दी वीमेन ऑफ़ टमारो नाम के इस अधययन में २१ मुल्कों की ६५०० महिलाओं का फरवरी से अप्रेल २०११ तक अध्ययन किया गया .पता चला कामकाजी महिलाओं में से भारत की ८७ %महिलायें तकरीबन तमाम वक्त ही दवाब का सामना करतीं हैं .इन्हें मरने की भी फुर्सत नहीं है .८२ %के पास "मी टाइम "नाम की कोई चीज़ नहीं है कोई फुर्सत के पल अपने लिए नहीं है सुस्ताने ठीक से सांस ले पाने के ,रिलेक्स होने के .
मेक्सिको (७४ %)तथा रूसी महिलायें(६९%) भी दवाब के मामले में इनसे बहुत पीछे नहीं हैं .
दवाबकारी स्थितयों का %कुछ यूं हैं घटते हुए क्रम में -
शीर्ष पर भारतीय महिलायें (८७%),मेक्सिको (७४ %),रूसी (६९%)तथा ब्राज़ील (६७%),स्पेन (६६%),फ्रांस (६५%),दक्षिणी अफ्रीकी (६४%),इटली (६४%),नाईजीरिया (५८%),तुर्की (५६%),यू.के (५५%),यू .एस. ए .(५३%),जापान ,कनाडा ,ऑस्ट्रेलिया (५२%),चीन (५१%),जर्मनी (४७%),थाईलैंड और दक्षिणी कोरिया (४५%),मलेशिया और स्वीडन (४४%).
न्यूज़ एजेंसी रायटर्स के मुताबिक़ खर्ची के मामले भारतीय महिलायें शीर्ष स्थान बनाए हुएँ हैं यानी डिसपोज़ -एबिल इनकम का बहुलांश(९६%) ये भारतीय महिलायें अपने ऊपरखर्च करतीं हैं पता चला इस प्रयोज्य आय को तीन चौथाई महिलायें अपनी सेहत और सौन्दर्य प्रशाधनों पर खर्च करतीं हैं .जबकि इनमे से ९६ %ने बतलाया वे इस पैसे के कपडे लत्ते खरीदतीं हैं .
कमोबेश सभी विकास शील मुल्कों की महिलायें यह अतिरिक्त आय कपड़ा लता ,सौन्दर्य सामिग्री ,ग्रोसरीज़ तथा अपने बच्चों की शिक्षा पर ही खर्च करती मिलीं .
जबकि विकसित दुनिया की औरतें इस आय का समायोजन छुट्टियों की मौज मस्ती ,बचत और क़र्ज़ से मुक्ति में करती देखीं गईं .
दुनिया भर की औरतें शिक्षा के मामले में लगातार ऊंची सीढियां चढ़ रहीं हैं ,वर्क फ़ोर्स में इनका दखल बढा है और घरेलू आय में योगदान भी .इनके खर्ची की क्षमता में बढ़ोतरी के साथ ही आनुपातिक तौर पर घर के मामलों में फैसले लेने में भी इनकी हिस्सेदारी बढ़ रही है ..
कहा जा सकता है आज की और आने वाले कल की औरत एक सशक्त उपभोक्ता है .बाज़ार की ताकतों और विज्ञापन की दुनिया को इन्हें लक्षित करना होगा इन्हें नजर अंदाज़ किया ही नहीं जा सकता .
नील्सैन कम्पनी के सर्वेक्षण से यह भी उजागर हुआ ,आज औरत एक से ज्यादा रोलों में है उसकी भूमिका बहु -मुखी है इसी अनुपात में उसका तनाव बढ़ता जाए है .
इकोनोमिक टाइम्स की राय में भारत में कम्पनियों और कामकाजी जगह का परिवेश तो प्रोद्योगिकी के संग साथ चलने लगा लेकिन भारतीय सामाज अभी वहीँ खडा है हतप्रभ .ऐसे में परम्परा और आधुनिकता बोध से रिश्ता तनाव औरत को ही झेलना पड़ रहा है .घर बाहर के साथ तालमेल बिठाने में वह सुबह से शाम तक बे -तहाशा भाग रही है ,"मी टाइम" की तलाश में .जो न्यूट्रिनो की तरह पकड़ा नहीं जाए है .
बेशक समय करवट ले रहा है .सर्वे में पता चला विकास शील देश की औरत पहले से कहीं ज्यादा आर्थिक रूप से आज़ादी महसूस कर रही है .शिक्षा और अधुनातन प्रोद्योगिकी तक इनकी बेटियों की पहुँचआर्थिक रूप से आगे चल रहे मुल्कों की बनिस्पत ज्यादा बढ़ रही है .
ज़ाहिर है समय के दवाब तले पिसते हुए भी उसका सशक्तिकरण ज़ारी है घर के आर्थिक बजट नियोजन में उसी का बड़ा हाथ है .अब यह जिम्मेवारी सामाजिक जन संचार माध्यमों की है कैसे वह उसके पर्स में हाथ डाले .उसे खर्च के लिए उकसाए .
सोसल नेट्वर्किंग इंटर नेट ,स्मार्ट फोन के उपभोग में भी औरत मर्द से आगे चल रही है .
ब्लॉग पर भी उसका हस्तक्षेप बढा है .देख सकता है कोई भी ब्लोगिया .
