गुरुवार, 29 सितंबर 2016

ऐसे सदाशयता भरे मौके बार बार नहीं आते

भारत के डायरेक्टर जनरल मिलिट्री  ऑपरेशन ने पाकी डायरेक्टर जनरल मिलिट्री ऑपरेशन का आवाहन किया है ,वह आतंकी अड्डों का सफाया करने के लिए आगे आये भारतीय सेना पाक की मदद करेगी। भारत ने प्रोएक्टिव एक्शन लेकर अपनी सीमा से सिर्फ झाड़ झंकाड़ आतंकियों का यहां वहां से साफ़ किया है। पाकिस्तान तो इन आतंकियों की खिलंदड़ी का खुला अड्डा बना हुआ है। अंत में इंतहापसंदगी पाक को ही खा जाएगी। 

ऐसे सदाशयता भरे मौके बार बार नहीं आते। पाकिस्तान दोनों तरफ के लोगों की सलामती के लिए आगे आये यही इस महाद्वीप के हित  में होगा। 


https://www.youtube.com/watch?v=pbvGQrQCfMk
Jai Hind Ki Sena -Vandematram !
Indian Army Surgical strike Against Pakistan over night
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Virendra Sharma भारत के डायरेक्टर जनरल मिलिट्री ऑपरेशन ने पाकी डायरेक्टर जनरल मिलिट्री ऑपरेशन का आवाहन किया है ,वह आतंकी अड्डों का सफाया करने के लिए आगे आये भारतीय सेना पाक की मदद करेगी। भारत ने प्रोएक्टिव एक्शन लेकर अपनी सीमा से सिर्फ झाड़ झंकाड़ आतंकियों का यहां वहां से साफ़ किया है। पाकिस्तान तो इन आतंकियों की खिलंदड़ी का खुला अड्डा बना हुआ है। अंत में इंतहापसंदगी पाक को ही खा जाएगी।

ऐसे सदाशयता भरे मौके बार बार नहीं आते। पाकिस्तान दोनों तरफ के लोगों की सलामती के लिए आगे आये यही इस महाद्वीप के हित में होगा।
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मैं दोनों के लिए लड़ती हूँ ,और दावे से कहती हूँ , मेरी हिंदी भी उत्तम है मेरी उर्दू भी आला है।

मैं हिंदी की वो बेटी हूँ ,जिसे उर्दू ने पाला है ,

अगर हिंदी की रोटी है, तो उर्दू का निवाला है ।

मुझे है प्यार है दोनों से ,मगर ये भी  हक़ीक़त  है,

लता जब लड़खड़ाती है ,हया ने ही सम्भाला है।

मैं जब हिंदी  से मिलती हूँ ,तो उर्दू साथ आती है ,

और जब उर्दू से मिलती हूँ ,तो हिंदी  घर बुलाती है।

मुझे दोनों ही प्यारी हैं  ,मैं दोनों की दुलारी हूँ ,

इधर हिंदी  सी माई  है  ,उधर उर्दू सी  खाला है।

यहीं की बेटियां दोनों ,यहीं पे जन्म पाया है ,

सियासत ने इन्हें हिन्दू ,औ मुस्लिम क्यों बनाया है ,

मुझे दोनों की हालत ,एक सी, मालूम होती है।

कभी हिंदी पे बंदिश है ,कभी उर्दू पे ताला है।

भले अपमान  हिंदी का ,हो या तौहीन उर्दू की ,

खुदा की है क़सम हरगिज़ ,हया ये सह नहीं सकती।

मैं दोनों के लिए लड़ती हूँ ,और दावे से कहती हूँ ,

मेरी हिंदी भी उत्तम है मेरी उर्दू भी आला है।

Virendra Sharma and Purushottam Pandey shared Pakistani's video.
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मंगलवार, 27 सितंबर 2016

