बुधवार, 6 जुलाई 2011

Who is walking to school ?

जर्नल पीडयाट -रिक्स में प्रकाशित एक ताज़ा अध्ययन के मुताबिक़ शहराती क्षेत्रों में रहने वाले तथा पद प्रतिष्ठा में समाज के निचले पायेदान पर खड़े परिवारों के बाल -गोपाल ही अकसर स्कूल पैदल या फिर साइकिल पर जातें हैं .इसका इन तबको के बच्चों की सेहत पर अच्छा प्रभाव भी पड़ता है
अध्ययन में कनाडा में रहने वाले -१६ साला ,००० बच्चों को शरीक किया गया था ,स्कूल में बिताई तमाम अवधि के दौरान इनका पूरा स्वास्थ्य सम्बन्धी ब्योरा जुटाया गया ,पता चला -१०साला बच्चे चलके या फिर साइकिल पे स्कूल जाने को यानी एक्टिव ट्रांसपोर्टेशन को वरीयता देतें हैं ,स्कूल बस ,कार और जन -परिवहन के ऊपर ये पैदल चलकर स्कूल पहुंचना पसंद करतें हैं
बच्चों की आदर्श बढ़वार केसन्दर्भ में यह एक महत्व -पूर्ण अध्ययन रहा है . क्योंकि अधिकाँश बच्चे शारीरिक श्रम और कसरत के पैमाने पर आदर्श स्थिति के अनुरूप नहीं चल रहें हैं
अध्ययन में शामिल माहिरों के अनुसार एक्टिव ट्रांसपोर्टेशन बच्चों की दैनिकी को पर्याप्त हरकत और आवश्यक व्यायाम से भरने का सहज सरल और अनुकरणीय तरीका है . हींग लगे फिटकरी रंग चौखा ही चौखा .हमने कल ही अपनी पोस्ट में कनाडा में जन परिवहन की सहज सुलभता का उल्लेख किया था .आबादी कम जन परिवहन के साधन ज्यादा
फिर निम्न तबके के बच्चों के लिएतो एक्टिव ट्रांसपोर्टेशन यानी पैदल या साइकिल से स्कूल जाना , इसे अपनाना आसान भी है घर के पास के ही स्कूल में ये दाखिला लेतें हैं
कारें इन परिवारों के बच्चों की पहुँच से बाहर रहतीं हैं ,निजी स्कूल का दायरा भी ,क्योंकि घर से दूर ये जा नहीं सकते .निजी स्कूल एक दम से आपके पड़ोस में होतें नहीं हैं .खासकर उन क्षेत्रों के जहां इस तबके की रिहाइश होती है
अध्ययन के मुताबिक़ शहरी क्षेत्र के बच्चों द्वारा स्कूल पहुँचने में तय की गई दूरी औसतन . किलोमीटर थी जबकि ग्रामीण क्षेत्र के बच्चों के लिए घर से स्कूल की यह दूरी औसतन १८. किलोमीटर थी .
अध्ययन से पता चला दस सालसे ऊपर के बच्चे एक्टिव ट्रांस -पोर्टेशन से छिटकने लगतें हैं .
इसकी एक वजह एलिमेंटरी स्कूल से मिडिल स्कूल में पदार्पण होता है .और ये स्कूल घर से दूर होतें हैं .अब बड़े बच्चों की देखा देखी ये जन परिवहन की और मुड़तें हैं
माहिरों के अनुसार एक्टिव ट्रांस -पोर्टेशन का स्कोप इस स्थिति में भी मौजूद रहता है ज़रुरत इस स्थिति को बढ़ावा देने की है .प्रोत्साहित करने की है
गत वर्ष संपन्न एक अधययन से निष्कर्ष निकाला गया -- साला बच्चों ने तीन साल तक एक्टिव -ट्रांसपोर्टेशन अपना कर अपना बॉडी मॉस इंडेक्स कमतर बनाए रखा .बेशक सड़क सुरक्षा एक मुद्दा है लेकिन माँ -बाप इसमें मदद गार बनके कुछ दिन के लिए आगे सकतें हैं .नेक काम में देरी कैसी ?
सन्दर्भ -सामिग्री :-
http://thechart.blogs.cnn.com/2011/07/04/whos-walking-to-school/?hpt=he_c2
हु इज वाकिंग तू स्कूल .?

