शुक्रवार, 15 जुलाई 2011

Massive stroke: Life shattering, life affirming.

मुसीबतों से पार पाने की मौत के मुंह से ज़िन्दगी को निकाल बाहर लाने की बला की क्षमता होती है हममे से कितनो के ही पास लेकिन हमें इसका इल्म नहीं होता .ऐसी ही गाथा को डियाना रोब ने साकार किया है अपने पति को ब्रेन स्ट्रोक (दिमागी दौरे ) के प्राण लेवा असर से बाहर लाने में .
आसमान से जनवरी ४ ,२००४ की सुबह रोज़ की तरह ही उतरी थी .बिटिया केलसी स्कूल चली गई थी .डियाना ने रोज़ मर्रा की घरेलू चीज़ें जुटाने के लिए घर से बाहर का रुख किया था और उनके मूर्तिकार शिल्पकार पति केविन रोज़ की तरह अपने स्टूडियो में खिसक लिए थे .स्टेन- लेस स्टील से लेकर ताम्बे तक की मूर्तियाँ बनातें हैं केविन .वृहद् आकार की एबस्ट्रेक्ट मूर्तियाँ बनातें हैं केविन .कला का अप्रतिम गूढ़ नमूना गढ़तें हैं .
डियाना ने बाज़ार से लौटने पर देखा -केविन बेहोश पड़ें हैं अपने स्टूडियो में .
अम्बुलेंस के घर से अस्पताल का रुख करने से पहले केविन को जीवन रक्षक प्रणाली से लैस कर दिया गया था .वह इसी हाल १३ दिन तक बने रहे .
बस यहीं से जीवन और मौत का संघर्ष शुरु होता है .आप भी बनिए उसके साक्षी -
दूर दूर तक किसी को भान नहीं था केविन जो ४९ साल की उम्र में एक दम से हृष्ट -पुष्ट तंदरुस्त था कहीं कोई आशंका न थी कि खून का थक्का रक्त प्रवाह में शरीर के किसी और हिस्से से चलके दिमाग की राह हो लेगा .लेकिन ऐसा ही यकायक हुआ .
पुनर्वास अस्पतालों में पूरे सात सप्ताह बिताने खपाने के बाद सीधे हाथ के अंगों (शरीर के दाए पार्श्व का )फालिज लिए केविन घर लौट आये .केविन न संभाषण की स्थिति में थे न कुछ और सांकेतिक भाषा में समझाने की .सम्प्रेषण का पूर्ण ब्लेक आउट था .
पूरा एक महीना लिविंग रूम में बिताने के बाद भी केविन की स्थिति में जब सुधार के चिन्ह प्रगटित नहीं हुए ,उन्हें उनके स्टूडियो में ले जाया गया .बकौल डियाना उस वक्त उनके चेहरे की आभा देखते ही बनती थी जिस पल उनकी नजर उन औजारों पर टूल्स और धातुओं (मेटल्स )पर पड़ी जो कभी उनकी ज़िन्दगी थे .खो गये वो प्रतिमाओं के उस अद्भुत संसार में जहां कोई अपंगता नहीं थी .एक सम्मोहन था .
उनके चेहरे पर ज़िन्दगी के भाव -अनुभाव रागात्मकता देख डियाना की उम्मीद जीवित हुई .
हालाकि डियाना खुद हतप्रभ थीं जो पेशे से एक हेल्थ केयर एडमिनिस्ट्रेटर और एक पब्लिक स्पीकर ही थीं और उन्हें मूर्तियों को आकार देने का कोई अनुभव नहीं था .क्या कैसे करें वह इन टूल्स और मेटल्स का ?अब यही तीमारदारी और औज़ार इनकी ज़िन्दगी थी जो केविन को संजीवनी देते से लगे थे .६ महीने इसी ऊहापोह में खिसक लिए .लेकिन डियाना ने हार नहीं मानी .
इस दरमियान केविन कुछ चलना फिरना फिर से सीख गए बाए हाथ से कुछ ड्रो भी करने लगे .बिना संभाषण और आवाज़ के संकेतों की जुबां में अपनी कहने दूसरे की सुनने लगे ..उनके चेहरे पर वही परिचित मुस्कान और आँखों में चमक छाने लगी .केविन अपनी तमाम वृहदाकार प्रतिमाओं के प्रा-रूप खुद ही खींचते थे अपनी देख रेख में वेल्डर को सारे अनुदेश देते कहाँ कट करना है कहाँ कर्व देना और फिर वेल्ड करना है अंग -प्रत्यंगों को शिल्प के कृति को .
ज़ाहिर है स्ट्रोक के बाद भी उनका काम ज़ारी रहा .स्टूडियो से ही सब कुछ बिकता रहा .Included in his post stroke sculpting are: a 30 foot stainless steel sculpture that can be seen from I-5 in San Diego, CA, an 18 foot bronze sculpture for a library in Texas, a 20 foot stainless steel sculpture for the city of Wheat Ridge, CO, a 16 foot sculpture for the McCarran Business Park in Las Vegas, Nevada, as well as winning “Best of Show” at the Sculpture at River Market, an all -culpture juried show in Little Rock, Arkansas.
शिल्प आर्ट गेलेरीज़ में भी बराबर पहुंचता रहा .खरीददारों को कोई इल्म नहीं स्ट्रोक के बाद भी ज़िन्दगी रुकी नहीं .रफ्ता रफ्ता फिर आगे बढ़ी .
सारा खेल इच्छा शक्ति ,दृढ़ता और उस आदिम प्रवृत्ति का था जो एक शिल्पकार की धरोहर होती है ,चारित्रिक विशेषता होती है .वह ट्रेट कभी मरता नहीं है ज़िंदा रहता है .शायद अगले जन्म में भी संस्कार बन साथ होलेता है .यही ड्राइव और डिटर- मिनेशन उन्हें फिर से ज़िन्दगी के करीब ले आया था स्ट्रोक .आया और चला भी गया .
एक बिरले शिल्प कार मूर्तिकार हैं केविन जिन्होनें पूरे परिवार का पोषण संवर्धन इसी शिल्प के भरोसे किया और इसीलिए तमाम राष्ट्रीय अंतर -राष्ट्रीय स्तर पर उनके काम को सम्मान मिला है निगमों ,विश्वविद्यालयों ने उनकी मूर्तियाँ खरीदीं हैं .शिल्प ही उनके लिए रामबाण था .रामबाण रहा .
३६ सालों के इस दाम्पत्य सफर में डायना एक टीम मेट की तरह उनके साथ खड़ी दिखीं हैं आदिनांक .और इसीलिए -
Kevin is one of the rare sculptors who found a way to support his family with art. His metal sculptures have been collected by corporations, individual collectors, universities, cities and states; nationally as well as internationally. The year before the stroke he completed a commission for the Borgata Casino and Spa in Atlantic City, New Jersey, a collection of six large stainless steel sculptures.Some people would consider that he had reached the pinnacle of success with this commission but the fact is that he had already created a thriving sculpture business.
सन्देश यही है जो निरंतर काम मग्न रहता है साधना रत रहता है उसके काम का शिखर नित नै ऊंचाइयां छूता पठार की तरह ठहरता नहीं है .
सन्दर्भ -सामिग्री :Post by:
Filed under: Human Factor

