जे रत्तु लगे कापड़ा ,जामा होइ पलीत ,
जे रत्तु पीवी मानसा ,तिन का क्यों निर्मल चीत।
करुणा के सागर गुरुनानक देव इस साखी (शबद )में जीव हिंसा पर ,किसी भी प्रकार के मांस भक्षण पर ,सामिष आहार पर दो टूक हुकुम देते हैं -
मात्र रक्त का धब्बा लगने पर कपड़ा (वस्त्र )दूषित हो जाता है। जो मानस रक्त पीते हैं किसी भी प्रकार का मांस भक्षण करते हैं उनका चित्त कैसे निर्मल रह सकता है। उनका अंदर(चित्त ) बाहर (शरीर) दोनों अपवित्र हो जाता हैं। ऐसे में जगजीवन गुसाईं उन्हें क्योंकर मिले।
कबीर दास भी कुछ ऐसे ही भाव अभि -व्यक्त करते हैं :
बकरी पाती खात है ,ताकी काढी ख़ाल ,
जे नर बकरी खात हैं ,तिनको कौन हवाल।
माटी कहे कुम्हार से तू क्या रूंधे (रौंदे )मोह ,
एक दिन ऐसा होएगा ,मैं रूँधुंगी (रौंदूंगी )तोह।
कबीरा तेरी झौंपड़ी ,गल कटियन के पास ,
करेंगे सो भरेंगे ,तू क्यों भयो उदास।
कार्मिक थ्योरी ,कर्म का सिद्धांत भी यही है -आज जिसे तुम काट रहे हो कष्ट दे रहे हो आगे वह भी ऐसा ही करेगा।
सनातन धर्म का मूल है -दया ,प्राणि मात्र के प्रति दया, करूणा , प्रेम।
साचु कहों सुन लेहु सभै ,
जिन प्रेम कीओ ,
तिन ही प्रभु पाइयो
अहिंसा परमोधर्म :
जे रत्तु पीवी मानसा ,तिन का क्यों निर्मल चीत।
करुणा के सागर गुरुनानक देव इस साखी (शबद )में जीव हिंसा पर ,किसी भी प्रकार के मांस भक्षण पर ,सामिष आहार पर दो टूक हुकुम देते हैं -
मात्र रक्त का धब्बा लगने पर कपड़ा (वस्त्र )दूषित हो जाता है। जो मानस रक्त पीते हैं किसी भी प्रकार का मांस भक्षण करते हैं उनका चित्त कैसे निर्मल रह सकता है। उनका अंदर(चित्त ) बाहर (शरीर) दोनों अपवित्र हो जाता हैं। ऐसे में जगजीवन गुसाईं उन्हें क्योंकर मिले।
कबीर दास भी कुछ ऐसे ही भाव अभि -व्यक्त करते हैं :
बकरी पाती खात है ,ताकी काढी ख़ाल ,
जे नर बकरी खात हैं ,तिनको कौन हवाल।
माटी कहे कुम्हार से तू क्या रूंधे (रौंदे )मोह ,
एक दिन ऐसा होएगा ,मैं रूँधुंगी (रौंदूंगी )तोह।
कबीरा तेरी झौंपड़ी ,गल कटियन के पास ,
करेंगे सो भरेंगे ,तू क्यों भयो उदास।
कार्मिक थ्योरी ,कर्म का सिद्धांत भी यही है -आज जिसे तुम काट रहे हो कष्ट दे रहे हो आगे वह भी ऐसा ही करेगा।
सनातन धर्म का मूल है -दया ,प्राणि मात्र के प्रति दया, करूणा , प्रेम।
साचु कहों सुन लेहु सभै ,
जिन प्रेम कीओ ,
तिन ही प्रभु पाइयो
अहिंसा परमोधर्म :
1 टिप्पणी:
गहरी बात ... दूर की बात ... सोचने वाली बात ...
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