रविवार, 17 जुलाई 2016

प्रभ की द्रिसटि महा सुखु होइ , हरि रसु पावै बिरला कोइ।

प्रभ की द्रिसटि महा  सुखु होइ ,

हरि रसु  पावै बिरला कोइ। 

मालिक की कृपा दृष्टि से बड़ा सुख है। 

इस हरि रस को कोई विरला (बिरला ) ही पाता है। 

He showers his causeless mercy on rare of the rarest .

जिन चाखिआ से जन त्रिपताने ,

पूरन पुरख नही(नहीं )  डोलाने। 

जिन्होनें (भक्ति रस )चखा है वे तृप्त हो गए हैं। 

वह पुरुष (उनके चित्त ,उनके  मन )कभी डोलते नहीं हैं। 

They remain focused are ever  satiated with love. 

"श्याम रंग में रंगी चुनरिआ अब रंग दूजो भावे  न ,

जिन नैनं में श्याम बसै हैं ,और दूसरों आवे  न। "

सुभर भरे प्रेम रस रंगि ,

उपजै चाउ साध कै संगि। 

(वे )प्रभु के आनंद से लबालब भरे हुए हैं। 

साध संगत करके यह चाव प्रगट होता है।

एक घड़ी आधी  घड़ी ,आधी की पुनि आध ,

तुलसी संगत साध की काटे कोटि अपराध।  

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