सहभावित कविता :वोट मिला भाई वोट मिला है .-डॉ .नन्द लाल मेहता वागीश ,सह- भाव :वीरेंद्र शर्मा .. वोट मिला भाई वोट मिला है ,

सहभावित कविता :वोट मिला भाई वोट मिला है .-डॉ .नन्द लाल मेहता वागीश ,सह- भाव :वीरेंद्र शर्मा ..
वोट मिला भाई वोट मिला है ,
पांच बरस का वोट मिला है .
फ़ोकट सदन नहीं पहुंचें हैं ,जनता ने चुनकर भेजा है ,
किसकी हिम्मत हमसे पूछे ,इतना किस्में कलेजा है .
उनके प्रश्न नहीं सुनने हैं ,हम विजयी वे हुए पराजित ,
मिडिया से नहीं बात करेंगे ,हाई कमान की नहीं इजाज़त ,
मन मानेगा वही करेंगे ,मोनी -सोनी संग रहेंगे ,
वोट नोट में फर्क है कितना ,जनता को तो नोट मिला है ,
वोट मिला भाई वोट मिला है .पांच बरस का वोट मिला है .

हम मंत्री हैं माननीय हैं ,ऐसा है सरकारी रूतबा ,
हमें लोक से अब क्या लेना ,तंत्र पे सीधे हमारा कब्ज़ा ,
अभी तो पांच साल हैं बाकी ,फिर क्यों शोर विरोधी करते ,
हिम्मत होती सदन पहुँचते ,तो शिकवे चर्चे कर सकते ,
पर्चा भरने की नहीं कूव्वत ,फिर क्यों व्यर्थ कहानी गढ़ते ,
वोटर ही तो लोकपाल है ,हममें क्या कोई खोट मिला है ,
वोट मिला भाई वोट मिला है ,पांच बरस का वोट मिला है .

भगवा भी क्या रंग है कोई ,वह तो पहले भगवा है ,
फीका पड़ा लाल रंग ऐसा ,उसका अब क्या रूतबा है .
मंहगाई या लूट भ्रष्टता ,यह तो सरकारी चारा है ,
खाना पड़ेगा हर हालत में ,इसमें क्या दोष हमारा ,
जनता ने जिसको ठुकराया ,वह विपक्ष बे -चारा है ,
हमको ज़िंदा रोबोट मिला है ,वोट मिला भाई वोट मिला है ,
पांच बरस का वोट मिला है

5 टिप्‍पणियां:

मनोज कुमार ने कहा…

आलेख का प्रसंग हृदयस्पर्शी है।
कविता का व्यग्य तीक्ष्ण।

कृपया फॉण्ट साइज थोड़ा बड़ा रखा करें, पाराग्राफ को जस्टीफाई कर दें और दो पाराग्राफ के बीच स्पेस दे दें, इससे पोस्ट अच्छा दिखेगा।

मनोज कुमार ने कहा…

आलेख का प्रसंग हृदयस्पर्शी है।
कविता का व्यग्य तीक्ष्ण।

कृपया फॉण्ट साइज थोड़ा बड़ा रखा करें, पाराग्राफ को जस्टीफाई कर दें और दो पाराग्राफ के बीच स्पेस दे दें, इससे पोस्ट अच्छा दिखेगा।

Vivek Jain ने कहा…

इच्छाशक्ति से सब कुछ संभव है, प्रेरणादायक प्रसंग के लिये साभार,
विवेक जैन vivj2000.blogspot.com

डॉ. नूतन डिमरी गैरोला- नीति ने कहा…

bahut sundar samayik prasang .rachna umda

Arvind Mishra ने कहा…

इतने सुन्दर आलेख के साथ एक कविता फ्री -भाव विभाव !