माँ के गर्भाशय से नहीं -
कंप्यूटर के ऍम -बाइली -कल कोर्ड से जुडी है ,
गर्भस्थ के जीवन की नाल ।
घट रहा है इसीलिए जीवन सौपान ,
कंप्यूटर से चिपके बैठें हैं हर पहर लोग ,
सुबह दोपहर शाम ,
सोलह साल की "आई टी " के बाद ,
बेटा कर रहा है अब -
काई -नेज़ियो -लोजी में दो साला कोर्स ।
ताकि हो जाए कुछ साल और जीने का इंतजाम।
सन्दर्भ -सामिग्री :-काई -नेसियो -लोजी क्या है ?
दी स्टडी ऑफ़ दी मिकेनिक्स ऑफ़ मोशन इन रिलेशन टू ह्यूमेन एनाटोमी ।
यानी गति की यांत्रिक प्रणाली (यांत्रिकी )का अध्ययन मानवीय -शरीर संरचना के सापेक्ष .गति की यांत्रिकी का ऐसा अधययन जिसका सम्बन्ध मानवीय देह -यस्टीसे हो ।
http://thechart.blogs.cnn.com/2011/07/01/when-sitting-leads-to-standing/?hpt=he_क२
गत सप्ताह मैंने एक लेख लिखा था जिसका आशय था बैठे रहने का सेहत पर क्या और कैसा प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है .हालाकि लिखने के बाद मैं खुद भी बैठ गया था .लेकिन ठीक उसके बाद ही मैं उठके चल दिया था .मैं शुक्र गुज़ार हूँ लोगों की मिलन सारी का .मुझे बहुत प्रसन्नता होती है लोग मुझे ना -पसंद नहीं करतें हैं .इसलिए जब कुर्सी मेरे लिए जड़त्व (इनर्शिया और जड़ता का सबब बनती है )मैं उठके चल देता बेशक फिर अपने काम पे यानी कुर्सी पे लौट आता हूँ ."जैसे उडी जहाज को पंछी उडी जहाज पे आवे . "
रोज़ -बा -रोज़ मैं उन अध्ययनों से दो चार होता हूँ उन्हें खंगालता हूँ जो हमें गुड लिविंग प्रेक्तिसिज़ का सबक पढातें हैं .एक अच्छी जीवन शैली रहनी सहनी की तरफ इशारा करतें हैं ।
बेशक हरेक अध्ययन कुछ प्रमाण ही जुटाता है .फैसला हम सबका अपना अपना होता है अपने अपने दायरों की सीमाओं में ।
सेवा निवृत्ति से पूर्व में महाविद्यालय में पढाता था .इतनी बड़ी इमारत में कभी नीचे कभी ऊपर जाता रहता था .लेदेकर स्टाफ रूम का ही रेस्ट रूम अपने थोड़ा बहुत सहनीय (साफ़ साफ़ बस )होने की शर्त पूरी करा पाता था .हमारा विभाग फस्ट फ्लोर पर था .इसीलिए हमारे लिए यह लाभ का सौदा था .हर बार रेस्ट रूम के लिए नीचे आना ही आना .पानी भी हम दबा के पीतें हैं इसलिए यह आवृत्ति नीचे ऊपर की आवाजाही की बढ़ जाती थी ।
बैठे रहने के बारे में इसलिए अधिक कुछ सोचना न पडा .अब बैठे रहने के अलावा कोई काम ही नहीं है .हम ब्लोगिये हो गए पूर्ण -कालिक ।
अब किसी और को नहीं शरीर को ही खुद आगाह करना पड़ता है अपने आपे को उठो भैया उठो -थोड़ा ब्रेक लो ।
अध्ययन तो अब आया है -बैठे रहने से आदमी का जीवन सौपान ,जीवन अवधि कम हो जाती है ।
यहाँ "यू .एस'" में तो सच- मुच पैदल चलना एक अजूबा है ।
अभी अभी हम टोरोंटो से लौटें हैं -बेशक टोरोंटो एक वर्ल्ड क्लास सिटी है शिकागो और न्युयोर्क के स्तर की लेकिन यहाँ ओंटेरियो की राजधानी में जन -परिवहन अति -सहज सुलभ है आराम दायक है .मारा मारी नहीं है .मेट्रो रेल सेवा की आवृत्ति अपनी मुंबई की तरह और अन्दर खूब अवकाश उपलब्ध है .सभी डिब्बों में एक एक गार्ड उपलब्ध है जो सुनिश्चित करता है सब लोग चढ़ उतर लिए हैं .दिल्ली मेट्रो रेल सेवा की तरह यहाँ रोशनियाँ ज़रुरत से ज्यादा नहीं हैं .सोबर हैं .चौंधियाती नहीं हैं आँखों को .लोग पैदल चलतें हैं और इसीलिए मिशगन (अमरीका )के लोगों की तरह थुलथुल नहीं हैं यहाँमिशिगन तो कभी कभी ऐसा लगता है आदमी से चल पाने की शर्त भर पूरी करवाई गई है .बेहद का आकार डील -डौला है लोगों का ।
कैसे इतनी भारी भरकम काया को लेके चल देतें हैं .यकीन नहीं होता .खूबसूरत भी हैं टोरोंटो के लोग ।भाई साहब पैदल चलतें हैं लोकल पकड़ने के लिए ,ठुमक ठुमक .कोई अफरा तफरी नहीं .पुर -सूकून ज़िन्दगी .
