नवजात शिशुओं को माँ की शैया तथा वक्ष स्थल का गुनगुना तकिया कमसे कम तीन वर्षों तक मयस्सर होना चाहिए .एक अन्य अध्ययन का यही लब्बोलुआब है .इसे संपन्न किया है दक्षिण अफ्रीका के कैप टाउन विश्वविद्यालय के रिसर्चरों ने .इसकी अगुवाई की है डॉ नील्स बर्गमान ने .पता चला है जिन शिशुओं को उन्हीं के हाल पर छोड़ दिया जाता है बेबी बेड पर खुद -बा -खुद सोने के लिए .उनके दिल पर ज्यादा दवाब पड़ता है .माँ के वक्ष की आंच उन्हें सुखदाई नींद और मुकम्मिल आराम देती है .स्पर्श की आंच ,माँ के आँचल की छाँव का अपना जादू है .अपना सुख चैन और आश्वस्ति भाव है .आत्म विश्वास से भर जातें हैं ऐसे शिशु भावी जीवन में .
बेहतर हो पश्चिमकी इस जीवन शैली से भारतीय माताएं असर ग्रस्त न हों जहां बच्चों को शिशुकाल से ही परिवेश से जूझने बूझने को उन्हीं के हाल पे शैया पर परिवेश को समझने के लिए छोड़ दिया जाता है .
ram ram bhai
पोर्न का चस्का ही खा रहा है सेक्स को .
पोर्न का चस्का ही खा रहा है सेक्स को .
कामसूत्र का एक श्लोक है जिसकी व्याख्या कुछ यूं है :
काव्य का आनंद शाश्त्र को खा जाता है .संगीत काव्य को नष्ट कर देता है .संगीत ऊपर हो जाता है काव्य उसके नीचे दब खप जाता है .धुन ओर स्वर लहरी प्रमुख हो जाती है .संगीत को नारी विलास खा जाता है .आज के अधुनातन पश्चिमी कृत शैली के नृत्यों की मैथुनी मुद्राएं मैथुन के द्वार पर ही जाकर शांत होतीं हैं ,उसके बाद वही संगीत शोर लगने लगता है .और भूख नारी विलास का विलोप कर देती है .पेट में अन्न के दाने न हों तो नारी विलास भी चुक जाता है .यही भाव है वात्सायन के उस सारगर्भित श्लोक का .
जब देह दर्शन ज्यादा हो जाता है तब प्रेम चुक जाता है .उत्तेजना की अति होने पर उत्तेजना भी चुक जाती है .पैदा ही नहीं होती .
पोर्न सेवियों के साथ यही हुआ है .जिनको यह चस्का किशोरावस्था के बीच में ही लग गया था उन्हें यह पता ही नहीं है लोग हस्त मैथुन तब भी करते थे जब दृश्य उद्दीपन के तौर पर पोर्न नहीं था .तब फेंटेसी थी .कल्पना थी .प्रेम था .अब पोर्न का चस्का उन्हें उस मुकाम पर ले आया है जहां हकीकी ज़िन्दगी में यौन उत्तेजन ही नहीं होता .लिंगोथ्थान ही नहीं होता अब ,एक्सट्रीम मेटीरियल चाहिए .चस्का जो है उसका .
दो ताज़ा अध्ययन इस बात की पुष्टि करतें हैं अधिकाधिक इतालवी मर्द इस यौन उत्तेजन हीनता की गिरिफ्त में आचुकें हैं खासकर वह जो किशोरावस्था के दरमियानी सालों में ही पोर्न से चिपक गए थे .किताब
"Cupids Poisoned Arrow "की लेखिका मर्निया रोबिनसन ज़िक्र करतीं हैं अपनी किताब में ऐसे मर्दों का जिन्हें जल्दी ही वर्च्युअल देह दर्शन और देहसुख दृश्य भोग का चस्का लग गया था आज अपने यौन साथी के साथ निर-उत्तेजन हैं .देह में आंच ही नहीं सुलगती इनकी .लिगोथ्थान नदारद है .