कबीरा मन निर्मल भया जैसे गंगा नीर , पाछै लागै हरि फिरै ,कहत कबीर कबीर।

कबीरा मन निर्मल भया जैसे गंगा नीर ,

पाछै  लागै हरि फिरै ,कहत कबीर कबीर। 

ऐसे लोग जिनका मन निर्मल हो गया है जो आठों पहर  घड़ी  पल छिन सिमरन में मगन हैं ,जिनके मुख का मन ,जिनके मुख का ध्यान वाहेगुरु की तरफ है ,ईश्वर उनकी परवाह हर घड़ी  करता है। 

इनका अंत :करण कामक्रोध ,मोह ,ममता से मुक्त रहता है ,धर्म अंदर की साधना है बाहरी कर्मकांड ,तन का पैरहन नहीं है ,इनके बाहर के भी सभी काम पूरे ही होते हैं अंदर के तो सब सधते ही हैं।क्योंकि इनका मन साधना से सिमरन से निर्मल हो गया है।  

प्रभ कै सिमरनि कारज पूरे ,

प्रभ के सिमरनि कबहु न झूरे। 

इन्हें कोई चिंता नहीं व्याप्ति। चिंता उन्हें व्यापती हैं जिनके  मुख का ध्यान ,जिनका मन संसार की ओर रहता है निशि बासर। 

कबीर तो अपनी मस्ती में हैं। 

आशाओं का दीप ले बैठे नदिया तीर ,

चितवन ते हर लेत हैं तेरी -मेरी पीर। 

रविवार, 25 सितंबर 2016

बोलत बोलत बढ़े विकारा , बिन बोले क्या करे बिचारा।






इस मन  को कोई खोजो मेरे भाई ,

मन खोजत नाम नौ निधि पाई।

परमात्मा को तो तुमने मन की लहरों के बीच में डुबो के रख दिया है मन के वेग के बीच ,ज़िन्दगी डूबो  के रख दी है आनंद को हमने डुबो के रख दिया है मन की लहरों के बीच में। यहां परमात्मा के खोने से यही भाव है ,धनगुरु नानक देव जी का। व्यक्ति है भी विचार। सारी  ज़िन्दगी विचारों पर खड़ी है।

हिन्दू होना एक विचार है मुस्लिम होना ,ईसाई होना ,शैतान होना एक विचार है दैत्य होना एक विचार हैदेवता होना एक विचार है ।

 किसी मनुष्य को पढ़ना हो उसकी हकीकत जान नी  हो तो उसके विचारों को जानिये।

उसके तन की पोशाक देखके उसकी असलियत का पता नहीं चल सकता।

बोलत ही पहचानिये  साध ,असाध, कुठात ,

अन्तर की करनी  सभै  निकसै मुख की बात।

बोलत बोलत बढ़े  विकारा ,

बिन बोले क्या करे बिचारा।

बिचारा -बे -चारा ,दी पुअर फेलो।





शनिवार, 24 सितंबर 2016

Answer to questions related to God by Guru Nanak Dev ji explained by maskeen ji.flv








खुदा से पहले क्या था ?

हमारा अपना विधान है तू पहले एक थाली में मोती ले आ। फिर मैं तेरे सवालों का ज़वाब दूंगा।

अब तू इनको आवाज़ के साथ गिन। एक ,दो ,तीन। ... दस्तगीर की बांह पकड़ ली ,नानक बोले तुझे गिनती करनी ही नहीं आती। एक। ... यहां ही तू गलती कर रहा है। तू एक से पहले गिनती कर। खुदा से पहले कुछ भी नहीं ये सारी  गिनती उस एक से ही है।

खुदा रहता कहाँ है ?

हमारी ज़वाब देने की मर्यादा है। तू पहले दूध मंगा एक बर्तन में। कटोरा दूध से भरा हुआ आ गया। पीर बोला महाराज पी लो ,फिर मेरे सवाल का ज़वाब दो।

मैं इसके पाक होने पे शक नहीं कर रहा। पर इसके बीच में कुछ है। फकीरा बोला हमें तो दिखाई देता नहीं तुम्हें देता है तो कह दो।

इसमें मख्खन है पर दिखाई नहीं देता।

संसार में निरंकार है खुदा है दिखाई नहीं देता। तू पहले भरोसा कर ले फिर दिखाई देगा।

रब कुछ करता भी है या निरा निकम्मा ही है ?

