शुक्रवार, 8 जुलाई 2011

युवा पीढ़ी को क्या "सेक्सार्थी "....युवा पीढ़ी को क्या "सेक्सार्थी बनादें ?"

युवा पीढ़ी को क्या "सेक्सार्थी बनादें ?"
अपनेखासुल ख़ास गुरुवत एक मित्र से हम बतिया रहे थे .चर्चा एक बेस्ट सेलर ब्लोक बस्टर किताब की चल रही थी .हमने उन्हें बतलाया किताब अच्छे सवाल उठाती है यौन चेतना और खबरदारी और अहतियात के बारे में .एक तो तमाम फिल्टरों से लैस किए जाने के बाद भी सेक्स की बाबत इतना कुछ बिना छना क्रूड फॉर्म में किशोर मनों तक पहुँच रहा है ,वह न उसे समझ पा रहें न कोई तालमेल बिठा पा रहें हैं इस सूचना माया जाल से .दूसरे सेक्स को हमने आदिनांक वर्जित क्षेत्र बनाया हुआ है अगर कोई उसकी खुल के बात करे ,शैतान की आयतें लिखे तो उसकी न सिर्फ किताब ज़प्त कर ली जाती है ,उसके निकलने बड़ने पर भी पाबंदी आयद हो जाती है फतवे निकल आतें हैं .
हमने अपने अज़ीज़ दोस्त को यह भी बतलाया -सेंटर्स फॉर डिजीज कंटोल एंड प्रिवेंशन की एक विज्ञप्ति के अनुसार तकरीबन ५० %किशोर किशोरियां ९-१२ वीं कक्षा में पढने पढ़ाने के दौरान ,सम्भोग रत भी हो लेतें हैं .ऐसे में इन्हें यौन संपर्कों से लगने वाले रोगों ,संक्रमणों ,एच आई वी एड्स और हिपेतैतिस -बी के खतरों के साथ साथ सुरक्षित यौन -सम्बन्ध से कौन वाकिफ करवाएगा .
कौन बतलायेगा इन्हें -गुड वाइफ ,गुड लाइफ .जहां औरत का सम्मान है ,मोनोगेमस समाज हैं वहां खुश हाली है समाज परिवार का ढांचा सुरक्षित है .औरत खेलने की चीज़ नहीं हैं .प्रति -बद्ध होना पड़ता है सम्बन्धों में .और फिर परिवार ही तो सबसे बड़ी शिक्षा -मूलक इकाई है .
मित्र एक दम से भड़क गये .कहने लगे -अभी मन्यु ने चक्रव्यू में सेंध लगाना बचपन में ही सीख लिया था वहां यौन विद्या का कोई ज़िक्र नहीं है .शरीर की उत्तेजना की जानकारी यौनिक चिंतन में ले जाके छोड़ देगी इस किशोर मन को .
जैसे पशु वेग को प्रकृति और ऋतु चक्र नियंत्रित विनियमित करता है ऐसे ही इसी तरह शारीरिक विकास के साथ शरीर यात्रा के साथ सेक्स खुद अपने भेद खोल देता है .पुराने ज़माने में परिवार की रीत दादी नानियाँ समझा देतीं थीं .कुछ न कुछ संगी साथी सिखला देतें हैं .इसमें यौन -शिक्षण की क्या ज़रुरत है .
और भी ज्ञान हैं जानकारियाँ हैं ,परा -मनो -विज्ञान है ,विज्ञान फ्रायड की यौन -उतेजना,यौन -चेतना तक सीमित नहीं है जिसका पाठ वह लगातार पढाता रहा .
मन बुद्धि का चैन हर लेगी ये यौन जानकारी किशोर मन का .क्या आप उन्हें -
विद्यार्थी की जगह सेक्सार्थी बनाना चाहतें हैं .?
बेशक बायलोजी ,लाइफ साइंसिज़ स्कूल कोलिज में पढ़ाई जाती है लेकिन यह चिकित्सा विज्ञान की जानकारी मुहैया करवाने के लिए एक बुनियादी जानकारी भर है .
होमो -सेपियन नाम की जैव इकाई को चूहे की तरह नहीं लिया जाना चाहिए जिस पर आज़माइश की जातीं हैं .
ऐसा हुआ तो वर्ण -संकर ही पैदा होंगें .असल बात है प्रेम करना और प्रेम में जीना .
शरीर संरचना को अलग से वर्ना -क्युलर देना ज़रूरी नहीं है .शरीर खुद भी शिक्षण दे देता है .अपने वक्त पर शरीर खुद सूचना देता है .उसका कापी राईट बनाने की इजाज़त नहीं दी जा सकती .ये स्वाभाविक प्रक्रिया है इसे समझने की कोशिश करो .शरीर की उत्तेजना जब आनी है तब आनी है .यौन -विज्ञान के अलावा विज्ञान की और भी शाखाएं हैं उधर ध्यान दो .बीच -बीच में मित्र कह रहे थे -तुम समझ रहे हो न .हम हामी भरे जा रहे थे .और करते भी क्या .हमें तो उनके विचार जानने थे इस विषय पर .उसमे हम कामयाब आये .
सच्चाई और बहुत हैं जीवन में यौन यानी सेक्स अकेली सच्चाई नहीं है .मित्र बे -हद भड़के हुए थे .कहने लगे तुम अपनी वैज्ञानिक बुद्धि से ही (तक ही )सोच पाते हो .
कौन कहता है कि सपनो को न आने दें ,हृदय में ,
देखतें हैं सब इन्हें अपनी उम्र अपने समय में .
आप समाज पर मेहरबानी रखो ,अपनी जानकारी अपने पास रखो .बख्शो समाज को तोड़ो मत यौन -ज्ञान से .सेक्स का विषय उत्तेजनात्मक विषय है ,तूफ़ान ला सकता है ,सामाजिक सुनामी आ जायेगी .सूचना से कोई ग्यानी नहीं हो जाता है .कोई सूचना अंतिम सूचना नहीं होती .सूचना कभी ख़त्म नहीं होंगी .यौन शिक्षण को लेकर जितना हो हल्ला मचाया जा रहा है सब फ़िज़ूल है कमसे कम तुम इस पचड़े में न पड़ना.हटो इधर से और भी विषय हैं उन पर लिखो .
सूचना वह जिसे तटस्थ भाव से पढ़ा जा सके ,जो सूचना उत्तेजना फैलाए वह समाज का अहित ही करेगी .अब देखिए हिसात्मक फ़िल्में बनाकर हम नारी पर अत्याचार दिखातें हैं ,और फिर कहतें हैं नारी पर अत्याचार नहीं होना चाहिए .तो एक प्रकार से हम हिंसा को स्थापित कर रहें हैं .भूलों मत जितनी भी बड़ी हिंसाएँ हुईं हैं वह इसी यौन के कारण हुईं हैं .
(ज़ारी ...)

29 टिप्‍पणियां:

अशोक सलूजा ने कहा…

वीरू भाई राम-राम ...
बड़ा नाजुक विषय उठा दिया ...!पर है ,सच्चाई से भरपूर !!!अब कुछ तो लौग कहेंगे ...???
शुभकामनायें !

Vivek Jain ने कहा…

बहुत बढ़िया मुद्दा है ये, पर सच कहा है आपने, प्रेम और सेक्स अलग अलग हैं,
आभार- विवेक जैन vivj2000.blogspot.com

Bharat Bhushan ने कहा…

राम राम जी, जिस तरह से सेक्स से डराया जाता है वैसे ही सेक्स की सही जानकारी भी दी जा सकती है. लिंग भागों का नाम तक लेने से लोग शर्माते हैं. इस टैबू को तोड़ना होगा. जिनके मन में सेक्स को लेकर कुंठा होती है वे अधिक शर्माते हैं.
यह भी उतनी बड़ी सच्चाई है कि बच्चों को इस बारे में बहुत वस्तुनिष्ठ हो कर न बताना उन्हें अनजाने खतरे में डालना है. उन्हें पहले आगाह करने की आवश्यकता है. अनुभव हो जाने के बाद संभव है उनके पास संभलने का क्षण ही न रहे. तब हमारे मित्र क्या कर लेंगे?

virendra sharma ने कहा…

बहुत कीमती सुझाव है भूषन जी ,परिपक्व भी .शुक्रिया .

SANDEEP PANWAR ने कहा…

सेक्स एक ऐसा विषय है जिस पर खुले आम बोलने में सबकी फ़टती है,
लेकिन ये भी सच है कि इसके बिना कोई रह भी नहीं पाता है,
हमारे जैसे तो शादी के बाद ही इसका अनुभव जान पाये,
लेकिन ऐसे ऐसे धुरंधर भी है
जो दस पन्द्रह साल की उम्र से ही इस रोमांचक योग को शुरु कर देते है,
लेकिन ये ऐसा योग है जो तन व मन दोनों को चुस्त व मस्त तो रखता ही है,
और भी कई फ़ायदे है, व नुक्सान भी है,
अगर ये योग एक की जगह अनेक साथी के साथ किया जाये तो?
इस पर लिखने को बहुत कुछ है.....................

virendra sharma ने कहा…

संदीप भाई अगर यह योग (सम्भोग )एक से ज्यादा साथियों से किया जाए तो रोग -भोग -अभियोग और भी बहुत कुछ बन जाता है .हम एक मोनो -गेमस समाज रहें हैं .और फिर आज तो पोली -गेमस होना वैसे भी खतरे से खाली नहीं है इसीलिए भारत सरकार कहती है -सुरक्षित यौन सम्बन्ध बनाइये -कंडोंम एक फायदे अनेक .(वैसे कितनी अजीब बात है जो रास्ता सम्भोग से समाधि तक जाता है ,उसे हम असुरक्षित बनाने की ताक में रहतें हैं इसी लिए तो यौन शिक्षण -प्रशिक्षण की बात चली है .अब भला पक्षियों और मनुष्येतर प्रार्नियों को यौन शिक्षा कौन देता है .ऋतू चक्र से जुड़ें हैं ये प्राणि .)

Arvind Mishra ने कहा…

पहले अपने मित्र का नाम बतायें .....अगर यह महज आपकी रोचक शैली का ही कमाल नहीं है तो ! और यह भी की मित्र किस लिंग के हैं ?
बाकी हम आपके मित्र के ख़याल से इत्तेफाक रखते हैं और आपकी बतकही चूंकि अभी जारी है इसलिए कहें भी तो क्या ?

virendra sharma ने कहा…

अरविन्द जी !मित्रवर है डॉ .नन्द लाल मेहता "वागीश "डी.लिट .हम उन्हीं का एक्सटेंशन नंबर हैं .

Dr. Zakir Ali Rajnish ने कहा…

Saarthak chintan.

www.navincchaturvedi.blogspot.com ने कहा…

दोहरे मानदंडों पर सही कटाक्ष

बेहतर है मुक़ाबला करना

Surendra shukla" Bhramar"5 ने कहा…

आदरणीय वीरू भाई हार्दिक अभिवादन बहुत ही सुन्दर विचार और वाक्य आप के सार्थक लेख -
क्या सेक्स के लिए सिखायेंगे वे जो इसकी तरफदारी करते हैं पुस्तकें बांटेंगे धंधा उनका चलेगा और भी बहुत कुछ जो बचा है सत्यानाश हो जायेगा सारे अभिभावक अब कम्पूटर और टी वी आने से त्रस्त हैं बच्चे भटकते जा रहे साइबर कैफे में कुछ और ही परोसा जा रहा नेट कि दुनिया से कौन अनभिज्ञं है ??
बावजूद इन सब के इस पर बात उठाना ..खतरनाक है इस का विरोध ही होना चाहिए -
शुक्ल भ्रमर ५

virendra sharma ने कहा…

सुरेन्द्र शुक्ल भ्रमर भाई !गुड और बेड टच क्या होता है .इसमें फर्क करना बच्चे को आना नहीं चाहिए क्या ?आज कितने ही पीडियो -फिलियाक्स (बाल यौन संसर्ग उत्सुक स्वान )इधर उधर स्ट्रे केटिल से मिल जातें हैं .हम तो यही मानतें हैं शिशु काल से इसका बोध करवाना आज लाजिमी है .सबसे पहले बच्चा एनाटोमी का फर्क देखता समझता है ..हम ऐसे कई परिवारों को जातें हैं जहां माँ -बाप बच्चे शिशु काल में एक साथ स्नान करतेंरहें हैं .सहज रूप एक औतुस्क्य भाव संतृप्त होता है .शरीर संरचना के प्रति .कई लोग इसे बच्चे की अस्मिता पर हल्ला बोलना कह सकतें हैं .हमारा मानना है जैसे हम बच्चे को सड़क पार करने के नियम सिखातें हैं .ड्राई -विंग लाइसेंस की उम्र से वाकिफ करवातें हैं ,वोटीग की उम्र से वाकिफ करवातें हैं ऐसे ही एक्टिव सेक्स की उम्र सम्बन्धी इत्तला क्यों नहीं दे सकते .उसकी अवहेलना के नतीजे क्यों नहीं समझा सकते .अवांच्छित ,उम्र -पूर्व यौन संपर्कों से पैदा रोगों ,किशोरावस्था की गर्भावस्था के निहित खतरों का इल्म क्यों नहीं करवा सकते ?यह क्यों नहीं बतला सकते जैविक विकास सम्पूर्ण होने की एक उम्र होती है जो लड़कियों के लिए २१ और लड़कों के लिए परम्परा गत तौर पर २५ रही है .उससे पहले छात्र धर्म है .२५ का होते होते जितनी परिक्वता लड़कों में आती है वह लड़कियों में २० के पाले को उलाकते हुए आ जाती है .यौन परिपक्वता का उम्र से सम्बन्ध है .यौन विज्ञान भी बस एक विज्ञान है सभी ज्ञान, विज्ञान हैं .वर्गीकरण सुविधा के लिए किया गया है .ज्ञान व्यक्ति को साधता है .विद्या उसका अलंकरण करती है .यौन विद्या इसका अपवाद कैसे हो सकती है .आजकल तो बच्चे गे की बाबत भी पूछते हैं .औत्सुक्य रखतें हैं .बाई -सेक्स्युअल ,लेस्बियन ,गे ,ट्रांस -जेंडर आदि क्या है ?लोग सेक्स क्यों चेंज करतें हैं .सेक्स्युअल आई -डेन -टीटी और सेक्स्युअल ओरिएंटेशन क्या है ?ये तमाम सवाल आज बाल मन में अन -उत्तरित पड़ें हैं .इनका अध् -कचरा समाधान कोई पीडो -फिलियाक उन्हें करवा सकता है ख़तरा यही है .

virendra sharma ने कहा…

मान्य- वर ,आप ब्लॉग पर पधारे ,टिपियाए ,शुक्रिया !लेकिन इस मौके पर जेहन में कुछ सहज स्फूर्त सवाल हैं कृपया इन पर रोशनी डालें -जिस "जेन -एक्स" का हीरो माइकल जेक्शन रहा हो जिस पर यौन -बाल प्रेम / शोषण को लेकर मुकदमा चला ,जिसका अपने बोलीवुड में आदर्श "सीरियल किसर हो "जो "ओरल सेक्स "को सेक्स न मान कर महज़ एक रिलीज़ होने का अपनी ना -समझी में एक सुरक्षित ज़रिया मानती हो क्या उसे यह जानकारी माँ -बाप द्वारा न उपलब्ध करवाई जाए एक गरिमा पूर्ण तरीके से इसके अंतर -निहित खतरे बतलाते हुए .ह मसे भी कितनों का ही बचपन में जान पहचान के लोगों द्वारा यौन शोषण हुआ है .आज ये समस्या ज्यादा उग्र रूप लिए और आमफ़हम है तभी तो ३-४ साला क्या नवजात से लेकर ७५ साला दादी माँ तक किसी अनजान के यौन निशाने पे आ हवश का शिकार हो चुकी हैं .कृपया शांत न रहें .एक बार फिर टिपियाएँ .

रविकर ने कहा…

नाजुक विषय ||
meri tippani kal subah ||

SANDEEP PANWAR ने कहा…

नमस्कार जी
आपने ये लेख लिख कर उन लोगों की दुख्ती रग पर हाथ रख दिया है, जो जाने अनजाने इस झंझट में घुस चुके है
हर चीज की तरह इस विषय के बारे में भी समझाना चाहिए, ताकि कोई किसी को बहला फ़ुसला भी ना सके, इसके बाद भी कोई बिगडता है तो उसकी तो?

virendra sharma ने कहा…

प्यारे ब्लोगार्थियों -मेरा मंतव्य सिर्फ इतना है "सुरक्षा कवच धारण करके कुरुक्षेत्र के मैदान में कूदने की भी एक उम्र होती है ".बकौल भारत सरकार महक -मा --ए -सेहत कंडोम एक फायदे अनेक हो सकतें हैं .लेकिन श्रीमान कंडोम कब किस उम्र में काम में लिया जाए असल सवाल इस चर्चा से ये आ जुड़ा है .मैथुनी मुद्राओं में कंडोम के विज्ञापनों ,इन्हीं मुद्राओं में गानों के फिल्मांकन पर आप रोक नहीं लगा सकते .ये कामासन कब किये जाएँ यह तो समझा ही सकतें हैं .वात्सायन के काम सूत्र ,गीतगोविन्दम और "खजुराहों" के जहां भी देश में हैं(सिर्फ छत्तीस गढ़ ही नहीं )का सार तत्व कौन समझाए -कौन बतलाये प्रबु तक पहुंचने की पहली सीढ़ी भी शरीर से सम्भोग से होके जाती है जिसकी एक उम्र होती है .गर्भ कक्ष में खाजुराओं के भी सिर्फ और सिर्फ शिव लिंग है .भित्ति चित्रों में काम है ,बाहर प्रवेश द्वार पर . यही छोड़ के जाइए इस काम को तब पहुंचेंगें परम -धाम .पाबंदी सम्भोग पर नहीं है भोग पर है .और सम्भोग की एक उम्र होती है .

सुरेन्द्र सिंह " झंझट " ने कहा…

सही उम्र और समय पर पूरी शालीनता और स्वाभाविकता के साथ सेक्स सम्बन्धी आवश्यक जानकारी माता-पिता द्वारा बच्चे को दिया जाना उचित है |

Dr Ved Parkash Sheoran ने कहा…

बोलने में सबकी फ़टती है,
............... कंडोम कब किस उम्र में काम में लिया जाए असल सवाल इस चर्चा से ये आ जुड़ा है .मैथुनी मुद्राओं में कंडोम के विज्ञापनों ,इन्हीं मुद्राओं में गानों के फिल्मांकन पर आप रोक नहीं लगा सकते .ये कामासन कब किये जाएँ यह तो समझा ही सकतें हैं ....... लिंग भागों का नाम तक लेने से लोग शर्माते हैं...... प्रेम और सेक्स अलग अलग हैं,..........Hari om......

महेन्‍द्र वर्मा ने कहा…

कुछ बातों को प्रकृति स्वयं सिखा देती है।

महेन्‍द्र वर्मा ने कहा…

कुछ बातों को प्रकृति स्वयं सिखा देती है।

Satish Saxena ने कहा…

एक आवश्यक विषय जिस पर पढना सब चाहते हैं राय कोई नहीं देना चाहता ! अगले लेख की प्रतीक्षा में
शुभकामनायें आपको !

रविकर ने कहा…

जिम्मेदारी के लिए, हो जाओ तैयार,
बच्चों के प्रति है अगर, थोडा सा भी प्यार |
थोडा सा भी प्यार, बड़ा विश्वास जगाओ--
सबसे पहले स्वयं, कठिन संयम अपनाओ |
है जो बात जरुरी, उसकी करो तैयारी |
नैतिक शिक्षा हुई , आज की जिम्मेदारी ||

स्नेहमयी स्पर्श की, अपनी इक पहिचान,
बुरी-नियत संपर्क का, चलो दिलाते ध्यान |
चलो दिलाते ध्यान, बताना बहुत जरुरी,
दिखे भेड़ की खाल, बना के रक्खे दूरी |
करो परीक्षण स्वयं, बताओ सीधा रस्ता,
घर आये चुपचाप, उठा के अपना बस्ता ||


पहली कक्षा में सिखा, सेहत के सब राज,
और आठवीं में बता , सब अंगों के काज |
सब अंगों के काज, मगर विश्वास जरुरी,
धीरे - धीरे शांत, करो उत्सुकता पूरी |
खतरे - रोग - निदान, बताना एक - एक कर,
तरह-तरह के लोग, चलो नित संभल-संभल कर ||

संजय भास्‍कर ने कहा…

आदरणीय वीरू भाई जी
नमस्कार !
बहुत बढ़िया मुद्दा है सुन्दर विचार और सार्थक लेख

संजय भास्‍कर ने कहा…

अस्वस्थता के कारण करीब 20 दिनों से ब्लॉगजगत से दूर था
आप तक बहुत दिनों के बाद आ सका हूँ,

रविकर ने कहा…

चंचल मन पर क्या कभी, चला किसी का जोर
हलकी सी बहती हवा, आग लगाए घोर |
आग लगाए घोर, बचाना चिंगारी से,
पढना लिखना खेल, सिखाओ हुशियारी से |
कह रविकर समझाए, अगर पढने में कच्चा,
रखिये ज्यादा ध्यान, बिगड़ जाये न बच्चा ||

रविकर ने कहा…

बच्चों को भी हो पता, होवेगा कब व्याह,
रोजगार से लग चुका, तब भी भरता आह |
तब भी भरता आह, हुवा वो पैंतिस साला--
बढ़ जाते हैं चांस, करे न मुँह को काला |
सही समय पर व्याह, कराओ उसका भाई,
इधर-उधर हर-रोज करे न कहीं सगाई ||

रविकर ने कहा…

जिम्मेदारी के लिए, हो जाओ तैयार,
बच्चों के प्रति है अगर, थोडा सा भी प्यार |
थोडा सा भी प्यार, बड़ा विश्वास जगाओ--
सबसे पहले स्वयं, कठिन संयम अपनाओ |
है जो बात जरुरी, उसकी करो तैयारी |
नैतिक शिक्षा हुई , आज की जिम्मेदारी ||


स्नेहमयी स्पर्श की, अपनी इक पहिचान,
बुरी-नियत संपर्क का, चलो दिलाते ध्यान |
चलो दिलाते ध्यान, बताना बहुत जरुरी,
दिखे भेड़ की खाल, बना के रक्खे दूरी |
करो परीक्षण स्वयं, बताओ सीधा रस्ता,
घर आये चुपचाप, उठा के अपना बस्ता ||


पहली कक्षा में सिखा, सेहत के सब राज,
और आठवीं में बता , सब अंगों के काज |
सब अंगों के काज, मगर विश्वास जरुरी,
धीरे - धीरे शांत, करो उत्सुकता पूरी |
खतरे - रोग - निदान, बताना एक - एक कर,
तरह-तरह के लोग, चलो नित संभल-संभल कर ||


चंचल मन पर क्या कभी, चला किसी का जोर
हलकी सी बहती हवा, आग लगाए घोर |
आग लगाए घोर, बचाना चिंगारी से,
पढना लिखना खेल, सिखाओ हुशियारी से |
कह रविकर समझाए, अगर पढने में कच्चा,
रखिये ज्यादा ध्यान, बिगड़ जाये न बच्चा ||


बच्चों को भी हो पता, होवेगा कब व्याह,
रोजगार से लग चुका, तब भी भरता आह |
तब भी भरता आह, हुवा वो पैंतिस साला--
बढ़ जाते हैं चांस, करे न मुँह को काला |
सही समय पर व्याह, कराओ उसका भाई,
इधर-उधर हर-रोज करे न कहीं सगाई ||

G.N.SHAW ने कहा…

बिन सिखाये लोग काफी सिख जाते है , सिखाने पर भी बहुत कुछ ....! वैसे किसी चीज को छुपाने पर उत्सुकता बढ़ती है , खुली रहने से नदारद ! शिक्षा का अभाव भी हमारे देश की जनसंख्या का एक कारण है ! बहुत सुन्दर प्रस्तुति ! पर्दा हटाना जरुरी है !

virendra sharma ने कहा…

इस मुद्दे पर आज एक उन्नीस साला नव यौवना (किशोरी )से भी बातचीत हुई .बकौल उसके माँ -बापयदि मुझे १२-१३ साल की उम्र में और बातों की तरह इस उंच नीच अच्छे बुरे स्पर्श का भान कराते तो आज मेरी ये दुर्गति न होती (बतलादें आपको ये अभागी जिसकी मा बचपन में चल बसी थी सौतेली के हवाले है ,बाप दलाल ज्यादा अर्द्ध सरकारी मुलाजिम कम )आखिर और बातें भी तो वह बतलाते थे स्कूल से सीधे घर आना है .उस लड़के और इस लडकी के साथ कहीं नहीं जाना है ,यह लडकी एक एबोरशन के बाद अब पोलिसिस्तिक्क ओवेरियन सिंड्रोम से ग्रस्त है .