रविवार, 11 अगस्त 2013

Hindi Murli 11-08-13 प्रात:मुरली ओम् शान्ति “अव्यक्त-बापदादा”

11th August 2013 Murli

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    Hindi Murli
    11-08-13 प्रात:मुरली ओम् शान्ति “अव्यक्त-बापदादा” रिवाइज: 26-04-77 मधुबन
    स्वतन्त्रता ब्राह्मणों का जन्म-सिद्ध अधिकार है
    वरदान:- हर एक को प्यार और शक्ति की पालना देने वाले प्यार के भण्डार से भरपूर भव
    जो बच्चे जितना सभी को बाप का प्यार बांटते हैं उतना और प्यार का भण्डार भरपूर होता जाता है। जैसे हर समय प्यार की बरसात हो रही है, ऐसे अनुभव होता है। एक कदम में प्यार दो और बार-बार प्यार लो। इस समय सबको प्यार और शक्ति चाहिए, तो किसको बाप द्वारा प्यार दिलाओ, किसको शक्ति …जिससे उनका उमंग-उत्साह सदा बना रहे – यही विशेष आत्माओं की विशेष सेवा है।
    स्लोगन:- जो मायावी चतुराई से परे रहते हैं वही बाप को अति प्रिय हैं।

    दान ,अनुदान और खानदानी दान 

    दान की मुत्तालिक संत तुलसीदास और अब्दुर्रहीम खानखाना के बीच हुआ संवाद उद्धृत करने योग्य है। खानखाना के दरबार से कोई भी याचक खाली हाथ नहीं जाता था। उनकी महिमा के चर्चे आम थे क्योंकि  वह निरभिमान दानी थे। 

    तुलसीदास ने चमत्कृत होते हुए उनसे पूछा :

    कहाँ  से सीखी नवाब जू ,ऐसी देनी देन ,

    ज्यों ज्यों कर ऊपर करौ ,त्यों त्यों नीचे नैन। 

    यानी ज्यों ज्यों दिए गये दान की राशि बढ़ती  गई उसी अनुपात में उनकी विनम्रता भी  बढ़ती  ही गई , मानों दे नहीं ,ले रहें हैं , याचक से। 

    खानखाना :

    देन हार कोई और है ,देत रहत दिन रैन ,

    लोग भरम मोपे करैं ,ताते नीचे नैन। 

    गीता में कहा गया है दान के बिना आसक्ति नहीं जाती है। रोजा भी तभी कबूल होता है जब जकात (उसमें से गरीब के निमित्त अंशदान ,हिस्सा )निकाल दिया जाता है।गरीब को खिलाने के बाद ही रोजा तोड़ा जाता है। 

    यूं बड़े बड़े दानी विश्वपटल पर आज भी हैं जिन्होनें अपनी कमाई का बहुलांश  दान कर दिया दीन  दुखियों की सेवा में। लेकिन नाम और मान वहां भी बना रहा है। बिल गेट्स फ़ाउनडेशन इसकी एक मिसाल भर है उनसे भी बड़े दानी आज मौजूद हैं। लेकिन नाम मान से ऊपर कौन उठ सका है। 

    छोटे पैमाने पर उतरें तो पायेंगें मंदिर को एक सीलिंग फैन ,छत का पंखा देने वाला प्राणी अपनी तीन पुश्तों के नाम पंखे पे लिखवा देता है यह नहीं सोचता जब पंखा घूमेगा तीन पीढियां भी उसके साथ एक साथ घूमेंगी। 

    अनुदान के तो कहने ही क्या। सशर्त दान को अनुदान कहने का चलन हैं। यह अक्सर अमीर देशों द्वारा गरीब देशों को दिया जाता है।लेकिन दाता देश की  कुछ शर्तों से जुड़ा  रहता है मसलन कभी   कृषि क्षेत्र को मिलने वाली राज्य सहायता ही निशाने पे ले ली जाती है।कभी एक कृषि पैकेज को ही खरीदना पड़ता है चाहे उसमें सत्यानाशी के बीज ही हों (केवल एक फसल देने वाले टर्मिनेटर सीड्स ). 

    जबकि गुप्त दान ही श्रेष्ठ दान बतलाया गया है। एक हाथ जो दे दूसरे को भी उसकी खबर न हो। 

    दधीची ऋषि ने तो अपनी अस्थियाँ ही दान कर दीं  थीं। कर्ण ने ब्राह्मण याचक वेश में  आये मायावी कृष्ण को न सिर्फ युद्ध क्षेत्र में अपना सोने का दांत  ही पत्थर से तोड़ के दे दिया था अपने तरकश का आखिरी तीर भी उस दांत  को धोने ,शुद्ध करने के लिए चला दिया था जिससे बाण गंगा निकली थी।क्योंकि कृष्ण ने मुख से निकला जूठा दांत लेने से इंकार कर दिया था।  जब की कर्ण स्वयं मृत्यु के नजदीक खिसक आये थे। 

    ॐ शान्ति  

1 टिप्पणी:

Anita ने कहा…

दान की महिमा को बताती सुंदर पोस्ट..प्रेम दान सबसे बढकर है