तू सिंह आसान  पे बैठा है मैं खड़ा हूँ।

तू यहां खड़ा हो मैं वहां तेरे आसन पर बैठता हूँ।

खुदा यही कुछ करता है जो राजगद्दी पे बैठा होता है उसे खड़ा कर देता है जो खड़ा होता है उसे गद्दी पे बिठा देता है।

सुख में बहु संगी भये ,दुःख में संग न कोय  ,

कह नानक हर भज मना ,अंत  सहाई होय।

सुख में आन मिलत बहु बैठत ,

रहत  चहुँ दिश घेरे ,



https://www.youtube.com/watch?v=nAtKSmsRL-E




गुरुवार, 22 सितंबर 2016

आसा विच अथ दुःख घना , मनमुख चित लाया , गुरमुख भये निराश , सुख फल पाया।

आसा विच अथ  दुःख घना ,

मनमुख चित लाया ,
गुरमुख भये निराश ,

सुख फल  पाया।

रे मन ऐसो  कर सन्यासा ,

बन से सदन ,सभ समझो ,

मन ही माहिं, उदासा।

तू संसार से निराश हो ,तभी तू निरंकार की खोज करेगा।

लोग कहें कबीर बौराना ,

कबीर का मर्म राम ही जाना।

साधू के संग नहीं किछु  घाल,

दर्शन भेंटत  होत  निहाल।

जो इस संसार से ,इस जीवन से निराश नहीं हुआ उदास नहीं हुआ वह परम जीवन  की  तलाश नहीं करेगा। जो निराश हो जाता है वह घर को फिर उजाड़ जंगल समझने लगता है। अपना घर ही सब कुछ है तो परमात्मा कुछ नहीं है।

जितनी अक्ल छोटी होती है उतना ही संसार बड़ा हो जाता है। पहला मुगल सम्राट बाबर कहता है क्यों छोड़े संसार ,इतना रंगीन है संसार क्यों छोड़े इसे।

आखिरी मुग़ल सम्राट बहादुर ज़फ़र  इसके ठीक विपरीत फरमाते हैं ये दुनिया बड़ी उजाड़ है यहां  मेरा जी नहीं लगता ,आज होगा कल होगा इसी इंतज़ार में मैंने सारी उम्र गंवाँ  दी। आरजुएं बढ़ती गईं ,पूरी न हुईं। उम्र मेरे हाथ से निकल गई। 

लगता नहीं है दिल मेरा उजड़े दयार में ,

किसकी बनी है आल में न पायेदार में।

उम्र ए दराज मांगकर लाये थे चार दिन ,

दो आरजू में काट गए ,दो इंतज़ार में।

इन हसरतों से कह दो ,कहीं और जा बसें ,

इतनी जगह कहाँ है ,दिलेदागदार में।

जफ़र साहब हसरतों (अरमान और तड़प )से कहतें हैं मुझे छोड़ो कहीं और ठिकाना ढूँढो।

हिन्दू एक रास्ता है ,मुस्लिम एक रास्ता है ईसाई एक रास्ता है ,बौद्ध ,जैनी एक रास्ता है एक विचार है। सारी  नदियाँ अपने मरकज़ (लक्ष्य सागर )की ओर ही जा रहीं हैं ,सागर ही हो जाती हैं फिर सतलुज सतलुज नहीं रह जाती है जमुना ,जमुना तथा गंगा गंगा ,सबका जल सागर ही हो जाता है। कोई यह नहीं कह सकता ये व्यास का जल है ये रावी का है ये सरयू का है।

गूंगा हुआ बावरा बहरा हुआ कान।

पाँव से पिंगल  भआ ,सतगुर मारा बान ।

https://www.youtube.com/watch?v=jtu8k97U6AE

The Way to God...

