुम्हें इतना ही पढ़ाता कि – हे आत्मायें, `शरीर का भान छोड़ो’ और `मुझे याद करो’ – यह दो शब्दों की पढ़ाई इसीलिए पढ़ाई जाती है क्योंकि अब तुम्हें इस पुरानी दुनिया में पुरानी खाल नहीं लेनी है। तुम्हें नई दुनिया में जाना है। मैं तुम्हें साथ ले चलने आया हूँ इसलिए देह सहित सब कुछ भूलते जाओ।
    गीत:- तुम्हीं हो माता, पिता तुम्हीं हो……..
    धारणा के लिए मुख्य सार :-
    1) सपूत आज्ञाकारी बन विजय माला में पिरोना है। बाप को अपना कखपन दे, बलिहार हो, सबसे ममत्व मिटा देना है।
    2) अंतकाल में एक बाप ही याद रहे उसके लिए और सबसे बुद्धियोग तोड़ निरन्तर बाप की याद में रहने का पुरूषार्थ करना है।
    वरदान:- अविनाशी अतीन्द्रिय सुख में रह सबको सुख देने और सुख लेने वाले मास्टर सुखदाता भव
    अतीन्द्रिय सुख अर्थात् आत्मिक सुख अविनाशी है। इन्द्रियां खुद ही विनाशी हैं तो उनसे प्राप्त सुख भी विनाशी होगा इसलिए सदा अतीन्द्रिय सुख में रहो तो दु:ख का नाम-निशान आ नहीं सकता। अगर दूसरा कोई आपको दु:ख देता है तो आप नहीं लो। आपका स्लोगन है – सुख दो, सुख लो। न दु:ख दो, न दु:ख लो। कोई दु:ख दे तो उसे परिवर्तन कर आप सुख दे दो, उसको भी सुखी बना दो तब कहेंगे मास्टर सुखदाता।
    स्लोगन:- अधिक बोलकर एनर्जी गंवाने के बजाए अन्तर्मुखता के रस के अनुभवी बनो।

4 टिप्‍पणियां:

Anupama Tripathi ने कहा…

सुंदर सार्थक बात ....!!
आभार ।

ताऊ रामपुरिया ने कहा…

अंतर्मुखता में उतरने की कला आजाये तो फ़िर बात ही कुछ और होगी, बहुत आभार.

रामराम.

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया ने कहा…

सार्थक विचारणीय प्रस्तुति ,,,

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प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

मौन में मन बोलता है, अधिक मधुर स्वरों में।