वीरुभाई १९४७ जीमेल कॉम :
व्यक्ति नाम और रूप से ही पहचाना जाता है .अब अगर व्यक्ति रूप को विरूपित करके खुद को रहस्य मय बना ले और नाम को छिपाले .वर्ज्य घोषित करदे अपनी संज्ञा सिर्फ वर्ज्य नारी कहकर अपने एक्स -एक्स होने की खबर दे तो रहस्य और भी गहरा जाता है ।
यहाँ हम बतलादें आपको हमारा सिद्धांत है कोई पश्तो में बात करता है तो पश्तो में ही उसका ज़वाब दो .अनुवाद मत करो ।
अनुवाद से भाव दब जाता है ।
विकर्षण में भी आकर्षण होता है क्योंकि विकर्षण कहते ही नकारात्मक आकर्षण को हैं ।
हेड देयर बीन नो रिपल्शन इन दी यूनिवर्स ,यूनिवर्स वुड हेव कोलेप्स्द .जब इल्क्त्रों और प्रोटोन भी एक दूसरे के एक न्यूनतम सीमा का अतिक्रमण कर और करीब आ जातें हैं तो वे परस्पर एक दूसरे को आकर्षण भूल विकर्षित करने लगतें हैं .विकर्षण से ही आकर्षण है .और विकर्षण पहले आता है आकर्षण बाद में ।
सवाल और अभिप्राय यहाँ पर इतना भर है यदि कोई नारी वर्ज्य है तो वह वर्ज्य पुरुष के स्तर पर है या स्वयम अपने स्तर पर वर्ज्य है ।
अगर वह वर्ज्य अपने ही स्तर पर है तो सामान्य -करण का विचार ही नहीं आना चाहिए .और अगर आप ऐसा करतें हैं अपना नाम और रूप दोनों गोपित रखते हुए .तो संवाद कैसे हो .संवाद का स्तर कमसे कम सम -बुद्धि होना चाहिए ।
क्या वह वर्ज्य नारी अपने आप से डरी हुई है ?
और अगर पुरुष से डरी हुई है तो अपने आसपास फैला धुआँ हटाना चाहिए उसे और नहीं फैलाना चाहिए ।
किसी भी व्यक्ति को अपनी मजबूरियों को अपना शौक नहीं बनाना चाहिए ।
संवाद के दरवाज़े कभी बंद नहीं होते .धुआं हटाने से खुले हुए दरवाज़े नजर आयेंगें ।
गोपित ,गोपन और गुप्त -ता को तोड़ने वाले कई लोग बैठें हैं हम सभी के आसपास .जो जिस तरीके से चले उसकी चुनौती को उसी परिप्रेक्ष्य में लो ।
सवाल यह है यह वर्ज्य नारी दार्शनिक बनना चाहती है या गोपनीय .पहली स्थिति में संवाद की पूरी गुंजाइश है .इति।
वीरुभाई ,४३३०९ ,केंटन (मिशगन ),४८ १८८
दूरभाष :००१ -७३४ -४४६ -५४५१
ई -मेल :वी ई ई आर यू बी एच ए आई (veerubhai 1947@gmail.com)
शुक्रवार, 1 जुलाई 2011
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
7 टिप्पणियां:
विकर्षण में भी आकर्षण होता है क्योंकि विकर्षण कहते ही नकारात्मक आकर्षण को हैं ।
हेड देयर बीन नो रिपल्शन इन दी यूनिवर्स ,यूनिवर्स वुड हेव कोलेप्स्द .जब इल्क्त्रों और प्रोटोन भी एक दूसरे के एक न्यूनतम सीमा का अतिक्रमण कर और करीब आ जातें हैं तो वे परस्पर एक दूसरे को आकर्षण भूल विकर्षित करने लगतें हैं .विकर्षण से ही आकर्षण है .और विकर्षण पहले आता है आकर्षण बाद में ।
थोडा फासला रखकर हर सम्बन्ध खूबसूरती से निभाया जा सकता है
जबसे उनका यह वक्तव्य आया है कि बनारस ने उन्हें बहुत कष्ट दीना है मैं भी दुखी हूँ -क्या करूँ कैसे उनकी पीर हरू ...जब उनका कुछ अता पता ही नहीं और चित्र भी खबरदारिया लगा रखा है .....उनके कारण तो मैं भी क्षुब्ध हूँ ....
आप भी न कहाँ कहाँ नजर लगाए लगते हैं वीरू भाई -यह मामला मुझे ही सौपिये न >..
वीरुभाई,राम-राम ,
इतनी गूढ़-गूढ़ बातें लिखते हो कि....
इसी लिए ई-मेल पर अपनी सच्चाई बयाँ कर दी थी|पर आप ने कोई ज़वाब ही नही दिया...
यहाँ बहुत ज्ञानी है !अपना क्या..हा हा हा
शुभकामनायें !
bahut gahri baaten likh daali sirji...
कितने सुंदर ढंग से आपने आपने इतनी गहरी बात समझा दी.... मनन योग्य विचार लिए पोस्ट ...- डॉ मोनिका शर्मा
मैं तो आपकी पोस्ट पढ़ कर सोंच में पड़ जाता हूँ गहन विषयों पर आपका लेखन कमाल का है | राम राम जी .....
bahut hi sunder ....padhker bahut accha laga......badhai
एक टिप्पणी भेजें