ता कउ बिघनु न लागै कोइ ,जा कै रिदै बसै हरि सोइ
भावार्थ : उसे कोई आपदा (आफत ,मुसीबत ,विघ्न -बाधा )नहीं छू सकती जिसके मन में हरि का नाम बसता है।
जिनके हृदय (हृद्य ) हरि नाम बसै ,तिन और को नाम लियो न लियो ,
जिन मातु पिता की सेवा की ,उन तीरथ धाम कियो न कियो
एक आस राखहु मन माहि माहि ,सरब रोग नानक मिटि जाहि।
सिर्फ एक की आशा मन में रखो ,फिर सारे रोग नाश हो जायेंगे।
3 टिप्पणियां:
प्रभू को पाने की आशा ... बस यही आशा मन में रहे तो चहूँ और शांति ही है ...
प्रभू को पाने की आशा ... बस यही आशा मन में रहे तो चहूँ और शांति ही है ...
जिसके मन में हरि बसें हों, उसे कष्ट कैसे होगा
बहुत सुन्दर..
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