Get moving: More health risks of sitting रेपोर्तेद

ब्रितानी चिकित्सा पत्रिका (British Medical Journal. )में ताज़ा प्रकाशित एक अध्ययन के मुताबिक़ कामके घंटों के बाद भी जो महिलायें ज्यादातर वक्त बैठे बठे गुजारतीं हैं व्यायाम से भी दूर ही रहतीं हैं उनके लिए पल्मोनरी एम्बो -लिज़्म के खतरे का वजन बढ़ जाता है ,बरक्स उन महिलाओं के जो अपेक्षाकृत कमतर समय बैठे -बैठे बिताने के अलावा थोड़ा बहुत व्यायाम भी कर लेतीं हैं .सबसे पहले यह बतलादें कि पल्मोनरी एम्बोलिज्म (पी )वह स्थिति है जिसमे रक्त प्रवाह में कहीं से भी आकर खून का कोई थक्का उस मुख्य धमनी में फंसे जो फेफड़ों को रक्त ले जाती है .इस कंडीशन के लिए जिन महिलाओं का इलाज़ किया जाता है मेयो क्लिनिक के आकडे बतलातें हैं उनमें से एक तिहाई काल कवलित हो जातीं हैं
आदिनांक किसी भी शल्य के बाद बैठे रहने की मजबूरी पी . की ज्ञात वजह समझी गई है अब इसमें एक रिस्क फेक्टर महिलाओं का देर तक बैठे रहना और जुडा है
इस कंडीशन का जोखिम बे -शक ओरल कोंत्रासेप्तिव पिल्स लेने वाली महिलाओं के लिए भी दर्ज़ किया गया है लेकिन बैठे रहने वाली महिलाओं के लिए यह इस जोखिम का वजन इससे से थोड़ा ज्यादा ठहराया गया है .
समाधान यही है बैठे बठे समय बिताने के समय को कम किया जाए
जन स्वास्थ्य अभियान इस जड़ता को लक्षित कर तोड़ने के लिए चलाए जाने चाहिए
अध्ययन में सबसे ज्यादा ख़तरा उस वर्ग की महिलाओं में दर्ज़ किया गया जो दफ्तर के बाद भी हफ्ते में ४१ घंटा बैठे -बैठे वक्त काट रहीं थीं.(वास्तव में तो वक्त ही आदमी की सवारी करता है काटता है उसकी उम्र के पल हर पल ).और सबसे कम उनमें जिनमें यह बैठे रहने की साप्ताहिक अवधि १० घंटा से भी नीचे ही रही थी .
अध्ययन से यह भी पुष्ट हुआ समान समय बैठे रहने वाली महिलाओं में पी के खतरे का वजन उनमें कम रहा जो थोड़ा व्यायाम भी कर लेतीं थीं बरक्स उनके जो व्यायाम बिलकुल भी नहीं कर रहीं थीं या फिर कम कर रहीं थीं
१९७६ में शुरु हुआ था यह अध्ययन जिसके मार्फ़त १८ साला आंकड़े ६९,९५० महिला नर्सों के बाबत जुटाए गए थे
१९८८ में एक बार इस अध्ययन की अप डेटिंग भी की गई .महिलाओं से घर में बिठाये -क्रिय जड़ता वाले रूटीन के बारे में सवाल ज़वाब किये गए .
अध्ययन में शामिल ९० %महिलायें गोरी (वाईट )थीं ,जिससे यह भी इल्म हुआ उस दौर में कितने %सफ़ेद चमड़ी की महिलायें नर्सिंग को अपना पेशा बनाए हुए थीं .
सन्दर्भ -सामिग्री :-http://thechart.blogs.cnn.com/2011/07/05/get-moving-more-health-risks-of-sitting-reported/?h

2 टिप्‍पणियां:

शिखा कौशिक ने कहा…

dono mudde bahut hi sahi uthhayen hain .aaj kal 12-13 ke bachche cycle ke sthan par bike chalane me roochi le rahe hain .iska dushprabhav to sehat par padna hi hai .
mahilaon ki vyayam ke prati laparvahi hi unke swasthay ko chaupat kar dalti hai .
sarthk v jankari se bhari post .aabhar .

virendra sharma ने कहा…

True ,but it is criminal negligence on the part of the parents to make a two wheeled vehicle powered by an engine accessibe to the teens .Teen age is an age of exhibitionism .
True more and more studues are highlighting the ill effects of sitting for long periods .