तमाम नश्ल और संस्कृतियों ,अलग अलग शैक्षिक पृष्टभूमी के ,धर्म और विश्वासों के ,मूल्यों और मान्यताओं के ,भिन्न खान पानी वालों की युवा भीड़ में यदि कोई एक सूत्र आज सांझा है तो वह है पोर्न की लत .दृश्य रति .इनमे अफीमची भी है गांजा पीने वाले भी हैं शोट्स और पोट्स लेने वाले भी हैं .धुर दर्जे का दृश्य यौन उत्तेजन चाहिए इन्हें अब वरना बेड रूम में ये ठन्डे रहेंगें .
इनका यौन प्रदर्शन पोर्न खा गया है यह इस बात से पूरी तरह ना -वाकिफ हैं .मर्निया ने एक पर्चा 'साइकोलोजी टुडे 'में प्रकाशित किया है जिनमे ऐसी युवा भीड़ के बारे में खुलकर बतलाया गया है .एडिक्शन साइंस से ये मर्दुए पूरी तरह बे -खबर हैं .हार्ड पोर्न ने इन्हें तबाह कर दिया है इन्हें इसका इल्म ही नहींहै. किसी ने नहीं बतलाया इन्हें इसके निहितार्थ .
भौतिक परीक्षण के लिए ये पहले भी माहिरों के पास पहुंचे थे .खरे उतरे थे इन परीक्षणों में लेकिन "काम" के वक्त मैथुन के क्षणों में पता चलता है ये परफोर्मेंस एन्ग्जायती से ग्रस्त हैं ,यौन प्रदर्शन बे -चैनी को ये साक्षी भाव से निहार रहें हैं .
वजह शारीरिक (शरीर क्रिया वैज्ञानिक )ही तमाम लगतीं हैं मनोवैज्ञानिक नहीं .शुक्रिया अदा कीजिए २४ x ७ के एक माउस की क्लिक की दूरी पर ललचाते पोर्न भोग का .
उत्तेजन बेहद का इनके दिमाग के इनामी परिपथ (रिवार्ड सर्कित्री )को मात दे चुका है . अब इसके बिना रहा न जाए जिया भी न जाए इसके संग ,वाली, गति हो गई है इनकी .छोडो तो मरो .नहीं
छोडो तो. विद्रोवल सिंड्रोम ,लत छोड़ने के नतीजे भुगतो न छोडो तो इरेक्टाइल डिसफंक्शन ,परफोर्मेंस एन्ग्जायती .नामरदी सी .अनिद्रा रोग ,पैनिक अटेक ,हताशा ,ध्यान भंग ,चिडचिndडापन ,फ्ल्यू से लक्षण ,यौन संबंधों में अरुचि देखो .
समाधान :दिमाग की रीबूटिंग कीजिए .सामान्य डोपामिन सेंसिटिविटी चाहिए दिमाग को जबकि .यहाँ तो इस जैव रसायन की अत हो चुकी है .ज़नाब .सेक्स सिर्फ देह में नहीं होता .प्रेम से भी उपजता है .और देह का अतिरिक्त दर्शन प्रेम को ले डूबता है संबंधों को रोबोटिक बना देता है काग भगोड़े सा निर्जीव .
सुभग विश्वास की अमराइयों की छाँव तले ,
प्रीत की पगडंडियों के नाम अर्पित ज़िन्दगी .
लेकिन यहाँ तो सब चुक गया न प्रेम न भरोसा सिर्फ और सिर्फ , देह और देह ,अतिरिक्त देह दर्शन .नतीजा नहीं भुगतना पड़ेगा ?
सन्दर्भ -सामिग्री :Porn addiction leads to 'sexual anorexia'(Times Trends ,TOI,Oct .25 ,2011 ).
शनिवार, 29 अक्टूबर 2011
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6 टिप्पणियां:
रोचक जानकारी।
बढ़िया आलेख। मुझे भी लगता है कि हम नपुंसकता के दौर से गुजर रहे हैं। पहले नर्गिश की एक मुस्कान पर मोहित हो जाते थे अब...क्या कहें आप तो स्वयम् दद्दू हो।
किशोरों और युवकों के लिए चेतावनी है यह।
एक जरुरी पोस्ट, आँखें खोलने में सक्षम आपका आभार
सार्थक आलेख...
सादर...
शायद आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा आज बुधवार के चर्चा मंच पर भी हो!
सूचनार्थ!
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