सोमवार, 12 अगस्त 2013

संगम युग पे राखी

संगमयुग का हर दिन मौजमय होता है। हिदू केलेंडर में जो चंद्र मॉस पर आधारित रहता है कहीं मातम दिवस नहीं हैं। मौजें हो मौजें हैं हर दिन। अगस्त का महीना विशेष होता है इसी माह कृष्णजान्माष्टमी है रक्षा बंधन के दस दिन बाद (२ ८ अगस्त ,२०१३ )और इसी माह है हिन्दुस्तान की यौमे आज़ादी का दिन.इसके ठीक बाद १ ८ अगस्त को ही पड़ रहा है रक्षा बंधन। लेकिन यह ऐसा बंधन  है जो हमें और सभी बंधनों से मुक्त कर देता है।

बेशक "मैं "के बिना हम बात भी नहीं कर सकते हैं। इस शब्द का प्रयोग लाज़मी है। लेकिन यही "मैं "एहम और अहंकार बनके मोह बनके मेरा बनके हमें गिरा भी देता है।

"मैं "शब्द हमें उठा भी देता है। "मैं आत्मा हूँ "बनकर। ये शरीर मेरा है मैं शरीर नहीं हूँ। आपने किसी से कभी सुना  है यह आत्मा मेरी है मैं एक शरीर हूँ?

बंधन से आज़ादी का मतलब है -जिन कर्मेन्द्रियों से अब तक हमने विकर्म (कुकर्म )किए उन्हीं से अब हमें सुकर्म (श्रेष्ठ कर्म )करने हैं। निकृष्ट कोटि के कर्मों से मुक्ति और उच्च कोटि के कर्मों से बंधन बाँधना ही रक्षा बंधन का महत्व है। राखी बाँधनें बंधवाने से हमारे बंधन खत्म होते हैं। हम सभी आत्मा भाई भाई ही हैं। बंधन से छूटने का एक ही तरीका है -हमें  बाबा के प्यार का अनुभव हो। वरना क्या ?वरना आप अपने ही घर में यह कहके बंधन डाल देंगे -मुझे आश्रम(ब्रह्माकुमारीज़ ईश्वरीय विश्वविद्यालय ) जाना है।

एक मर्तबा का ज़िक्र है एक ब्रह्मा कुमारी बहन उन दिनों अपने घर में ही रहतीं थी परिवारियों के साथ। दादी प्रकाशमणि उनदिनों न्युयोर्क अक्सर आती रहतीं थीं। ये बहन भी वहीँ रहतीं थीं। दादी का जिस दिन आना हुआ यह अभी अपने घर से निकलीं ही थीं ,कुछ मेहमान दरवाज़े पर आ पहुंचे। अब दादी से मिलने का अपना अलग उत्साह होता है दादी तो तब साकार में थीं। मन ही मन बहन  ने इन लोगों को कोसा। जैसे तैसे ये आश्रम पहुँच ही गईं घर के लोगों की नाराजी साथ लिए।

 दादी ने इनका लटका हुआ मुंह देखा और पूछा -क्या बात है घर से लड़के आई हो इन्होनें कहा हाँ। दादी ने इन्हें घर वापस भेज दिया। इस मर्तबा इन्होनें भी युक्ति से काम लिया। इन्हें देख घर वालों ने सोचा और फिर पूछा -आज जल्दी आ गई हो। इन्होनें कहा नहीं दादी ने आप सबको भी बुलाया है मैं लेने आईं  हूँ। सबको अब तो बड़ा अच्छा लगा। राज -योगिनी दादी प्रकाश मणि हमें बुला रहीं हैं। अहो भाग्य हमारे।

 अब माहौल  हल्का हो गया था रुई के फाये सा। हर कोई निरभिमान हो अपने स्व मान (मैं आत्मा हूँ शांत स्वरूप )में था।

अगस्त माह दादी प्रकाश मणि का स्मृति दिवस है इसी दिन दादी सम्पूर्ण अवस्था को प्राप्त हुईं। दादी जो अपने जीवन में ही एक प्रकाश स्तंभ बन गईं थीं अगस्त माह उन्हें स्मृति में लाने का दिवस भी है। वैसा हम भी बनें हमें याद दिलता है रक्षा बंधन।

बाप से बंधन जुड़े तो बाकी बंधन टूटें। आत्मा का परमात्मा से बंधन ही रक्षा बंधन है।

ॐ शान्ति

लेवल्स :

संगम युग,  राखी  ,स्मृति ,रक्षा ,बंधन ,आत्मा ,परमात्मा ,विकार ,सुकर्म,


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2 टिप्‍पणियां:

Rajendra kumar ने कहा…

बहुत ही सुंदर और सार्थक प्रस्तुती,आभार।

कालीपद "प्रसाद" ने कहा…

वीरू भाई ,कबीर को कई बार पढ़ा ,हर बार आनंद की वृद्धि होती है ,आपके ब्लॉग में पढ़कर भी ततोधिक आनंद आया . बुक मार्क कर रखा है ताकि बार बार पढ़ सके .आभार .
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