पेन हेंड -लर्स ,भिक्षाटन आदि अनेक नाम रूप हैं भीख मांगने के .ये तमाम लोग भीख मांगकर आपको दाता होने का गौरव
देते थे ।देतें हैं देते रहेंगे लेकिन ....
संत मलूक दास ने कहा था -अजगर करे न चाकरी ,पंछी करे न काम ,दास मलूका कह गए सब के दाता राम ।
हमारे यहाँ एक सामाजिक प्रणाली थी सबको आश्वाशन था कुछ न कुछ मिलने पाने का ।राशन सबके लिए था .
कुछ जातियां हाथ में खंजड़ी लिए घूमतीं थीं,गाती बजातीं थीं इन्हें जोगी कहते थे .नट होते थे ,खेल तमाशा रस्सी पे करतब दिखाते थे .तमाशा ख़त्म होने से पहले उनके पात्र में कुछ सिक्के आ जाते थे ।
सपेरे होते थे रीछ का तमाशा दिखाने वाले होते थे .बहरूपिये होते थे कभी पुरुष वेश धरके और कभी नारी ,कभी साधू और कभी राक्षसी भेष बनाए आते थे ,हंटर फटकारते ,समाज का मनोरंजन करते थे .जन -मन -रंजन था यह एक किस्म का .निर्भय भाव घूमते थे ये तमाम लोग .न इनको किसी का भय न इनसे किसी को भय ।
सामाजिक सिस्टम में रोटी कमाने के सबके साधन भिन्न- भिन्न होते थे ।
ब्राह्मण 'हंगा' होता था .यानी पकी पकाई रोटी मांग कर खाता था .कई मर्तबा जब ब्राह्मण पुरुष पूजा कर्म में प्रवृत्त होते यही काम ब्राह्मणी भी करतीं थीं ।कई भिक्षु शुरु के तीन घरों से कोई पांच से भिक्षा न मिलने पर लौट जाते थे .अपनी लगन और नियम के पक्के होते थे .
अन -पढ़ और विधवाएं होतीं थीं ग्यानी ध्यानियों से तिथि -त्यौहार की सूचना लेकर घर घर पहुंचातीं थीं .पखवाड़े की सारी तिथियों का बोध करवातीं थीं .आज एकादशी है आज द्वादशी ,आज अमावस ,आज पूर्णिमा ,देव -उठान एकादशी वगैरा - वगैरा ,चल पंचांग होतीं थीं ये नारियां .बदले में दो जून की रोटी पा जातीं थीं ।
अ -संतोष नहीं था तब समाज में .वह समाज जो आज चोरी चकारी में पडा हुआ है तब वैसा नहीं था .ऐसा नहीं तब सभी सद-चरित थे ,बलात्कारी चोर उचक्के नहीं थे ,लेकिन तब यह समाज से छिपते थे -अप -कर्म करने के बाद व्यक्ति बहन बेटियों से छिपता फिरता था ।लेकिन आज ....
आज यही लोग पार्षद हैं और चुनाव लड़के कहीं कहीं आ गए .सड़क से संसद तक इन्हीं का डेरा है ।
पहले घरों में पारिवारिकता होती थी .आपका बच्चा शरारत करता था तो पडोसी भी उसे हक़ समझके मार देता था .घर आके बच्चा और पिटता था .माँ -बाप कहते थे -ज़रूर तूने कोई शरारत की होगी .यानी समाज में सबको अधिकार था .इस सिस्टम में हिंसा नहीं थी .पारिवारिकता सबसे ऊपरथी . लफंडे छिपके रहते थे .अब कच्छा गिरोह में आ गए हैं समाज आतंकित है ।
हमने खतरों का समाज पैदा किया है ।अब भिखारियों से भी ख़तरा है .