लेदे के तीन करोड़ लोग रहतें हैं कनाडा में और इलाका (भौगोलिक क्षेत्र )अमरीका से भी ज्यादा जो भारत से आकार में तीन गुना बड़ा है औरबस भारत से एक चौथाई आबादी लिए हुए है ।
यहाँ अमरीका में कोई मुलाजिम अपने सहयोगी को बताये -पैदल आया हूँ मायर से यहाँ तक ,लोग वोब कह उठतें हैं ।
यहाँ आदमी की ऍम -बाई -लिकल -कोर्ड कंप्यूटर से जुड़ चुकी है ।
यहाँ बैठे रहने से होने वालिया नुकसानी की भरपाई २० मिनिट की कसरत पूरी कर ही नहीं सकती ।
देर तक बैठे रहने की विवशता आपको जल्दी मर जाने की आशंका की और ठेल रही है ।
बचाव का एक ही तरीकाहै बैठे बैठे कंप्यूटर पर काम करने के समय को कम किया जाए ।
खड़े होके लिखने की आदत डालिए -मेरे प्यारे ब्लोगियों में .मैं भी कुछ करता हूँ ।
काश कप्यूटर को कोई विमान की कोक्पिट में ,ट्रक ड्राइवर की सीट पर ट्रेड मिल पर फिट करवा सके .खड़े होके या ट्रेड मिल पे चलते चलते सब कुछ किया जा सके ।
यहाँ अमरीका में सुविधा है जॉब बदल सकने की १६ साल पढ़ाई करके अब लोग काई -नेसियो -लोजी में कोर्स करके जॉब बदल का सोच रहें हैं .
रविवार, 3 जुलाई 2011
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10 टिप्पणियां:
आप विषय को बहुत अलग तरह से देखते हैं।
आपका यह अवलोकन भी अच्छा लगा।
हम व आप का क्या होगा?
खडे होकर लिखने का आइडिया गजब का है। चूंकि मुझे बैकपेन की शिकायत रहती है इसलिए मैंने भी इस बारे में सोचा था। पर यह सब सोच ही रह गयी।
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तांत्रिक शल्य चिकित्सा!
…ये ब्लॉगिंग की ताकत है...।
संस्मरणों के साथ आपकी दिमागी उड़ान भी देखी समझी -मजेदार !
veeru bhai ji
mere blog par aakar mera housla badhane ke liye aapki hardik badhai.
aapka pura lekh padha maine bahut hi sahi aankaln kiya aapne .sach hai .aaj -kal computrised hi ho gaye lagte hain .kisi ke ghar jaoo to unke kan aapki baat par aur v dimaag type karne ke liye ki-bord -par .
abhi bhi wakt hai ki ham yun chipku na ban jaaye jisse aage chal kar se hat par asar pade.
aapke sochne ka najariya bahut hi achha laga.
ek baar punah
hardik badhi
is prastuti karan ke liye
dhanyvaad
poonam
ये खड़े हो कर लिखने वाली बात ठीक लगी ... इसी बहाने कुछ साल और जी लेंगे ...
Sharma ji
........khade khde main ideas bhi bde bde aayenge.....khda ho kar likhna to tiket katne jaisa ho jayega....
.........khde ho kar sochna padega aur kya coment krein...?
plz check you mail sir
बात को समझने और उसे हम तक सरलता से पाहुचाने का आप का तरीका अच्छा है श्रीमान| शारीरिक श्रम को नज़रअंदाज़ करना महंगा पड़ने ही लगा है|
kuch alag sabject kuch alag vichar padne ko mile...
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