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Giani Sant Singh Ji Maskeen tells the story of Nand lal's escape and his meeting with Shri Guru Govind Singh Ji Maharaj.





  

निद्रा आलस भोग भय , ए पशु पुरख समान , नरन ज्ञान निज अधिकता , ज्ञान बिना पशु जान।

बलिहारी उस दुःख को ,जो पल पल नाम जपाय।

 निद्रा आलस भोग भय ,

ए  पशु पुरख समान ,

नरन ज्ञान निज अधिकता ,

ज्ञान बिना पशु जान।

दो पैरों वाले भी पशु होते है। सिर्फ चार पैरों वाले ही पशु नहीं होते।

जो पीछे रह गया ,समझ के स्तर पर पिछड़ गया पशु है। जो मन के स्तर पर जी रहे हैं वह मनुष्य हैं जो तन के स्तर पर ही जी रहे हैं वह निरे पशु हैं।

ए हो मन आरसी, कोई गुरमुख देखे

आरसी माने शीशा।

अज क़ज़ा आइना ,चीनी शिकस्त ,(अब मेरी मौत निश्चित है ,मुझसे ये चीनी आइना टूट गया जो बेशकीमती था ).

खूब सुद ,सामान खुद बीनी शिकस्त।

बहुत मुद्दत हो गई ,अपना मन नहीं देखा ,मैं तो रात दिन अपना तन ही देखती थी।

संसार पदारथ  है गुरु शबद  है परमात्मा परम चेतना है।संसार देखने का विषय है ,गुरु श्रवण का और परमात्मा अनुभव का विषय है। अनुभव की आँख गुरु को सुनकर खुलती है। परमात्मा और गुरु शक्ति हैं व्यक्ति  नहीं। जो व्यापक है वह व्यक्ति नहीं है शक्ति है। जो सदा संग नहीं है वह परमात्मा नहीं है। शब्द के रूप में गुरु सदा संग है। अपने व्यापकत्व  के कारण परमात्मा सदैव ही हमारे संग है। हम अपने घर से परिवार से वतन से दूर जा सकते हैं परमात्मा से नहीं वह तो सदा हमारे साथ है।

https://www.youtube.com/watch?v=iN_EhVNTqm8

ਮਨ ਅਤੇ ਤਨ man atte tan .sant singh Maskeen ji new katha

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ਮਨ ਅਤੇ ਤਨ man atte tan .sant singh Maskeen ji new katha
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बुधवार, 21 सितंबर 2016

सगल स्रिष्टि का राजा दुखिया , हर का नाम जपत होय सुखिया।

सगल स्रिष्टि का राजा दुखिया ,

हर का नाम जपत होय सुखिया।

राजा सगली  स्रिष्टि  का ,हरी नाम मन भिन्ना।

कहो कबीर निर्धन  है सोइ  ,

जाके हृदय  नाम न होइ।

कहे कबीर गूंगे गुड़ खाया ,

पूछे तो क्या कहिये।

तुम घर लाख कोटि असु (अश्व ),हसती

हम घर एक मुरारी।

तिन्हें (तिनहाँ ) मुख डरावने ,

जिन्हें (जिनहां )

जिन्हें विसारिया नाव ,

इत्ते दुःख घणेरियाँ ,

आगे  ठौर न ठांव।

             ---------बाबा फरीद।

जपुजी साहब की इस पौढ़ी का अर्थ है जिस किसी ने भी परमात्मा की थाह पाने की कोशिश की वह उसी में लीन  हो गया पर उसका अंत न पा सका , उस गुणगान करने बखान करने वाले की  हस्ती ही  मिट गई ,वैसे ही जैसे सागर में विलीन होने के बाद नदियों का जल सागर ही हो जाता है।