इस यू .एस विज़िट में दो वर्ल्ड क्लास सिटीज़ की सैर की है एक शिकागो .वहां का नोर्थ मिशगन एवेन्यू हब है ऊंची ऊंची इमारतों का पर्यटकों का .भिक्षाटन भी देखा लेकिन अति -परिष्कृत रूप में -एक आदमी एक ठेले में बैठा है ,बाइबिल पास रखी है हाथ में एक पात्र है बड़ा सा उसमे चंद सिक्के हैं वह उन्हें झुनझुने की तरह बजा रहा है ।
दूसरा बहरूपिया बनके चेहरे और कपड़ों पर वाईट पैंट लगाए माइम और मिमिक्री कर रहा है .उसकी बाकायदा वेबसाईट है .स्टिल होजाता है वह माइम करते करते . एक छोटे से स्टूल पे खडा तमाम करतब दिखलाता है ।
टोरोंटो (कनाडा )में देखा एक व्यक्ति गत्ते की एक तख्ती लिए है जिस पर लिखा है -नोट फॉर स्मोकिंग ,नोट फॉर ड्रिंक्स ,फ्यू कोइंस फॉर फ़ूड ।
यह ईटन सेंटर है टोरोंटों का कल यहाँ आइफा एवार्ड्स का तमाशा था .आज कोई इस्लाम प्रेरित कार्य -क्रम चल रहा है .सी एन टावर भी यहीं हैं .ये लो एक और टोली वेस्ट्रन आर्केस्ट्रा की गवैयों की यहाँ ज़मी हुई है .पूरे साज़ औ आवाज़ के साथ.यहाँ भी बस एक पात्र ।कोइन की खन खन सुनने पर साज़िन्दा कहेगा -थेंक यू ,झुके अदब से .
गत वर्ष ओल्ड सिटी ऑफ़ एलेग्ज़ेन्द्रिया (वाशिंगटन डी सी )गए थे -वहां एक साहब वाइन ग्लासों से जल तरंग का काम ले रहे थे .बेहतरीन कलाकार थे .वहां भी एक डिब्बा रखा था जिस पे लिखा था -माई लिविंग ।
गुब्बारे वाला यहाँ भी था .हर शक्ल सूरत आकृति के गुब्बारे बनाता तुरत फुरत यहाँ भी "माई लिविंग पात्र "रखा था .गुब्बारे का कोई रेट नहीं .जो चाहें दीजिए .दाता होने का गौरव प्राप्त कीजिए .बच्चे भी खुश बड़े भी खुश ।
हिन्दुस्तान में तो बहुत कुछ हमने देख लिया -यहाँ तोराजधानी में भी चौराहे बटे हुएँ हैं भिखारियों के वही वही परिवार नन्द लाल बार बार देखिएगा .राम -बलराम की नन्नी जोडियाँ .चौराहों पर अगरबत्ती और बड़ी आकार की माचिस बेचते बच्चे ।
शनिवार का यहाँ अपना आलम होता है -चौराहों पर शनि -महाराज का पात्र विराजमान है ।यानी वह भी लाइन में हैं भिखमंगों की .
मंगल वार को मंदिर मार्ग ,रिवोली सिनेमा के पास है हनूमान मंदिर और भी श्रृंखलाएं हैं मंदिरों की (एम्पोरियम हैं यहाँ सारे )पर बिलो-पावर्टी वालों की लम्बी लाइन ,कुछ मुकम्मिल बसेरा डाले पूरे परिवार के परिवार यहाँ आप देखिएगा .साथ में करीब में जूठी पत्तलों का ढेर भी होगा .तैरता हुआ पानी का पूल भी पत्तलों को नचाता हुआ ।
और बृहस्पति वार को लोधी रोड का साईं बाबा मंदिर और यहाँ फिर वही गरीबी रेखा के नीचे मुखर लोगों की किलोमीट्री
कतार .
अब बताओ इसे -भिक्षाम देहि :तेरे रूप अनेक न कहें तो क्या कहें ।
यहाँ डाउन टाउन डेट -रोइट में होम लेस होने का महिमामंडन है .बस सीने पर एक प्ले -कार्ड लटका है जिसपे लिखा है-होमलेस ,और बस हो गया काम .मिल गया राशन पानी .ऐसा नहीं है अमरीका में काम नहीं है .लोग काम करना नहीं चाहते .वरना काम के अलावा यहाँ तो बे -रोजगारी भत्ता भी मिलता है प्रतिष्ठा के हिसाब से ।
गज़ब के गवैये हैं यहाँ काले (अफ्रो-अमरीकन ).डाउन टाउन मोटर नगरिया डेट -रोइट इनका स्वर्ग है ।
(ज़ारी....).