इस औरत से जुड़ने पकड़ने के लिए सोसल मीडिया को ही कोई नै रणनीति तैयार करनी होगी .ब्रांड्स के पीछे भी यही आधुनिका भाग रही है मर्दों से आगे आगे .
बाज़ार की इस सब पे नजर है .
आज भी टेलीविजन विज्ञापन और स्टोर तक पहुँचने का सबसे प्रमुख ज़रिया बना हुआ है .पुराने संचार के तरीके आज भी ज्यादा कारगर सिद्ध हो रहें हैं .
लेकिन आज भी दुनिया के विकसित बाज़ारों की औरत ७० % तथा विकास शील की ८० %मामलों में माउथ टू माउथ संचार और उत्पाद की सुनी सुनाई तारीफ़और सिफारिश पर ज्यादा भरोसा रखे है .
बाज़ार उसे टकटकी लगाए देखे है .
सन्दर्भ -सामिग्री :-Posted by: CNN, Natalie Robehmed
Filed under: बिज़नस
Smoking in pregnancy linked to serious birth defects
धूम्रपान का रिश्ता तमाम किस्म की सेहत से जुडी समस्याओं मसलन फेफड़ा कैंसर ,हृद रोगों ,दिमागी दौरों (stroke,),बांझपन ,समय पूर्व प्रसव , नवजात का निर्जीव पैदा होना ,जन्म के समय वजन का कम रह जाना तथा आकस्मिक शैया मृत्यु संलक्षण यानी
(stillbirth, low birth weight and SIDS) आदि से रिसर्च जोडती रही है फिर भी यदि आप धूम्रपान ज़ारी रखें हुएँ हैं और अ-विचलित रहे आयें हैं ,तब हो सकता यह रिपोर्ट आपको थोड़ा विचलित करे आप स्मोकिंग को मुल्तवी रखें अगले जन्म के लिए .
पूर्व संपन्न दर्ज़नों अध्ययनों का ताज़ा पुनर -आकलन धूम्रपान का सम्बन्ध कुछ बेहद गंभीर जन्म पूर्व की विकृतियों से जोड़ता है .इनमे हृद सम्बन्धी विकारों के अलावा हाथ -पैरों का जन्म के समय नदारद मिलने से लेकर ,उदर और आंत( gastrointestinal disorders and facial disorders.)चेहरे मोहरे से जुड़े विकार भी शरीक हैं .
गर्भावस्था में धूम्रपान और जन्म विकार नामी (“Maternal smoking in pregnancy and birth defects,” )इस अध्ययन का ऑन लाइन प्रकाशन विज्ञान प्रपत्र “ Human Reproduction Update from the European Society of Human Reproduction and Embryology, ,” ने किया है जो अब तक का सबसे व्यापक अध्ययन है .इस अध्ययन में उन ख़ास विकारों को रेखांकित किया गया है जो धूम्रपान से सीधे -सीधे जुड़तें हैं.इसमें १९५९ -२०१० तक के प्रेक्षण आधारित अध्ययनों के अलावा १०१ शोध पत्रों का भी निचोड़ है .
गर्भावस्था धूम्रपान सम्बन्धी विकारों में ख़ास जगह मिली है -
(१)हृद विकारों के बढे हुए जोखिम को .
(२)हाथ पैरों की अविकसित अवस्था या नदार्दगीसे ताल्लुक रखने वाले विकार ( limb reduction defects—Human Reproduction Update from the European Society of Human Reproduction and Embryology, )
(३)क्लब फुट ( clubfoot).
(४)होठों और तालू का कटा फटा परस्पर जुड़ा होनातथा नेत्र विकार .(cleft lip or palate
– eye defects).
(५)उदर ,आंत ,गर्भ -नाल ,किस्म किस्म के हर्निया सम्बन्धी विकार ( gastrointestinal defects like gastroschisis, anal atresia, and umbilical/inguinal/ventral hernias).
पता यह भी चला गर्भ काल के दौरान धूम्रपान करते रहने वाली महिलाओं के शिशुओं में कमसे कम दो या और भी ज्यादा विकारों का डेरा देखनें को मिल सकता है .
बेशक एक हैरत अंगेज़ बात यह भी सामने आई धूम्रपानी महिलाओं में चमड़ी से ताल्लुक रखने वाले चमड़ी को बदरंग बनाने वाले विकार मसलन pigmentation disorders and moles,के खतरे का वजन कम हो जाता है .लेकिन इस अध्ययन का साफ़ लफ़्ज़ों में पल्लू से बाँधने वाला सबक यह है -गर्भ काल में धूम्रपान जच्चा और बच्चा दोनों के लिए खतरनाक है .
फिर भी २००९ में मुंबई में संपन्न तंबाकू और सेहत से जुडी १४ वीं आलमी बैठक में बतलाया गया दुनिया भर में २५ करोड़ महिलाए रोज़ धूम्र पान करतीं हैं .२० %अमरीकी महिलायें धूम्र पानी हैं .तमाम खतरों से बा -खबर होते हुए भी इनमे से कितनी ही महिलायें गर्भावस्था में भी धूम्र -पान से बाज़ नहीं आतीं .
Reference material: This story was originally published by CNN's partner, Parenting.com.
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें