सोमवार, 18 जुलाई 2016

निरगुनु आपि सरगुनु भी ओही

निरगुनु आपि सरगुनु भी ओही 

शक्ल वाला और न शक्ल वाला आप (वो ही एक मालिक )ही है। 

सगुण -निर्गुण का साकार रूप है और निर्गुण -सगुण का निराकार रूप है। 

महाकवि पीपा कहते हैं :

सगुण मीठो खाँड़ सो ,निर्गुण कड़वो नीम ,

जाको गुरु जो परस दे ताहि प्रेम सो जीम। 

वही निर्गुण है वही है सगुण। 


निर्गुण का भावार्थ है जो अनन्त गुणों का आगार होते हुए भी ,गुणों की खान 

होते हुए भी गुणों से पार है। कोई गुण जिसे बाँध नहीं सके। माया (ये 

त्रिगुणात्मक सृष्टि ,सतो -रजो -तमो गुणी जो जीव को भरमाती है जिसकी 

नौकरानी है। उसके सामने आने से कतराती है। वही ब्रह्म है ,परमात्मा है 

,भगवान है। ).हम सभी माया द्वारा भ्रमित  हैं। 

ब्रह्म सर्वत्र व्याप्त है। परमात्मा का वास हमारा हृदय है ,भगवान  वही  भी वही  

है पूर्ण ऐश्वर्य-संपन्न। 



जो अस्थाई है निरन्तर परिवर्तनशील है अभी है कल नहीं है, वही माया है। जो 

Immutable अपरिवर्तनशील ,सनातन है स्थाई है वही पारब्रह्म है ,आत्मा है। 

हमारा सच्चिदानंद स्वरूप है यह शरीर माया है परिवर्तित Mutable है।  

तब्दील  होता रहता है निरन्तर। जब जर्जर हो जाता है आत्मा इसे छोड़कर 

कायांतरण काया बदल लेता है। 

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