सोमवार, 4 जुलाई 2011
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14 टिप्पणियां:
nice post veeru ji .thanks
veerubhai ram-ram!
Ab kiya missal dun,tumahre dimaag ki
sachhai se bharpur post,bhiksha kamaal ki...
Aaj google hindi kaam nhi kar rha subah se n jaane kiyon ? angrezi aati nahi ...ram-ram kare bina jaana nahi...
बहुत ही बढ़िया पोस्ट है सर,
आभार,
विवेक जैन vivj2000.blogspot.com
नतमस्तक
इन दिनों तो समाज और संस्कृति के अध्येता बने हुए हैं वीरू भाई!
भिक्षा और दान का फर्क बताईये? नचिकेता ने तो यहाँ अपना शरीर ही दान में दे दिया था पिता की बात पर !
और देहदान पर भी कुछ लिखिए .!
अरे दधिची झूठा होगा ,जिसने कर दिन दान अस्थियाँ ,
जब से तुमने वज्र सम्भाला मरने वाला संभल गया है .
दान तो कर्ण ने किया था .एक हाथ दे दूसरे को खबर न हो ,मैं दाता कौन ,दाता तो वह है मैं तो निमित्त मात्र हूँ ।
अनुदान और भिक्षा में कोई फर्क नहीं है .हम आपको क्या बतायेंगें भाई साहब हम तो खुद जिज्ञासु हैं .
भाई साहब ..अतिसुन्दर अजब - गजब पोस्ट ! वास्तव में गहराई को छूते हुए ! देश - दुनिया को इतने खुबसूरत ढंग से प्रस्तुत किये ! बधाई
नाम कई बार कई जगह पढा आपका.आज ब्लॉग ढूढ़ निकाला.सचमुच अच्छी पोस्ट लगी इसलिए पूरी पढ़ कर छोड़ी नही तो बीच में छोड़ भागती हूँ.चंद पंक्तियों एस अंदाज लग जाता है.पूर्व में नट,सपेरे,बहरुपिए आदि जो करते थे वो उनकी जीविका का साधन था.कम्प्युटर,टीवी ने इनके पेट पर लात मारी है.अब तो देखने को भी नही मिलते ये लोग.अन्यथा मेरे मन में तो इनके लिए हमेशा सम्मान रहा है कि ये लोग मेहनत करके कमा रहे हैं. विदेशों के जो उदहारण आपने बताए हैं वो सम्मानीय तरीके से कमाने के तरीके हैं.मैं ट्रेन में गाने वालो से खूब गाने सुनती थी और बदले में खाना खिलाती या इतना जरूर देती कि दो व्यक्तियों का पेट भर सके.आखिर वे मेहनत करके कम रहे जो हर हालत में चोरी करने से तो बेहतर है.है ना?
दाता होने का गौरव.
वाह ,क्या बात है.
भिक्षाटन आदि अनेक नाम रूप हैं भीख मांगने के .ये तमाम लोग भीख मांगकर आपको दाता होने का गौरव देते थे ।देतें हैं देते रहेंगे
वाकई विचारणीय लेख है...बधाई.
भिक्षां देहि का रोचक विश्लेषण।
भिक्षाम देहि :तेरे रूप अनेक न कहें तो क्या कहें
yes beautifully written
agree with you
अरविन्द भाई भिक्षा और दान का फर्क पूछ रहें हैं .तो भाई साहब एक फर्क तो यह है ,दान दिया जाता है ,भिक्षा मांगी जाती है ।
जब हम लेने वाले की पात्रता ,उसके श्र्ध्येय गुणों से प्रभावित होकर उसके जीवन यापन के लिए कुछ दे देतें हैं ,वह दान कहलाता है .दान देकर हम स्वयं को उपकृत महसूस करतें हैं ,हमारा दान किसी ने स्वीकार किया ।
भिक्षा पात्र नहीं देखती ।
लेकिन इन पश्चिम वालों को (पेन हेंड -लार्स )को आप क्या कहिएगा -हाथ नहीं फैलातें हैं मांगने के लिए .आत्मा -भिमान बनाए रहतें हैं .
आपका लेख सुन्दर व सार्थक है.
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