भले ही कोई इत्ता बड़ा सम्राट हो जितना समुन्द्रों का सारा जल है और उसके पास इतनी सम्पदा हो कि सोने -चाँदी ,माणिक मोती के पहाड़ खड़े हो जाए परंतु उसकी हस्ती उस मनुष्य से कमतर ही है जो हस्ती में भले कीड़ी के समान है लेकिन जिसके हृदय में सदैव ही प्रभु की याद रहती है प्रभु जिसे विसरता नहीं है।

https://www.youtube.com/watch?v=QvFuh19Hpqc

Japji Sahib Katha Pauri 22 - Giani Sant Singh Ji Maskeen

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Japji Sahib Katha Pauri 22 - Giani Sant Singh Ji Maskeen




मंगलवार, 20 सितंबर 2016

उस्तत निंदा दोऊ त्यागे ,खोजे पद निरवाना , जन नानक उह खेल कठिन है ,किन्हु गुरमुख जाना।

 उस्तत  निंदा दोऊ  त्यागे ,खोजे पद निरवाना ,

जन नानक उह खेल   कठिन है ,किन्हु गुरमुख जाना।


                                        -------------------- गुरुतेगबहादुर।

निंदो निंदो मोको , लोग निंदो ,

निंदा जन को खरी प्यारी ,

निंदा बाप, निंदा महतारी।

                 -----------संत  कबीर ।

कबीर कहते हैं निंदके को मैं   माँ बाप का दर्ज़ा देता हूँ।

संत दयाराम कहते हैं मैं निंदक को माँ बाप से भी बड़ा दर्ज़ा देता हूँ उन्होंने मेरा मल हाथ से धौया, निंदक तो रसना से धौता   है। 

मानु मातु पिता हुते ,

निंदक को अति नेऊ ,

वो धौए मल मूत्र कर ,

ये रसना लख लेऊ।

                   ------------  संत दया राम

जपु जी साहब की इस अठारहवीं पौड़ी में जब गुरुनानक देव मूर्खों ,चोर,बदमाशों ,गलकटियनों ,पापी ,जोर जबरजस्ती अपना हुकुम चलाने वालों की ,निंदा करने वालों गिनती में न आने वाली संख्या का जिक्र  करते हैं तब अपने आपको भी इसी पंक्ति में खड़ा कर लेते हैं ताकि इन लोगों के अंदर बेहद की हीन भावना घर न कर सके और इन्हें भी आगे बढ़ने का हौसला रहे। गुरु इनका यहां सहारा बन जाते हैं इस पौड़ी में। पढ़िए ,सुनिये ,गुनिये  आप भी  -

विशेष :असली कूड़िआर निंदक ही है वह नहीं जो मलमूत्र साफ़ कर रहा है कूड़ा बीन कर शहर की गन्दगी दूर कर रहा है।

असंख मूरख अंध घोर ,असंख चोर हरामखोर।

असंख अमर करि जाहि जोर ,असंख गलवढ हतिहा कमाहि।

असंख पापी पापु करि जाहि। असंख कूड़िआर कूड़े फिराहि।

असंख मलेछ मलु भाखि खाहि। असंख निंदक सिरि करहि भारु।

नानकु नीचु कहै वीचारु। वारिआ न जावा एक वार।

जो तुधु भावै साई भली कर। तू सदा सलामति निरंकार।

जपुजी साहब की सत्रहवीं और अठारहवीं पौढ़ी में दो विपरीत धारों का ज़िक्र है :

स्वच्छ नदी भी है तो गन्दा नाला भी है ,ये दो विपरीत धाराएं सदियों से चली आई हैं ,दोनों धाराएं सदा मौजूद रहीं आईं हैं कोई आज की बात नहीं है। विचारित अठारहवीं पौढ़ी में भेड़ों बदमाशों ,पापियों ,ज़बरिया हुकुम चलाने वाले जालिमों और निंदकों का ज़िक्र है।

मलेच्छों जैसा मैला खाना खाने वालों की भी दुनिया में कमी नहीं है।

https://www.youtube.com/watch?v=1vAdJoEA0O4

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