झझा उरझि सुरझि नही जाना ,रहियो झझकि नाही परवाना ,
कत झखि झखि अउरन समझावा ,झगरु कीए झगरउ ही पावा।
जिस मनुष्य ने (चर्चाओं में पड़कर निकम्मी )उलझनों में ही फंसना सीखा
,उलझनों में से निकलने की विधि न सीखी ,वह (सारी उम्र )भयभीत ही रहा ,
उसका जीवन स्वीकृत न हो सका।
वादविवाद कर -करके ,तर्क ,वितंडा खड़ा करके दूसरों को सीख देने का क्या
लाभ ?
चर्चा (तर्क पंडित बनके )करते हुए अपने आपको तो केवल मात्र चर्चा करने
,उलझने -उलझाने ,व्यर्थ की बहस करने की आदत ही पड़ गई।
विशेष: जीवन तर्क के सहारे नहीं चलता ,तर्क की अपनी सीमाएं हैं ,जहां तर्क
चुक जाता है ,जीवन वही से शुरू होता है।
कत झखि झखि अउरन समझावा ,झगरु कीए झगरउ ही पावा।
जिस मनुष्य ने (चर्चाओं में पड़कर निकम्मी )उलझनों में ही फंसना सीखा
,उलझनों में से निकलने की विधि न सीखी ,वह (सारी उम्र )भयभीत ही रहा ,
उसका जीवन स्वीकृत न हो सका।
वादविवाद कर -करके ,तर्क ,वितंडा खड़ा करके दूसरों को सीख देने का क्या
लाभ ?
चर्चा (तर्क पंडित बनके )करते हुए अपने आपको तो केवल मात्र चर्चा करने
,उलझने -उलझाने ,व्यर्थ की बहस करने की आदत ही पड़ गई।
विशेष: जीवन तर्क के सहारे नहीं चलता ,तर्क की अपनी सीमाएं हैं ,जहां तर्क
चुक जाता है ,जीवन वही से शुरू होता है।
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